*अशांति में राह दिखाता धर्म: बांग्लादेश के राजनीतिक आंदोलन में इसकी भूमिका*

समसामयिक : निर्मल कुमार

किसी भी बड़े पैमाने पर हिंसा का सबसे बड़ा शिकार हमेशा समाज की विविधता और एकता होती है। बांग्लादेश, जो एक बहुधार्मिक देश है, जहां हिंदू एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय हैं, अक्सर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनता है। कुछ लोगों का मानना है कि ये विरोध इस्लाम के नाम पर हुए और इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला करने के लिए लोगों को उकसाया। रिपोर्टों में कहा गया कि हिंदू धार्मिक स्थलों, घरों और महिलाओं पर हमले हुए। चूंकि इस्लाम बांग्लादेश का बहुसंख्यक धर्म है, इसे आंदोलन की एक बड़ी प्रेरक शक्ति बताया गया। हालांकि, यह जरूरी है कि हम इन विरोध प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों के आचरण और इस्लाम की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात समझें।

इस्लाम की शिक्षाएं साफ तौर पर कहती हैं कि अल्पसंख्यकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा होनी चाहिए, चाहे युद्ध का समय हो या शांति का। इसलिए, इन हिंसक विरोधों के दौरान, सरकार और प्रदर्शनकारियों दोनों को उचित आचरण करना चाहिए। विरोध आंदोलनों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखें, नहीं तो उन्हें अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

बांग्लादेश में, विरोध आंदोलन ने जल्द ही अपने लक्ष्यों को पूरा किया और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी। मीडिया ने कुछ हिंसा की घटनाओं की जानकारी दी, लेकिन साथ ही यह भी बताया कि कई स्थानीय मुसलमान, उलेमा, मदरसा छात्र और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिंदू घरों और मंदिरों की रक्षा के लिए पहल की। धार्मिक संगठनों ने भी लोगों से अपील की कि यह आंदोलन किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्ट राजनीतिक नेताओं के खिलाफ है, इसलिए सबको मिलकर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखना चाहिए।

ऐसे समय में, बांग्लादेशी मुसलमानों का धार्मिक कर्तव्य है कि वे हिंदुओं के जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए आगे आएं। सरकार, प्रशासन और आंदोलन के नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखें, क्योंकि इस्लाम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का हुक्म देता है। इसे नियम और कानून का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। धार्मिक नेताओं को मस्जिदों से इस बात की घोषणा करनी चाहिए कि स्थानीय स्तर पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए प्रयास किए जाएं।

बांग्लादेश में छात्रों द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन ने देश में बदलाव की मांग और गहरे असंतोष को उजागर किया है। राजनीतिक गड़बड़ी, भ्रष्टाचार और आर्थिक समस्याओं ने इस आंदोलन को हवा दी है, लेकिन यह आंदोलन यह भी दिखाता है कि एक बहुधार्मिक समाज में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा और साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखना कितना जरूरी है। जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ता है, यह जरूरी है कि सरकार और प्रदर्शनकारी न्याय और अहिंसा के रास्ते पर चलें, ताकि राजनीतिक सुधार की कोशिशें समाज में और विभाजन या हिंसा न पैदा करें। इस्लाम की शिक्षाएं और सभी नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारियां हमें यह याद दिलाती हैं कि हमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और इस आंदोलन का असली मकसद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना और सभी के लिए एक बेहतर समाज बनाना है। बांग्लादेश को एक ऐसा भविष्य चाहिए जहां सभी समुदाय एक साथ मिलकर आगे बढ़ सकें।

(लेखक आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।समसायिक विषयों पर उनके लेख विभिन्न संचार माध्यमों में प्रकाशित होते हैं।यह लेखक के निजी विचार हैं।)