गंगा-जमुनी तहज़ीब: भारतीय समाज में सद्भाव और एकता का प्रतीक

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निर्मल कुमार (लेखक अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आर्थिक मुद्दों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।) उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने एक बार फिर भारत की सामाजिक एकता की बुनियाद को चुनौती दी है। ये घटनाएं केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा नहीं हैं, बल्कि उस साझा सांस्कृतिक विरासत के लिए भी खतरा हैं जिसने सदियों से भारत की पहचान को परिभाषित किया है। ऐसे समय में, हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को अपने साझा अतीत को याद करते हुए उन मूल्यों को अपनाने की आवश्यकता है जिन्होंने कभी उन्हें एक-दूसरे से जोड़ा था। भारत का उपमहाद्वीप धार्मिक और सांस्कृतिक मेल-जोल की एक अनमोल धरोहर का घर है। विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा-जमुनी तहज़ीब की संस्कृति, जो हिंदू-मुस्लिम परंपराओं का अनोखा संगम है, इस साझी विरासत का प्रतीक है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो चीजें हमें जोड़ती हैं, वे उन चीजों से कहीं अधिक मजबूत हैं जो हमें बांटती हैं। गंगा-जमुनी तहज़ीब वह भावना है जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने मिलकर पर्व-त्योहार मनाए, और एक-दूसरे के रीति-रिवाजों का सम्मान किया। दिवाली और ईद का मिलकर मनाना, सूफी संतों और भक्ति कवियों के प्रति साझा श्रद्धा, यह सब हमारी संस्कृति में पारस्परिक सम्मान और सह-अस्तित्व का प्रतीक हैं। यह सिर्फ एक साझा अतीत नहीं है बल्कि एक ऐसा भविष्य भी दर्शाता है जहां विविधता को बांटने का कारण नहीं बल्कि एकता का आधार माना जाए। सदियों से हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने एक साथ रहते हुए भाषा, कला, संगीत, भोजन और जीवनशैली को साझा किया है। यह सांस्कृतिक मिलन इन दोनों समुदायों की समृद्धि का स्रोत रहा है और इस धरोहर को हमें हर हाल में संजोकर रखना चाहिए, चाहे हालात कैसे भी हों। धर्म के प्रति सम्मान: शांति और सद्भाव की बुनियाद है ऐसे कठिन समय में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का सम्मान ही शांति और सामाजिक सौहार्द की बुनियाद है। मंदिरों और मस्जिदों के प्रति आदर, त्योहारों और रीति-रिवाजों का सम्मान, यही वह नींव है जो हमें एकजुट रखती है। सच्चा धर्म तभी होता है जब हम इस विविधता का सम्मान करें, इसे बांटने के साधन के रूप में नहीं बल्कि समाज को जोड़ने के एक सशक्त माध्यम के रूप में देखें। हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने हमेशा एक-दूसरे की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में भाग लिया है। सूफी परंपराओं में हिंदू देवी-देवताओं का जिक्र और हिंदू मंदिरों में इस्लामी वास्तुकला का प्रभाव इस गहरी सांस्कृतिक बुनावट के जीवंत उदाहरण हैं। बहराइच, जो सूफी संत सैयद सालार मसूद गाज़ी से जुड़ा हुआ है, वहां इस साझी विरासत का विशेष महत्व है। लेकिन हाल की घटनाओं ने इस विरासत को चुनौती दी है। इस समय यह जरूरी है कि हम उन तत्वों से सावधान रहें जो नफरत और बंटवारे का खेल खेलते हैं। ये लोग, चाहे राजनीतिक स्वार्थ के लिए हों या कट्टरपंथी एजेंडा के लिए, समाज में विभाजन पैदा करके ही अपना लाभ देखते हैं। उनके नफरत भरे भाषण, अफवाहें और प्रचार केवल हिंसा को बढ़ावा देते हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में जहां सही-गलत जानकारी तेजी से फैलती है, यह जरूरी है कि हम इन कोशिशों को समझें और इनसे बचें। हमारी असली ताकत नफरत की इन आवाजों को अस्वीकार करने में है। हमें हिंसा के बजाय संवाद, सहानुभूति और समझ का रास्ता अपनाना चाहिए। इस हिंसा के बाद एक और जरूरी सबक यह है कि कानून पर भरोसा बनाए रखें। किसी भी सभ्य समाज में न्याय की प्राप्ति कानून के जरिए ही होनी चाहिए, न कि भीड़ के गुस्से से। भीड़तंत्र केवल अराजकता और विभाजन को गहरा करता है। भारत का न्यायिक तंत्र, हालांकि इसमें सुधार की गुंजाइश है, फिर भी सभी नागरिकों के लिए न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बना है। अगर हम हिंसा का रास्ता चुनते हैं, तो न केवल कानूनी प्रक्रिया कमजोर होती है, बल्कि समाज में अराजकता भी बढ़ती है। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे कानून में भरोसा रखें और जहां जरूरी हो उसे सुधारने की दिशा में काम करें, न कि खुद कानून अपने हाथ में लें। जब हम कानूनी रास्ता अपनाते हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी अपराध के लिए उचित न्याय मिले और हिंसा भड़काने वालों को सजा दी जाए। किसी भी शिकायत का समाधान हिंसा से करना किसी भी शांतिपूर्ण समाज का रास्ता नहीं है और न ही यह हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के मूल्यों का सही प्रतिनिधित्व करता है। बहराइच हिंसा के बाद, यह जरूरी है कि दोनों समुदाय न केवल घावों को भरें बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भी एकजुट हों। गंगा-जमुनी तहज़ीब की धरोहर को केवल अतीत की याद के रूप में नहीं बल्कि एक जीवंत आदर्श के रूप में फिर से अपनाना जरूरी है जो हमारे वर्तमान और भविष्य को दिशा दे सके। दोनों धार्मिक समुदायों के नेताओं को संवाद के माध्यम से विश्वास का निर्माण करना चाहिए और अपने अनुयायियों को उन सांस्कृतिक धरोहरों की याद दिलानी चाहिए जो उन्हें जोड़ती हैं। नागरिक समाज, मीडिया और शैक्षिक संस्थानों को भी विभाजनकारी कथाओं का मुकाबला करने और एकता की कहानियों को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो चीजें हमें जोड़ती हैं, वे उन चीजों से कहीं अधिक मजबूत हैं जो हमें बांटती हैं। हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने मिलकर सदियों में एक समृद्ध सांझा विरासत बनाई है और एक घटना या हिंसा का दौर इसे खत्म नहीं कर सकता। शांति, सम्मान और कानून पर भरोसे का रास्ता चुनकर हम न केवल अपने अतीत का सम्मान करते हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य भी सुनिश्चित करते हैं। आज, गंगा-जमुनी तहज़ीब के मूल्यों को अपनाने और हमें बांटने की कोशिश करने वाली शक्तियों को अस्वीकार करने का समय है। (इस लेख में छपी तस्वीर गूगल से हैदराबाद खबर से ली गई है।ख़बर ज़नपक्ष आभार व्यक्त करता है।)

जिला प्रशासन-पहाड़ी बकरा-जशप्योर की कोशिश रंग लाई,देशभर से बाइकर्स जुटे

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जशपुर 08 नवम्बर 2024- प्रशासन और पहाड़ी बकरा और जशप्योर के सहयोग से जशपुर में पर्यटन एवं एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए आयोजित होने वाली बाइक यात्रा में दूर-दूर से लोग आकर्षित हो रहे हैं। जशपुर में 6 से 10 नवम्बर तक विभिन्न पर्यटन स्थल का यात्रा करेंगे पुणे से तुषार गोवर्धन और सागर तथा मुंबई से शुभम गंभीर के साथ-साथ ओडिशा से आकाश, उत्तम, उत्कर्ष और बंगाल से अमित घोष जैसे बाइकर्स ने वेबसाइट पर देशदेखा क्लाइंबिंग सेक्टर के बारे में पढ़ने के बाद इस खूबसूरत जगह की यात्रा करने के लिए प्रेरित हुए हैं और बिलासपुर से अपनी यात्रा शुरू कर दी है। पहला पड़ाव जशपुर बनाएंगे। यहां वे स्थानीय व्यंजनों का स्वाद चखेंगे और देशदेखा क्लाइंबिंग सेक्टर में रॉक क्लाइंबिंग का रोमांच अनुभव करेंगे। इसके बाद, यात्री पांड्रापाट में ऑफबीट कैंपिंग का आनंद लेने के लिए रवाना होंगे, और फिर मक्करभंजा जलप्रपात की यात्रा करेंगे। यात्रा के दौरान, वे स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए कई स्थानों की सफाई भी करेंगे। जशपुर टूर के दौरान सभी पर्यटकों को जशप्योर के सेहतमंद एवं पौष्टिक उत्पाद जैसे की मिलेट कूकीज, पास्ता, लाडू एवं विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक चायों के स्वाद से भी रूबरू कराया जायेगा ।पर्यटक महुआ सेंटर और मंथन फ़ूड लैब में जशपुर की आदिवासी महिलाओं से उनके अनुभव साझा करंगे | बातचीत करके बाइकर्स स्थानीय संस्कृति और जीवनशैली के बारे में अधिक जान पाएंगे। खासकर, तुषार जो खुद एक जैविक किसान भी हैं, वे स्थानीय आदिवासियों से जैविक खेती के तरीकों के बारे में सीखने के लिए उत्सुक हैं। इस तरह की पहल न केवल स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देगी बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी फैलाएगी। बाइकर्स के इस साहसिक कार्यक्रम से जशपुर और आसपास के क्षेत्रों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। स्थानीय लोगों के लिए भी यह एक अवसर होगा कि वे अपने क्षेत्र की खूबसूरती को एक नए नजरिए से देखें। यह यात्रा जशपुर जिला प्रशासन के उन प्रयासों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिनके माध्यम से जिले को एक ऐसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है जहां पर्यावरण अनुकूल और स्थायी पर्यटन मॉडल को बढ़ावा दिया जाता है। यह यात्रा न केवल पर्यटकों को प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव करने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन और संस्कृति से भी रूबरू कराती है। जशपुर जिला प्रशासन द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों से न केवल जिले का विकास होगा बल्कि यह अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

कलेक्टर ने राज्य स्थापना दिवस पर ‘एक दिया छत्तीसगढ़ के नाम’ की अपील की, कहा – ये हमारी परंपरा और पहचान का प्रतीक

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जशपुर, 30 अक्टूबर 2024। आगामी छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस को लेकर जिला प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली हैं। इस अवसर पर जिला मुख्यालय सहित जिले के सभी प्रमुख नगरों में दीप प्रज्जवलन किया जाएगा। जिला कलेक्टर  रोहित व्यास ने एक विशेष संदेश में सभी नागरिकों से अपील की है कि वे भी 1 नवंबर की शाम को अपने घरों में दीप जलाएं और राज्य की गौरवशाली परंपरा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। कलेक्टर ने बताया कि दीप प्रज्जवलन का आयोजन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एकता, समर्पण, और राज्य की संस्कृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि दीप जलाने से न केवल घर-आंगन रोशन होते हैं, बल्कि यह राज्य के प्रति नागरिकों की भावनाओं और जुड़ाव को भी दर्शाता है। उनका मानना है कि इस प्रतीकात्मक पहल से हर नागरिक अपनी मिट्टी से जुड़ेगा और इस खास दिन का महत्व हर घर में महसूस किया जाएगा। कलेक्टर ने कहा, “छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस का दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि हमारे राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और उसकी आत्मा का हिस्सा है। यह दिन हमें अपने राज्य की ऐतिहासिक यात्रा और उसकी संघर्षपूर्ण उपलब्धियों की याद दिलाता है। दीप प्रज्जवलन के माध्यम से हम न केवल अपने राज्य के लिए सम्मान जताते हैं, बल्कि अपनी नई पीढ़ी को भी इस विशेष परंपरा से जोड़ते हैं।” दीप जलाने की अपील में नागरिकों से राज्य के प्रति अपने योगदान और प्यार को दर्शाने का आग्रह किया गया है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को राज्य के इतिहास, संस्कृति, और परंपराओं के प्रति जागरूक करना और नई पीढ़ी को इसकी महत्ता समझाना है।

रौतिया समाज के सोहराय करम पूजा में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय टेलीफोनिकली हुए शामिल , समाज के लिए 50 लाख की भवन निर्माण की घोषणा

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जशपुर/कुनकुरी,29 अक्टूबर 2014 – अखिल भारतीय रौतीया समाज द्वारा 27 तारीख को कुनकुरी के कंडोरा में भव्य सोहराय करम पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें समाज के हजारों लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति प्रेम दिखाने पहुंचे। इस आयोजन में समाज के सभी  पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हुए और कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। रौतिया समाज के नेता मीनू प्रसाद सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को आमंत्रित किया गया था। हालांकि, खराब मौसम के कारण उनका हेलीकॉप्टर रायपुर से उड़ान नहीं भर सका और दो बार प्रयास करने के बाद भी वे समारोह में शामिल नहीं हो पाए। मुख्यमंत्री ने इस बात पर खेद जताते हुए मोबाइल के माध्यम से समाज को संबोधित किया और 50 लाख रुपए की लागत से कंडोरा में रौतीया समाज के लिए भवन निर्माण की घोषणा की। उन्होंने इस आयोजन के लिए समाज को बधाई दी और भविष्य में कार्यक्रम में शामिल होने का वचन दिया। इस कार्यक्रम में राजनांदगांव सांसद संतोष पांडे, बस्तर सांसद महेश कश्यप और रायगढ़ सांसद राधेश्याम राठिया ने भी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने करम राजा की पूजा अर्चना की और समाज के साथ मांदर बजाकर पारंपरिक नृत्य में भाग लिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में समाज के कार्यकारी अध्यक्ष प्रताप सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। राष्ट्रीय अध्यक्ष ओ.पी. साय, प्रांतीय अध्यक्ष घनश्याम सिंह,रंजीत सिंह,अशोक सिंह,श्रीमती सपना सिंह, श्रीमती अनिता सिंह और कई अन्य पदाधिकारी व समाज के सदस्य इस आयोजन में उपस्थित रहे और इसे सफल बनाने में सहयोग दिया।  

आदिकालीन प्रकृतिपूजक रौतिया समाज ने मनाया करमा पर्व,पारंपरिक वेशभूषा में पूरी रात जमकर नाचे,,देखें तस्वीरें

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जशपुर/कुनकुरी,24 अक्टूबर 2024 – अखिल भारतीय रौतिया समाज के कुनकुरी मंडल में जनजातीय समाज का पवित्र त्यौहार करमा महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया।यह पर्व करमा अर्थात कर्म देवता की आराधना करते हुए घर-परिवार,समाज,पृथ्वी के समस्त प्राणियों की सुख-समृद्धि की कामना करने का त्यौहार है।जिसमें सभी लोग करम वृक्ष की डगाल लाकर पूजा स्थल में गाड़ते हैं और रातभर लोकगीतों के साथ पारंपरिक वाद्ययंत्रों ( ढोलक,मांदर,नगाड़ा इत्यादि)बजाते हुए करम नृत्य करते हैं। अखिल भारतीय रौतिया समाज के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम रौतिया विशेष रूप से आज के युवाओं को अपनी प्राचीन लोकसंस्कृति, परम्परा, पूजा-पद्धति से जोड़ने के लिए रौतिया भवन पहुंचे हुए थे। दरअसल, रौतिया समाज कुछ गलतफहमियां और दस्तावेजों में हुई/की गईं त्रुटियों के कारण छत्तीसगढ़ में जनजाति समुदाय की सूची में नहीं जुड़ पाया।बीते तीन दशकों से इस विषय को लेकर समाज प्रमुखों के द्वारा सत्ता में बैठी राजनैतिक पार्टियों के सामने खुद को आदिवासी घोषित कराने के लिए लगातार प्रयास किया गया।पिछले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने डबल इंजन की सरकार में समाज की मांग पूरी करने का भरोसा दिया था। अखिल भारतीय रौतिया समाज के कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मीनू सिंह कहते हैं कि हम वे आदिवासी हैं जिन्हें संविधान लागू होते समय सूचीबद्ध नहीं किया गया।1954 से इसके प्रयास शुरू हुए जो आज तक जारी है।वह अलग विषय है।हम यहां करम त्यौहार मनाने इकट्ठे हुए हैं।यह त्यौहार आधुनिकता के संक्रमण से छूट रहा था,जिसे हम पुनः गौरवशाली ढंग से स्थापित कर रहे हैं।27 अक्टूबर को कंडोरा आम बगीचा में राष्ट्रीय स्तर पर यह त्यौहार मनाने जा रहे हैं।

*मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय ने ग्रामीण महिलाओं के साथ किया करमा नृत्य*

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*पानी करमा के अवसर पर राज्य में अच्छी फसल और वर्षा के लिए की प्रार्थना *जशपुर, 20 अक्टूबर 2024/* मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बगिया स्थित निज निवास में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय ने स्थानीय ग्रामीण महिलाओं के साथ करमा त्यौहार मनाया। पानी करमा पर्व के अवसर पर नदी का जल अर्पण कर पीपल वृक्ष की पूजा करते हुए स्थानीय ग्रामीण महिलाओं के साथ करमा नृत्य में भाग लिया। ग्रामीणों के साथ मिल कर करम देवता की स्तुति करते हुए ग्राम एवं पूरे राज्य की खुशहाली और समृद्धि के साथ अंचल में अच्छी वर्षा की कामना के लिए अर्चना की। इस अवसर पर पूरे ग्राम की महिलाएं मुख्यमंत्री निवास में करम वृक्ष की डाल के साथ आईं जहां करमा वृक्ष की डाल को गाड़ कर सभी ने हर्षोल्लास से श्रीमती साय के साथ करमा नृत्य किया। इस अवसर पर श्रीमती कौशल्या साय ने बताया कि दशहरा के बाद स्थानीय महिलाएं इंद्र देवता को प्रसन्न कर ग्राम एवं प्रदेश में अच्छी वर्षा की कामना लेकर पानी करमा पर्व मनातीं हैं। इस अवसर पर दिन भर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और जंगल से करमा वृक्ष की लकड़ी लाकर हमारे निवास में नदी से जल लाकर पीपल वृक्ष के नीचे जल अर्पण कर पूजा करतीं है और इसके पश्चात ग्राम में जाकर रात भर पूजा आराधना एवं करमा नृत्य करतीं हैं। उन्होंने आज करम त्यौहार और करवाचौथ पर सभी को बधाई देते हुए बताया कि पतिदेव अभी दरिमा से निकले हैं।दो घण्टे बाद पहुंचेंगे तब तक करवाचौथ की तैयारी कर लूँगी।

मुख्यमंत्री साय ने बस्तर दशहरा के लिए “दसराहा पसरा” का किया लोकार्पण, जनजातीय संस्कृति की विशिष्ट धरोहर का हुआ संरक्षण

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जगदलपुर, 15 अक्टूबर,2024 – छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बस्तर दशहरा उत्सव के लिए समर्पित “दसराहा पसरा” का लोकार्पण किया, जो बस्तर की जनजातीय संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित और प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनेगा। 2 करोड़ 99 लाख 78 हजार की लागत से जीर्णोद्धारित इस स्थल का उद्देश्य बस्तर दशहरा की विभिन्न रस्मों और रीति-रिवाजों को सहेजकर पर्यटकों और आमजन को सुलभ जानकारी प्रदान करना है। मुख्यमंत्री साय ने मुरिया दरबार में शामिल होने के दौरान, दंतेश्वरी मंदिर के समीप पुराने तहसील कार्यालय को “दसराहा पसरा” के रूप में पुनर्निर्मित कर जनजातीय परंपराओं का सम्मान किया। उन्होंने बस्तर दशहरा की रस्मों के प्रतीकात्मक रथ, देवी-देवताओं के प्रतीकों और प्रदर्शनी की सराहना की, और फोटो प्रदर्शनी के समीप फोटो खिंचवाई। यह स्थल बस्तर दशहरा उत्सव के 75 दिवसीय समारोह में होने वाली प्रमुख रस्मों जैसे पाट जात्रा, डेरी गढ़ाई, काछन गादी, रैला देवी पूजा, जोगी बिठाई, रथ परिक्रमा, बेल पूजा और अन्य महत्वपूर्ण परंपराओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करेगा। बस्तर दशहरा न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि देशभर में अनूठी पहचान रखने वाला त्योहार है, जो बस्तर के जनजातीय समुदायों की देवी-देवताओं के प्रति आस्था और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है। मुख्यमंत्री साय ने इस पहल को बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और विश्व पटल पर बस्तर की परंपराओं को प्रस्तुत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। इस अवसर पर वनमंत्री केदार कश्यप, सांसद महेश कश्यप, कांकेर सांसद भोजराज नाग, विधायक किरण देव, कोंडागांव विधायक लता उसेण्डी, चित्रकोट विधायक विनायक गोयल, दंतेवाड़ा विधायक चैतराम अटामी, महापौर सफीरा साहू और अन्य गणमान्य जनप्रतिनिधियों के साथ कमिश्नर डोमन सिंह, आईजी सुंदरराज पी., कलेक्टर हरिस एस. और एसपी शलभ सिन्हा मौजूद रहे। बस्तर दशहरा, बस्तर की जनजातीय संस्कृति की समृद्ध धरोहर को संरक्षित करने और उसे दुनिया के सामने लाने का एक महान आयोजन है, जो इस क्षेत्र की विशिष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों को जीवंत बनाए रखता है।  

गिनाबहार में ईसाई उरांव समाज ने करम त्यौहार मनाया,आदिवासी परम्परा से पूजा सम्पन्न

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 जशपुर/कुनकुरी 13 अक्टूबर2024 – आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में इन दिनों करम त्यौहार की धूम मची हुई है।गिनाबहार में निर्माणाधीन उरांव सामाजिक भवन के सामने कुनकुरी क्षेत्र के ईसाई उरांव जनजाति के लोगों ने पवित्र करम त्यौहार मनाया। उरांव समाज के एमेरियुस लकड़ा ने करम त्यौहार के बारे में बताया कि यह उरांव जनजाति के उन युवाओं के लिए खास त्यौहार है जो विवाह योग्य हो गए हैं।करम गाड़ने की विधि बताते हुए कहा कि पहले अखड़ा(नृत्य स्थल) की साफ-सफाई की जाती है,जिसे गोबर से लिपाई कर पूजा के लिए तैयार किया जाता है।इसके बाद उपवास किये हुए कुंवारे युवक-युवतियां जंगल जाते हैं और करम वृक्ष के नीचे इकट्ठा होकर हल्दी पानी छिड़ककर स्थल शुद्धिकरण किया जाता है।फिर कुंवारा युवक करम वृक्ष की डाल काटता है जिसे जमीन में गिरने से पहले ही कुंवारी युवतियां उसे अपने हाथों में ले लेती हैं।इसके बाद विधि-विधान से अखड़ा में करम डाल गाड़ा गया।इसके बाद करम पर्व से जुड़ी कथा कुँड़ुख़ भाषा ( उरांव जनजाति की भाषा) में कही गई। उन्होंने आगे बताया कि दिन भर उपवास रहते हुए करम राजा के चारों ओर नृत्य करते हैं।शाम को उपवास तोड़ने के बाद पाहन करम डाल को उखाड़ते हैं और फिर कुंवारी लड़कियां उन्हें लेकर पास के नदी-तालाब में ले जाकर विसर्जन किया गया। इस आयोजन में ईसाई आदिवासी महासभा के जिलाध्यक्ष वाल्टर कुजूर, उरांव समाज के शिक्षाविद डॉ. किशोर एक्का,अनिमानन्द,हेमंत, रॉबर्ट,दिलीप केरकेट्टा,अलमा सहित बड़ी संख्या में युवक-युवती,महिला-पुरुष शामिल होकर मांदर की थाप पर नृत्य करते दिखे।

*मीनाक्षी शेषाद्रि ने चक्रधर समारोह में शास्त्रीय नृत्य से मोहा मन, 30 साल बाद भारत में किया यादगार प्रदर्शन*

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  *रायगढ़ 12 सितंबर 2024 – चक्रधर समारोह की बीती रात बेहद खास रही, जब दिग्गज अभिनेत्री और नृत्यांगना मीनाक्षी शेषाद्रि ने 30 साल बाद भारत में अपने पहले शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। रायगढ़ में आयोजित इस प्रतिष्ठित सांस्कृतिक समारोह के मंच पर मीनाक्षी ने भरतनाट्यम और ओडिशी की जादुई प्रस्तुति दी, जिसने सभी का दिल जीत लिया।  नृत्य से की भगवान गणेश की स्तुति अपने प्रदर्शन की शुरुआत मीनाक्षी ने भगवान गणेश की स्तुति, गणेश वंदना के साथ की। उनका हर भाव, हर मुद्रा और ताल से ताल मिलाता कदम दर्शकों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य की गहराई और सुंदरता में खोने पर मजबूर कर रहा था। लंबे समय तक भारतीय मंच से दूर रहने के बावजूद मीनाक्षी का प्रदर्शन पूरी तरह से लाजवाब था। हर बार जब उन्होंने मंच पर अपनी कला दिखाई, पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी।  30 साल बाद वापसी से चौंकाया मीनाक्षी शेषाद्रि ने 30 साल पहले भारतीय फिल्म और नृत्य जगत को अलविदा कह दिया था, और उसके बाद अमेरिका में अपने परिवार के साथ बस गई थीं। हालांकि, उन्होंने कभी भी नृत्य को खुद से दूर नहीं होने दिया। अमेरिका में भी उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा दी और इसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया। चक्रधर समारोह में उनकी वापसी के बारे में किसी ने यह नहीं सोचा था कि इतने सालों के बाद भी वह अपनी कला में उतनी ही प्रवीण होंगी। लेकिन मीनाक्षी ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया और यह साबित किया कि कला और कलाकार कभी पुराने नहीं होते। रायगढ़ के चक्रधर समारोह में मीनाक्षी के प्रदर्शन को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। हर उम्र के दर्शकों ने उनके नृत्य को बेहद सराहा।जशपुर से पहुंचे दर्शक दिलीप राम ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक पल था। मीनाक्षी शेषाद्रि को इतने सालों बाद लाइव देखना और उनका नृत्य देखना एक अविस्मरणीय अनुभव था।”  मीनाक्षी का संदेश प्रदर्शन के बाद मीनाक्षी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “भारत में 30 साल बाद नृत्य करना मेरे लिए बेहद खास है। रायगढ़ के दर्शकों का जो प्यार और समर्थन मिला, उससे मैं अभिभूत हूं। मैं हमेशा से भारतीय शास्त्रीय नृत्य से जुड़ी रही हूं और आगे भी इसे बढ़ावा देने का प्रयास करती रहूंगी।”उन्होंने कोलकाता में हुए दुष्कर्म की घटना पर अपनी फिल्म दामिनी को याद करते हुए कहा कि “हम कब इंसान बनेंगे?हिंसा और अपराध इंसान की कमजोरी है।”उन्होंने फिल्मी दुनिया मे वापसी करने के सवाल पर कहा कि “अभी इंतजार कीजिये।” इस साल के चक्रधर समारोह में मीनाक्षी शेषाद्रि की प्रस्तुति निस्संदेह मुख्य आकर्षण रही। उनके नृत्य ने समारोह की गरिमा को और बढ़ा दिया, और उनके प्रदर्शन को समारोह के इतिहास में एक यादगार पल के रूप में दर्ज किया जाएगा। 60 वर्षीया मीनाक्षी शेषाद्रि की इस शानदार वापसी ने एक बार फिर से साबित किया कि कला की कोई उम्र नहीं होती, और एक सच्चा कलाकार हर समय अपने दर्शकों का दिल जीत सकता है।

*मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से कंवर समाज के प्रतिनिधि मंडल ने की सौजन्य मुलाकात* *करमा महोत्सव का आमंत्रण दिया*

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  रायपुर, 10 सितंबर 2024/ मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के यहां उनके निवास कार्यालय में कंवर समाज के प्रतिनिधि मंडल ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कंवर समाज के अध्यक्ष श्री हरवंश सिँह मिरी के नेतृत्व में सौजन्य मुलाकात की। उन्होंने मुख्यमंत्री श्री साय को युवा कंवर समाज द्वारा आयोजित होने वाले *करमा महोत्सव के कार्यक्रम* में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने का आमंत्रण दिया। मुख्यमंत्री ने आमंत्रण के लिए प्रतिनिधि मंडल को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर कंवर समाज के महासचिव श्री नकुल चंद्रवंशी, श्री टूकेश कंवर भी उपस्थित थे। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री के साथ उत्तर बस्तर कांकेर जिले के चारामा विकासखंड के जेपरा सहित विभिन्न गांवों में विकास कार्यों से संबंधित विषयों पर विचार विमर्श किया।