*मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर किया नमन, शिक्षक दिवस पर दी शुभकामनाएं*

रायपुर, 05 सितंबर 2024। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आज पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद् भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर उन्हें नमन किया। मुख्यमंत्री ने अपने निवास कार्यालय में डॉ. राधाकृष्णन के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए उनके योगदान को याद किया और शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रदेश के सभी शिक्षकों और नागरिकों को शुभकामनाएं दी।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि डॉ. राधाकृष्णन न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि एक उत्कृष्ट दार्शनिक और विद्वान भी थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपार योगदान दिया।  डॉ. राधाकृष्णन के विचार और शिक्षण पद्धतियां आज भी समाज को प्रेरित करती हैं।

श्री साय ने कहा, “मेरे जीवन में जो कुछ भी मैंने सीखा है, उसमें मेरे गुरुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। शिक्षक हमें जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियों का सामना करने और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों को उतारकर उन्हें एक बेहतर नागरिक बनाते हैं।

डॉ. राधाकृष्णन के विचारों को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को सकारात्मक दिशा में ले जाने का माध्यम है। उन्होंने विश्वास जताया कि प्रदेश के शिक्षकगण डॉ. राधाकृष्णन के पदचिन्हों पर चलते हुए समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी को भी आज जानना जरूरी है

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक स्थान में हुआ था। उनका परिवार धार्मिक और परंपरागत ब्राह्मण परिवार था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुत्तनी और वेल्लोर में पूरी की, और बाद में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। उनकी रुचि दर्शनशास्त्र में गहरी थी, और उन्होंने भारतीय दर्शन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

करियर और योगदान
डॉ. राधाकृष्णन एक महान विद्वान और शिक्षक थे। उनका शिक्षण करियर मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज से शुरू हुआ, जहां उन्होंने दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाया, जिसमें कलकत्ता विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय शामिल हैं। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र और भारतीय विचारधारा के बीच एक सेतु का काम किया और भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक “इंडियन फिलॉसफी” है, जिसमें उन्होंने भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है। वे यह मानते थे कि भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में वह शक्ति है, जो पश्चिमी जगत को गहराई से प्रभावित कर सकती है।

राजनीतिक और राजनयिक करियर
1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद, डॉ. राधाकृष्णन ने राजनयिक और राजनीतिक भूमिकाएं भी निभाईं। वे 1949 से 1952 तक यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि रहे और 1952 से 1962 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे। उनकी कूटनीतिक क्षमताओं और ज्ञान का वहां बहुत सम्मान किया गया।

### उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति
डॉ. राधाकृष्णन 1952 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और इसके बाद 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उनके राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा, संस्कृति, और नैतिकता को विशेष महत्व दिया। उनके सम्मान में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई, क्योंकि वे हमेशा शिक्षा और शिक्षकों के महत्व को सर्वोपरि मानते थे।

### पुरस्कार और सम्मान
डॉ. राधाकृष्णन को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। 1954 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” दिया गया। इसके अलावा, उन्हें कई विश्वविद्यालयों से मानद उपाधि मिली और वे कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य रहे।

### निधन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ। उनका जीवन भारतीय शिक्षा, दर्शन और नैतिकता के प्रति समर्पण का प्रतीक था, और उनकी विचारधारा आज भी शिक्षकों और छात्रों को प्रेरित करती है।

डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जीवन के माध्यम से यह संदेश दिया कि शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि यह जीवन को सही दिशा में ले जाने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम है।