उरांव महिलाओं ने दिखाई शौर्यगाथा की झलक, पारंपरिक ‘जनी शिकार’ का किया प्रदर्शन, पांच दिवसीय सम्मेलन में संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व की रक्षा का लिया संकल्प, हजारों महिलाओं ने पुरुष वेश में नगाड़ों की थाप पर किया जुलूस, धर्मांतरण के खिलाफ गरजे गणेश राम भगत

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जशपुर,23 मई 2025 – जशपुरनगर के तेतरटोली में 18 से 22 मई तक हिन्दू उरांव महिला समिति के बैनर तले एक पांच दिवसीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य उरांव समाज की महिलाओं को अपनी पारंपरिक संस्कृति, लोकगीत, नृत्य और जातिगत परंपराओं से जोड़ना था, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी मूल पहचान और गौरवशाली विरासत को समझ सकें। कार्यक्रम के अंतिम दिन ऐतिहासिक ‘जनी शिकार’ परंपरा का प्रतीकात्मक प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों महिलाओं ने पारंपरिक पुरुष वेश में हाथों में पारंपरिक हथियार लेकर नगाड़ों की थाप पर शहर में विशाल रैली निकाली। यह प्रदर्शन रोहतासगढ़ की उस गौरवशाली गाथा की याद दिलाने के लिए था, जब उरांव महिलाओं ने अपने शौर्य से मुगलों को तीन बार पराजित किया था। आमसभा में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने धर्मांतरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि छोटा नागपुर क्षेत्र को ‘ईसाई राज’ में बदलने की साजिशें लगातार चल रही हैं, लेकिन समाज अब जागरूक हो चुका है। उन्होंने डीलिस्टिंग कानून की मांग को दोहराते हुए सरकार से इस पर ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। फोटो: पारंपरिक परिधान में दंत चिकित्सक डॉ कांति प्रधान अन्य सामाजिक नेताओं के साथ रैली में सभा में झारखंड के संदीप उरांव और अंबिकापुर से आए डॉ. आज़ाद भगत ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि यदि जनजातीय समाज अपनी भाषा, परंपरा और रीति-रिवाजों को नहीं भूले, तो धर्मांतरण जैसी चुनौतियों से सहजता से निपटा जा सकता है। इस मौके पर गणेश राम भगत ने जशपुर रेल परियोजना में अवरोध उत्पन्न करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह जनभावना से जुड़ा मामला है, और ऐसे तत्वों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने संरक्षित जंगलों में अंधाधुंध पेड़ कटाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए उसकी जांच की मांग की तथा बारिश में वृक्षारोपण का आह्वान किया। इस आयोजन में हज़ारों की संख्या में महिलाएं और समाजजन शामिल हुए। तेज धूप में रैली में शामिल लोगों के सेवा में शहर के सामाजिक संगठनों ने भी भागीदारी निभाई। संवेदना फाउंडेशन, श्री बालाजी जन कल्याण समिति, और गुड मॉर्निंग ग्रुप जैसे संगठनों ने रैली में शामिल लोगों को पानी, शीतल पेय और फल वितरित कर सेवा भाव का परिचय दिया। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक एकता, जनजागरण और आत्मगौरव की मिसाल भी प्रस्तुत कर गया।

राज्य महिला आयोग अध्यक्ष किरणमयी नायक का कुनकुरी नगर अध्यक्ष विनयशील के निवास पर आत्मीय स्वागत, इन मुद्दों पर हुई सकारात्मक चर्चा

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जशपुर, 16 मई 2025 छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष और रायपुर की पूर्व महापौर डॉ. किरणमयी नायक शुक्रवार को कुनकुरी नगर अध्यक्ष विनयशील के निवास पर पहुंचीं। उनके आगमन पर नगर अध्यक्ष विनयशील और उनकी माता जी ने पारंपरिक एवं आत्मीय स्वागत किया। इस अवसर पर दोनों जनप्रतिनिधियों के बीच जशपुर जिले में महिलाओं से जुड़े सामाजिक, सुरक्षा और सशक्तिकरण से संबंधित विषयों पर गंभीर चर्चा हुई। डॉ. किरणमयी नायक ने भरोसा दिलाया कि महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और भविष्य में भी आयोग हर स्तर पर सहयोग के लिए तत्पर रहेगा। नगर अध्यक्ष विनयशील ने नगर पंचायत कुनकुरी की वर्तमान स्थिति, शहरी विकास की चुनौतियां और नगरीय निकाय से जुड़ी समस्याओं को किरणमयी साझा किया और सुझाव प्राप्त किए। आयोग की अध्यक्षा ने स्थानीय स्तर पर महिला सुरक्षा और कल्याण के लिए बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। इस मुलाकात के दौरान महिला बाल विकास समिति की पीआईसी सदस्य मुक्ति मिंज और आईटी सेल के अध्यक्ष नीरज पारीक ने भी डॉ. नायक का स्वागत किया और नगर विकास से जुड़े विषयों पर अपनी बात रखी। संक्षिप्त प्रवास के पश्चात् राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रायपुर के लिए रवाना हो गईं। उनके आगमन ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों में उत्साह और महिलाओं के मुद्दों पर सकारात्मक सहयोग की भावना को और मजबूत किया।  

डॉन बॉस्को जुमईकेला में व्यक्तित्व विकास व करियर गाइडेंस वर्कशॉप, डॉ. ग्रेस ने विद्यार्थियों को दिखाई सफलता की राह

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कक्षा तीसरी से बारहवीं तक के 350 विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़कर लिया हिस्सा, जीवन व करियर पर हुई प्रभावशाली चर्चा कुनकुरी(जशपुर), 11मई 2025 डॉन बॉस्को जुमईकेला शिक्षण-प्रशिक्षण केंद्र में चल रहे वार्षिक इंग्लिश स्पोकन कोर्स (1 मई से 31 मई) के अंतर्गत आयोजित व्यक्तित्व विकास और करियर गाइडेंस वर्कशॉप में ग्रामीण पुनर्वास कार्य प्रमुख मनोवैज्ञानिक डॉ. ग्रेस कुजूर ने छात्रों को जीवन निर्माण की प्रेरणादायक दिशा दी। कक्षा तीसरी से बारहवीं तक के लगभग 350 छात्र-छात्राओं ने इस सत्र में भाग लेकर जीवन, शिक्षा और करियर की बारीकियों को समझा। डॉ. ग्रेस ने पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से बच्चों को समझाया कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का जरिया नहीं, बल्कि एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनने का आधार है। उन्होंने कहा, “हर कोई अच्छी जिंदगी चाहता है, लेकिन उसे जीने का तरीका सीखना होता है – और यही इस वर्कशॉप का उद्देश्य है।” असफलता को बनाएं चुनौती, न कि बाधा डॉ. ग्रेस ने छात्रों को 12वीं के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “फॉर्म भरिए, तैयारी कीजिए, अगर असफल भी हो गए तो हार मानने की जरूरत नहीं है — असफलता को चुनौती बनाइए और कहिए कि मैं सफल होकर ही रहूंगा।” केवल विरासत नहीं, विकल्प को भी बनाएं अपना भविष्य उन्होंने एक अहम संदेश देते हुए कहा, “अगर पढ़ाई नहीं करेंगे तो किसान का बेटा किसान और व्यापारी का बेटा व्यापारी बनता रहेगा। लेकिन पढ़ाई करने से आपको अपनी पहचान खुद बनाने का विकल्प मिलेगा। विरासत से आगे बढ़ने का यही रास्ता है।” शिक्षा से ही बनेगा स्वस्थ समाज कार्यक्रम के समापन पर डॉ. ग्रेस ने शिक्षा और समाज के बीच गहरे संबंध को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य में सोचने, समझने और संवेदनशीलता की शक्ति होती है, जिसे शिक्षा सकारात्मक दिशा में मोड़ती है। उन्होंने कहा, “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन – वैसे ही जैसा पढ़ेगा बालमन, वैसा बनेगा जीवन। आप देश का भविष्य हैं। अगर आपकी सोच सकारात्मक विकास की ओर बढ़ेगी तो आपका घर, गांव, समाज और देश सब मजबूत बनेंगे।” यह वर्कशॉप डॉन बॉस्को सेंटर जुमईकेला द्वारा संचालित वार्षिक इंग्लिश स्पोकन कोर्स का हिस्सा है, जिसमें हर वर्ष की भांति इस बार भी विद्यार्थियों को व्यक्तित्व विकास व करियर गाइडेंस के लिए विशिष्ट वक्ताओं से मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। आयोजकों ने बताया कि 31 मई तक इसी तरह के उपयोगी सत्र आयोजित किए जाएंगे। इस सत्र को बहुउपयोगी बनाने के लिए समन्वयक फ़ा. पॉल तिर्की SDB, फा लिवेंस ऐंड SDB,शिक्षकगण सिस्टर नेहा कुजूर FMA, सिस्टर महिमा बारला FMA, ब्रदर बिपिन एक्का SDB, ब्रदर अर्पण तिर्की SDB, सिस्टर मार्था कुजूर FMA, ब्रदर अनिल टोप्पो,सहायक स्टाफ सिल्वेस्टर टोप्पो, लिबुन टोप्पो, अपोल केरकेट्टा सक्रिय हैं।

“बेटी पढ़ाओ” की खुली पोल — दो छात्राओं को परीक्षा से वंचित करने के पीछे किसका हाथ? छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज है भी या नहीं? प्राचार्य की मनमानी देखिए,

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अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से छत्तीसगढ़ भू-भाग आदिम जनजातियों,अनुसूचित जातियों का रहा है,जिन्हें भारत सरकार ने संविधान के तहत विशेष दर्जा दिया हुआ है।जिनको मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार कोशिशें हुईं हैं।वहीं “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” के नारे के साथ इन अंचलों की बेटियों को शिक्षा देने के लिए हर तरह से कोशिशें जारी है लेकिन कुछ कुंठित मानसिकता से ग्रसित लोग शिक्षा के मंदिरों में बैठकर मनमानी कर रहे हैं। दरअसल, मरवाही विकासखंड से एक बेहद चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना सामने आई है। यहां स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय, सिवनी में पढ़ने वाली दो आदिवासी छात्राओं को 11वीं की मुख्य परीक्षा से सिर्फ इसीलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि एक के आधार कार्ड और मार्कशीट में नाम का अंतर था और दूसरी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं था। पहली छात्रा देवकी पावले — पंडरी गांव की निवासी है। उसने 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद आत्मानंद स्कूल में 11वीं में प्रवेश लिया। पढ़ाई की, अर्धवार्षिक परीक्षा दी। लेकिन जब मुख्य परीक्षा आई तो स्कूल प्रबंधन ने उसे परीक्षा देने से मना कर दिया, क्योंकि आधार कार्ड में उसका नाम “देवती बाई” और मार्कशीट में “देवकी पावले” दर्ज था। देवकी ने जब आधार में सुधार करवाने की कोशिश की तो आधार केंद्र ने 10,000 रुपये की मांग की — एक गरीब आदिवासी परिवार के लिए असंभव रकम। मजबूर होकर उसने परीक्षा छोड़ दी, और उसका पूरा साल खराब हो गया। दूसरी छात्रा शालिनी पेंड्रो — यही स्कूल, यही कक्षा, लेकिन समस्या दूसरी। उसका जाति प्रमाण पत्र नहीं बना था। बस इसी वजह से उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। स्कूल प्रशासन की यह मनमानी न सिर्फ छात्रा के भविष्य के साथ अन्याय है, बल्कि आदिवासी समाज के लिए भी एक अपमान है। गांव के सरपंच तपेश्वर पोट्टम ने मौके पर पहुंचकर नाराज़गी जताई और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की। वहीं मरवाही के विकासखंड शिक्षा अधिकारी दिलीप कुमार पटेल ने स्वीकार किया कि उन्हें इस घटना की जानकारी मीडिया से मिली है। उन्होंने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है, और पूरक परीक्षा में दोनों छात्राओं को शामिल कर उनका एक साल बचाने की पूरी कोशिश की जाएगी। मरवाही आदिवासी बहुल इलाका है। यहां आदिवासी विधायक हैं, आदिवासी कलेक्टर हैं — ऐसे में दो आदिवासी छात्राओं का आधार और जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ों के कारण परीक्षा से वंचित हो जाना शासन-प्रशासन के लिए गहरी चिंता और शर्म का विषय होना चाहिए। अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ जांच और आश्वासन से इन छात्राओं का भविष्य संवर पाएगा? या फिर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई कर सरकार यह संदेश देगी कि ‘बेटी पढ़ाओ’ सिर्फ नारा नहीं, एक जिम्मेदारी है।

अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर 27 अप्रैल को कुनकुरी में

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अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर 27 अप्रैल को कुनकुरी में कुनकुरी | 16 अप्रैल 2025 अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेंटर, रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए एक विशेष निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन 27 अप्रैल 2025, दिन रविवार को अग्रसेन भवन, कुनकुरी में किया जा रहा है। इस शिविर में प्रसिद्ध इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. रश्मि गोयल नि:शुल्क जांच और परामर्श हेतु उपलब्ध रहेंगी। शिविर का उद्देश्य नि:संतानता को लेकर जागरूकता फैलाना और सही समय पर इलाज हेतु लोगों को प्रेरित करना है। बांझपन अब कोई अभिशाप नहीं – डॉ. रश्मि गोयल डॉ. रश्मि ने बताया कि आधुनिक जीवनशैली, अत्यधिक तनाव और बढ़ते प्रदूषण के कारण बांझपन एक आम समस्या बन चुकी है। कई बार कपल जब तक इलाज के लिए तैयार होते हैं, तब तक उम्र बढ़ जाती है और सफलता की संभावना घट जाती है। उन्होंने कहा कि इस शिविर का उद्देश्य सिर्फ इलाज ही नहीं बल्कि समाज में इस विषय को लेकर सकारात्मक सोच विकसित करना भी है। उन्होंने बताया कि आज भी कई परिवार महिलाओं को दोषी मानते हैं, जबकि शोधों के अनुसार 50% से अधिक मामलों में पुरुष बांझपन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। रायगढ़ में उपलब्ध है एडवांस तकनीक अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल पहले भी इस प्रकार के शिविर आयोजित करता रहा है और रायगढ़ में सभी आधुनिक इनफर्टिलिटी तकनीकों को उपलब्ध कराने में अग्रणी रहा है। अस्पताल छत्तीसगढ़ में आईवीएफ और इनफर्टिलिटी के मामलों में सर्वाधिक सफलता दर के साथ काम कर रहा है। स्थानीय इलाज, महानगरों जैसा भरोसा डॉ. रश्मि गोयल ने कहा कि हमारा प्रयास है कि कुनकुरी व आसपास के इलाकों के मरीजों को इलाज के लिए महानगरों की ओर न जाना पड़े। इस शिविर के माध्यम से हम उन्हें विशेषज्ञ परामर्श और प्राथमिक जांच सुविधाएं यहीं उपलब्ध कराएंगे। शिविर में ये सुविधाएं रहेंगी उपलब्ध: नि:शुल्क वीर्य जांच नि:शुल्क विशेषज्ञ परामर्श अन्य सभी जाँचों में विशेष रियायतें कैसे कराएं पंजीयन? अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि सीमित स्लॉट के कारण इच्छुक दंपती मोबाइल नंबर 9329142515 या 9329915092 पर कॉल करके अग्रिम पंजीयन करवा सकते हैं, जिससे उन्हें किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।

धर्मांतरण : हॉलीक्रॉस नर्सिंग कॉलेज की प्रिंसिपल का आया बयान,छात्रा के बारे में बताई बात,,,

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जशपुर ,03 अप्रैल 2025 – हॉलीक्रॉस नर्सिंग कॉलेज कुनकुरी की एक छात्रा द्वारा प्रिंसिपल विंसी जोसफ पर जबरन धर्मांतरण की कोशिश का आरोप लगाया है।जिसपर आज शाम 5 बजे प्रिंसिपल ने मीडिया के सामने अपनी बात रखते हुए आरोप को बेबुनियाद बताया है। प्राचार्य ने बताया कि वह 2012 से प्रिंसिपल है और नर्सिंग की ट्रेनिंग करा रही है।जिस छात्रा ने धर्मांतरण का आरोप लगाया है,वह कक्षा में नहीं आती और न ही अस्पताल में अपनी ड्यूटी कर रही है। दो दिन पहले वह छात्रा आई थी तो उसे कहा कि अपना पढाई पूरा कीजिये,ड्यूटी पूरा कीजिए,अपना नर्सिंग का पढाई पूरा कीजिये और आगे जाइये। प्रिंसिपल विंसी ने यह भी कहा कि हम धर्मांतरण नहीं करते हैं।हमारे नर्सिंग कालेज और जीएनएम में 312 स्टूडेंट्स ट्रेनिंग ले रहे हैं।जिसमें लगभग 40 स्टूडेंट गैर ईसाई हैं।यह अल्पसंख्यक संस्था है।मैंने या मेरे किसी भी सिस्टर ने किसी को भी कन्वर्ट करने का काम नहीं किया है।जो स्टूडेंट हैं उन्हें चर्च जाने से मना नहीं किया है।जिसको जाना है जा सकता है। वहीं छात्रा ने और छात्रा की माँ ने बताया कि सिस्टर विंसी बेटी को सिस्टर लाइन में भेजना चाहती थी और उस लाइन में जाने के लिए ईसाई धर्म अपनाना पड़ता जो छात्रा और उसके माता-पिता को स्वीकार नहीं था।छात्रा ने आज मीडिया को बताया कि सिस्टर की धर्मपरिवर्तन करने की बात नहीं मानी तो वह मुझे बहुत परेशान की।यह बात अन्य छात्रा के अलावा माँ को भी बताई थी। छात्रा की माँ ने कहा कि सिस्टर ने मुझे कभी नहीं कहा कि धर्मपरिवर्तन कर लो लेकिन छोटी-छोटी बात पर हमें बुलाकर बेटी के बारे में खूब उल्टा सीधा बोलती है। बेटी को मैं हमेशा कहती रहती हूँ कि  हम हिन्दू धर्म से हैं तो सिस्टर बनने क्यों ईसाई धर्म में जाएँ,शादी नहीं करना चाहती है तो हमारे धर्म में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी में जाकर सेवा करेगी। बहरहाल,धर्मांतरण के मामले में दोनों पक्ष अब आमने-सामने हो गए हैं।नर्सिंग कॉलेज की प्रिंसिपल छात्रा के आरोपों को खारिज कर रही है वहीं इसे छात्रा धर्म नहीं बदलने की सजा बता रही है। बता दें कि कलेक्टर,एसएसपी जशपुर को छात्रा ने 2 अप्रैल को शिकायत दी है।जिसपर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं होने की दशा में हिन्दू संगठन भी एक्शन के मूड में है।ऐसी सुगबुगाहट आज शाम से मिल रही है।

साक्षात्कार : “मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता ही पहला इलाज है” – डॉ. ग्रेस, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट

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छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है, और इस बदलाव की धुरी बन रही हैं डॉ. ग्रेस कुजूर। मानसिक चिकित्सा के कई विषयों में विशेषज्ञता रखने वाली डॉ. ग्रेस, 2022 से जशपुर रोड पर तालाब के सामने चर्च गेट के पास “GK साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर” का संचालन कर रही हैं। उनके प्रयासों से अब तक सैकड़ों मरीज ठीक होकर सामान्य जीवन जी रहे हैं। जनपक्ष के संपादक संतोष चौधरी ने उनसे एक विशेष बातचीत की। “मेरा उद्देश्य सेवा है, सिर्फ कमाई नहीं“ प्रश्न: डॉक्टर साहिबा, अपने बारे में हमारे पाठकों को बताएं। उत्तर: (मुस्कुराते हुए) सबसे पहले आपके पाठकों को मेरा नमस्कार। मैं डॉ. ग्रेस कुजूर, कुनकुरी से 16 किलोमीटर दूर केरसई गाँव की रहने वाली हूँ। मेरी पढ़ाई कुनकुरी निर्मला स्कूल से हुई, फिर 2008 में बिलासपुर गर्ल्स डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। क्लिनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स GGU, बिलासपुर से किया और फिर सिकंदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु और मुंबई में अलग-अलग विषयों में विशेषज्ञता हासिल की। मैं दो विषयों में पीएचडी कर चुकी हूँ—एक क्लिनिकल साइकोलॉजी में और दूसरा नेचुरोपैथी में। 2017 में छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, रायपुर ने मुझे “साइंटिस्ट अवॉर्ड” दिया था, जब मैंने विशेष बच्चों के लिए एक ऐप विकसित किया। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 24 साल से काम कर रही हूँ और इस काम को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन की सेवा मानती हूँ।मुझे वैज्ञानिक मनोचिकित्सक पुनर्वास एवं विशेषज्ञ के रूप में काम करने के लिए लाइसेंस प्राप्त है जिसका नम्बर C.R.R. A81006 है। “हर मानसिक बीमारी का इलाज संभव है” प्रश्न: आपके सेंटर में किस तरह के मरीजों का इलाज किया जाता है? उत्तर: हमारे सेंटर में काउंसलिंग, साइकोथेरेपी, रिलैक्सेशन थेरेपी, हिप्नोथेरेपी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और ज़रूरत पड़ने पर एमडी के पास रेफर किया जाता है। अब तक, ✔ 10 सेरेब्रल पाल्सी के बच्चे पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। ✔ 15 ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे सामान्य जीवन जी रहे हैं। ✔ 50 मंदबुद्धि (इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी) के बच्चे ठीक हो चुके हैं। ✔ 70 से अधिक व्यस्क मानसिक रोगी, जिनमें से 40 पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं। ✔ 60-75 वर्ष के बुजुर्गों में भूलने की बीमारी का भी सफल इलाज जारी है। सेंटर का मुख्य उद्देश्य जागरूकता और सही उपचार देना है, इसलिए फीस बहुत कम रखी गई है। “बाहर की नहीं, अंदर की चोटों का इलाज भी जरूरी है“ प्रश्न: इतनी पढ़ाई और अनुभव के बाद आपने कुनकुरी को ही क्यों चुना? उत्तर: जब मैं रायपुर, बेंगलुरु में पढ़ाई कर रही थी, तब मैंने देखा कि सरगुजा क्षेत्र के कई मरीज मानसिक बीमारियों के कारण दर-दर भटक रहे हैं। मुझे लगा कि अगर मैं अपने ही क्षेत्र में रहकर लोगों की मदद करूं तो ज्यादा बेहतर होगा। चूंकि मेरा घर कुनकुरी में है, तो यहाँ सेंटर खोलना सुविधाजनक भी रहा। प्रश्न: आपके अनुसार, इस क्षेत्र में किस तरह के मानसिक रोग सबसे ज्यादा हैं? उत्तर: यह कहना मुश्किल है क्योंकि मानसिक बीमारी दिखती नहीं, महसूस होती है। डिप्रेशन, एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया (पागलपन), एडिक्शन, डी-एडिक्शन, याददाश्त की समस्या जैसी बीमारियाँ यहाँ आम हैं। लेकिन सबसे चिंता की बात यह है कि 8वीं-9वीं के बच्चों में भी मानसिक समस्याएँ बढ़ रही हैं। ✔ बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं ✔ या तो उन्हें बहुत अधिक सुविधाएँ दी जा रही हैं, या बहुत ज्यादा दबाव यही कारण है कि बचपन से मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।          “मुझे अपने काम पर गर्व है” प्रश्न: इतने सालों का अनुभव कैसा रहा? उत्तर: (हँसते हुए) 24 साल से इस फील्ड में हूँ और मुझे अपने काम पर बेहद गर्व है। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू करता है, तो जो संतुष्टि मिलती है, वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती। “मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही ज़रूरी” अंतिम प्रश्न: हमारे पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगी? उत्तर:”जिस तरह बाहर की चोट का इलाज कराते हैं, वैसे ही अंदर की चोट का भी इलाज कराना ज़रूरी है।”अगर आपको लगे कि आपका कोई प्रियजन असामान्य व्यवहार कर रहा है, तो घबराने की जरूरत नहीं है—इलाज संभव है! वैसे,ज्यादा सही होगा कि स्वस्थ दिखने वालों को भी मानसिक स्वास्थ्य की जांच करा लेनी चाहिए, जिससे बीमारी ही पैदा न हो पाए। मेरे GK साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में सोमवार से शनिवार, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक आ सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए 7725093381,7067162282 पर संपर्क करें।मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का समाधान संभव है—बस पहला कदम उठाने की देर है!

छत्तीसगढ़ में पोषण ट्रैकर एप बना आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सिरदर्द, तकनीकी खामियों के कारण वेतन कटौती पर भड़का संघ

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जशपुर ,27 फरवरी 2025 – छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए पोषण ट्रैकर एप एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इस एप में तकनीकी खामियों के चलते प्रदेशभर में कई कार्यकर्ताओं का वेतन बिना किसी गलती के काटा जा रहा है, जिससे वे परेशान और आक्रोशित हैं। इस मुद्दे को सबसे पहले जशपुर जिले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ ने प्रमुखता से उठाया है और मंगलवार 25 फरवरी को जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर तत्काल समाधान की मांग की है। तकनीकी खामियां बनी बड़ी समस्या संघ की जिलाध्यक्ष श्रीमती कविता यादव के नेतृत्व में सौंपे गए ज्ञापन में बताया गया कि पोषण ट्रैकर एप के नए वर्जन में कई व्यावहारिक समस्याएं हैं। इसमें टीएचआर (टेक होम राशन) वितरण के लिए हितग्राहियों के आधार और मोबाइल से ओटीपी सत्यापन की अनिवार्यता है, जिससे कई परेशानियां खड़ी हो रही हैं— एक ही व्यक्ति को हर माह राशन लेने की अनिवार्यता – परिवार का कोई अन्य सदस्य राशन लेने नहीं जा सकता। ओटीपी सत्यापन की समस्या – कई हितग्राही ओटीपी साझा करने से मना करते हैं, जिससे उन्हें राशन नहीं मिल पाता। मोबाइल की अनुपलब्धता – कई आदिवासी और वनवासी परिवारों के पास मोबाइल फोन नहीं है, जिससे वे पोषण योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। नेटवर्क और तकनीकी दिक्कतें – कई इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं होने से पोषण ट्रैकर एप काम नहीं करता, जिससे राशन वितरण बाधित होता है। कमजोर मोबाइल उपकरण – आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दिए गए मोबाइल इस एप को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम नहीं हैं, जिसके लिए कम से कम 5GB रैम वाले मोबाइल की जरूरत है। रिचार्ज सुविधा का अभाव – कार्यकर्ताओं को मोबाइल रिचार्ज के लिए प्रति माह ₹500 की स्वीकृति दी जाए, ताकि वे निर्बाध रूप से अपने कार्य कर सकें। मानदेय में कटौती से बढ़ रही नाराजगी संघ का आरोप है कि विभागीय अधिकारी इन समस्याओं से भली-भांति परिचित होने के बावजूद, कोई समाधान निकालने के बजाय कार्यकर्ताओं के मानदेय में कटौती कर रहे हैं। यह कटौती केवल एप में दर्ज आंकड़ों के आधार पर की जा रही है, जबकि तकनीकी गड़बड़ियों के कारण कई बार सही डेटा दर्ज नहीं हो पाता। संघ की जिलाध्यक्ष कविता यादव ने कहा, “हम अल्प मानदेय पर कार्य करते हैं और उसी से परिवार चलता है। यदि छोटी-छोटी तकनीकी खामियों के कारण वेतन में कटौती होगी, तो हम पर आर्थिक संकट आ जाएगा। सरकार को इस समस्या का तत्काल समाधान निकालना चाहिए।” संघ ने शासन-प्रशासन से आग्रह किया है कि— टीएचआर वितरण का कार्य अन्य एजेंसी या संस्था के माध्यम से किया जाए, ताकि तकनीकी परेशानियों से बचा जा सके। पोषण ट्रैकर एप की खामियों को दूर किया जाए और इसे ऑफलाइन मोड में भी संचालित करने की सुविधा दी जाए। किसी भी कार्यकर्ता या सहायिका का मानदेय बिना उचित कारण के न काटा जाए और जब तक समस्या का समाधान न हो, तब तक कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए। प्रदेश भर में फैल सकता है आंदोलन यह समस्या केवल जशपुर की नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को इसी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मुद्दा प्रदेशव्यापी आंदोलन का रूप ले सकता है। संघ ने सरकार से अपील की है कि पोषण ट्रैकर एप से जुड़ी तकनीकी समस्याओं को दूर कर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बिना बाधा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने दिया जाए। अब देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं।

संविधान की छत्रछाया में मदरसा शिक्षा: न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला, मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा का सुनहरा अवसर

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निर्मल कुमार (लेखक आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।) कोई भी कानून, सामाजिक पूर्वाग्रह, या राजनीतिक दबाव, संविधान के इस मूल अधिकार को कमजोर नहीं कर सकता। = सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले को खारिज कर दिया। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत, मदरसों की निगरानी और प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस निर्णय को सुनाते हुए कहा कि सरकार को मदरसा शिक्षा के लिए नियमन बनाने का अधिकार है और यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। इस निर्णय ने मुस्लिम समुदाय और मदरसा शिक्षा से जुड़े लोगों के बीच न्याय और समानता की भावना को प्रबल किया है। संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस अधिकार की पुष्टि करता है और स्पष्ट करता है कि कोई भी कानून, सामाजिक पूर्वाग्रह, या राजनीतिक दबाव संविधान के इस मूल अधिकार को कमजोर नहीं कर सकता। यह निर्णय संविधान की सर्वोच्चता को एक बार फिर स्थापित करता है और भारत के लोकतंत्र के स्थायित्व को सुनिश्चित करता है। मदरसों की ऐतिहासिक भूमिका को समझने की आवश्यकता है। इन संस्थानों ने पारंपरिक धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, वर्तमान युग में शिक्षा केवल धार्मिक या सांस्कृतिक संरक्षण तक सीमित नहीं है। इसे आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित, चिकित्सा, और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों के साथ जोड़ना समय की आवश्यकता है। यह कदम न केवल मदरसा शिक्षा को प्रासंगिक बनाएगा, बल्कि इसे समुदाय की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के एक प्रभावी माध्यम में बदल देगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए आत्मचिंतन और नवाचार का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है। इसे एक अवसर के रूप में लेते हुए, मदरसों को अब आधुनिक शिक्षण पद्धतियों, डिजिटल उपकरणों और कौशल विकास कार्यक्रमों को अपनाना चाहिए। मदरसों का पाठ्यक्रम इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए, जो छात्रों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ मुख्यधारा की शिक्षा में भी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार कर सके। यह न केवल समुदाय के युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर देगा, बल्कि उन्हें समाज के विकास में सक्रिय योगदान देने में सक्षम बनाएगा। यह निर्णय उन संवैधानिक मूल्यों को भी मजबूत करता है जो भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला हैं। कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत, जो अनुच्छेद 14 में निहित है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाए, चाहे उनकी धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। इस फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि न्यायपालिका सामाजिक और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर संविधान के प्रावधानों की रक्षा करती है। यह निर्णय अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाता है कि न्यायपालिका उनकी आवाज सुनने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुस्लिम समुदाय को इस अवसर का उपयोग शिक्षा के माध्यम से अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए करना चाहिए। मदरसों को ऐसे केंद्रों में बदलना चाहिए, जो न केवल धार्मिक शिक्षा दें, बल्कि विज्ञान, गणित, प्रौद्योगिकी और भाषा जैसे विषयों में भी छात्रों को उत्कृष्टता प्रदान करें। विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी, डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म, और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से मदरसा शिक्षा को एक नई दिशा दी जा सकती है। इसके साथ ही, लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि समाज का प्रत्येक वर्ग सशक्त हो सके। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत भी है। यह अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय, को यह समझने का अवसर देता है कि संविधान ही उनके अधिकारों का सबसे सशक्त संरक्षक है। इसके साथ ही, यह भी आवश्यक है कि समुदाय संविधान और न्यायिक प्रणाली पर अपना विश्वास बनाए रखे। यह निर्णय एक संदेश है कि केवल संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही सामाजिक न्याय और समरसता प्राप्त की जा सकती है। आज का यह फैसला न केवल मदरसा शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह समुदाय को आत्मनिर्भर बनने और आधुनिक शिक्षा को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह शिक्षा ही है जो किसी भी समुदाय को सामाजिक और आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल न्यायालय के प्रति विश्वास को पुनः स्थापित नहीं करता, बल्कि यह एक प्रेरणा है कि शिक्षा के माध्यम से समाज के सभी वर्ग अपने अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। मुस्लिम समुदाय के लिए यह समय आत्मचिंतन और कार्य करने का है। उन्हें समझना होगा कि शिक्षा ही वह पुल है जो उन्हें पिछड़ेपन से प्रगति तक ले जा सकता है। यह निर्णय केवल मदरसों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक दिशा-सूचक है। जब समुदाय अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझकर संविधान के साथ चलने का निर्णय करेगा, तभी सामाजिक न्याय और समृद्धि का सपना साकार होगा।

मुख्यमंत्री साय का फोन बना निशा के सपनों का सहारा, किलिमंजारो पर फहरेगा छत्तीसगढ़ से तिरंगा

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रायपुर, 15 नवंबर 2024 // आज सुबह बिलासपुर की निशा यादव के जीवन में एक ऐसा पल आया, जिसने उनके सपनों को नई उड़ान दी। अलसुबह, जब उनका फोन बजा और दूसरी तरफ से एक सौम्य आवाज सुनाई दी, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। आवाज आई, “बेटा, मैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बोल रहा हूं। तुम्हें किलिमंजारो पर तिरंगा फहराने जाना है, और तुम्हें पैसों की कोई चिंता नहीं करनी है।” पहले तो निशा को लगा कि कोई मजाक कर रहा है। संकोच के साथ उन्होंने पूछा, “क्या आप सच में मुख्यमंत्री बोल रहे हैं?” लेकिन जब मुख्यमंत्री ने निशा के सपने और उनकी पर्वतारोहण यात्रा के बारे में विस्तार से चर्चा की, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। “आपने मेरे सारे डर दूर कर दिए” निशा, जो एक साधारण परिवार से आती हैं, ने बताया कि उनके पिता एक ऑटो चालक हैं। पर्वतारोहण जैसे महंगे शौक को पूरा करना उनके परिवार के लिए मुश्किल था। निशा ने भावुक होकर कहा, “मुख्यमंत्री जी, मैं कई दिनों से सो नहीं पा रही थी। मेरे सपने को पूरा करने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आज आपने मेरी सारी चिंताओं को दूर कर दिया। मैं आपको तहे दिल से धन्यवाद देती हूं।” निशा ने मुख्यमंत्री को यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रुस पर अपनी चढ़ाई और वहां तिरंगा फहराने के अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि पर्वतारोहण न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक मजबूती की भी परीक्षा लेता है। अब उनका अगला सपना अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो को फतह करना है, और इसके बाद वे माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना चाहती हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने निशा के जज्बे की तारीफ करते हुए कहा, “छत्तीसगढ़ को अपनी बेटियों पर गर्व है। आपका आत्मविश्वास और जुनून आपको आपके लक्ष्य तक जरूर पहुंचाएगा। हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ की बेटी माउंट एवरेस्ट पर भी तिरंगा फहराए। आर्थिक तंगी कभी किसी के हौसले को रोक नहीं सकती। हमारी सरकार आपके साथ है।” मुख्यमंत्री के इस स्नेह और समर्थन से निशा का उत्साह दोगुना हो गया। उन्होंने कहा कि अब वे और भी ज्यादा मेहनत करेंगी और छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करेंगी। निशा की कहानी न केवल उनके जैसे युवाओं के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भी साबित करती है कि जब सरकार और नेतृत्व का सहयोग मिलता है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं रहता। जल्द ही निशा तिरंगे के साथ किलिमंजारो की ऊंचाइयों को छूने की तैयारी शुरू करेंगी। छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह पल न केवल निशा के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए गर्व का क्षण होगा।