महाकुंभ 2025: भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक और साम्प्रदायिक सौहार्द का वैश्विक उदाहरण
निर्मल कुमार प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आयोजित महाकुंभ मेला 2025 न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारत की “एकता में विविधता” की भावना का भव्य उत्सव भी बना। लाखों श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ के बीच, यह आयोजन सौहार्द और आपसी सहयोग की अद्भुत मिसाल पेश करता दिखा। कुछ नकारात्मक ताकतों द्वारा समाज में वैमनस्यता फैलाने की कोशिशों के बावजूद, इस मेले ने साबित कर दिया कि भारत की असली पहचान शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान में निहित है। महाकुंभ मेला, जिसे पृथ्वी का सबसे बड़ा मानव समागम कहा जाता है, हिंदू धर्म के लिए एक अत्यंत पवित्र आयोजन है। हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला यह महायोगिक समागम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर लाखों श्रद्धालुओं को स्नान एवं आस्था के महासंगम का साक्षी बनाता है। हालांकि, इस बार 29 जनवरी 2025 (मौनी अमावस्या) के दिन एक दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ मच गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई और सैकड़ों श्रद्धालु घायल हो गए। इस कठिन समय में, प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने अपनी सद्भावना और मानवता का परिचय देते हुए जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों, मस्जिदों और दरगाहों के दरवाजे खोल दिए। भगदड़ से प्रभावित 25,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को जॉर्ज टाउन, नक्खास कोहना, खुल्दाबाद, बहादुरगंज और जानसेनगंज रोड जैसे इलाकों की मस्जिदों, दरगाहों और इमामबाड़ों में शरण दी गई। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने न केवल जरूरतमंदों को आश्रय दिया, बल्कि उनके लिए भंडारे (सामूहिक भोजन वितरण) का आयोजन भी किया। इनमें हलवा-पूरी, चाय, पानी और फलाहार जैसी व्यवस्थाएँ प्रमुख थीं, जिससे थके-मांदे श्रद्धालुओं को राहत मिली। यह सिर्फ एक सेवा कार्य नहीं था, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का एक जीवंत प्रमाण भी था, जो सदियों से इस देश में भाईचारे और मेल-जोल की भावना को पोषित करता आया है। इंसानियत और भाईचारे की मिसाल इस अवसर पर कई ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण सामने आए, जिन्होंने दिखाया कि धर्म के नाम पर विभाजन की राजनीति कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन आम भारतीय लोगों की मानवीयता और सहिष्णुता हमेशा विजयी होती है। बहादुरगंज के निवासी इरशाद ने भावुक होकर कहा, “ये हमारे मेहमान थे, उनकी पूरी देखभाल करना हमारा कर्तव्य था।” वहीं, अपना चौक के शिक्षक मसूद अहमद ने कहा, “मुसलमानों ने कोई उपकार नहीं किया, बल्कि यह हमारा धार्मिक और नैतिक कर्तव्य था कि हम हिंदू श्रद्धालुओं की सहायता करें ताकि वे अपने धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कर सकें।” सबसे प्रेरणादायक उदाहरणों में से एक रहा फरहान आलम का, जिन्होंने एक 35 वर्षीय श्रद्धालु राम शंकर की जान बचाई। राम शंकर को दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन फरहान ने बिना समय गंवाए CPR (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) देकर उनकी जान बचा ली। यह घटना कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। फरहान का यह साहसिक और निःस्वार्थ कार्य भारतीय समाज में मानवता और परस्पर सहयोग की सुदृढ़ भावना को उजागर करता है। अन्य प्रेरणादायक घटनाएँ महाकुंभ मेला 2025 में बुलंदशहर के मुसलमानों ने भी भाईचारे की मिसाल पेश की। वहाँ के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बन्ने शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाकर कुंभ के श्रद्धालुओं की सुरक्षा और मंगलकामना के लिए विशेष प्रार्थनाएँ कीं। वहीं, प्रयागराज में मुस्लिम भाईयों ने तीर्थयात्रियों का स्वागत फूलों और रामनामी अंगवस्त्र भेंट कर किया। यह एक ऐसा दृश्य था जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की मूल आत्मा भाईचारे, आपसी सम्मान और सांस्कृतिक सौहार्द में निहित है। इसके अलावा, वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम और स्थानीय लोगों ने रोशन बाग पार्क में तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और पानी वितरण केंद्र स्थापित किया। यह पहल केवल एक सेवा कार्य नहीं थी, बल्कि इस्लाम की करुणा और सेवा भावना का प्रतीक भी थी। प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी: सौहार्द के संदेशवाहक इस मेले में प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी का योगदान भी उल्लेखनीय रहा। उन्होंने नफरत और भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देते हुए हजारों लोगों के बीच शांति और सौहार्द के पर्चे बाँटे। उनका यह प्रयास दर्शाता है कि अगर समाज में कुछ लोग नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं, तो उससे कहीं अधिक लोग प्रेम और एकता का संदेश फैलाने में लगे हुए हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की पुनर्स्थापना महाकुंभ मेला 2025 ने यह दिखाया कि कुछ लोग भले ही राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को विभाजित करने की कोशिश करें, लेकिन भारत की असली ताकत इसके आम नागरिकों की एकता, प्रेम और सेवा भावना में ही निहित है। मुस्लिम समुदाय की उदारता, फरहान आलम की बहादुरी और प्रोफेसर त्रिपाठी का शांति संदेश – यह सभी घटनाएँ भारतीय समाज के मूलभूत मूल्यों की याद दिलाती हैं। भारत हमेशा से ही विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। सिखों द्वारा लंगर सेवा, हिंदुओं द्वारा मुस्लिम त्योहारों में भागीदारी और मुसलमानों द्वारा कुंभ श्रद्धालुओं की मदद – ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि जब बात मानवता की आती है, तो धर्म, जाति और भाषा की सीमाएँ महत्वहीन हो जाती हैं। महाकुंभ मेला 2025 को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि भारत के बंधुत्व, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में भी याद किया जाएगा। ऐसे समय में जब हिंसा और कट्टरता के बीज बोने की कोशिशें हो रही हैं, प्रयागराज की जनता ने दिखा दिया कि असली धर्म दया, करुणा और सहयोग में निहित है। भारत एक ऐसा देश है जिसने विविध संस्कृतियों को आत्मसात कर अपने समाज को मजबूत बनाया है और यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी। महाकुंभ मेला 2025 न केवल आस्था का महापर्व था, बल्कि यह एक संदेश भी था कि जब दुनिया में नफरत बढ़ रही हो, तब प्रेम और भाईचारे की लौ को जलाए रखना ही सच्चा धर्म और सच्ची मानवता है। (लेखक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)