मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सौगात: जशपुर में 18.46 करोड़ से बनेंगी 6 नई सड़कें, मधेश्वर पहाड़ तक पक्के रास्ते से पहुंचेंगे शिवभक्त

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धार्मिक पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, ग्रामीण आवागमन होगा सुलभ, जनता में खुशी की लहर जशपुर, 23 मई 2025 – मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल पर जशपुर जिले को एक और बड़ी सौगात मिली है। राज्य शासन द्वारा जिले में 6 प्रमुख सड़कों के निर्माण के लिए 18 करोड़ 46 लाख 87 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई है। इससे न केवल ग्रामीण अंचलों के लोगों को आवागमन में सुगमता मिलेगी, बल्कि विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग माने जाने वाले मधेश्वर पहाड़ तक श्रद्धालुओं की आसान पहुंच सुनिश्चित होगी। मधेश्वर मंदिर तक पक्की सड़क – धार्मिक पर्यटन को लगेगा पंख कुनकुरी क्षेत्र के मयाली नेचर कैंप से लेकर मधेश्वर मंदिर और जोकारी से मधेश्वर पहाड़ तक पक्की सड़क का निर्माण होना है। इस पहल से न सिर्फ शिवभक्तों की आस्था की राहें आसान होंगी, बल्कि क्षेत्रीय धार्मिक पर्यटन को भी जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा। जोकारी और भंडरी पंचायत के ग्रामीणों में इस खबर से गहरी प्रसन्नता है और लोग मुख्यमंत्री की जय-जयकार कर रहे हैं। ये हैं स्वीकृत सड़कों के विवरण – 1. चटकपुर से रेंगारबहार (2.46 किमी) – ₹2.89 करोड़ 2. कुनकुरी-औरीजोर-मतलूटोली-पटेलापारा (2.54 किमी) – ₹3.01 करोड़ 3. NH-43 से मयाली डेम तक (2.28 किमी) – ₹2.85 करोड़ 4. मयाली नेचर कैंप से मधेश्वर मंदिर (2.20 किमी) – ₹2.71 करोड़ 5. रानीबंध चौक–चिडराटांगर–पंडरीआमा–उपरकछार (3.44 किमी) – ₹3.29 करोड़ 6. जोकारी से मधेश्वर पहाड़ (2.88 किमी) – ₹3.68 करोड़   “अब जशपुर में विकास की नई राह खुल रही है। श्रद्धा, सुविधा और समर्पण के संग मुख्यमंत्री की यह सौगात सिर्फ सड़क नहीं, बल्कि ग्रामीण जनजीवन को जोड़ने वाला भविष्य का पुल है।” – नरेश नंदे, वरिष्ठ अधिवक्ता व विचारक जशपुर जिला प्रशासन सक्रिय, जल्द होगा कार्य प्रारंभ कलेक्टर रोहित व्यास ने बताया कि निर्माण कार्य शीघ्र प्रारंभ करने की तैयारी की जा रही है। मुख्यमंत्री का लक्ष्य है कि प्रत्येक गांव और धार्मिक स्थल तक पक्की और सुरक्षित सड़क पहुंचे ताकि आमजन को विकास का सीधा लाभ मिले। मुख्यमंत्री का वादा – “सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, सबको साथ लेकर चलेंगे” मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पहले ही स्पष्ट किया था कि जशपुर जिले को बुनियादी सुविधाओं में आत्मनिर्भर बनाना उनकी प्राथमिकता है। सड़क निर्माण की यह नई श्रृंखला विष्णु के सुशासन मॉडल का प्रत्यक्ष प्रमाण है।  

उरांव महिलाओं ने दिखाई शौर्यगाथा की झलक, पारंपरिक ‘जनी शिकार’ का किया प्रदर्शन, पांच दिवसीय सम्मेलन में संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व की रक्षा का लिया संकल्प, हजारों महिलाओं ने पुरुष वेश में नगाड़ों की थाप पर किया जुलूस, धर्मांतरण के खिलाफ गरजे गणेश राम भगत

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जशपुर,23 मई 2025 – जशपुरनगर के तेतरटोली में 18 से 22 मई तक हिन्दू उरांव महिला समिति के बैनर तले एक पांच दिवसीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य उरांव समाज की महिलाओं को अपनी पारंपरिक संस्कृति, लोकगीत, नृत्य और जातिगत परंपराओं से जोड़ना था, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी मूल पहचान और गौरवशाली विरासत को समझ सकें। कार्यक्रम के अंतिम दिन ऐतिहासिक ‘जनी शिकार’ परंपरा का प्रतीकात्मक प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों महिलाओं ने पारंपरिक पुरुष वेश में हाथों में पारंपरिक हथियार लेकर नगाड़ों की थाप पर शहर में विशाल रैली निकाली। यह प्रदर्शन रोहतासगढ़ की उस गौरवशाली गाथा की याद दिलाने के लिए था, जब उरांव महिलाओं ने अपने शौर्य से मुगलों को तीन बार पराजित किया था। आमसभा में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने धर्मांतरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि छोटा नागपुर क्षेत्र को ‘ईसाई राज’ में बदलने की साजिशें लगातार चल रही हैं, लेकिन समाज अब जागरूक हो चुका है। उन्होंने डीलिस्टिंग कानून की मांग को दोहराते हुए सरकार से इस पर ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। फोटो: पारंपरिक परिधान में दंत चिकित्सक डॉ कांति प्रधान अन्य सामाजिक नेताओं के साथ रैली में सभा में झारखंड के संदीप उरांव और अंबिकापुर से आए डॉ. आज़ाद भगत ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि यदि जनजातीय समाज अपनी भाषा, परंपरा और रीति-रिवाजों को नहीं भूले, तो धर्मांतरण जैसी चुनौतियों से सहजता से निपटा जा सकता है। इस मौके पर गणेश राम भगत ने जशपुर रेल परियोजना में अवरोध उत्पन्न करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह जनभावना से जुड़ा मामला है, और ऐसे तत्वों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने संरक्षित जंगलों में अंधाधुंध पेड़ कटाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए उसकी जांच की मांग की तथा बारिश में वृक्षारोपण का आह्वान किया। इस आयोजन में हज़ारों की संख्या में महिलाएं और समाजजन शामिल हुए। तेज धूप में रैली में शामिल लोगों के सेवा में शहर के सामाजिक संगठनों ने भी भागीदारी निभाई। संवेदना फाउंडेशन, श्री बालाजी जन कल्याण समिति, और गुड मॉर्निंग ग्रुप जैसे संगठनों ने रैली में शामिल लोगों को पानी, शीतल पेय और फल वितरित कर सेवा भाव का परिचय दिया। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक एकता, जनजागरण और आत्मगौरव की मिसाल भी प्रस्तुत कर गया।

शराब का ऐसा साइड इफेक्ट! 7 साल पहले बेटे की हत्या कर सेप्टिक टैंक में दफनाया शव, अब खुला खौफनाक राज – पिता गिरफ्तार

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धमतरी,21 मई 2025 –  धमतरी जिले के भोयना गांव से एक दिल को दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया है। सात साल पहले लापता हुए युवक की असलियत उस वक्त सामने आई, जब एक बंद गोदाम के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान नरकंकाल बरामद हुआ। पुलिस जांच में इस कंकाल की कहानी जब खुलकर सामने आई, तो सब हैरान रह गए – यह हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि युवक के ही सौतेले पिता ने की थी। ऐसे हुआ खुलासा 17 मई को अर्जुनी थाना अंतर्गत भोयना गांव के एक बंद गोदाम में स्थित सेप्टिक टैंक की सफाई कराई जा रही थी। सफाई के दौरान जब सफाईकर्मियों को अंदर नरकंकाल दिखाई दिया, तो उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी। अर्जुनी पुलिस मौके पर पहुंची और कंकाल को बाहर निकालकर जांच शुरू की। एफएसएल टीम और पुलिस को कंकाल कई साल पुराना प्रतीत हुआ, जिससे मामला रहस्यमयी बन गया।   पिता ने ही किया था कत्ल पुलिस जांच में सामने आया कि नरकंकाल गांव के ही एक युवक का था, जो 7 साल पहले अचानक लापता हो गया था। जब पुलिस ने परिजनों और ग्रामीणों से पूछताछ की, तो शक की सुई मृतक के सौतेले पिता राममिलन ध्रुव पर जाकर टिकी। गहन पूछताछ में उसने जुर्म कबूल कर लिया। आरोपी पिता ने बताया कि उसका सौतेला बेटा आए दिन शराब पीकर उससे झगड़ा करता था। घटना वाले दिन भी दोनों के बीच कहासुनी हुई और मारपीट तक नौबत पहुंच गई। इसी दौरान बेटे का सिर दीवार से टकरा गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। उस समय घर में कोई और मौजूद नहीं था। घबराए राममिलन ने अपराध छिपाने के लिए बेटे के शव को लोहे की छड़ से बांधकर बंद पड़े गोदाम के सेप्टिक टैंक में दफना दिया और पूरे मामले को दबा दिया।   पुलिस ने किया गिरफ्तार राज खुलने के बाद अर्जुनी थाना पुलिस ने आरोपी पिता राममिलन ध्रुव को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस अब इस मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई कर रही है। क्या कहती है यह घटना? यह घटना न सिर्फ एक परिवार के भीतर पनपते तनाव और नफरत की कहानी है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक चेतावनी है। जब घर के भीतर रिश्तों की दीवारें ही दरकने लगें, तो परिणाम कितना भयावह हो सकता है, इसका यह जीता-जागता उदाहरण है।

पति की हत्या कर शव को शौचालय की टंकी में छिपाया, तीन दिन बाद हुआ खुलासा

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घरेलू विवादों में हिंसक घटनाएं समाज में रोज ब रोज बढ़ती चली जा रही है।विवाद को सुलझाने के लिए जो वातावरण होना चाहिए – मध्यस्थता और समझाइश – यह दोनों पक्ष को पसंद नहीं है।निर्णय दोनों पक्ष तत्काल कर रहे हैं, जिसकी परिणति बहुत ही दर्दनाक,खौफनाक हो रही है।ताजा मामला सामने आया है जिसमें पत्नी अपने शराबी पति के रोज – रोज कलह से तंग आकर कुल्हाड़ी से गर्दन काट दी।जब पति के प्राण हर लिए तो शव को शौचालय की टंकी में दफना दिया। पलामू | पांकी | 19 मई 2025 पलामू जिले के पांकी थाना क्षेत्र से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां घरेलू कलह के चलते एक महिला ने अपने ही पति की हत्या कर दी और शव को शौचालय की टंकी में छिपा दिया। यह दिल दहला देने वाली घटना पांकी के गरिहारा गांव (केकरगढ़ पंचायत) की है। मृतक की पहचान 26 वर्षीय बुधन उरांव के रूप में हुई है। बताया जा रहा है कि बुधन शराब का लती था और अक्सर नशे में पत्नी के साथ मारपीट करता था। घटना की रात भी जब उसने पत्नी ललिता देवी के साथ हाथापाई की, तो खुद को बचाने के प्रयास में ललिता ने उसे धक्का दे दिया। गिरने के बाद ललिता ने घर में रखी टांगी से उसके गले पर वार किया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। हत्या के बाद ललिता ने शव को छिपाने के लिए पास में बने शौचालय की टंकी में डाल दिया और तीन दिनों तक किसी को भनक नहीं लगने दी। लेकिन जब बुधन का पता नहीं चला तो गांव में संदेह गहराया। ग्रामीणों ने पूछताछ की तो ललिता ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। सूचना पर पांकी थाना पुलिस मौके पर पहुंची और शव को शौचालय की टंकी से बाहर निकाला। हत्या में प्रयुक्त टांगी भी बरामद कर ली गई है। ललिता देवी को गिरफ्तार कर लिया गया है और आगे की पूछताछ जारी है।    

ऑपरेशन सिंदूर की वीरांगना कर्नल सोफिया कुरैशी का वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कितना गहरा है कनेक्शन? बड़ा खुलासा पढ़िए

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भारतीय सेना की दो महिला अधिकारी — कर्नल सोफिया कुरैशी और कर्नल व्योमिका सिंह ने दिखाई शौर्य गाथा | पहलगाम हमले का लिया बदला | रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ा पारिवारिक इतिहास आया सामने सेंट्रल डेस्क, ख़बर जनपक्ष न्यूज़,9 मई 2025 भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए बड़ा और निर्णायक कदम उठाया। यह जवाब था कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले का, जिसमें 26 भारतीय पर्यटक शहीद हुए थे। इस सैन्य कार्रवाई की अगुवाई दो जांबाज महिला सैन्य अधिकारियों — कर्नल सोफिया कुरैशी और कर्नल व्योमिका सिंह — ने की। कर्नल सोफिया की परदादी थीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेनानी ऑपरेशन के बाद सोशल मीडिया X पर कर्नल सोफिया को लेकर जो जानकारी सामने आई, उसने पूरे देश को गौरवान्वित कर दिया। पांचजन्य द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, कर्नल सोफिया ने स्वयं बताया कि उनकी परदादी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थीं।एक इंटरव्यू में कर्नल सोफिया ने बताया है “मेरी परदादी ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ रहकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।” इतिहासकार आचार्य सत्यम ने की पुष्टि इतिहासकार आचार्य सत्यम (Satyanarayan) ने इस तथ्य को ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ जोड़ते हुए लिखा: “यह सत्य है कि सोफिया का परिवार बुंदेलखंडी है और महारानी झांसी की सेना में झांसी के प्रधान तोपची मोहम्मद गौस तथा सेनापति काले खान के अतिरिक्त कई मुस्लिम सैनिक और वीरांगनाएं थीं।” सोशल मीडिया पर सराहना और सीख इस गौरवशाली जानकारी को साझा करने के लिए यूजर @AmitMishra1207 ने लिखा: “धन्यवाद बताने के लिए, उम्मीद है धर्म विशेष को गाली देने और बात-बात पर उनसे अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए कहने वाले ‘सांस्कृतिक संगठन’ और धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने वाले सोशल मीडिया हैंडल इस कहानी को याद रखेंगे!” कर्नल सोफिया कुरैशी और कर्नल व्योमिका सिंह ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की बेटियां न केवल जमीनी जंग में बल्कि इतिहास की विरासत में भी सबसे आगे हैं। रानी लक्ष्मीबाई की परंपरा को जीवित रखते हुए कर्नल सोफिया ने आतंक के खिलाफ निर्णायक प्रहार कर देश की आन-बान-शान को कायम रखा है।

ख़बर अपडेट:प्रेस ब्रीफिंग में हो सकती देरी,कुछ ही देर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह साउथ ब्लॉक में तीनों सेना प्रमुखों के साथ करनेवाले महत्वपूर्ण बैठक,काफिला रवाना

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नई दिल्ली,9 मई 2025 – ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आज सुबह दस बजे प्रेस ब्रीफिंग होनी थी लेकिन अभी तक मीडिया को मैसेज नहीं आया है।मतलब देरी होगी।वहीं कुछ ही देर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह साउथ ब्लॉक पहुंचनेवाले हैं,जहां नभ – जल – थल सेना के प्रमुख और CDS मौजूद हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साउथ ब्लॉक में महत्वपूर्ण बैठक के बाद संभवतः रक्षा मंत्री प्रधानमंत्री आवाज जा सकते हैं। अभी बड़ी खबर आई है चीन ने पाकिस्तान से किनारा कर लिया है।चीन ने कहा है कि भारत भी हमारा पड़ोसी है। हम आतंकवाद का विरोध करते हैं। वहीं चंडीगढ़ में आम नागरिकों को हवाई हमले की आशंका को देखते हुए अलर्ट सायरन बज रहे हैं।पाकिस्तान में डिफेंस सिस्टम की नाकामी के बाद ख़ौफ़ बढ़ गया है।कैट एरिया से हथियार शिफ्ट किया गया है।अपने गोला बारूद को अंडर ग्राउंड कर रहा है एलओसी पर बीती रात बीएसएफ ने 7 पाकिस्तानी आतंकी घुसपैठियों को मार गिराया है। वहीं राजस्थान के लाठी में पाक युद्धक विमान का एक पायलट भारतीय सेना के कब्जे में है।

ताज़ा खबर: ऑपरेशन सिंदूर जारी, भारत ने दिखाई सैन्य ताकत — पाकिस्तान के तीन फाइटर जेट मार गिराए, S-400 ने 100 हमले किए नाकाम

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ताज़ा खबर: ऑपरेशन सिंदूर जारी, भारत ने दिखाई सैन्य ताकत — पाकिस्तान के तीन फाइटर जेट मार गिराए, S-400 ने 100 हमले किए नाकाम नई दिल्ली,9 मई 2025 – ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत सरकार ने यह साफ कर दिया है कि आतंकवाद के खात्मे तक यह सैन्य अभियान जारी रहेगा। अब तक इस अघोषित युद्ध को 72 घंटे पूरे हो चुके हैं। भारत पर कल रात 8 बजकर 20 मिनट पर पाकिस्तान की सेना ने हमला किया था, जिसके जवाब में भारतीय सेनाओं ने जबरदस्त पलटवार किया। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, भारत ने पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का प्रमाण यह है कि भारत ने अब तक पाकिस्तान के तीन जेट फाइटर मार गिराए हैं। पाकिस्तान बौखलाहट में अब सीधे युद्ध थोपने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत की ओर से मिले जवाब ने उसकी हर कोशिश को नाकाम कर दिया। भारत के अत्याधुनिक सुदर्शन चक्र S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने अब तक पाकिस्तान की ओर से किए गए सौ से अधिक हवाई हमलों को नाकाम किया है। इस पूरे घटनाक्रम पर भारत सरकार आज सुबह 10 बजे एक अहम प्रेस ब्रीफिंग करने जा रही है। इधर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान से भी बड़ी खबर आ रही है। वहां विद्रोहियों ने कई सरकारी भवनों से पाकिस्तान का झंडा उतारकर अपना स्वतंत्र झंडा फहरा दिया है। यह घटनाएं पाकिस्तान के भीतर भी उथल-पुथल की स्थिति का संकेत दे रही हैं।

समसामयिक लेख : झूठ की क़ीमत: ग़लत जानकारी का प्रभाव और समाज पर उसका संकट

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निर्मल कुमार आज की डिजिटल दुनिया में, जहां जानकारी एक क्लिक में फैल जाती है, वहाँ गलत जानकारी (misinformation) का प्रसार एक वैश्विक संकट बन चुका है। फोटोशॉप की गई तस्वीरें, झूठी खबरें और षड्यंत्र के सिद्धांत — इन सबने न केवल जनविश्वास को चोट पहुंचाई है, बल्कि लोगों की जान खतरे में डाली है और सामाजिक स्थिरता को भी गंभीर नुकसान पहुँचाया है। ये झूठ जितनी तेजी से फैलते हैं, उन्हें उतनी ही मुश्किल से सुधारा जा सकता है। लोकतांत्रिक देशों में यह गलत जानकारी चुनाव परिणामों की वैधता पर सवाल उठाने और हिंसा भड़काने का जरिया बन जाती है, जबकि अधिनायकवादी शासन इस जानकारी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं — असहमति को दबाने और जनता की सोच को नियंत्रित करने के लिए। इस पूरी प्रक्रिया में सच सबसे बड़ा शिकार बन जाता है। गलत जानकारी कई स्रोतों से जन्म ले सकती है। कई बार यह अज्ञानता, अधूरी जानकारी या गलतफहमी का परिणाम होती है। लेकिन वर्तमान समय में अधिकतर झूठ योजनाबद्ध ढंग से फैलाए जाते हैं — सोच-समझकर, किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए। राजनीतिक दल इसका उपयोग जनमत को मोड़ने या विरोधियों को बदनाम करने के लिए करते हैं। विदेशी ताकतें इसे दूसरे देशों को अस्थिर करने के लिए इस्तेमाल करती हैं। कुछ प्रभावशाली व्यक्ति, स्वयंभू विशेषज्ञ या सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर अपने प्रसिद्धि, प्रभाव या आर्थिक लाभ के लिए झूठी जानकारी फैलाते हैं। चाहे मंशा कुछ भी हो, परिणाम एक जैसे होते हैं — सच्चाई का क्षरण, समाज का विभाजन और लोकतंत्र की नींव पर प्रहार। भारत भी इस संकट से अछूता नहीं है। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद देशभर में झूठी खबरों का सिलसिला चल पड़ा। सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनलों, कुछ तथाकथित समाचार पोर्टलों और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा फैलाया गया यह भ्रम था कि देश में मुस्लिमों और कश्मीरी नागरिकों पर बदले की भावना से हमले किए जा रहे हैं। कुछ वीडियो और तस्वीरें वायरल की गईं, जिनमें मारपीट या हमले के दृश्य थे, और उन्हें हालिया आतंकवादी घटना से जोड़ दिया गया। लेकिन जब इन दावों की गहराई से पड़ताल की गई — कई स्वतंत्र फैक्ट-चेकिंग प्लेटफ़ॉर्म्स और पुलिस रिपोर्ट्स द्वारा — तो ज़्यादातर घटनाएं या तो पुरानी निकलीं, या उनका आतंकवाद से कोई संबंध नहीं था। कुछ मामले निजी दुश्मनी, संपत्ति विवाद या सामान्य आपराधिक गतिविधियों से जुड़े हुए थे। इन झूठी खबरों ने भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाया और आंतरिक सामाजिक तनाव को हवा दी। इस तरह की गलत जानकारी न केवल अफवाह फैलाती है, बल्कि समाज में संदेह और नफरत का ज़हर भी घोलती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जानबूझकर फैलाए गए झूठ के बीच की रेखा बहुत बारीक होती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति या संस्था बार-बार झूठी जानकारी फैलाए, और उसके कारण समाज में भय या हिंसा उत्पन्न हो, तो उनकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। ऐसे लोगों को सामाजिक और कानूनी स्तर पर ज़िम्मेदार ठहराया जाना ज़रूरी है। सरकार और न्यायपालिका को भी चाहिए कि वे जानबूझकर फैलाई गई गलत जानकारी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करें, विशेषकर जब वह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाए। परंतु यह कार्रवाई विचारों की अभिव्यक्ति को दबाने के रूप में नहीं, बल्कि हानिकारक आचरण को रोकने के रूप में की जानी चाहिए। विचार का विरोध तब आवश्यक है जब वह विचार किसी व्यक्ति या समुदाय के विरुद्ध नफरत फैलाता है या हिंसा को प्रोत्साहित करता है। फर्जी खबरों का खंडन करना तो आवश्यक है ही, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है उन व्यक्तियों और संस्थाओं की पहचान करना जो बार-बार समाज को भ्रमित करने का प्रयास करते हैं। जब हम ऐसे झूठ फैलाने वालों को चुनौती देते हैं, तब हम सिर्फ तथ्यों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र, सहिष्णुता और सत्यनिष्ठा की रक्षा करते हैं। झूठे विमर्शों से जूझना आज एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी बन चुका है। तकनीक के इस युग में जहां एक झूठ लाखों लोगों तक मिनटों में पहुंच सकता है, वहीं सच की रक्षा करने के लिए जागरूकता, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की भी उतनी ही आवश्यकता है। आज जब भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में खड़ा है, तब यह और अधिक आवश्यक हो गया है कि हम सत्य के पक्ष में खड़े हों। झूठ से लड़ना केवल एक सूचना युद्ध नहीं, यह संविधान, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता की रक्षा का कार्य है । (लेखक निर्मल कुमार वैश्विक आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकर हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता: पहलगाम की त्रासदी और भारत की इंसानियत

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निर्मल कुमार 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला न केवल एक भयावह त्रासदी है, बल्कि मानवता के खिलाफ किया गया एक गहन अपराध भी है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और 20 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए। आतंकियों ने सेना की वर्दी पहनकर हिन्दू तीर्थयात्रियों को निशाना बनाया और पीड़ितों की पहचान धर्म पूछकर की। यह घटना केवल एक समुदाय पर हमला नहीं थी, बल्कि पूरे भारत की साझा संस्कृति, भाईचारे और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर किया गया प्रहार थी। इस कायराना हरकत ने न केवल भारत की एकता को चुनौती दी, बल्कि इस्लाम जैसे शांतिप्रिय धर्म की भी गलत तस्वीर प्रस्तुत की। यह समझना बेहद आवश्यक है कि आतंकवादियों की इस नृशंसता का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। क़ुरान स्पष्ट रूप से कहता है — “जो लोग तुमसे लड़ते हैं, उनसे तुम भी अल्लाह की राह में लड़ो, लेकिन ज़्यादती मत करो, निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसंद नहीं करता” (क़ुरान 2:190)। इस्लाम में निर्दोषों की हत्या को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है — चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी भी अन्य धर्म के अनुयायी। भारत में 17 करोड़ से अधिक मुस्लिम नागरिक रहते हैं — वे कोई बाहरी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने बार-बार आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई है, भाईचारे को बढ़ावा दिया है और राष्ट्रभक्ति की मिसाल पेश की है। पहलगाम हमले के दौरान कश्मीरी मुसलमानों का व्यवहार इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है। जब गोलियों की गूंज और चीख-पुकार के बीच आतंकियों ने धर्म देखकर लोगों की जान ली, तब कई स्थानीय मुसलमान युवकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना घायल तीर्थयात्रियों की मदद की। घायलों को उठाकर अस्पताल पहुँचाने से लेकर, रक्तदान करने और उन्हें ढाढ़स बंधाने तक, हर कदम पर उन्होंने दिखा दिया कि इंसानियत किसी मज़हब की मोहताज नहीं होती। कुछ मामलों में तो स्थानीय लोगों ने अपने घरों को अस्थायी चिकित्सा केंद्र बना दिया, ताकि समय पर उपचार मिल सके। उन्होंने साबित किया कि कश्मीर का दिल अमन के लिए धड़कता है, और असली कश्मीरी आतिथ्य कभी मर नहीं सकता। देश की प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं और नेताओं ने भी इस आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है। ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी ने देश भर की 5.5 लाख मस्जिदों में आतंकवाद के खिलाफ विशेष दुआओं की अपील की और साफ कहा कि जो निर्दोषों की हत्या करते हैं, उन्हें भारत की धरती पर दफनाने का कोई हक नहीं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अर्शद मदनी ने इन आतंकियों को “दरिंदे” कहा, जबकि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के प्रमुख सैयद सादतुल्लाह हुसैनी ने पीड़ितों को जल्द न्याय दिलाने की मांग की। हमारे संविधान की आत्मा धर्मनिरपेक्षता है, और भारत की असली ताक़त इसकी विविधता में निहित है। यह ज़रूरी है कि हम इस घटना को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के नजरिए से न देखें। आतंकवाद न किसी धर्म को मानता है, न किसी राष्ट्र को। जो लोग निहत्थे लोगों की हत्या करते हैं, उनकी तुलना किसी धर्म के अनुयायियों से करना सरासर नाइंसाफी है। क़ुरान की आयतें आतंकियों के दावों को सिरे से खारिज करती हैं: “धर्म के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं है” (क़ुरान 2:256) और “दुश्मनी के बावजूद भी इंसाफ करो, यही अल्लाह का तक़वा है” (क़ुरान 5:8)। आज जब कुछ तत्व नफरत फैलाकर देश को बांटना चाहते हैं, तब भारत के नागरिकों को पहले से कहीं ज़्यादा एकजुट होने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कुछ आतंकवादियों की कायरता के कारण करोड़ों भारतीय मुस्लिमों को शक की नजर से न देखा जाए। हमें ये समझना होगा कि आतंकवादियों की कोई कौम नहीं होती, उनका कोई धर्म नहीं होता — वे केवल हत्यारे होते हैं। हमारा जवाब नफरत नहीं, इंसानियत होनी चाहिए। पहलगाम का रक्तपात हमें डराने के लिए था, लेकिन हमें और मज़बूती से यह दिखाना होगा कि भारत न झुकता है, न बंटता है। हर वह भारतीय जो अमन, इंसाफ और भाईचारे में विश्वास करता है — वही सच्चा देशभक्त है। भारत की आत्मा एक है, और आतंकवाद उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। पहलगाम के घाव अभी भरे नहीं हैं, लेकिन वहां दिखी इंसानियत की रोशनी हमें अंधेरे से बाहर निकालने की ताक़त देती है। इस मुश्किल घड़ी में यह आवश्यक है कि हम धर्म के नाम पर किसी भी नफरत को अपने बीच जगह न दें। अंत में हम सभी को यह याद रखना होगा: आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। (लेखक निर्मल कुमार आर्थिक व सामाजिक मुद्दों के स्तंभकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

विशेष लेख : भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत: परंपरा, पहचान और नवाचार का समागम,

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निर्मल कुमार भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक भी है। यह विविधता की वह जीवंत परंपरा है जो हज़ारों वर्षों से कई धर्मों, भाषाओं, कलाओं और जीवनशैलियों को अपने भीतर समाहित किए हुए है। आज जब वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और सामाजिक तनाव हमारे चारों ओर गहराते जा रहे हैं, भारत का यह साझा सांस्कृतिक बुनियाद एक ऐसा नैतिक और व्यावहारिक संसाधन बन कर उभरता है जिससे हम न केवल अपने देशवासियों को जोड़ सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी समरसता, सहयोग और सतत विकास का मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं। सह-अस्तित्व की परंपरा और आध्यात्मिक एकता भारत के इतिहास में सह-अस्तित्व की भावना सबसे प्रमुख रही है। हमारे संतों, कवियों और विचारकों ने कभी सीमाओं में विश्वास नहीं किया। कबीर, रैदास, गुरु नानक, संत तुकाराम, मीराबाई और बुल्ले शाह जैसे संतों ने धर्मों के बीच की दीवारों को तोड़कर आध्यात्मिक एकता का मार्ग दिखाया। सूफी और भक्ति आंदोलन ने भारत को एक साझा आध्यात्मिक चेतना दी, जिसने धर्म के नाम पर होने वाले विभाजन को चुनौती दी और प्रेम, करुणा, सेवा और समता को केंद्र में रखा। आज अजमेर शरीफ, निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह, वाराणसी के घाट, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, कोणार्क और मदुरै के मंदिर जैसे स्थल न केवल तीर्थ हैं, बल्कि विविध सांस्कृतिक पहचान के मिलन बिंदु भी हैं। इन स्थलों पर हर वर्ग, धर्म और जाति के लोग समान श्रद्धा से आते हैं। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक समस्याओं का समाधान भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली — जैसे आयुर्वेद, योग, सिद्ध चिकित्सा, वास्तु शास्त्र, पंचगव्य, जैविक खेती और पारंपरिक जल-संरक्षण प्रणाली — आज फिर से प्रासंगिक होती जा रही हैं। COVID-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया प्राकृतिक जीवनशैली की ओर मुड़ी, तब भारत के योग और आयुर्वेद को नई वैश्विक मान्यता मिली। रैनी वाटर हार्वेस्टिंग की सदियों पुरानी भारतीय तकनीकें — जैसे कि राजस्थान की बावड़ियां, कर्नाटक की कावेरी प्रणाली और पूर्वोत्तर भारत की बांस आधारित जल निकासी प्रणालियाँ — अब शहरी योजनाओं में शामिल की जा रही हैं। यह ज्ञान केवल ग्रामीण भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे महानगरों की योजनाओं में भी पारंपरिक जल प्रबंधन पद्धतियों को एकीकृत किया जा रहा है। विविध कलाएँ: जीवित परंपराओं का स्वरूप भारत की कलात्मक विरासत उतनी ही समृद्ध है जितनी कि इसकी आध्यात्मिक परंपरा। वारली, मधुबनी, गोंड, पट्टचित्र और फड़ चित्रकला जैसे जनजातीय और लोक कला रूप हमारी विविधता को जीवंत रखते हैं। कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, मोहिनीअट्टम और बाउल संगीत जैसी कलाएँ आज भी नई पीढ़ियों द्वारा सीखी और प्रस्तुत की जा रही हैं। डिजिटल युग में, इन कलाओं को पुनर्जीवित करने की ज़िम्मेदारी भी तकनीक ने ली है। “क्राफ्ट विलेज”, “गूगल आर्ट्स एंड कल्चर”, और “हुनर हाट” जैसी पहलें कारीगरों और कलाकारों को नए बाज़ार और दर्शक दे रही हैं। इससे न केवल संस्कृति संरक्षित हो रही है, बल्कि आजीविका के अवसर भी बढ़ रहे हैं। जशपुर: आदिवासी विरासत की चमक छत्तीसगढ़ का जशपुर ज़िला इस साझा विरासत की अनदेखी लेकिन अत्यंत मूल्यवान धरोहर है। यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, पर्यावरणीय संतुलन और हस्तशिल्प कला का केंद्र रहा है। यहाँ की पत्थलगड़ी परंपरा, पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा प्रणाली और नृत्य जैसे सरहुल, कर्मा, दंडा, सुवा और पंथी आदिवासी गौरव के जीवंत रूप हैं। जशपुर के बघिमा और गिंगला जैसे गाँवों में महिलाएं पारंपरिक हस्तशिल्प में माहिर हैं — जैसे बांस की टोकरियाँ, साज-सज्जा की वस्तुएं और स्थानीय प्राकृतिक रंगों से बने कपड़े। ये सिर्फ कलात्मक उत्पाद नहीं, बल्कि पारंपरिक ज्ञान की सजीव पुस्तकें हैं। इस जिले के बच्चों को अगर अपनी परंपरा से जोड़ा जाए तो वे वैश्विक नागरिक बनते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ाव बनाए रख सकते हैं। सांस्कृतिक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध भारत की सांस्कृतिक विरासत अब केवल सीमाओं के भीतर की बात नहीं रही। भारत-नेपाल के तारा धाम या भारत-भूटान की बौद्ध विरासत पर संयुक्त शोध परियोजनाएँ, बांग्लादेश के साथ साझा भाषा उत्सव, और श्रीलंका में रामायण पर्यटन सर्किट जैसे प्रयास इस बात का प्रमाण हैं कि सांस्कृतिक विरासत कूटनीति का एक मज़बूत माध्यम बन चुकी है। नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और बौद्ध सर्किट का विकास भारत की उस विरासत को दोबारा जीवित करने का प्रयास है, जिसने कभी एशिया को बौद्धिक और नैतिक नेतृत्व दिया था। शिक्षा में विरासत की भूमिका राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि विद्यार्थियों को केवल रोजगार के योग्य ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी सजग और संवेदनशील नागरिक बनाया जाए। स्कूली पाठ्यक्रमों में स्थानीय इतिहास, पारंपरिक ज्ञान और कला को स्थान देने से बच्चे अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। देशभर में चल रही “हेरिटेज वॉक”, “लोक उत्सव” और “स्कूल इन म्यूज़ियम” जैसी पहलें इसी सोच का हिस्सा हैं। भविष्य की दिशा भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत एक स्थिर स्मारक नहीं है, बल्कि वह गतिशील धरोहर है जो निरंतर विकसित हो रही है। यह सिर्फ़ अतीत की कहानियाँ नहीं सुनाती, बल्कि हमें यह सिखाती है कि सहिष्णुता, विविधता और समावेशिता ही स्थायी प्रगति का मार्ग है। आज जबकि पूरी दुनिया अपनी पहचान की तलाश में असमंजस में है, भारत के पास एक ऐसा सांस्कृतिक मॉडल है जो अतीत की गहराई, वर्तमान की चुनौती और भविष्य की संभावनाओं—तीनों को संतुलित करता है। इस मॉडल को और मज़बूत बनाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को न केवल संरक्षित करें, बल्कि सक्रिय रूप से उसका उपयोग शिक्षा, रोजगार, सामाजिक समरसता और वैश्विक संवाद के लिए करें। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि भारत की यह बहुरंगी, बहुस्तरीय, और बहुधर्मी सांस्कृतिक धरोहर केवल किताबों और स्मारकों में न रह जाए, बल्कि हमारी ज़िंदगी की धड़कनों में बनी रहे — आज, कल और आने वाली पीढ़ियों तक। (लेखक निर्मल कुमार अंतर्राष्ट्रीय समाजिक-आर्थिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)