महाशिवपुराण कथा: बिना ‘आधार’ के पंडित! श्रद्धालुओं को तिलक लगा रहे तो भिखारी मांग रहे भीख,आयोजन समिति और जिला प्रशासन पंडाल के अंदर,चेन स्नेचिंग हुई लेकिन FIR नहीं!

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मयाली/जशपुर,22 मार्च 2025 – यह जशपुर का सौभाग्य है कि कभी पर्यटन को तरसता जशपुर आज नैसर्गिक सुंदरता के साथ मधेश्वर पर्वत के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हुआ है।जिसका परिणाम है प्रसिद्ध कथावाचक प्रदीप मिश्रा का मयाली में प्राकृतिक शिवलिंग के सामने महाशिवपुराण की कथा चल रही है। अब जरा उसपर बात की जाए, जिस शीर्षक को पढ़कर आपने मेरे ख़बर ज़नपक्ष को क्लिक किया है। 21 मार्च को बेलजोरा नदी से कलश यात्रा शुरू हुई,जिसमें कलश यात्रियों के माथे को तिलक के कई तरीकों से भरने के लिए कई लड़के रास्ते में एक थाली लेकर कूद पड़ते हैं।भक्ति भाव में डूबी महिलाएं,युवतियां तिलक लगवा लेती हैं ,फिर पंडित कहता है खुशी से जो देना हो दे दो,,सिर पर कलश थामें नारीशक्ति सम्भवतः अपनी महतारी वंदन से राशि निकालती हैं और स्वेच्छा से जो कम मूल्य का नोट बटुए से निकला उसे खुशी-खुशी दे देती हैं।यह हमें तब पता चला, जब आयोजन समिति के सदस्यों ने हमें यह बताया कि “आपलोग मीडिया वाले हैं और ये लड़के जबरन सड़क पर श्रद्धालुओं को तिलक लगाकर पैसे वसूल रहे हैं।“हमने इस बात को हल्के में लिया और कलश उठातीं नारियों के वीडियो लेने के बाद कार से आगे निकले।बमुश्किल सौ मीटर ही चले होंगे कि आगे मोड़ पर बिना कलश लिए सिविल ड्रेस में चार लड़कियाँ अचानक सेंधवार के झुंड से हाथों में तिलक लगाने की थाली लेकर सामने आए और तिलक लगाने लगे।हमने कार रोकी और उनका वीडियो बनाया।लड़कियों ने कहा कि ये क्या कर रहे हो?उनका जवाब था बनारस से आये हैं,तिलक लगाके ही आगे जाना होगा।जब हम करीब गए तो वे लड़के बड़े कांफिडेंस के साथ बोले वीडियो मत बनाओ।यह हमारा काम है।हमने कहा,ठीक है,आयोजन समिति से परमिशन लिए हो,कहाँ से आये हो? नाम बताओ, आधार कार्ड दिखाओ?चेहरे पर एक ने हाथ रखा,दूसरे ने मुंह घुमाया और तीसरा भाग गया।बोली-भाषा उनकी छत्तीसगढ़िया नहीं थी। आज दूसरा दिन,सड़क पर वैसे दसियों पंडित बिना आधार कार्ड के घूमते नजर आए।इसी बीच नए-नए भिखारी भी नजर आने लगे।फिर ये भी पता चला कि 21 मार्च महाशिवपुराण कथा की शुरुआत में तीन महिलाओं की चेन स्नेचिंग हुई है।फिर चार का सुना।अंदर पंडाल में कुछ महिलाएं,कुछ अधेड़ पुरुष,कुछ युवक तिलक लगाते नजर आए।कुछ युवक ऊंचे दाम पर पानी की बोतल बेचते दिखे।कोई लोकल नहीं थे। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि क्या सरकार और सरकार का जिला प्रशासन इन सब घटनाओं से बेखबर है?उनका गुप्तचर विभाग क्या केवल यही बताने के लिए है कि लोग कथा का आनंद कितना ज्यादा ले रहे हैं?पुलिस केवल वीवीआइपी और वीआईपी के कानों को कथा सुनने में आनेवाली सभी बाधाओं को हटाने में पसीना बहा रही है? सवाल यह भी कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस कथा के आयोजन में आने के लिए जनता को खुद आमंत्रित किया है।क्या उनकी बुलाई जनता सुरक्षित है? आयोजन समिति के लोग इस कथा को सफल बनाने दिन-रात मेहनत कर रहे हैं,लेकिन फिर सवाल उठता है कि समिति के सभी लोग मेहनत कर रहे हैं क्या? ओजस्वी, तेजस्वी,सरस्वतीपुत्र,शिवकृपा से बड़े प्रतापी पंडित प्रदीप मिश्रा के पंडाल में भीड़ अनुमान से ज्यादा नहीं आ रही है,इससे ‘आयोजक’ का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। ये दो दिन का ग्राउंड रिपोर्ट था।कल फिर कुछ और जानकारियां,सवालों के साथ ख़बर ज़नपक्ष आपके सामने हाज़िर होगा।

“जो कोई कैलाश मानसरोवर नहीं जा पाता, वह मधेश्वर महादेव के दर्शन कर जीवन धन्य कर ले”: पंडित प्रदीप मिश्रा

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मयाली में शिव महापुराण कथा का शुभारंभ, भक्ति में डूबे श्रद्धालु जशपुर, 21 मार्च 2025। हर हर महादेव के जयघोष से पूरा मयाली क्षेत्र भक्तिमय हो उठा। शिव महापुराण कथा का वाचन कर रहे पंडित प्रदीप मिश्रा ने शिवभक्तों को भावविभोर कर दिया। पहले दिन उन्होंने कहा कि जो कैलाश मानसरोवर की यात्रा नहीं कर पाता, वह मधेश्वर महादेव के दर्शन कर जीवन धन्य कर सकता है। सनातन धर्म और भारत भूमि में जन्म लेना ही सौभाग्य की बात है। उन्होंने देवराज ब्राह्मण की कथा सुनाकर सार्थक जीवन का संदेश दिया। कुनकुरी विकासखंड में स्थित विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग, मधेश्वर महादेव के समीप हो रही शिव महापुराण कथा में छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंचे हैं। 27 मार्च तक चलने वाली इस कथा में भक्त आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी कौशल्या साय व परिवार के अन्य सदस्यों ने भी कथा का श्रवण किया। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं। मंच, बैठक व्यवस्था, बैरिकेडिंग, पंडाल, भोजन, पेयजल, पार्किंग, अस्थायी शौचालय, सुरक्षा, मेडिकल सुविधाओं सहित 40 बसों की विशेष व्यवस्था की गई है, जिससे भक्तगण सुगमता से कथा स्थल तक पहुंच सकें।

मधेश्वर महादेव: मयाली में शिव भक्ति की धारा, शिवलोक सा नज़ारा

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मयाली,जशपुर, 21 मार्च: जशपुर जिले के मयाली स्थित प्रसिद्ध प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर महादेव के पास भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। महाशिवपुराण कथा के आयोजन ने इस पवित्र स्थल को और अधिक दिव्यता से भर दिया है। श्रद्धा का रंग इस कदर चढ़ चुका है कि लोग इसे अब शिवलोक कहने लगे हैं। कलश यात्रा में उमड़ा भक्तों का जनसैलाब आज कथा के प्रारंभ से पहले कुनकुरी के बेलजोरा नदी से लेकर मयाली कथा स्थल तक भव्य कलश यात्रा निकाली गई। ग्यारह हजार महिलाएं सिर पर कलश रखकर हर-हर महादेव के जयकारों के साथ आगे बढ़ीं। पूरा वातावरण शिवमय हो गया। इस पवित्र यात्रा में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय भी शामिल हुईं। पं. प्रदीप मिश्रा सुनाएंगे महाशिवपुराण 21 मार्च से 27 मार्च तक प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा महाशिवपुराण कथा का वाचन किया जाएगा। जैसे ही कथा का शुभारंभ हुआ, मयाली का पूरा क्षेत्र “हर-हर महादेव” और “जय भोलेनाथ” के नारों से गूंज उठा। मधेश्वर महादेव: जहां शिवलोक का अहसास होता है मयाली में स्थित विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग आस्था का केंद्र बन चुका है। यहां आने वाले श्रद्धालु इसे किसी शिवलोक से कम नहीं मानते। कहते हैं कि इस प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है। भक्तों में भारी उत्साह महाशिवपुराण कथा सुनने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु यहां शिव की भक्ति में लीन होकर भजन-कीर्तन कर रहे हैं। मयाली की पावन भूमि शिवधाम जैसी अनुभूति करा रही है। इस ऐतिहासिक आयोजन के साथ, मधेश्वर महादेव शिवलिंग पर आस्था का रंग पूरी तरह चढ़ चुका है और यह स्थान शिव भक्तों के लिए एक दिव्य तीर्थ बनता जा रहा है।  

पँ.प्रदीप मिश्रा की शिवपुराण कथा में रुद्राक्ष नहीं बांटा जाएगा,आज हेलीकॉप्टर से मधेश्वर महादेव शिवलिंग का होगा जलाभिषेक, कल से कथा होगी शुरू

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मधेश्वर महादेव धाम में पं. प्रदीप मिश्रा आज 2 बजे आगमन, हेलीकाप्टर से करेंगे जलाभिषेक, मयाली में शिव महापुराण कथा का भव्य आयोजन कल से शुरू मयाली (जशपुर), 20 मार्च – श्रद्धालुओं के लिए एक अनोखा आध्यात्मिक अवसर आने वाला है। प्रख्यात कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा आज 20 मार्च को दोपहर2 बजे हेलीकॉप्टर से मधेश्वर महादेव धाम पहुंचेंगे और शिवलिंग पर जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक करेंगे। इसके साथ ही वे 21 मार्च से 27 मार्च तक रोजाना दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक शिव महापुराण कथा का रसपान कराएंगे। विशेष व्यवस्थाएँ और सुरक्षा इंतजाम आयोजन समिति के प्रमुख राजीव रंजन नंदे ने बताया कि कथा स्थल पर श्रद्धालुओं की सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया है। भीड़ प्रबंधन को लेकर एडिशनल एसपी अनिल कुमार सोनी ने अपील की कि श्रद्धालु अपने साथ कीमती आभूषण या अधिक नगदी न लाएं और नशापान से दूर रहें। कथा के दौरान रोज पार्थिव शिवलिंग निर्माण होगा, जिसे 27 मार्च को विधि-विधान से विसर्जित किया जाएगा। इसके अलावा, रुद्राक्ष और प्रसाद वितरण नहीं किया जाएगा, जिससे भगदड़ की कोई स्थिति न बने। श्रद्धालुओं के लिए विशेष बस सेवा जिले भर से शिवभक्तों के लिए सभी ब्लॉकों और कई गाँवों से बसें चलाई जाएंगी, जो श्रद्धालुओं को कथा स्थल तक लाने और वापस ले जाने का कार्य करेंगी। इस सेवा के लिए भाड़ा भी निर्धारित कर दिया गया है। प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद संभावित भारी भीड़ को देखते हुए कलेक्टर रोहित व्यास और एसएसपी शशिमोहन सिंह अपनी टीम के साथ प्रतिदिन कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण कर रहे हैं। आयोजन समिति द्वारा भंडारे की विशेष व्यवस्था भी की गई है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। शिवभक्तों के लिए यह पं. प्रदीप मिश्रा के सान्निध्य में एक दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभव होगा, जिसमें वे भगवान शिव की महिमा और भक्ति की गहराइयों को आत्मसात कर सकेंगे।

महाकुंभ 2025: भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक और साम्प्रदायिक सौहार्द का वैश्विक उदाहरण

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निर्मल कुमार प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आयोजित महाकुंभ मेला 2025 न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारत की “एकता में विविधता” की भावना का भव्य उत्सव भी बना। लाखों श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ के बीच, यह आयोजन सौहार्द और आपसी सहयोग की अद्भुत मिसाल पेश करता दिखा। कुछ नकारात्मक ताकतों द्वारा समाज में वैमनस्यता फैलाने की कोशिशों के बावजूद, इस मेले ने साबित कर दिया कि भारत की असली पहचान शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान में निहित है। महाकुंभ मेला, जिसे पृथ्वी का सबसे बड़ा मानव समागम कहा जाता है, हिंदू धर्म के लिए एक अत्यंत पवित्र आयोजन है। हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला यह महायोगिक समागम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर लाखों श्रद्धालुओं को स्नान एवं आस्था के महासंगम का साक्षी बनाता है। हालांकि, इस बार 29 जनवरी 2025 (मौनी अमावस्या) के दिन एक दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ मच गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई और सैकड़ों श्रद्धालु घायल हो गए। इस कठिन समय में, प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने अपनी सद्भावना और मानवता का परिचय देते हुए जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों, मस्जिदों और दरगाहों के दरवाजे खोल दिए। भगदड़ से प्रभावित 25,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को जॉर्ज टाउन, नक्खास कोहना, खुल्दाबाद, बहादुरगंज और जानसेनगंज रोड जैसे इलाकों की मस्जिदों, दरगाहों और इमामबाड़ों में शरण दी गई। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने न केवल जरूरतमंदों को आश्रय दिया, बल्कि उनके लिए भंडारे (सामूहिक भोजन वितरण) का आयोजन भी किया। इनमें हलवा-पूरी, चाय, पानी और फलाहार जैसी व्यवस्थाएँ प्रमुख थीं, जिससे थके-मांदे श्रद्धालुओं को राहत मिली। यह सिर्फ एक सेवा कार्य नहीं था, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का एक जीवंत प्रमाण भी था, जो सदियों से इस देश में भाईचारे और मेल-जोल की भावना को पोषित करता आया है। इंसानियत और भाईचारे की मिसाल इस अवसर पर कई ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण सामने आए, जिन्होंने दिखाया कि धर्म के नाम पर विभाजन की राजनीति कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन आम भारतीय लोगों की मानवीयता और सहिष्णुता हमेशा विजयी होती है। बहादुरगंज के निवासी इरशाद ने भावुक होकर कहा, “ये हमारे मेहमान थे, उनकी पूरी देखभाल करना हमारा कर्तव्य था।” वहीं, अपना चौक के शिक्षक मसूद अहमद ने कहा, “मुसलमानों ने कोई उपकार नहीं किया, बल्कि यह हमारा धार्मिक और नैतिक कर्तव्य था कि हम हिंदू श्रद्धालुओं की सहायता करें ताकि वे अपने धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कर सकें।” सबसे प्रेरणादायक उदाहरणों में से एक रहा फरहान आलम का, जिन्होंने एक 35 वर्षीय श्रद्धालु राम शंकर की जान बचाई। राम शंकर को दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन फरहान ने बिना समय गंवाए CPR (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) देकर उनकी जान बचा ली। यह घटना कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। फरहान का यह साहसिक और निःस्वार्थ कार्य भारतीय समाज में मानवता और परस्पर सहयोग की सुदृढ़ भावना को उजागर करता है। अन्य प्रेरणादायक घटनाएँ महाकुंभ मेला 2025 में बुलंदशहर के मुसलमानों ने भी भाईचारे की मिसाल पेश की। वहाँ के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बन्ने शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाकर कुंभ के श्रद्धालुओं की सुरक्षा और मंगलकामना के लिए विशेष प्रार्थनाएँ कीं। वहीं, प्रयागराज में मुस्लिम भाईयों ने तीर्थयात्रियों का स्वागत फूलों और रामनामी अंगवस्त्र भेंट कर किया। यह एक ऐसा दृश्य था जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की मूल आत्मा भाईचारे, आपसी सम्मान और सांस्कृतिक सौहार्द में निहित है। इसके अलावा, वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम और स्थानीय लोगों ने रोशन बाग पार्क में तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और पानी वितरण केंद्र स्थापित किया। यह पहल केवल एक सेवा कार्य नहीं थी, बल्कि इस्लाम की करुणा और सेवा भावना का प्रतीक भी थी। प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी: सौहार्द के संदेशवाहक इस मेले में प्रोफेसर वी.के. त्रिपाठी का योगदान भी उल्लेखनीय रहा। उन्होंने नफरत और भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देते हुए हजारों लोगों के बीच शांति और सौहार्द के पर्चे बाँटे। उनका यह प्रयास दर्शाता है कि अगर समाज में कुछ लोग नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं, तो उससे कहीं अधिक लोग प्रेम और एकता का संदेश फैलाने में लगे हुए हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की पुनर्स्थापना महाकुंभ मेला 2025 ने यह दिखाया कि कुछ लोग भले ही राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को विभाजित करने की कोशिश करें, लेकिन भारत की असली ताकत इसके आम नागरिकों की एकता, प्रेम और सेवा भावना में ही निहित है। मुस्लिम समुदाय की उदारता, फरहान आलम की बहादुरी और प्रोफेसर त्रिपाठी का शांति संदेश – यह सभी घटनाएँ भारतीय समाज के मूलभूत मूल्यों की याद दिलाती हैं। भारत हमेशा से ही विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। सिखों द्वारा लंगर सेवा, हिंदुओं द्वारा मुस्लिम त्योहारों में भागीदारी और मुसलमानों द्वारा कुंभ श्रद्धालुओं की मदद – ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि जब बात मानवता की आती है, तो धर्म, जाति और भाषा की सीमाएँ महत्वहीन हो जाती हैं। महाकुंभ मेला 2025 को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि भारत के बंधुत्व, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में भी याद किया जाएगा। ऐसे समय में जब हिंसा और कट्टरता के बीज बोने की कोशिशें हो रही हैं, प्रयागराज की जनता ने दिखा दिया कि असली धर्म दया, करुणा और सहयोग में निहित है। भारत एक ऐसा देश है जिसने विविध संस्कृतियों को आत्मसात कर अपने समाज को मजबूत बनाया है और यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी। महाकुंभ मेला 2025 न केवल आस्था का महापर्व था, बल्कि यह एक संदेश भी था कि जब दुनिया में नफरत बढ़ रही हो, तब प्रेम और भाईचारे की लौ को जलाए रखना ही सच्चा धर्म और सच्ची मानवता है। (लेखक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

क्या व्हाट्सएप ग्रुप से जंगल की आग बुझाई जा सकती है? जशपुर से जवाब आया ‘हाँ’

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जशपुर,02 मार्च 2025 – जशपुर जिले में गर्मी शुरू नहीं हुई है लेकिन जंगल मे आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी हैं।ऐसे में आज शाम को जंगल मे आग लगने की एक घटना व्हाट्सएप ग्रुप में साझा करते ही एक मिनट में आग को बुझा लिया गया।इसका मतलब है कि वन विभाग को सूचना जरूर पहले मिल गई लेकिन ग्रुप में आने के बाद वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी फील्ड में कितने एक्टिव हैं,यह इससे पता चला। दरअसल,जशपुर जिले में एक व्हाट्सएप ग्रुप ‘वन मित्र’ की सक्रियता से जंगल में लगी आग को तुरंत बुझाने में सफलता मिली है। शहर से सटे बेलमहादेव जंगल में किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा आग लगाए जाने की सूचना स्थानीय युवक लालू यादव ने ‘वन मित्र’ ग्रुप में साझा की। यह संदेश शाम 6 बजकर 38 मिनट पर ग्रुप सदस्य रामप्रकाश पांडे ने देखा और तुरंत वन अधिकारियों को सूचित किया। आईएफएस अधिकारी आशीष अग्रवाल ने तत्काल कार्रवाई करते हुए वनकर्मियों को घटनास्थल पर भेजा, जिन्होंने 7 बजकर 9 मिनट पर आग पर काबू पा लिया। यह घटना दर्शाती है कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स, विशेषकर व्हाट्सएप ग्रुप्स, वन संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ‘वन मित्र’ ग्रुप की तत्परता और समन्वय से जंगल को बड़ी क्षति से बचाया जा सका।  

साक्षात्कार : “मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता ही पहला इलाज है” – डॉ. ग्रेस, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट

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छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है, और इस बदलाव की धुरी बन रही हैं डॉ. ग्रेस कुजूर। मानसिक चिकित्सा के कई विषयों में विशेषज्ञता रखने वाली डॉ. ग्रेस, 2022 से जशपुर रोड पर तालाब के सामने चर्च गेट के पास “GK साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर” का संचालन कर रही हैं। उनके प्रयासों से अब तक सैकड़ों मरीज ठीक होकर सामान्य जीवन जी रहे हैं। जनपक्ष के संपादक संतोष चौधरी ने उनसे एक विशेष बातचीत की। “मेरा उद्देश्य सेवा है, सिर्फ कमाई नहीं“ प्रश्न: डॉक्टर साहिबा, अपने बारे में हमारे पाठकों को बताएं। उत्तर: (मुस्कुराते हुए) सबसे पहले आपके पाठकों को मेरा नमस्कार। मैं डॉ. ग्रेस कुजूर, कुनकुरी से 16 किलोमीटर दूर केरसई गाँव की रहने वाली हूँ। मेरी पढ़ाई कुनकुरी निर्मला स्कूल से हुई, फिर 2008 में बिलासपुर गर्ल्स डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। क्लिनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स GGU, बिलासपुर से किया और फिर सिकंदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु और मुंबई में अलग-अलग विषयों में विशेषज्ञता हासिल की। मैं दो विषयों में पीएचडी कर चुकी हूँ—एक क्लिनिकल साइकोलॉजी में और दूसरा नेचुरोपैथी में। 2017 में छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, रायपुर ने मुझे “साइंटिस्ट अवॉर्ड” दिया था, जब मैंने विशेष बच्चों के लिए एक ऐप विकसित किया। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 24 साल से काम कर रही हूँ और इस काम को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन की सेवा मानती हूँ।मुझे वैज्ञानिक मनोचिकित्सक पुनर्वास एवं विशेषज्ञ के रूप में काम करने के लिए लाइसेंस प्राप्त है जिसका नम्बर C.R.R. A81006 है। “हर मानसिक बीमारी का इलाज संभव है” प्रश्न: आपके सेंटर में किस तरह के मरीजों का इलाज किया जाता है? उत्तर: हमारे सेंटर में काउंसलिंग, साइकोथेरेपी, रिलैक्सेशन थेरेपी, हिप्नोथेरेपी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और ज़रूरत पड़ने पर एमडी के पास रेफर किया जाता है। अब तक, ✔ 10 सेरेब्रल पाल्सी के बच्चे पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। ✔ 15 ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे सामान्य जीवन जी रहे हैं। ✔ 50 मंदबुद्धि (इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी) के बच्चे ठीक हो चुके हैं। ✔ 70 से अधिक व्यस्क मानसिक रोगी, जिनमें से 40 पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं। ✔ 60-75 वर्ष के बुजुर्गों में भूलने की बीमारी का भी सफल इलाज जारी है। सेंटर का मुख्य उद्देश्य जागरूकता और सही उपचार देना है, इसलिए फीस बहुत कम रखी गई है। “बाहर की नहीं, अंदर की चोटों का इलाज भी जरूरी है“ प्रश्न: इतनी पढ़ाई और अनुभव के बाद आपने कुनकुरी को ही क्यों चुना? उत्तर: जब मैं रायपुर, बेंगलुरु में पढ़ाई कर रही थी, तब मैंने देखा कि सरगुजा क्षेत्र के कई मरीज मानसिक बीमारियों के कारण दर-दर भटक रहे हैं। मुझे लगा कि अगर मैं अपने ही क्षेत्र में रहकर लोगों की मदद करूं तो ज्यादा बेहतर होगा। चूंकि मेरा घर कुनकुरी में है, तो यहाँ सेंटर खोलना सुविधाजनक भी रहा। प्रश्न: आपके अनुसार, इस क्षेत्र में किस तरह के मानसिक रोग सबसे ज्यादा हैं? उत्तर: यह कहना मुश्किल है क्योंकि मानसिक बीमारी दिखती नहीं, महसूस होती है। डिप्रेशन, एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया (पागलपन), एडिक्शन, डी-एडिक्शन, याददाश्त की समस्या जैसी बीमारियाँ यहाँ आम हैं। लेकिन सबसे चिंता की बात यह है कि 8वीं-9वीं के बच्चों में भी मानसिक समस्याएँ बढ़ रही हैं। ✔ बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं ✔ या तो उन्हें बहुत अधिक सुविधाएँ दी जा रही हैं, या बहुत ज्यादा दबाव यही कारण है कि बचपन से मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।          “मुझे अपने काम पर गर्व है” प्रश्न: इतने सालों का अनुभव कैसा रहा? उत्तर: (हँसते हुए) 24 साल से इस फील्ड में हूँ और मुझे अपने काम पर बेहद गर्व है। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू करता है, तो जो संतुष्टि मिलती है, वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती। “मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही ज़रूरी” अंतिम प्रश्न: हमारे पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगी? उत्तर:”जिस तरह बाहर की चोट का इलाज कराते हैं, वैसे ही अंदर की चोट का भी इलाज कराना ज़रूरी है।”अगर आपको लगे कि आपका कोई प्रियजन असामान्य व्यवहार कर रहा है, तो घबराने की जरूरत नहीं है—इलाज संभव है! वैसे,ज्यादा सही होगा कि स्वस्थ दिखने वालों को भी मानसिक स्वास्थ्य की जांच करा लेनी चाहिए, जिससे बीमारी ही पैदा न हो पाए। मेरे GK साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में सोमवार से शनिवार, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक आ सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए 7725093381,7067162282 पर संपर्क करें।मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का समाधान संभव है—बस पहला कदम उठाने की देर है!

महाकुंभ: आस्था का पर्व, न कि सांप्रदायिक विवाद

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निर्मल कुमार महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो आस्था, आध्यात्मिकता और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का भव्य उत्सव है। यह अद्वितीय आयोजन प्रत्येक बारह वर्षों में प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होता है, जहां पवित्र गंगा, यमुना और दिव्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। यह मेला भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और कुशल संगठन क्षमता का अद्भुत उदाहरण है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग इस पवित्र अवसर को राजनीतिक रंग देने और सांप्रदायिक दृष्टि से देखने का प्रयास कर रहे हैं, जो न केवल भ्रामक है, बल्कि समाज को बांटने की एक दुर्भावनापूर्ण कोशिश भी है। महाकुंभ: आस्था और परंपरा का प्रतीक महाकुंभ मेला केवल आस्था से जुड़ा एक धार्मिक आयोजन है। इसका मूल आधार वह पौराणिक कथा है, जिसमें समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं, जिससे इन स्थानों को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्राप्त हुआ। हिंदू धर्म में मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर पवित्र स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, यह एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक उत्सव भी है। यहाँ भारतीय परंपराओं, कला, व्यापार, और शिक्षा की झलक देखने को मिलती है। इस मेले की वैश्विक मान्यता का प्रमाण है कि वर्ष 2017 में दक्षिण कोरिया के जेजू में आयोजित यूनेस्को की ‘अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा के लिए अंतर-सरकारी समिति’ ने ‘कुंभ मेला’ को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया था। महाकुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और सामाजिक संरचना का आईना है, जहाँ जाति, वर्ग और सम्प्रदाय से परे सभी को समान दृष्टि से देखा जाता है। सांप्रदायिकता के आरोप निराधार, महाकुंभ का द्वार सबके लिए खुला हाल ही में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि महाकुंभ मेले में मुसलमानों का प्रवेश प्रतिबंधित है, जो पूर्णतः असत्य और समाज में फूट डालने की एक कोशिश मात्र है। महाकुंभ मेला कभी भी किसी जाति, वर्ग या धर्म के लिए निषिद्ध नहीं रहा है। यहाँ सभी समुदायों के लोग आ सकते हैं, बशर्ते वे मेले की परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करें। एक महत्वपूर्ण तुलना हज यात्रा से की जा सकती है। हज मुस्लिम समुदाय का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जिसमें केवल मुसलमानों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, और इस धार्मिक विशिष्टता को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिया जाता है। इसके विपरीत, महाकुंभ में ऐसी कोई धार्मिक पाबंदी नहीं है, और अन्य धर्मों के अनुयायियों का भी स्वागत है। फिर भी, कुछ लोग महाकुंभ को एक सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं, जो भारत की सद्भावना और धार्मिक सहिष्णुता की मूल भावना का अपमान है। sporadic घटनाओं को बहुसंख्यक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करना एक भ्रामक प्रचार से अधिक कुछ नहीं। विश्व का सबसे बड़ा आयोजन: प्रबंधन और प्रशासन की अद्भुत मिसाल महाकुंभ में अनुमानित 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु भाग लेंगे, जिससे यह विश्व का सबसे विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बन जाता है। इतने बड़े स्तर पर आयोजन की सफलता सुनिश्चित करना सरकार, प्रशासन और स्वयंसेवकों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती है। इसके लिए एक अस्थायी टेंट सिटी बसाई जाती है, जिसमें सभी आवश्यक सुविधाएँ—स्वच्छता, पेयजल, चिकित्सा, सुरक्षा, परिवहन आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर तुलना करें तो हज यात्रा में प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख लोग भाग लेते हैं, जिसे आयोजित करना भी एक जटिल कार्य है। लेकिन कल्पना कीजिए कि महाकुंभ में इससे 100 गुना अधिक लोग एकत्र होते हैं, फिर भी प्रशासनिक कुशलता से इसका सफल आयोजन किया जाता है। इस आयोजन की सफलता भारत की प्रशासनिक क्षमता, प्रबंधन दक्षता और तकनीकी नवाचारों का प्रतीक है। इस बार के महाकुंभ में आधुनिक तकनीक का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। ड्रोन कैमरों से सुरक्षा की निगरानी, पर्यावरण अनुकूल व्यवस्थाएँ, डिजिटल भुगतान की सुविधाएँ, और अत्याधुनिक आपातकालीन सेवाएँ इस आयोजन को और अधिक सुव्यवस्थित और सुरक्षित बना रही हैं। महाकुंभ: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति का एक वैश्विक मंच है। यह हमारी सामूहिक स्मृतियों और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है। यह आयोजन न केवल भारत की धार्मिक विविधता को दर्शाता है, बल्कि हमारे समाज की सहिष्णुता, एकता और संगठित प्रशासनिक क्षमता को भी प्रदर्शित करता है। महाकुंभ एकता, आत्मचिंतन और हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व का उत्सव है। हमें इसे राजनीति और संकीर्ण मानसिकता से दूर रखना चाहिए और इसकी वास्तविक भावना को समझना चाहिए। भारत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह दुनिया के सबसे बड़े आयोजनों को कुशलतापूर्वक संभालने में सक्षम है। हमें इस महान उपलब्धि का सम्मान करना चाहिए और इसे भारत की समावेशी और सहिष्णु परंपराओं का प्रतीक मानते हुए गर्व महसूस करना चाहिए। आइए, हम सब मिलकर इस ऐतिहासिक आयोजन की पवित्रता बनाए रखें और इसे विश्वभर के लोगों के लिए चमत्कार और श्रद्धा का केंद्र बनाएं। महाकुंभ केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज का गौरव है। एक संगठित राष्ट्र के रूप में, हमें इस अद्भुत उपलब्धि का उत्सव मनाना चाहिए और अपने बहुसांस्कृतिक समाज की शांति और परस्पर सम्मान की भावना को बनाए रखना चाहिए। (यह लेखक के निजी विचार हैं।लेखक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों,घटनाक्रम पर लेख करते हैं।)

गणतंत्र दिवस परेड में ‘पाईका नृत्य’ झांकी ने मारी बाजी, वोटिंग में हासिल किया पहला स्थान

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नई दिल्ली,31 जनवरी 2025 – जनजातीय गौरव दिवस 2025 के उपलक्ष्य में गणतंत्र दिवस परेड में ‘पाईका नृत्य’ झांकी ने शानदार प्रदर्शन कर दर्शकों का दिल जीत लिया। TRIBAL CINEMA OF INDIA (T.C.I.) ने इस ऐतिहासिक अवसर के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार का आभार व्यक्त किया, जिसने झांकी प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया। झरना आर्ट्स के डायरेक्टर इनुस कुजूर ने जानकारी देते हुए बताया कि ‘मां शारदा संगीत शिक्षण संस्थान, रांची’ के निर्देशक अजय कुमार के मार्गदर्शन में इस प्रस्तुति को अंतिम रूप दिया गया। T.C.I. के अध्यक्ष बीजू टोप्पो, उपाध्यक्ष तेजकुमार मुण्डू, राष्ट्रीय संयोजक निरंजन कुजूर एवं सेरल मुर्मू, राष्ट्रीय सह-संयोजक इनुस कुजूर एवं सुरेन्द्र कुजूर, सचिव नीरज समद – प्रिंसी लकड़ा, राष्ट्रीय समन्वयक दीपक बड़ा और कोषाध्यक्ष अविनाश बड़ा ने अजय कुमार और टीम को उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बधाई दी। इनुस कुजूर ने बताया कि जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा दिए गए स्लोगन के आधार पर गीत को उन्होंने तैयार किया, जिसे सुरेन्द्र कुजूर ने स्वर दिया और रांची के दी हैंड्स स्टूडियो के संगीतकार दीपक श्रेष्ठ ने संगीतबद्ध किया। झांकी के कलाकारों के चयन में झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के नवोदित कलाकारों को शामिल किया गया। दिल्ली में छह राउंड के अभ्यास सत्र और कड़े मुकाबले के बाद ‘पाईका नृत्य’ को गणतंत्र दिवस परेड के लिए अंतिम रूप से चुना गया। परेड में टीम ने झांकी के रूप में दूसरे नंबर पर प्रदर्शन किया और दर्शकों की जबरदस्त सराहना हासिल की। इनुस कुजूर ने बताया कि 26 से 28 जनवरी तक भारत सरकार द्वारा झांकी प्रतियोगिता के लिए वोटिंग कराई गई, जिसमें ‘पाईका नृत्य’ को जनता का अपार समर्थन मिला और यह वोटिंग में प्रथम स्थान पर रहा। T.C.I. परिवार, कला जगत और संगठन के सदस्यों ने बड़े पैमाने पर वोटिंग अपील की, जिसके परिणामस्वरूप ‘पाईका झांकी’ को विजेता घोषित किया गया। T.C.I. और झरना आर्ट्स ने देश-विदेश के सभी कला प्रेमियों, दर्शकों और वोटिंग करने वालों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह उपलब्धि जनजातीय सांस्कृतिक विरासत के सम्मान का प्रतीक है।

महाकुंभ मेले में भगदड़ से 14 की मौत, 50 से अधिक घायल,ताजा हालात ये है,,,

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प्रयागराज के संगम तट पर मंगलवार-बुधवार की रात लगभग डेढ़ बजे भगदड़ मचने से 14 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए। घटना का विवरण: समय और स्थान: यह हादसा संगम तट पर मंगलवार-बुधवार की रात करीब 1:30 बजे हुआ। कारण: प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, अफवाह के चलते संगम नोज पर भगदड़ मची। कुछ महिलाएं जमीन पर गिर गईं और लोग उन्हें कुचलते हुए निकल गए। प्रशासनिक कार्रवाई: अखाड़ों का स्नान रद्द: प्रशासन के अनुरोध पर सभी 13 अखाड़ों ने मौनी अमावस्या का अमृत स्नान रद्द कर दिया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि संगम नोज पर अधिक भीड़ के कारण यह फैसला लिया गया है। उच्चस्तरीय संज्ञान: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से फोन पर घटना की जानकारी ली है। मृतकों की पहचान: प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतकों में शामिल कुछ व्यक्तियों के नाम इस प्रकार हैं: आशीष फरहत मनीष विकास सचिन सृष्टि प्रकाश राजेश अजय लता सुरक्षा उपाय: प्रवेश पर रोक: हादसे के बाद संगम नोज इलाके में आम लोगों की एंट्री बंद कर दी गई है। भीड़ और न बढ़े, इसलिए प्रयागराज शहर में भी श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए शहर की सीमा से सटे जिलों में प्रशासन को मुस्तैद कर दिया गया है। सुरक्षा बलों की तैनाती: संगम तट पर एनएसजी कमांडो ने मोर्चा संभाल लिया है। स्वास्थ्य सेवाएं: चिकित्सा सुविधा: स्वरूपरानी अस्पताल में 14 शव पोस्टमॉर्टम के लिए लाए जा चुके हैं। घायलों का इलाज जारी है। प्रशासन ने श्रद्धालुओं से शांति बनाए रखने की अपील की है और आश्वासन दिया है कि स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। सोर्स – दैनिक भास्कर,एबीपी न्यूज