तामसिक भोजन से दूर रहने और अपने मन के अहंकार को दूर करो,भोलेनाथ आपका जीवन धन्य करेंगे –पंडित प्रदीप मिश्रा

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मयाली में शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन हर हर महादेव से गुंजा शिव धाम भोले बाबा को बस एक लोटा जल सारी समस्या का हल जशपुर, 22 मार्च 2025/ कुनकुरी मयाली में विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर पहाड़ के सामने प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा शिवभक्तों को संगीतमय वातावरण में (भोले बाबा… ने बहुत दे दिया है … तेरा शुक्रिया है,,) भजन गाकर झूमने पर मजबूर कर दिया । आज शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन पंडित श्री प्रदीप मिश्रा ने अपने प्रवचन में मनुष्य को मांस मंदिरा तामसिक भोजन से दूर रहने का आग्रह किया और शिव की आराधना शिव की भक्ति में मन लगाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भोजन करते समय अपना पानी स्वयं रखें उसके बाद ही भोजन करें इससे तीन प्रकार की बीमारी ठीक हो जाती है। पहला घुटने का दर्द, दूसरा रीड की हड्डी का दर्द और तीसरा सर का दर्द दूर हो जाता है। शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने कैलाश पर्वत पर नन्दी भोले बाबा के प्रिय क्यों है उनकी महत्ता बताई कि कोई काम बहुत समय से सफल नहीं हो पा रहा है तो एक काम करो शिव की भक्ति करो। भक्तों को अहंकार से दूर रहने और अपने भीतर के बुरे विकारों को भी दूर करने के लिए कहा। कुनकुरी विकासखंड में विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग के तौर पर मान्यता प्राप्त मधेश्वर महादेव की गोद में हो रहे शिव महापुराण कथा को सुनने छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों से बड़ी संख्या में भक्तगण यहां पहुंचे हैं। 27 मार्च तक चलने वाली इस कथा में श्रद्धालुगण दिव्य अनुभव प्राप्त करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय सहित उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने भी आज शिव महापुराण कथा का रसपान किया। जशपुर जिला प्रशासन ने भी श्रदालुओं की सुविधा के लिए पूरे इंतजाम किए हैं। कार्यक्रम स्थल में मंच, बैठक व्यवस्था, बैरिकेडिंग, पंडाल खोया पाया केंद्र और अस्थाई अस्पताल की भी सुविधा उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ ही श्रद्धालुओं की टावर की समस्या को देखते हुए जिला प्रशासन ने कथा स्थल पर मोबाइल का टावर भी लगवाया है।

“जो कोई कैलाश मानसरोवर नहीं जा पाता, वह मधेश्वर महादेव के दर्शन कर जीवन धन्य कर ले”: पंडित प्रदीप मिश्रा

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मयाली में शिव महापुराण कथा का शुभारंभ, भक्ति में डूबे श्रद्धालु जशपुर, 21 मार्च 2025। हर हर महादेव के जयघोष से पूरा मयाली क्षेत्र भक्तिमय हो उठा। शिव महापुराण कथा का वाचन कर रहे पंडित प्रदीप मिश्रा ने शिवभक्तों को भावविभोर कर दिया। पहले दिन उन्होंने कहा कि जो कैलाश मानसरोवर की यात्रा नहीं कर पाता, वह मधेश्वर महादेव के दर्शन कर जीवन धन्य कर सकता है। सनातन धर्म और भारत भूमि में जन्म लेना ही सौभाग्य की बात है। उन्होंने देवराज ब्राह्मण की कथा सुनाकर सार्थक जीवन का संदेश दिया। कुनकुरी विकासखंड में स्थित विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग, मधेश्वर महादेव के समीप हो रही शिव महापुराण कथा में छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंचे हैं। 27 मार्च तक चलने वाली इस कथा में भक्त आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी कौशल्या साय व परिवार के अन्य सदस्यों ने भी कथा का श्रवण किया। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं। मंच, बैठक व्यवस्था, बैरिकेडिंग, पंडाल, भोजन, पेयजल, पार्किंग, अस्थायी शौचालय, सुरक्षा, मेडिकल सुविधाओं सहित 40 बसों की विशेष व्यवस्था की गई है, जिससे भक्तगण सुगमता से कथा स्थल तक पहुंच सकें।

मधेश्वर महादेव: मयाली में शिव भक्ति की धारा, शिवलोक सा नज़ारा

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मयाली,जशपुर, 21 मार्च: जशपुर जिले के मयाली स्थित प्रसिद्ध प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर महादेव के पास भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। महाशिवपुराण कथा के आयोजन ने इस पवित्र स्थल को और अधिक दिव्यता से भर दिया है। श्रद्धा का रंग इस कदर चढ़ चुका है कि लोग इसे अब शिवलोक कहने लगे हैं। कलश यात्रा में उमड़ा भक्तों का जनसैलाब आज कथा के प्रारंभ से पहले कुनकुरी के बेलजोरा नदी से लेकर मयाली कथा स्थल तक भव्य कलश यात्रा निकाली गई। ग्यारह हजार महिलाएं सिर पर कलश रखकर हर-हर महादेव के जयकारों के साथ आगे बढ़ीं। पूरा वातावरण शिवमय हो गया। इस पवित्र यात्रा में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय भी शामिल हुईं। पं. प्रदीप मिश्रा सुनाएंगे महाशिवपुराण 21 मार्च से 27 मार्च तक प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा महाशिवपुराण कथा का वाचन किया जाएगा। जैसे ही कथा का शुभारंभ हुआ, मयाली का पूरा क्षेत्र “हर-हर महादेव” और “जय भोलेनाथ” के नारों से गूंज उठा। मधेश्वर महादेव: जहां शिवलोक का अहसास होता है मयाली में स्थित विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग आस्था का केंद्र बन चुका है। यहां आने वाले श्रद्धालु इसे किसी शिवलोक से कम नहीं मानते। कहते हैं कि इस प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है। भक्तों में भारी उत्साह महाशिवपुराण कथा सुनने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु यहां शिव की भक्ति में लीन होकर भजन-कीर्तन कर रहे हैं। मयाली की पावन भूमि शिवधाम जैसी अनुभूति करा रही है। इस ऐतिहासिक आयोजन के साथ, मधेश्वर महादेव शिवलिंग पर आस्था का रंग पूरी तरह चढ़ चुका है और यह स्थान शिव भक्तों के लिए एक दिव्य तीर्थ बनता जा रहा है।  

पँ.प्रदीप मिश्रा की शिवपुराण कथा में रुद्राक्ष नहीं बांटा जाएगा,आज हेलीकॉप्टर से मधेश्वर महादेव शिवलिंग का होगा जलाभिषेक, कल से कथा होगी शुरू

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मधेश्वर महादेव धाम में पं. प्रदीप मिश्रा आज 2 बजे आगमन, हेलीकाप्टर से करेंगे जलाभिषेक, मयाली में शिव महापुराण कथा का भव्य आयोजन कल से शुरू मयाली (जशपुर), 20 मार्च – श्रद्धालुओं के लिए एक अनोखा आध्यात्मिक अवसर आने वाला है। प्रख्यात कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा आज 20 मार्च को दोपहर2 बजे हेलीकॉप्टर से मधेश्वर महादेव धाम पहुंचेंगे और शिवलिंग पर जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक करेंगे। इसके साथ ही वे 21 मार्च से 27 मार्च तक रोजाना दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक शिव महापुराण कथा का रसपान कराएंगे। विशेष व्यवस्थाएँ और सुरक्षा इंतजाम आयोजन समिति के प्रमुख राजीव रंजन नंदे ने बताया कि कथा स्थल पर श्रद्धालुओं की सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया है। भीड़ प्रबंधन को लेकर एडिशनल एसपी अनिल कुमार सोनी ने अपील की कि श्रद्धालु अपने साथ कीमती आभूषण या अधिक नगदी न लाएं और नशापान से दूर रहें। कथा के दौरान रोज पार्थिव शिवलिंग निर्माण होगा, जिसे 27 मार्च को विधि-विधान से विसर्जित किया जाएगा। इसके अलावा, रुद्राक्ष और प्रसाद वितरण नहीं किया जाएगा, जिससे भगदड़ की कोई स्थिति न बने। श्रद्धालुओं के लिए विशेष बस सेवा जिले भर से शिवभक्तों के लिए सभी ब्लॉकों और कई गाँवों से बसें चलाई जाएंगी, जो श्रद्धालुओं को कथा स्थल तक लाने और वापस ले जाने का कार्य करेंगी। इस सेवा के लिए भाड़ा भी निर्धारित कर दिया गया है। प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद संभावित भारी भीड़ को देखते हुए कलेक्टर रोहित व्यास और एसएसपी शशिमोहन सिंह अपनी टीम के साथ प्रतिदिन कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण कर रहे हैं। आयोजन समिति द्वारा भंडारे की विशेष व्यवस्था भी की गई है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। शिवभक्तों के लिए यह पं. प्रदीप मिश्रा के सान्निध्य में एक दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभव होगा, जिसमें वे भगवान शिव की महिमा और भक्ति की गहराइयों को आत्मसात कर सकेंगे।

पंडित प्रदीप मिश्रा विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर महादेव में करेंगे 21 से महाशिवपुराण कथा

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प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के आगमन की भव्य तैयारी, 21 से 27 मार्च तक होगी कथा जशपुर, 9 मार्च 2025: सर्व हिंदू समाज के आह्वान पर 21 मार्च से 27 मार्च तक विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर महादेव की गोद में महाशिवपुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है। इस दिव्य कथा को प्रसिद्ध शिवपुराण कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा सुनाएंगे। आयोजन को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। कल सोमवार को मयाली नेचर कैंप के पास सुबह 9:30 बजे भूमि पूजन किया जाएगा, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे। कौन हैं पंडित प्रदीप मिश्रा? मध्यप्रदेश के सीहोर निवासी पंडित प्रदीप मिश्रा देशभर में अपनी शिवमहिमा से जुड़े प्रवचनों के लिए विख्यात हैं। वे अपने सरल व प्रभावशाली कथन शैली से शिव महापुराण, शिव कृपा, और रुद्राक्ष महिमा पर प्रकाश डालते हैं। उनके प्रवचनों से हजारों लोग आस्था से जुड़ते हैं और शिव भक्ति का मार्ग अपनाते हैं। महाशिवपुराण कथा का विशेष महत्व मधेश्वर महादेव धाम में हो रही यह कथा क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक होने वाली है। शिव महापुराण के दिव्य प्रसंगों के साथ, शिव कृपा की महिमा को सुनने के लिए लाखों श्रद्धालु जुटने वाले हैं। इस आयोजन के माध्यम से जशपुर जिले की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को एक नई ऊंचाई मिलेगी। आयोजन समिति ने सभी श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे अधिक से अधिक संख्या में इस कथा में भाग लें और शिव कृपा का लाभ उठाएं।

महाकुंभ 2025: भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक और साम्प्रदायिक सौहार्द का वैश्विक उदाहरण

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निर्मल कुमार प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आयोजित महाकुंभ मेला 2025 न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारत की “एकता में विविधता” की भावना का भव्य उत्सव भी बना। लाखों श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ के बीच, यह आयोजन सौहार्द और आपसी सहयोग की अद्भुत मिसाल पेश करता दिखा। कुछ नकारात्मक ताकतों द्वारा समाज में वैमनस्यता फैलाने की कोशिशों के बावजूद, इस मेले ने साबित कर दिया कि भारत की असली पहचान शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान में निहित है। महाकुंभ मेला, जिसे पृथ्वी का सबसे बड़ा मानव समागम कहा जाता है, हिंदू धर्म के लिए एक अत्यंत पवित्र आयोजन है। हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला यह महायोगिक समागम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर लाखों श्रद्धालुओं को स्नान एवं आस्था के महासंगम का साक्षी बनाता है। हालांकि, इस बार 29 जनवरी 2025 (मौनी अमावस्या) के दिन एक दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ मच गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई और सैकड़ों श्रद्धालु घायल हो गए। इस कठिन समय में, प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने अपनी सद्भावना और मानवता का परिचय देते हुए जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों, मस्जिदों और दरगाहों के दरवाजे खोल दिए। भगदड़ से प्रभावित 25,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को जॉर्ज टाउन, नक्खास कोहना, खुल्दाबाद, बहादुरगंज और जानसेनगंज रोड जैसे इलाकों की मस्जिदों, दरगाहों और इमामबाड़ों में शरण दी गई। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने न केवल जरूरतमंदों को आश्रय दिया, बल्कि उनके लिए भंडारे (सामूहिक भोजन वितरण) का आयोजन भी किया। इनमें हलवा-पूरी, चाय, पानी और फलाहार जैसी व्यवस्थाएँ प्रमुख थीं, जिससे थके-मांदे श्रद्धालुओं को राहत मिली। यह सिर्फ एक सेवा कार्य नहीं था, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का एक जीवंत प्रमाण भी था, जो सदियों से इस देश में भाईचारे और मेल-जोल की भावना को पोषित करता आया है। इंसानियत और भाईचारे की मिसाल इस अवसर पर कई ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण सामने आए, जिन्होंने दिखाया कि धर्म के नाम पर विभाजन की राजनीति कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन आम भारतीय लोगों की मानवीयता और सहिष्णुता हमेशा विजयी होती है। बहादुरगंज के निवासी इरशाद ने भावुक होकर कहा, “ये हमारे मेहमान थे, उनकी पूरी देखभाल करना हमारा कर्तव्य था।” वहीं, अपना चौक के शिक्षक मसूद अहमद ने कहा, “मुसलमानों ने कोई उपकार नहीं किया, बल्कि यह हमारा धार्मिक और नैतिक कर्तव्य था कि हम हिंदू श्रद्धालुओं की सहायता करें ताकि वे अपने धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कर सकें।” सबसे प्रेरणादायक उदाहरणों में से एक रहा फरहान आलम का, जिन्होंने एक 35 वर्षीय श्रद्धालु राम शंकर की जान बचाई। राम शंकर को दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन फरहान ने बिना समय गंवाए CPR (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) देकर उनकी जान बचा ली। यह घटना कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। फरहान का यह साहसिक और निःस्वार्थ कार्य भारतीय समाज में मानवता और परस्पर सहयोग की सुदृढ़ भावना को उजागर करता है। अन्य प्रेरणादायक घटनाएँ महाकुंभ मेला 2025 में बुलंदशहर के मुसलमानों ने भी भाईचारे की मिसाल पेश की। वहाँ के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बन्ने शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाकर कुंभ के श्रद्धालुओं की सुरक्षा और मंगलकामना के लिए विशेष प्रार्थनाएँ कीं। वहीं, प्रयागराज में मुस्लिम भाईयों ने तीर्थयात्रियों का स्वागत फूलों और रामनामी अंगवस्त्र भेंट कर किया। यह एक ऐसा दृश्य था जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की मूल आत्मा भाईचारे, आपसी सम्मान और सांस्कृतिक सौहार्द में निहित है। इसके अलावा, वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम और स्थानीय लोगों ने रोशन बाग पार्क में तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और पानी वितरण केंद्र स्थापित किया। यह पहल केवल एक सेवा कार्य नहीं थी, बल्कि इस्लाम की करुणा और सेवा भावना का प्रतीक भी थी। प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी: सौहार्द के संदेशवाहक इस मेले में प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी का योगदान भी उल्लेखनीय रहा। उन्होंने नफरत और भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देते हुए हजारों लोगों के बीच शांति और सौहार्द के पर्चे बाँटे। उनका यह प्रयास दर्शाता है कि अगर समाज में कुछ लोग नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं, तो उससे कहीं अधिक लोग प्रेम और एकता का संदेश फैलाने में लगे हुए हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की पुनर्स्थापना महाकुंभ मेला 2025 ने यह दिखाया कि कुछ लोग भले ही राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को विभाजित करने की कोशिश करें, लेकिन भारत की असली ताकत इसके आम नागरिकों की एकता, प्रेम और सेवा भावना में ही निहित है। मुस्लिम समुदाय की उदारता, फरहान आलम की बहादुरी और प्रोफेसर त्रिपाठी का शांति संदेश – यह सभी घटनाएँ भारतीय समाज के मूलभूत मूल्यों की याद दिलाती हैं। भारत हमेशा से ही विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। सिखों द्वारा लंगर सेवा, हिंदुओं द्वारा मुस्लिम त्योहारों में भागीदारी और मुसलमानों द्वारा कुंभ श्रद्धालुओं की मदद – ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि जब बात मानवता की आती है, तो धर्म, जाति और भाषा की सीमाएँ महत्वहीन हो जाती हैं। महाकुंभ मेला 2025 को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि भारत के बंधुत्व, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में भी याद किया जाएगा। ऐसे समय में जब हिंसा और कट्टरता के बीज बोने की कोशिशें हो रही हैं, प्रयागराज की जनता ने दिखा दिया कि असली धर्म दया, करुणा और सहयोग में निहित है। भारत एक ऐसा देश है जिसने विविध संस्कृतियों को आत्मसात कर अपने समाज को मजबूत बनाया है और यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी। महाकुंभ मेला 2025 न केवल आस्था का महापर्व था, बल्कि यह एक संदेश भी था कि जब दुनिया में नफरत बढ़ रही हो, तब प्रेम और भाईचारे की लौ को जलाए रखना ही सच्चा धर्म और सच्ची मानवता है। (लेखक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

महाकुंभ: आस्था का पर्व, न कि सांप्रदायिक विवाद

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निर्मल कुमार महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो आस्था, आध्यात्मिकता और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का भव्य उत्सव है। यह अद्वितीय आयोजन प्रत्येक बारह वर्षों में प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होता है, जहां पवित्र गंगा, यमुना और दिव्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। यह मेला भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और कुशल संगठन क्षमता का अद्भुत उदाहरण है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग इस पवित्र अवसर को राजनीतिक रंग देने और सांप्रदायिक दृष्टि से देखने का प्रयास कर रहे हैं, जो न केवल भ्रामक है, बल्कि समाज को बांटने की एक दुर्भावनापूर्ण कोशिश भी है। महाकुंभ: आस्था और परंपरा का प्रतीक महाकुंभ मेला केवल आस्था से जुड़ा एक धार्मिक आयोजन है। इसका मूल आधार वह पौराणिक कथा है, जिसमें समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं, जिससे इन स्थानों को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्राप्त हुआ। हिंदू धर्म में मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर पवित्र स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, यह एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक उत्सव भी है। यहाँ भारतीय परंपराओं, कला, व्यापार, और शिक्षा की झलक देखने को मिलती है। इस मेले की वैश्विक मान्यता का प्रमाण है कि वर्ष 2017 में दक्षिण कोरिया के जेजू में आयोजित यूनेस्को की ‘अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा के लिए अंतर-सरकारी समिति’ ने ‘कुंभ मेला’ को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया था। महाकुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और सामाजिक संरचना का आईना है, जहाँ जाति, वर्ग और सम्प्रदाय से परे सभी को समान दृष्टि से देखा जाता है। सांप्रदायिकता के आरोप निराधार, महाकुंभ का द्वार सबके लिए खुला हाल ही में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि महाकुंभ मेले में मुसलमानों का प्रवेश प्रतिबंधित है, जो पूर्णतः असत्य और समाज में फूट डालने की एक कोशिश मात्र है। महाकुंभ मेला कभी भी किसी जाति, वर्ग या धर्म के लिए निषिद्ध नहीं रहा है। यहाँ सभी समुदायों के लोग आ सकते हैं, बशर्ते वे मेले की परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करें। एक महत्वपूर्ण तुलना हज यात्रा से की जा सकती है। हज मुस्लिम समुदाय का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जिसमें केवल मुसलमानों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, और इस धार्मिक विशिष्टता को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिया जाता है। इसके विपरीत, महाकुंभ में ऐसी कोई धार्मिक पाबंदी नहीं है, और अन्य धर्मों के अनुयायियों का भी स्वागत है। फिर भी, कुछ लोग महाकुंभ को एक सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं, जो भारत की सद्भावना और धार्मिक सहिष्णुता की मूल भावना का अपमान है। sporadic घटनाओं को बहुसंख्यक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करना एक भ्रामक प्रचार से अधिक कुछ नहीं। विश्व का सबसे बड़ा आयोजन: प्रबंधन और प्रशासन की अद्भुत मिसाल महाकुंभ में अनुमानित 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु भाग लेंगे, जिससे यह विश्व का सबसे विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बन जाता है। इतने बड़े स्तर पर आयोजन की सफलता सुनिश्चित करना सरकार, प्रशासन और स्वयंसेवकों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती है। इसके लिए एक अस्थायी टेंट सिटी बसाई जाती है, जिसमें सभी आवश्यक सुविधाएँ—स्वच्छता, पेयजल, चिकित्सा, सुरक्षा, परिवहन आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर तुलना करें तो हज यात्रा में प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख लोग भाग लेते हैं, जिसे आयोजित करना भी एक जटिल कार्य है। लेकिन कल्पना कीजिए कि महाकुंभ में इससे 100 गुना अधिक लोग एकत्र होते हैं, फिर भी प्रशासनिक कुशलता से इसका सफल आयोजन किया जाता है। इस आयोजन की सफलता भारत की प्रशासनिक क्षमता, प्रबंधन दक्षता और तकनीकी नवाचारों का प्रतीक है। इस बार के महाकुंभ में आधुनिक तकनीक का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। ड्रोन कैमरों से सुरक्षा की निगरानी, पर्यावरण अनुकूल व्यवस्थाएँ, डिजिटल भुगतान की सुविधाएँ, और अत्याधुनिक आपातकालीन सेवाएँ इस आयोजन को और अधिक सुव्यवस्थित और सुरक्षित बना रही हैं। महाकुंभ: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति का एक वैश्विक मंच है। यह हमारी सामूहिक स्मृतियों और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है। यह आयोजन न केवल भारत की धार्मिक विविधता को दर्शाता है, बल्कि हमारे समाज की सहिष्णुता, एकता और संगठित प्रशासनिक क्षमता को भी प्रदर्शित करता है। महाकुंभ एकता, आत्मचिंतन और हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व का उत्सव है। हमें इसे राजनीति और संकीर्ण मानसिकता से दूर रखना चाहिए और इसकी वास्तविक भावना को समझना चाहिए। भारत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह दुनिया के सबसे बड़े आयोजनों को कुशलतापूर्वक संभालने में सक्षम है। हमें इस महान उपलब्धि का सम्मान करना चाहिए और इसे भारत की समावेशी और सहिष्णु परंपराओं का प्रतीक मानते हुए गर्व महसूस करना चाहिए। आइए, हम सब मिलकर इस ऐतिहासिक आयोजन की पवित्रता बनाए रखें और इसे विश्वभर के लोगों के लिए चमत्कार और श्रद्धा का केंद्र बनाएं। महाकुंभ केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज का गौरव है। एक संगठित राष्ट्र के रूप में, हमें इस अद्भुत उपलब्धि का उत्सव मनाना चाहिए और अपने बहुसांस्कृतिक समाज की शांति और परस्पर सम्मान की भावना को बनाए रखना चाहिए। (यह लेखक के निजी विचार हैं।लेखक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों,घटनाक्रम पर लेख करते हैं।)

महाकुंभ मेले में भगदड़ से 14 की मौत, 50 से अधिक घायल,ताजा हालात ये है,,,

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प्रयागराज के संगम तट पर मंगलवार-बुधवार की रात लगभग डेढ़ बजे भगदड़ मचने से 14 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए। घटना का विवरण: समय और स्थान: यह हादसा संगम तट पर मंगलवार-बुधवार की रात करीब 1:30 बजे हुआ। कारण: प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, अफवाह के चलते संगम नोज पर भगदड़ मची। कुछ महिलाएं जमीन पर गिर गईं और लोग उन्हें कुचलते हुए निकल गए। प्रशासनिक कार्रवाई: अखाड़ों का स्नान रद्द: प्रशासन के अनुरोध पर सभी 13 अखाड़ों ने मौनी अमावस्या का अमृत स्नान रद्द कर दिया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि संगम नोज पर अधिक भीड़ के कारण यह फैसला लिया गया है। उच्चस्तरीय संज्ञान: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से फोन पर घटना की जानकारी ली है। मृतकों की पहचान: प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतकों में शामिल कुछ व्यक्तियों के नाम इस प्रकार हैं: आशीष फरहत मनीष विकास सचिन सृष्टि प्रकाश राजेश अजय लता सुरक्षा उपाय: प्रवेश पर रोक: हादसे के बाद संगम नोज इलाके में आम लोगों की एंट्री बंद कर दी गई है। भीड़ और न बढ़े, इसलिए प्रयागराज शहर में भी श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए शहर की सीमा से सटे जिलों में प्रशासन को मुस्तैद कर दिया गया है। सुरक्षा बलों की तैनाती: संगम तट पर एनएसजी कमांडो ने मोर्चा संभाल लिया है। स्वास्थ्य सेवाएं: चिकित्सा सुविधा: स्वरूपरानी अस्पताल में 14 शव पोस्टमॉर्टम के लिए लाए जा चुके हैं। घायलों का इलाज जारी है। प्रशासन ने श्रद्धालुओं से शांति बनाए रखने की अपील की है और आश्वासन दिया है कि स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। सोर्स – दैनिक भास्कर,एबीपी न्यूज

कुरान के सन्देश का दुरुपयोग: कट्टरपंथ के खतरों को समझना और वास्तविक इस्लामिक शिक्षाओं को उजागर करना

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निर्मल कुमार  (लेखक निर्मल कुमार सामाजिक व आर्थिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।) न्यू ऑरलियन्स में शम्सुद्दीन जब्बार के हमले की पृष्ठभूमि ने एक बार फिर यह उजागर किया है कि कैसे कट्टरपंथी सोच और धार्मिक ग्रंथों के गलत उपयोग से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस घटना में कुरान के 9:111 आयत का हवाला देते हुए इसे हिंसा का आह्वान बताया गया। लेकिन यह व्याख्या न केवल त्रुटिपूर्ण है, बल्कि बेहद हानिकारक भी है। कुरान के वास्तविक संदर्भ और उसकी मूल शिक्षाओं को समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि कुरान शांति, न्याय और करुणा की बात करता है। कुरान सिर्फ कानूनों और आदेशों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह 23 वर्षों के दौरान प्रकट हुई एक ऐसी रहस्योद्घाटन है जो पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के जीवन की विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करती है। आयत 9:111 सूरह अत-तौबा का हिस्सा है, जो उस समय प्रकट हुई थी जब मुस्लिम समुदाय को अरब के शत्रुतापूर्ण कबीलों से अत्यधिक उत्पीड़न और आक्रमण का सामना करना पड़ रहा था। इस आयत को अक्सर संदर्भ से हटाकर उद्धृत किया जाता है, जबकि यह विश्वासियों और अल्लाह के बीच उस वचन का उल्लेख करती है जिसमें विश्वासियों से अपने धर्म की रक्षा के लिए, यदि आवश्यक हो, बलिदान करने की बात कही गई है। यह एक न्यायपूर्ण कारण के लिए बलिदान की भावना को दर्शाता है, न कि हिंसा के लिए खुले आह्वान को। संदर्भ का महत्व: कुरान को समझने की सही दृष्टि कुरान को सही ढंग से समझने के लिए इसके संदर्भ को पहचानना अत्यंत आवश्यक है। इस्लामी व्याख्या (तफ़सीर) के विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि कुरान की प्रत्येक आयत एक विशेष परिस्थिति को संबोधित करती है और इसे कुरान के व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिए। आयत 9:111 को उस समय के संदर्भ से अलग करके देखना गलत होगा जब मुस्लिम समुदाय के अस्तित्व पर संकट था। इसके अलावा, इस्लामी विद्वानों ने हमेशा ऐसी आयतों के दुरुपयोग की निंदा की है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि जिहाद, जिसे अक्सर “पवित्र युद्ध” के रूप में गलत समझा जाता है, मुख्य रूप से आत्म-सुधार और सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करना है। सशस्त्र संघर्ष की अनुमति केवल उन्हीं परिस्थितियों में दी जाती है जब आत्मरक्षा या अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना आवश्यक हो। कट्टरपंथी समूह 9:111 जैसी आयतों को चुन-चुनकर निकालते हैं और उन्हें उनके ऐतिहासिक और पाठ्य संदर्भ से अलग करके प्रस्तुत करते हैं। यह गलत व्याख्या इन समूहों के अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए की जाती है। वे ऐसे अज्ञानता और कमजोर समझ वाले व्यक्तियों का शोषण करते हैं, उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि उनकी विचारधारा ईश्वरीय आदेशों के अनुरूप है। हालांकि, इस तरह की व्याख्या न तो इस्लामी न्यायशास्त्र में स्वीकार्य है और न ही नैतिकता में। कुरान का वास्तविक सन्देश: शांति और न्याय की ओर बुलावा कुरान स्पष्ट रूप से किसी भी तरह की ज्यादती और निर्दोष जीवन लेने की मनाही करता है। कुरान 5:32 में कहा गया है, “जिसने किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या की, मानो उसने पूरी मानवता की हत्या की।” कुरान के व्यापक अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह शांति, न्याय और सह-अस्तित्व पर जोर देता है। उदाहरण के लिए: • “ऐ ईमान वालो, न्याय पर डटे रहो और अल्लाह के लिए गवाही दो, चाहे वह तुम्हारे या तुम्हारे माता-पिता और रिश्तेदारों के खिलाफ हो।” (कुरान 4:135) • “और यदि वे शांति की ओर झुकें, तो तुम भी शांति की ओर झुको और अल्लाह पर भरोसा रखो।” (कुरान 8:61) • “अल्लाह न्याय करने, भलाई करने और रिश्तेदारों को दान देने का आदेश देता है।” (कुरान 16:90) ये सिद्धांत इस्लाम की शिक्षाओं की बुनियाद हैं, जो किसी भी प्रकार की हिंसा को नकारते हैं। कट्टरपंथ के खतरों का समाधान कुरान की आयतों का कट्टरपंथियों द्वारा दुरुपयोग केवल हिंसा को बढ़ावा देता है और इस्लाम के वास्तविक संदेश को विकृत करता है। 9:111 आयत सहित सभी आयतों को उनके ऐतिहासिक और पाठ्य संदर्भ में समझा जाना चाहिए। सही व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि यह आयत नैतिकता और कानून के दायरे में न्याय और बलिदान के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करती है, न कि अंधाधुंध हिंसा को। कट्टरपंथी विचारधाराओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए: 1. प्रामाणिक ज्ञान का प्रसार: कुरान की आयतों के ऐतिहासिक और पाठ्य संदर्भ के बारे में लोगों को शिक्षित करना। यह ज्ञान कट्टरपंथियों द्वारा गलत व्याख्या को चुनौती देने का एक प्रभावी उपकरण है। 2. इस्लामी विद्वानों से संवाद: प्रामाणिक इस्लामी विद्वानों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना, जो धार्मिक ग्रंथों की सटीक व्याख्या प्रदान कर सकें। 3. कुरान की नैतिक शिक्षाओं को उजागर करना: कुरान के नैतिक सिद्धांत, जो मानव गरिमा, करुणा और न्याय के सार्वभौमिक मूल्यों के साथ मेल खाते हैं, को प्रमुखता से प्रस्तुत करना। 4. शैक्षिक और सामाजिक ढांचे का निर्माण: ऐसा ढांचा विकसित करना जो कट्टरपंथियों द्वारा शोषण किए जाने वाले कमजोर और सतही समझ वाले व्यक्तियों को सशक्त बना सके। कुरान के सन्देश का दुरुपयोग केवल मुसलमानों को ही नहीं, बल्कि समूचे मानव समाज को नुकसान पहुंचाता है। कुरान की शिक्षाएं शांति, सहिष्णुता और मानवता के प्रति करुणा पर आधारित हैं। इन्हें सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर ही कट्टरपंथी विचारधारा को चुनौती दी जा सकती है।

जशपुर में मंदिर विवाद के विरोध में बाजार बंद, संगठनों ने प्रशासन से कार्रवाई की मांग

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जशपुर, 8 जनवरी 2025 – जशपुर जिले के बगीचा क्षेत्र में 3 जनवरी को स्थानीय दुर्गा मंदिर में हुए विवाद के बाद क्षेत्रीय संगठनों और स्थानीय नागरिकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इस घटना के विरोध में मंगलवार को बगीचा कस्बे में पूर्ण बंद का आयोजन किया गया, जिसमें व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखीं और आम नागरिकों ने प्रशासन के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की। क्या है विवाद? सूत्रों के अनुसार, दुर्गा मंदिर में नियमित पूजा के दौरान बगीचा निवासी नासिर खान द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया गया, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। इसके बाद कई संगठनों ने इस घटना की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।इस मामले में मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने नासिर खान के कृत्य की निंदा करते हुए किनारा कर लिया है। रैली और मांग पत्र सौंपा विरोध के तहत क्षेत्रीय हिंदू संगठनों ने एक बड़ी रैली निकाली, जिसमें सैकड़ों नागरिकों ने भाग लिया। रैली के दौरान संगठनों ने एसडीएम कार्यालय तक मार्च किया और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में उन्होंने मांग की कि मंदिर में हुए विवाद के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। रैली में मौजूद वक्ताओं ने कहा, “हम अपने धार्मिक स्थानों में शांति और सद्भाव बनाए रखने के पक्षधर हैं। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं से हमारी धार्मिक भावनाओं पर आघात हो रहा है। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।” प्रशासन ने ज्ञापन प्राप्त करने के बाद जांच का आश्वासन दिया है। एसडीएम ने कहा कि घटना की गहराई से जांच की जाएगी और दोषियों पर कानून के अनुसार कार्रवाई होगी। बगीचा कस्बे में आज के बंद का व्यापक असर देखने को मिला। सुबह से ही बाजार की दुकानें बंद रहीं, और सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। व्यापारियों ने बंद को अपना समर्थन देते हुए कहा कि यह बंद धार्मिक भावनाओं के सम्मान और न्याय की मांग के लिए आयोजित किया गया है।  बहरहाल, मंदिर विवाद ने जशपुर जिले में धार्मिक भावनाओं को गहरा प्रभावित किया है। स्थानीय नागरिक और संगठन इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है।