पत्थलगांव तहसील में शासकीय पट्टे की भूमि की अवैध रजिस्ट्री का खुलासा, पट्टा निरस्त कर शासकीय भूमि में दर्ज करने का आदेश जारी

जशपुर/पत्थलगांव – एक सनसनीखेज खुलासे में, ग्राम कुडकेल खजरी की खसरा नम्बर 1191/2, रकबा 2.024 हेक्टेयर भूमि की अवैध रजिस्ट्री के बाद इसे शासकीय भूमि में दर्ज करने का आदेश पारित किया गया है। इस प्रकरण का भंडाफोड़ तब हुआ जब तहसीलदार पत्थलगांव ने भूमि के नामांतरण की कार्यवाही के दौरान असामान्य गतिविधियों का संदेह जताया।

यह भूमि 1931-32 के मिसल बंदोबस्त में बड़े झाड़ का जंगल मद के रूप में दर्ज की गई थी और 1954-55 के अधिकार अभिलेख में भी इसी श्रेणी में दर्ज रही है। 16 अप्रैल 1986 को तहसीलदार पत्थलगांव ने उजागर राम पिता दुष्टीराम निवासी कुडकेल खजरी को इस भूमि का पट्टा कृषि कार्य हेतु प्रदान किया था।

दरअसल, पट्टे से प्राप्त भूमि को उजागर पिता दुष्टी जाति कोलता ने 8 जून 2023 को कलेक्टर की अनुमति के बिना रमेश शर्मा पिता रामशरण शर्मा जाति ब्राम्हण निवासी पत्थलगांव एवं सुदाम गोयल पिता दीपचन्द गोयल जाति अग्रवाल निवासी बटईकेला तहसील कासाबेल को रजिस्ट्री के माध्यम से विक्रय कर दिया। नामांतरण की कार्यवाही के दौरान तहसीलदार पत्थलगांव को यह भूमि शासकीय पट्टे से प्राप्त भूमि होने का संदेह हुआ और उन्होंने मार्गदर्शन हेतु प्रकरण अनुविभागीय अधिकारी (रा) पत्थलगांव के समक्ष प्रस्तुत किया।

अनुविभागीय अधिकारी (रा) पत्थलगांव ने मामले की जांच की और पाया कि भूमि वास्तव में शासकीय पट्टे से प्राप्त थी। इसके बाद हल्का पटवारी अरूण कुमार लकड़ा को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिन्होंने अपने जवाब में भूमि को शासकीय पट्टे से प्राप्त होने की जानकारी न होने का दावा किया।

गहन जांच के दौरान तहसीलदार पत्थलगांव और अनुविभागीय अधिकारी (रा) पत्थलगांव के प्रतिवेदन के आधार पर क्रेता और बिक्रेता को सुनवाई का अवसर दिया गया। यह पुष्टि होने पर कि भूमि शासकीय पट्टे से प्राप्त हुई थी और सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना रजिस्ट्री बैनामा के जरिये बेची गई थी, पट्टा निरस्त कर उक्त भूमि को शासकीय भूमि में दर्ज करने का आदेश पारित किया गया।

इस खुलासे ने पूरे तहसील में हलचल मचा दी है। हल्का पटवारी अरूण कुमार लकड़ा की संलिप्तता पाये जाने के कारण उनके विरुद्ध विभागीय जांच प्रकरण संस्थित करने के निर्देश अनुविभागीय अधिकारी (रा) पत्थलगांव को दिए गए हैं। यह मामला प्रशासनिक सतर्कता और पारदर्शिता के महत्व को फिर से उजागर करता है, जिससे शासकीय भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।