उरांव महिलाओं ने दिखाई शौर्यगाथा की झलक, पारंपरिक ‘जनी शिकार’ का किया प्रदर्शन, पांच दिवसीय सम्मेलन में संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व की रक्षा का लिया संकल्प, हजारों महिलाओं ने पुरुष वेश में नगाड़ों की थाप पर किया जुलूस, धर्मांतरण के खिलाफ गरजे गणेश राम भगत

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जशपुर,23 मई 2025 – जशपुरनगर के तेतरटोली में 18 से 22 मई तक हिन्दू उरांव महिला समिति के बैनर तले एक पांच दिवसीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य उरांव समाज की महिलाओं को अपनी पारंपरिक संस्कृति, लोकगीत, नृत्य और जातिगत परंपराओं से जोड़ना था, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी मूल पहचान और गौरवशाली विरासत को समझ सकें। कार्यक्रम के अंतिम दिन ऐतिहासिक ‘जनी शिकार’ परंपरा का प्रतीकात्मक प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों महिलाओं ने पारंपरिक पुरुष वेश में हाथों में पारंपरिक हथियार लेकर नगाड़ों की थाप पर शहर में विशाल रैली निकाली। यह प्रदर्शन रोहतासगढ़ की उस गौरवशाली गाथा की याद दिलाने के लिए था, जब उरांव महिलाओं ने अपने शौर्य से मुगलों को तीन बार पराजित किया था। आमसभा में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने धर्मांतरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि छोटा नागपुर क्षेत्र को ‘ईसाई राज’ में बदलने की साजिशें लगातार चल रही हैं, लेकिन समाज अब जागरूक हो चुका है। उन्होंने डीलिस्टिंग कानून की मांग को दोहराते हुए सरकार से इस पर ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। फोटो: पारंपरिक परिधान में दंत चिकित्सक डॉ कांति प्रधान अन्य सामाजिक नेताओं के साथ रैली में सभा में झारखंड के संदीप उरांव और अंबिकापुर से आए डॉ. आज़ाद भगत ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि यदि जनजातीय समाज अपनी भाषा, परंपरा और रीति-रिवाजों को नहीं भूले, तो धर्मांतरण जैसी चुनौतियों से सहजता से निपटा जा सकता है। इस मौके पर गणेश राम भगत ने जशपुर रेल परियोजना में अवरोध उत्पन्न करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह जनभावना से जुड़ा मामला है, और ऐसे तत्वों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने संरक्षित जंगलों में अंधाधुंध पेड़ कटाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए उसकी जांच की मांग की तथा बारिश में वृक्षारोपण का आह्वान किया। इस आयोजन में हज़ारों की संख्या में महिलाएं और समाजजन शामिल हुए। तेज धूप में रैली में शामिल लोगों के सेवा में शहर के सामाजिक संगठनों ने भी भागीदारी निभाई। संवेदना फाउंडेशन, श्री बालाजी जन कल्याण समिति, और गुड मॉर्निंग ग्रुप जैसे संगठनों ने रैली में शामिल लोगों को पानी, शीतल पेय और फल वितरित कर सेवा भाव का परिचय दिया। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक एकता, जनजागरण और आत्मगौरव की मिसाल भी प्रस्तुत कर गया।

मुख्यमंत्री VDS आज जगन्नाथ मंदिर दोकड़ा के उद्घाटन में होंगे शामिल,सुशासन तिहार में भी देंगे समय

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जशपुर,21 मई 2025 – प्रदेश के मुखिया विष्णुदेव साय आज कांसाबेल विकासखंड के दोकड़ा गांव में  उतरेंगे।प्रशासनिक तैयारी  और जगन्नाथ मंदिर से जुड़े लोगों से चर्चा के अनुसार  दोकड़ा ग्राम में वर्षों पुराना जगन्नाथ मंदिर को नए सिरे से पूरी भव्यता और ओड़िशी वास्तुकला के साथ निर्माण किया गया है।इस मंदिर के निर्माण में स्वयं विष्णुदेव साय ने रुचि दिखाई और अपने विश्वस्त पुरुषोत्तम सिंह,बलराम भगत  समेत दोकड़ा के भाजपा कार्यकर्ता,पदाधिकारियों के अथक प्रयास से आज वह दिन आ गया है ,जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय के साथ भगवान जगन्नाथ मंदिर के महाआयोजन में उपस्थित होंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का शाम 4 बजे के करीब कार्यक्रम में आने की संभावना है।जिसको लेकर प्रशासनिक तैयारियां पूरी हो चुकी है।आज सुशासन तिहार भी दोकड़ा गांव में मनाया जायेगा।इन दोनों बड़े आयोजन में शामिल होने बड़ी संख्या में लोगों का आना शुरू हो चुका है।पुलिस व्यवस्था चुस्त दुरुस्त है।

*वक़्फ़ संशोधन बिल पर भाजपा का जिला स्तरीय कार्यशाला सम्पन्न* *वक़्फ़ संपत्तियों की पारदर्शिता हेतु जरूरी है संशोधन : भाजपा*

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जशपुर,20 मई 2025 – भारतीय जनता पार्टी द्वारा वक़्फ़ संशोधन बिल 2025 को लेकर जनजागरूकता फैलाने हेतु सोमवार को श्याम पैलेस जशपुर में एक जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पत्थलगांव विधायक श्रीमती गोमती साय, जशपुर विधायक श्रीमती  रायमुनी भगत, भाजपा जिला अध्यक्ष भरत सिंह, पूर्व जिलाध्यक्ष नरेश नंदे, तथा वक़्फ़ जनजागरण अभियान जिला समिति के सदस्य एवं पार्षद फैज़ान सरवर खान ने अपने विचार व्यक्त किए। विधायक श्रीमती गोमती साय ने कहा कि वक़्फ़ संपत्तियाँ वर्षों से उपेक्षा और भ्रष्टाचार का शिकार रही हैं। संशोधन बिल 2025 इन संपत्तियों के पारदर्शी और न्यायपूर्ण प्रबंधन का रास्ता खोलता है। यह कदम सामाजिक न्याय और संसाधनों के सही उपयोग की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय है। जशपुर विधायक श्रीमती रायमुनी भगत ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह बिल किसी धर्म या समुदाय के विरोध में नहीं है, बल्कि यह सभी वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा, पारदर्शिता और सही इस्तेमाल के लिए एक आवश्यक सुधार है। उन्होंने कहा कि वर्षों से बंद पड़ी या अवैध कब्जे में चली गई वक़्फ़ ज़मीनें अब समाज के विकास में उपयोग लाई जा सकेंगी। उन्होंने जनता से अपील की कि वे भ्रम में न पड़ें और इस ऐतिहासिक पहल का समर्थन करें। भाजपा जिला अध्यक्ष भरत सिंह ने कहा कि भाजपा की सरकार हर वर्ग के हित में निर्णय लेती है। यह संशोधन मुस्लिम समाज के हितों की रक्षा करते हुए वक़्फ़ संपत्तियों की जवाबदेही तय करेगा और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लाएगा। पूर्व जिलाध्यक्ष नरेश नंदे ने अपने वक्तव्य में कहा कि अब समय आ गया है कि वक़्फ़ संपत्तियों का लेखा-जोखा सार्वजनिक हो और उनका लाभ वास्तव में जरूरतमंदों को मिले। यह बिल उस दिशा में सार्थक पहल है। पार्षद फैज़ान सरवर खान ने स्पष्ट किया कि इस बिल को लेकर समुदाय विशेष के बीच फैलाई जा रही भ्रांतियाँ निराधार हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को इसे अधिकार की लड़ाई मानकर समर्थन देना चाहिए क्योंकि यह उनकी संपत्तियों की सुरक्षा की गारंटी देता है। वक़्फ़ संशोधन बिल 2025 वक़्फ़ बोर्ड के कामकाज को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगा। यह बिल समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करेगा और वक़्फ़ संपत्तियों का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक विकास के लिए सुनिश्चित करेगा।उन्होंने भ्रांतियों कप दूर करने के लिए तथ्यपरक जानकारी साझा की ओर स्थानीय समुदाय से सहयोग की अपील की। कार्यक्रम का संचालन जिला प्रवक्ता ओमप्रकाश सिन्हा ने कुशलतापूर्वक किया।उन्होंने अपने संचालन में इस बात पर जोर दिया कि यह अभियान केवल एक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के कल्याण के लिए है।कार्यशाला में भाजपा पदाधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, महिलाएं एवं शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।  

नवनिर्मित श्री जगन्नाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा एवं मूर्ति स्थापना अनुष्ठान में सपत्नीक शामिल होगें मुख्यमंत्री  विष्णुदेव साय, 21 से 27 मई तक अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित

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*21 मई से प्रतिदिन विशाल मीना बाजार का भी होगा आयोजन* दोकड़ा/जशपुर, 20 मई 2025 – नवमिर्मित श्री जगन्नाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा एवं मूर्ती स्थापना अनुष्ठान कांसाबेल विकासखण्ड के ग्राम दोकड़ा में मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय मुख्य अतिथि के रूप में 21 मई 2025 को शामिल होगें। दोकड़ा के प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार पश्चात् नव निर्मित मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा एवं मूर्ति स्थापना किया जा रहा है। इस दौरान 21 से 27 मई तक अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जहॉ 21 मई से प्रतिदिन विशाल मीना बाजार का भी आयोजन होगा। आयोजित धार्मिक कार्यक्रम अनुसार 21 मई को दोपहर 2 बजे से मैनी नदी बगिया से मंदिर प्रांगण तक कलश यात्रा के साथ मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम प्रांरभ होगा,साथ संध्या बेला में जी टीवी कलर टीवी फेम वैशाली रायकवार की टीम प्रस्तुति देंगे। 22 मई को सुबह 7 बजे से सूर्य पूजन, गौ पूजन, मंदिर प्रवेश, पार्श्व विग्रह, नेत्र उनिजन तथा रात्रि 8 बजे झारखंड के मशहूर गायक नागपुरी संगीत से समां बांधेंगे। 23 मई को प्रातः 7 बजे से सूर्य पूजन, मंडल पूजन, शिखर कलश, एवं नीलचक्र स्थापना, पार्श्व विग्रह महास्नान एवं रात्रि ओडिशा के संबलपुर के टीम द्वारा बादी पाला का आयोजन किया जाएगा। 24 मई को प्रातः 7 बजे से सूर्य पूजन, मंडल पूजन,एवं रात्रि ओडिशा भुवनेश्वर के मशहूर गायक अरविंद मुदली द्वारा भजनों की प्रस्तुति दी जाएगी।, 25 मई को श्री जगन्नाथ स्वामी जी, बलभ्रद्र जी, सुभद्रा जी का मंदिर प्रवेश एवं संध्या भव्य कलश यात्रा अधिवास 26 मई को सुबह 8 बजे से अष्ट प्रहरी अखंड कीर्तन हरि नाम यज्ञ शुरू होगा,जिसमें ओडिशा,झारखंड, छत्तीसगढ़ के कीर्तन मंडली शामिल होकर प्रस्तुति देंगे। 27 मई को प्रातः 8 बजे पूर्णाहूति, दधीभंजन एवं नगर भ्रमण जिसमें ओडिशा के कीर्तन मंडली द्वारा ओड़िसा भजन की प्रस्तुति दी जाएगी। इसके पश्चात् महाप्रसाद वितरण एवं समापन होगा। श्री जगन्नाथ मंदिर समिति के आयोजकों ने सभी भक्तोजनों को अत्यंत हर्ष के साथ आमंत्रित किया गया है।

कबीर आश्रम के कब्जे की ज़मीन पर बिजली विभाग का निर्माण कार्य रोकने धरने पर बैठे कबीरपंथी,आज दूसरा दिन

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कुनकुरी/जशपुर,17 मई 2025 – डुग़डुगिया स्थित कबीर आश्रम की वर्षों पुरानी कब्जे की जमीन को कबीरपंथी सरकारी दखल के बाद आक्रोशित हैं।बिजली विभाग का संभागीय ट्रांसफार्मर स्टेशन कबीरपंथ की उस जमीन पर बन रहा है, जो वर्षों से कबीर मेला डांड के रूप में सरगुजा,झारखंड के सीमावर्ती जिलों के लोगों के एकाेत्तरी चौका,सत्संग की जगह थी। दरअसल,1950 ईस्वी से डुग़डुगिया में नेशनल हाईवे से लगा कबीर कुटिया (आज कबीर आश्रम) महंत हीरादास बाबा की कुटिया थी। आज  पचहत्तर सालों से यहां सदगुरू कबीर का दिया अनवरत जलता आ रहा है।मानवता,भाईचारे का संदेश देते हुए यह आश्रम विवादों से घिरा हुआ भी है। कबीरपंथ की आमीन माता संघ की अध्यक्षा सुशीला दास बताती हैं कि जब यह सब जंगल था तब यहां महंत हीरादास दुर्गम क्षेत्र में आकर आदिवासियों,गैर आदिवासियों के बीच सत्य का मार्ग बताने इस स्थान पर आए।बाद के वर्षों में यह आस्था का केंद्र बना।आबादी बढ़ने के साथ लोग कुनकुरी की शासकीय जमीनों पर अतिक्रमण कर मकान बनाने लगे लेकिन कबीर पंथियों ने चट्टान से लेकर करीब दस एकड़ की जमीन पर अतिक्रमण होने नहीं दिया। सुशीला दास स्व दिलीप सिंह जूदेव को याद करते हुए बताती हैं कि बीस – बाईस साल पहले महंत हीरादास का वसीयत छल कपट से विश्वनाथ सिंह  ने बनवाकर उनकी मृत्यु के बाद डेढ़ एकड़ जमीन को कई प्रभावशाली लोगों को बेच दिया।इस बात को लेकर हम लोग कुमार साहब से मिले और उन्होंने पूरी बात समझने के बाद मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को चिट्ठी लिखी। मुख्यमंत्री ने कलेक्टर को जांच के आदेश दिए।फिर कलेक्टर कोर्ट में केस लड़े।कलेक्टर कोर्ट ने वसीयत को फर्जी पाया और बिक्री की हुई जमीन की रजिस्ट्री शून्य कर दी।इसके बाद मामला कमिश्नर कोर्ट में चला और कलेक्टर के आदेश को पलट दिया गया।हमने फिर राजस्व बोर्ड बिलासपुर में अपील की,सुनवाई चल रही है।इस मामले में बीते पच्चीस साल से भाजपा हो या कांग्रेस की सरकार सभी ने कबीर पंथ को पूरा सहयोग किया।हालांकि शहर के कुछ लोगों की नजर जमीन पर थी।वर्तमान सरकार के आते ही कबीर आश्रम को परेशान करना शुरू किए और मेलाडांड की जमीन को 1990 से बिजली विभाग को आबंटित करने का कागज दिखाकर हथिया लिया गया।जिसपर कबीरपंथियो ने प्रशासन की बात को मात भी लिया किंतु ठेकेदार और बिजली विभाग के अधिकारियों ने कबीर आश्रम से हुई बात से मुकरते हुए जबरन निर्माण कार्य करा रहे हैं।वहीं कुछ भाजपा नेताओं के दबाव में हमारे द्वारा घेरा किया गया था,उसे उखाड़कर ठेकेदार ले गया।यही नहीं आश्रम की जमीन पर भाजपा नेताओं के इशारे पर भुवनेश्वर यादव को तहसील ऑफिस से स्टे भी दे दिया गया ताकि हम अपनी जमीन को सुरक्षित न कर सकें। धरने पर बैठे कबीर पंथी सीधे तौर पर आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा की अभी की सरकार हिंदुत्व की बात करती है लेकिन कबीर पंथियों को हिंदू क्यों नहीं मानती है? हमारी आस्था पर रोज चोट क्यों पहुंचाया जा रहा है? बहरहाल,इस मामले में विवाद गहराता जा रहा है।अभी मुट्ठीभर कबीर पंथी धरने पर बैठे हैं।समय रहते शासन प्रशासन इस विवाद को सुलझा लेना चाहिए नहीं तो इस धरना प्रदर्शन में कबीरपंथियो की संख्या इतनी ना बढ़ जाए कि स्थिति संभालने के लिए सरकार को मुश्किल हो जाए।

*भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू होगा भगवान जगन्नाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह,मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मुख्य आतिथ्य में पुरी के पंडितों का समूह कराएंगे पूजा*

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जशपुर,16 मई 2025 : जिले के कांसाबेल ब्लाक के दोकड़ा में स्थित प्राचीन भगवान जगन्नाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद प्राण प्रतिष्ठा का भव्य कार्यक्रम 21 से 27 मई तक किया गया है। इस कार्यक्रम में मुख अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय धर्म पत्नी कौशल्या साय के साथ शामिल होंगे। प्राण प्रतिष्ठा के इस भव्य कार्यक्रम का शुभारम्भ 21 मई को भव्य कलश यात्रा से होगा। इस दिन बीजारोपण,पार्श्व विग्रह,गर्भधान कर्म कार्यक्रम सम्पन्न होगा। दूसरे दिन 22 मई को सूर्य पूजन,गौ पूजन,मंदिर प्रवेश,वष्टमवागिनी संस्कार,मंडल पूजा,पार्श्व विग्रह,प्राण प्रतिष्ठा,23 मई को सूर्य पूजा,गौ पूजा,मंडल पूजा,शिखर कलश,नील चक्र स्थापना,महा स्नान,यज्ञ और अधिवास,24 मई को सूर्य पूजा,गौ पूजा,मंडल पूजा,यज्ञ हवन,25 मई को प्राण प्रतिष्ठा,श्री जगन्नाथ,सुभद्रा और बलराम जी का मंदिर प्रवेश,सोलह पूजा,बीज़ मंत्र,आरती,अग्नि अभिषेक,पूर्णाहुती,छाया प्रति दर्शन,आरती,पुष्पांजलि व प्रसाद वितरण,26 मई को अष्ट प्रहरी हरि कीर्तन नाम उच्चारण प्रारम्भ 27 मई को पूर्णाहुति और प्रसाद वितरण के साथ ही यह कार्यक्रम सम्पन्न होगा। *पुरी के आचार्यो का समूह पहुंचेगा दोकड़ा* भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु के प्राण प्रतिष्ठा को वैदिक रीती रिवाज़ से सम्पन्न कराने के लिए ओडिसा के जगन्नाथ पुरी से आचार्यो का समूह दोकड़ा आमंत्रित किया गया है। इस समूह में पंडित पदम्नाभो महापात्र,पंडित वासुदेव महापात्र,पंडित प्रशंत कुमार दास,पंडित जगन्नाथ मिश्र,शोभनाथ मिश्र,पंडित बादल कुमार मिश्र शामिल हैँ। आयोजन समिति के स्वयं सेवक इन दिनों प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी को अंतिम रूप देने में जूटे हुए हैं। *मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय होंगे शामिल* दोकड़ा स्थित इस प्राचीन भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय शामिल होने के लिए दोकड़ा पहुंचेंगे। आयोजन के शुभारंम के दिन उनके कार्यक्रम में शामिल होने की संभावना है। इस प्राचीन भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर के प्रति मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की विशेष श्रद्धा रही है। मंदिर का जीर्णोद्धार और भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन उन्ही के मार्गदर्शन में आयोजित किया जा रहा है। *आठ दशक से हो रहा भगवान श्री जगन्नाथ जी का पूजा* दोकड़ा में भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु की पूजा की परम्परा 8 दशक से भी पुराना है। मंदिर के पुजारी पंडित कुमोद चंद्र सतपती बताते हैँ इस क्षेत्र में रथ यात्रा की परम्परा की नींव स्व.पंडित सुदर्शन सतपती और उनकी धर्म पत्नी स्व सुशीला सतपती ने रखी थी। 1968 में दोकड़ा में मंदिर का निर्माण किया गया था। समय गुजरने के साथ मंदिर जर्जर हो गया था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसके जीर्णोद्धार के लिए आधारशिला रखी थी। अब जीर्णोद्धार का काम पूरा हो चुका है। इस नव निर्मित मंदिर में भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु,माता सुभद्रा,ब्लभद्र प्रवेश करने जा रहे है। आयोजन समिति ने अधिक से अधिक संख्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने की अपील श्रद्धालुओं से की है।

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता: पहलगाम की त्रासदी और भारत की इंसानियत

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निर्मल कुमार 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला न केवल एक भयावह त्रासदी है, बल्कि मानवता के खिलाफ किया गया एक गहन अपराध भी है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और 20 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए। आतंकियों ने सेना की वर्दी पहनकर हिन्दू तीर्थयात्रियों को निशाना बनाया और पीड़ितों की पहचान धर्म पूछकर की। यह घटना केवल एक समुदाय पर हमला नहीं थी, बल्कि पूरे भारत की साझा संस्कृति, भाईचारे और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर किया गया प्रहार थी। इस कायराना हरकत ने न केवल भारत की एकता को चुनौती दी, बल्कि इस्लाम जैसे शांतिप्रिय धर्म की भी गलत तस्वीर प्रस्तुत की। यह समझना बेहद आवश्यक है कि आतंकवादियों की इस नृशंसता का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। क़ुरान स्पष्ट रूप से कहता है — “जो लोग तुमसे लड़ते हैं, उनसे तुम भी अल्लाह की राह में लड़ो, लेकिन ज़्यादती मत करो, निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसंद नहीं करता” (क़ुरान 2:190)। इस्लाम में निर्दोषों की हत्या को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है — चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी भी अन्य धर्म के अनुयायी। भारत में 17 करोड़ से अधिक मुस्लिम नागरिक रहते हैं — वे कोई बाहरी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने बार-बार आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई है, भाईचारे को बढ़ावा दिया है और राष्ट्रभक्ति की मिसाल पेश की है। पहलगाम हमले के दौरान कश्मीरी मुसलमानों का व्यवहार इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है। जब गोलियों की गूंज और चीख-पुकार के बीच आतंकियों ने धर्म देखकर लोगों की जान ली, तब कई स्थानीय मुसलमान युवकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना घायल तीर्थयात्रियों की मदद की। घायलों को उठाकर अस्पताल पहुँचाने से लेकर, रक्तदान करने और उन्हें ढाढ़स बंधाने तक, हर कदम पर उन्होंने दिखा दिया कि इंसानियत किसी मज़हब की मोहताज नहीं होती। कुछ मामलों में तो स्थानीय लोगों ने अपने घरों को अस्थायी चिकित्सा केंद्र बना दिया, ताकि समय पर उपचार मिल सके। उन्होंने साबित किया कि कश्मीर का दिल अमन के लिए धड़कता है, और असली कश्मीरी आतिथ्य कभी मर नहीं सकता। देश की प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं और नेताओं ने भी इस आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है। ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी ने देश भर की 5.5 लाख मस्जिदों में आतंकवाद के खिलाफ विशेष दुआओं की अपील की और साफ कहा कि जो निर्दोषों की हत्या करते हैं, उन्हें भारत की धरती पर दफनाने का कोई हक नहीं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अर्शद मदनी ने इन आतंकियों को “दरिंदे” कहा, जबकि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के प्रमुख सैयद सादतुल्लाह हुसैनी ने पीड़ितों को जल्द न्याय दिलाने की मांग की। हमारे संविधान की आत्मा धर्मनिरपेक्षता है, और भारत की असली ताक़त इसकी विविधता में निहित है। यह ज़रूरी है कि हम इस घटना को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के नजरिए से न देखें। आतंकवाद न किसी धर्म को मानता है, न किसी राष्ट्र को। जो लोग निहत्थे लोगों की हत्या करते हैं, उनकी तुलना किसी धर्म के अनुयायियों से करना सरासर नाइंसाफी है। क़ुरान की आयतें आतंकियों के दावों को सिरे से खारिज करती हैं: “धर्म के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं है” (क़ुरान 2:256) और “दुश्मनी के बावजूद भी इंसाफ करो, यही अल्लाह का तक़वा है” (क़ुरान 5:8)। आज जब कुछ तत्व नफरत फैलाकर देश को बांटना चाहते हैं, तब भारत के नागरिकों को पहले से कहीं ज़्यादा एकजुट होने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कुछ आतंकवादियों की कायरता के कारण करोड़ों भारतीय मुस्लिमों को शक की नजर से न देखा जाए। हमें ये समझना होगा कि आतंकवादियों की कोई कौम नहीं होती, उनका कोई धर्म नहीं होता — वे केवल हत्यारे होते हैं। हमारा जवाब नफरत नहीं, इंसानियत होनी चाहिए। पहलगाम का रक्तपात हमें डराने के लिए था, लेकिन हमें और मज़बूती से यह दिखाना होगा कि भारत न झुकता है, न बंटता है। हर वह भारतीय जो अमन, इंसाफ और भाईचारे में विश्वास करता है — वही सच्चा देशभक्त है। भारत की आत्मा एक है, और आतंकवाद उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। पहलगाम के घाव अभी भरे नहीं हैं, लेकिन वहां दिखी इंसानियत की रोशनी हमें अंधेरे से बाहर निकालने की ताक़त देती है। इस मुश्किल घड़ी में यह आवश्यक है कि हम धर्म के नाम पर किसी भी नफरत को अपने बीच जगह न दें। अंत में हम सभी को यह याद रखना होगा: आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। (लेखक निर्मल कुमार आर्थिक व सामाजिक मुद्दों के स्तंभकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

विशेष लेख : भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत: परंपरा, पहचान और नवाचार का समागम,

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निर्मल कुमार भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक भी है। यह विविधता की वह जीवंत परंपरा है जो हज़ारों वर्षों से कई धर्मों, भाषाओं, कलाओं और जीवनशैलियों को अपने भीतर समाहित किए हुए है। आज जब वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और सामाजिक तनाव हमारे चारों ओर गहराते जा रहे हैं, भारत का यह साझा सांस्कृतिक बुनियाद एक ऐसा नैतिक और व्यावहारिक संसाधन बन कर उभरता है जिससे हम न केवल अपने देशवासियों को जोड़ सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी समरसता, सहयोग और सतत विकास का मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं। सह-अस्तित्व की परंपरा और आध्यात्मिक एकता भारत के इतिहास में सह-अस्तित्व की भावना सबसे प्रमुख रही है। हमारे संतों, कवियों और विचारकों ने कभी सीमाओं में विश्वास नहीं किया। कबीर, रैदास, गुरु नानक, संत तुकाराम, मीराबाई और बुल्ले शाह जैसे संतों ने धर्मों के बीच की दीवारों को तोड़कर आध्यात्मिक एकता का मार्ग दिखाया। सूफी और भक्ति आंदोलन ने भारत को एक साझा आध्यात्मिक चेतना दी, जिसने धर्म के नाम पर होने वाले विभाजन को चुनौती दी और प्रेम, करुणा, सेवा और समता को केंद्र में रखा। आज अजमेर शरीफ, निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह, वाराणसी के घाट, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, कोणार्क और मदुरै के मंदिर जैसे स्थल न केवल तीर्थ हैं, बल्कि विविध सांस्कृतिक पहचान के मिलन बिंदु भी हैं। इन स्थलों पर हर वर्ग, धर्म और जाति के लोग समान श्रद्धा से आते हैं। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक समस्याओं का समाधान भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली — जैसे आयुर्वेद, योग, सिद्ध चिकित्सा, वास्तु शास्त्र, पंचगव्य, जैविक खेती और पारंपरिक जल-संरक्षण प्रणाली — आज फिर से प्रासंगिक होती जा रही हैं। COVID-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया प्राकृतिक जीवनशैली की ओर मुड़ी, तब भारत के योग और आयुर्वेद को नई वैश्विक मान्यता मिली। रैनी वाटर हार्वेस्टिंग की सदियों पुरानी भारतीय तकनीकें — जैसे कि राजस्थान की बावड़ियां, कर्नाटक की कावेरी प्रणाली और पूर्वोत्तर भारत की बांस आधारित जल निकासी प्रणालियाँ — अब शहरी योजनाओं में शामिल की जा रही हैं। यह ज्ञान केवल ग्रामीण भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे महानगरों की योजनाओं में भी पारंपरिक जल प्रबंधन पद्धतियों को एकीकृत किया जा रहा है। विविध कलाएँ: जीवित परंपराओं का स्वरूप भारत की कलात्मक विरासत उतनी ही समृद्ध है जितनी कि इसकी आध्यात्मिक परंपरा। वारली, मधुबनी, गोंड, पट्टचित्र और फड़ चित्रकला जैसे जनजातीय और लोक कला रूप हमारी विविधता को जीवंत रखते हैं। कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, मोहिनीअट्टम और बाउल संगीत जैसी कलाएँ आज भी नई पीढ़ियों द्वारा सीखी और प्रस्तुत की जा रही हैं। डिजिटल युग में, इन कलाओं को पुनर्जीवित करने की ज़िम्मेदारी भी तकनीक ने ली है। “क्राफ्ट विलेज”, “गूगल आर्ट्स एंड कल्चर”, और “हुनर हाट” जैसी पहलें कारीगरों और कलाकारों को नए बाज़ार और दर्शक दे रही हैं। इससे न केवल संस्कृति संरक्षित हो रही है, बल्कि आजीविका के अवसर भी बढ़ रहे हैं। जशपुर: आदिवासी विरासत की चमक छत्तीसगढ़ का जशपुर ज़िला इस साझा विरासत की अनदेखी लेकिन अत्यंत मूल्यवान धरोहर है। यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, पर्यावरणीय संतुलन और हस्तशिल्प कला का केंद्र रहा है। यहाँ की पत्थलगड़ी परंपरा, पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा प्रणाली और नृत्य जैसे सरहुल, कर्मा, दंडा, सुवा और पंथी आदिवासी गौरव के जीवंत रूप हैं। जशपुर के बघिमा और गिंगला जैसे गाँवों में महिलाएं पारंपरिक हस्तशिल्प में माहिर हैं — जैसे बांस की टोकरियाँ, साज-सज्जा की वस्तुएं और स्थानीय प्राकृतिक रंगों से बने कपड़े। ये सिर्फ कलात्मक उत्पाद नहीं, बल्कि पारंपरिक ज्ञान की सजीव पुस्तकें हैं। इस जिले के बच्चों को अगर अपनी परंपरा से जोड़ा जाए तो वे वैश्विक नागरिक बनते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ाव बनाए रख सकते हैं। सांस्कृतिक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध भारत की सांस्कृतिक विरासत अब केवल सीमाओं के भीतर की बात नहीं रही। भारत-नेपाल के तारा धाम या भारत-भूटान की बौद्ध विरासत पर संयुक्त शोध परियोजनाएँ, बांग्लादेश के साथ साझा भाषा उत्सव, और श्रीलंका में रामायण पर्यटन सर्किट जैसे प्रयास इस बात का प्रमाण हैं कि सांस्कृतिक विरासत कूटनीति का एक मज़बूत माध्यम बन चुकी है। नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और बौद्ध सर्किट का विकास भारत की उस विरासत को दोबारा जीवित करने का प्रयास है, जिसने कभी एशिया को बौद्धिक और नैतिक नेतृत्व दिया था। शिक्षा में विरासत की भूमिका राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि विद्यार्थियों को केवल रोजगार के योग्य ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी सजग और संवेदनशील नागरिक बनाया जाए। स्कूली पाठ्यक्रमों में स्थानीय इतिहास, पारंपरिक ज्ञान और कला को स्थान देने से बच्चे अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। देशभर में चल रही “हेरिटेज वॉक”, “लोक उत्सव” और “स्कूल इन म्यूज़ियम” जैसी पहलें इसी सोच का हिस्सा हैं। भविष्य की दिशा भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत एक स्थिर स्मारक नहीं है, बल्कि वह गतिशील धरोहर है जो निरंतर विकसित हो रही है। यह सिर्फ़ अतीत की कहानियाँ नहीं सुनाती, बल्कि हमें यह सिखाती है कि सहिष्णुता, विविधता और समावेशिता ही स्थायी प्रगति का मार्ग है। आज जबकि पूरी दुनिया अपनी पहचान की तलाश में असमंजस में है, भारत के पास एक ऐसा सांस्कृतिक मॉडल है जो अतीत की गहराई, वर्तमान की चुनौती और भविष्य की संभावनाओं—तीनों को संतुलित करता है। इस मॉडल को और मज़बूत बनाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को न केवल संरक्षित करें, बल्कि सक्रिय रूप से उसका उपयोग शिक्षा, रोजगार, सामाजिक समरसता और वैश्विक संवाद के लिए करें। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि भारत की यह बहुरंगी, बहुस्तरीय, और बहुधर्मी सांस्कृतिक धरोहर केवल किताबों और स्मारकों में न रह जाए, बल्कि हमारी ज़िंदगी की धड़कनों में बनी रहे — आज, कल और आने वाली पीढ़ियों तक। (लेखक निर्मल कुमार अंतर्राष्ट्रीय समाजिक-आर्थिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

धर्मांतरण के आरोपों को लेकर कुनकुरी में तनाव, ईसाई आदिवासी महासभा कल 14 अप्रैल को करेगी जवाबी रैली

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कुनकुरी, 13 अप्रैल 2025 – हॉली क्रॉस नर्सिंग कॉलेज कुनकुरी में धर्मांतरण के आरोपों को लेकर शुरू हुआ विवाद अब सियासी और सामाजिक रंग ले चुका है। कॉलेज की एक गैर-ईसाई छात्रा द्वारा प्राचार्या सिस्टर बिंसी जोसेफ पर धर्मांतरण का दबाव बनाने और न मानने पर प्रताड़ित करने का गंभीर आरोप लगाया गया था, जिसके बाद 10 अप्रैल को हिन्दू संगठनों ने कुनकुरी शहर में आक्रोश रैली निकाली थी। इस पूरे मामले को एक ईसाई संगठन ने प्राचार्या को बदनाम करने की साजिश बताया है। ईसाई आदिवासी महासभा, छत्तीसगढ़ ने इसे धर्म आधारित षड्यंत्र करार देते हुए 14 अप्रैल को कुनकुरी में विशाल विरोध सभा और रैली आयोजित करने का ऐलान किया है। ईसाई महासभा का आरोपिया प्राचार्या के पक्ष में बड़ा बयान महासभा का कहना है कि संबंधित छात्रा की कक्षा में उपस्थिति 75% से कम थी और उसने दो प्रमुख विषयों की आंतरिक प्रैक्टिकल परीक्षाओं में भाग नहीं लिया था। इसके बावजूद वह प्राचार्या से अधूरे असाइनमेंट्स पर हस्ताक्षर कराने का दबाव बना रही थी। जब हस्ताक्षर नहीं किए गए, तो छात्रा ने कलेक्टर और एसपी को झूठी शिकायत देकर प्राचार्या को बदनाम करने की कोशिश की। ईसाई महासभा ने आरोप लगाया है कि कुछ मीडिया चैनलों और संगठनों द्वारा झूठे आरोपों को बिना तथ्य के हवा दी जा रही है, जिससे एक ईमानदार प्राचार्या की छवि धूमिल की जा रही है। कल 14 अप्रैल को महासभा का कार्यक्रम इस प्रकार रहेगा: 1. अपराह्न 03 बजे से 04 बजे तक – विरोध सभा, स्थान: डीपाटोली, कुनकुरी 2. 04 बजे से 05 बजे तक – रैली: डीपाटोली से तहसील कार्यालय, कुनकुरी 3. 05 बजे – अनुविभागीय दंडाधिकारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा   ईसाई आदिवासी महासभा के प्रदेश महासचिव अभिनन्द खलखो ने ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की है कि अधिक से अधिक संख्या में आकर सभा और जुलूस में शामिल हों। तनाव के बीच प्रशासन अलर्ट इस विवाद के चलते कुनकुरी में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। प्रशासन दोनों पक्षों की गतिविधियों पर नजर बनाए रखी है और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।  

धर्मांतरण के दबाव के मामले में विंसी जोसफ की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

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कुनकुरी, जशपुर 11 अपैल 2025 माननीय प्रथम अपर सत्र न्यायालय कुनकुरी ने शुक्रवार को धर्मांतरण के दबाव के मामले में आरोपी हॉलीक्रॉस नर्सिंग कॉलेज की प्राचार्या विंसी जोसफ की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, विंसी जोसफ पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही कॉलेज की एक गैर-ईसाई छात्रा पर नन बनने के लिए धर्म बदलने का दबाव बनाया। छात्रा की शिकायत पर यह मामला प्रकाश में आया, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने कार्रवाई की। पीड़िता के अनुसार, विंसी जोसफ ने उसे मानसिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश की और ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। इस घटनाक्रम के बाद जिले में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है और कई सामाजिक संगठनों ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। पुलिस द्वारा मामले की विवेचना जारी है।