लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुस्लिम राष्ट्रवाद का दुष्प्रभाव: हिज्ब-उत-तहरीर

निर्मल कुमार

हिज्ब-उत-तहरीर (Hizb-ut-Tahrir) एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन है, जिसका उद्देश्य वैश्विक इस्लामी ख़िलाफ़त की स्थापना करना है। 1953 में फ़िलिस्तीन के तकीउद्दीन नबहानी द्वारा स्थापित इस संगठन का दावा है कि यह राजनीतिक और वैचारिक तरीकों से इस्लामी शासन स्थापित करेगा। हालाँकि, इसके उद्देश्यों और कार्यप्रणाली ने इसे दुनिया के कई देशों में विवादास्पद बना दिया है। भारत सहित कई देशों ने इसे सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। हिज्ब-उत-तहरीर के भारत में सक्रिय होने की खबरों ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है, और इसे हाल ही में भारत सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।

भारत में हिज्ब-उत-तहरीर की चुनौतियाँ

हिज्ब-उत-तहरीर का वैचारिक उद्देश्य भारत की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था के सीधे विरोध में है। यह संगठन संविधान को चुनौती देते हुए जिहाद के माध्यम से इस्लामी ख़िलाफ़त स्थापित करना चाहता है। भारत में सुरक्षा एजेंसियों ने हिज्ब-उत-तहरीर पर युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और संविधान-विरोधी विचारधारा फैलाने का आरोप लगाया है। यह संगठन अपनी गुप्त गतिविधियों से समाज में विघटन और अलगाववाद को बढ़ावा देता है। इसके कार्य न केवल भारतीय संविधान बल्कि इस्लामी शिक्षाओं के भी विरुद्ध हैं।

इस्लामी सिद्धांत और हिज्ब-उत-तहरीर की विचारधारा

इस्लाम न्याय, शांति और व्यवस्था को प्राथमिकता देता है। पैगंबर मोहम्मद ने सामाजिक विघटन (फ़ितना) और अराजकता से बचने का संदेश दिया। किसी भी वैध इस्लामी शासन को सामुदायिक समर्थन और न्यायपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए। बिना वैध प्रक्रिया के शासन का आह्वान करना इस्लामी शिक्षाओं के विरुद्ध है। हिज्ब-उत-तहरीर का विचारधारा के नाम पर युवाओं को उकसाना, अराजकता फैलाना और सामाजिक शांति को भंग करना, इस्लामी उसूलों के बिल्कुल विपरीत है।

इस्लाम में व्यवस्था का महत्व सर्वोपरि है। यह समाज में एकता और न्याय सुनिश्चित करने पर बल देता है। पैगंबर ने स्पष्ट कहा है कि मुस्लिम समुदाय को स्थापित व्यवस्था के तहत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखना चाहिए। विद्रोह या अराजकता इस्लाम में निषिद्ध है क्योंकि यह समाज को विखंडित करता है और शांति को खतरे में डालता है। हिज्ब-उत-तहरीर जैसी विचारधाराएँ इन इस्लामी सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं और मुसलमानों को गुमराह करती हैं।

मुस्लिम युवाओं पर हिज्ब-उत-तहरीर का प्रभाव

हिज्ब-उत-तहरीर की सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक है युवा मुसलमानों को भ्रमित करना। एक काल्पनिक ख़िलाफ़त का वादा कर यह संगठन उन्हें कट्टरपंथ की ओर धकेलता है। कई बार युवा इसके प्रभाव में आकर ऐसी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं जो भारतीय कानून के तहत अपराध हैं। परिणामस्वरूप, वे गिरफ़्तारी, जेल, और समाज से अलगाव का शिकार हो जाते हैं। उनका भविष्य, जो समाज और समुदाय के निर्माण में योगदान दे सकता था, कट्टरपंथ और अलगाव में उलझकर बर्बाद हो जाता है।

यह जरूरी है कि मुस्लिम युवाओं को समझाया जाए कि इस्लाम न केवल शांति और न्याय का पैगाम देता है, बल्कि ऐसे कार्यों को भी मना करता है जो समाज में विघटन और अशांति फैलाते हैं। उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि भारत का संविधान उनके अधिकारों की रक्षा करता है और उनके विकास के लिए अवसर प्रदान करता है।

भारतीय लोकतंत्र और मुस्लिम समुदाय

भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है। यह सभी नागरिकों को उनके धर्म, जाति, या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समान अधिकार प्रदान करता है। मुस्लिम समुदाय, जो भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का अभिन्न हिस्सा है, को यह समझना चाहिए कि संविधान उन्हें अपने धर्म का पालन करने, शिक्षा प्राप्त करने और राजनीतिक भागीदारी में शामिल होने की पूरी स्वतंत्रता देता है।

हिज्ब-उत-तहरीर जैसी विभाजनकारी विचारधाराओं को खारिज करना और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी करना ही सही रास्ता है। इससे न केवल समुदाय का उत्थान होगा, बल्कि एक समावेशी और समृद्ध समाज का निर्माण भी संभव होगा।

सामुदायिक नेतृत्व और सकारात्मक भूमिका

मुस्लिम विद्वानों, नेताओं और सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे हिज्ब-उत-तहरीर जैसी गुमराह करने वाली विचारधाराओं के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ। उन्हें समुदाय को यह समझाना चाहिए कि इस्लामी मूल्यों के साथ-साथ भारत का संविधान भी उनके अधिकारों और न्याय की रक्षा करता है।

युवाओं को यह दिशा दिखाने की आवश्यकता है कि उनके सपनों को साकार करने का रास्ता शिक्षा, कौशल विकास और सकारात्मक सामुदायिक भागीदारी में है, न कि कट्टरपंथी संगठनों के झूठे वादों में। भारत के लोकतंत्र में, हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार प्राप्त हैं। यह संविधान के प्रति निष्ठा और समाज में न्यायपूर्ण भागीदारी के माध्यम से ही संभव है।

करना ये चाहिए

हिज्ब-उत-तहरीर जैसे संगठन भारत की शांति और प्रगति के लिए गंभीर खतरा हैं। उनका उद्देश्य न केवल संविधान और कानून के विरुद्ध है, बल्कि इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है। मुस्लिम समुदाय को इन संगठनों से सतर्क रहते हुए संविधान और इस्लामी मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखनी चाहिए। शिक्षा, सामाजिक भागीदारी और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही समुदाय का उत्थान और देश का विकास संभव है।

(लेखक आर्तिक सामाजिक मामलों के जानकार है।यह उनके निजी विचार हैं )