खबर खास : आदिवासी ज़मीन पर भूमाफियाओं का ऐसा फर्जीवाड़ा ! प्रशासन की अनियमितताओं से आदिवासी समुदाय पर गहरा संकट

छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा सम्भाग में आदिवासियों की जमीनों पर भूमाफिया लगातार गिद्धों की तरह हमला कर रहे हैं।ये भूमाफिया इतने संगठित हैं कि सरकार किसी की भी हो इनके काम में कोई फर्क नहीं पड़ता।ये सरकार के हिसाब से अपने चेहरे बदल लेते हैं।पढ़िए बस्तर से यह खास रिपोर्ट,,,

बस्तर,16 अक्टूबर 2024 –  आदिवासी ज़मीनों पर कब्जे से जुड़े एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें स्थानीय भूमाफिया और कुछ प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है। यह घोटाला बस्तर के जगदलपुर से सटे ग्राम तुसेल का है, जहाँ भूमाफियाओं ने सरकारी अधिकारियों की सहायता से आदिवासियों की ज़मीनों पर अवैध कब्जा कर लिया। इस साजिश का शिकार बने मासे पिता डोरा, जो माड़िया जनजाति से थे, उनकी मृत्यु के बाद उनकी ज़मीन को फर्जी दावों के आधार पर हड़प लिया गया।

मासे पिता डोरा की ज़मीन का अवैध कब्जे की कहानी

इस प्रकरण की शुरुआत लगभग 15 साल पहले हुई, जब ग्राम तुसेल निवासी मासे पिता डोरा की मृत्यु के बाद उनकी ज़मीन (खसरा नं. 104, रकबा 4 एकड़) पर भूमाफियाओं की नज़रें गड़ीं। इस ज़मीन को कोंडागांव निवासी भदरू पिता चैतू के नाम अवैध रूप से दर्ज करवा दिया गया। इस प्रक्रिया में स्थानीय भूमाफिया,पटवारी की भूमिका संदिग्ध रही, जिन्होंने बिना किसी वैध दस्तावेज़ के ज़मीन के नामांतरण को अंजाम दिया। यह मामला प्रशासनिक भ्रष्टाचार का स्पष्ट उदाहरण है, जहाँ ज़मीन की हेराफेरी में जिम्मेदार अधिकारियों ने जानबूझकर आंखें मूंद लीं।

फर्जी दावे और धोखाधड़ी का सिलसिला: भदरू की पत्नी का दावा

भदरू की मृत्यु के बाद भूमाफियाओं ने एक और चाल चली। भदरू की पत्नी रुकाय ने तहसील न्यायालय में फौती का आवेदन दाखिल किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि यह ज़मीन उनके पति की थी। जबकि यह ज़मीन 1961 में शासन द्वारा आदिवासी मासे पिता डोरा को आबंटित की गई थी। रुकाय ने आवेदन में खुद को मुरिया जनजाति से बताया, जबकि असल दस्तावेज़ों के अनुसार यह ज़मीन माड़िया जनजाति के डोरा की थी। इस धोखाधड़ी में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, जिन्होंने जातीय हेरफेर कर इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया।

प्रशासनिक अनियमितताएं और तहसीलदार की भूमिका

इस मामले में तहसीलदार और बाबू की संदिग्ध भूमिका ने घोटाले को और गंभीर बना दिया। पहले तहसीलदार, रुपेश मरकाम ने 31 मई 2024 को एक आदेश जारी किया था। लेकिन दो महीने बाद एक अन्य नायब तहसीलदार ने उसी प्रकरण क्रमांक पर पुनः ऑफलाइन नोटशीट के आधार पर, बिना उचित दस्तावेज़ों की जांच किए, 27 जुलाई 2024 को ज़मीन फौती नामांतरण का आदेश जारी कर दिया।

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इस दोहरे आदेश ने ग्रामीणों के बीच संदेह उत्पन्न कर दिया है कि पहले जारी किया गया आदेश अभी तक क्यों छिपा रखा गया है? ग्रामीणों का मानना है कि यह आदेश शायद इस घोटाले को उजागर कर सकता था, जिसे जानबूझकर दबा दिया गया।

15 साल बाद घोटाले का खुलासा और पंचायत की प्रतिक्रिया

करीब 15 साल बाद, जब भूमाफियाओं ने इस ज़मीन को बेचने की कोशिश की, तब ग्राम पंचायत को इसकी जानकारी मिली। पंचायत के उपसरपंच त्रिपाठी ने तत्काल इस मामले की शिकायत जगदलपुर के एसडीएम से की। उपसरपंच ने बताया कि पहले उन्हें इस ज़मीन पर हो रही गतिविधियों की जानकारी नहीं थी, लेकिन जब यह बात सामने आई कि ज़मीन की खरीद-फरोख्त की जा रही है, तब उन्होंने त्वरित कार्रवाई की।

ग्राम तुसेल के ग्रामीणों और पंचायत के सदस्यों ने इस घोटाले पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह धोखाधड़ी सिर्फ ज़मीन पर कब्जा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी आजीविका, अधिकार और उनकी संस्कृति पर सीधा हमला है। ग्रामीणों ने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है और कहा कि यह मामला प्रशासनिक भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है।

दोषियों पर हो कार्यवाही अन्यथा धरना प्रदर्शन : प्रकाश ठाकुर

सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने हाल ही में हुए ज़मीन घोटाले की कड़ी निंदा करते हुए इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रशासन को इस प्रकार की धोखाधड़ी और घोटालों के मामलों में अब सख्त रुख अपनाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

प्रकाश ठाकुर का कहना है कि आदिवासी समुदाय की भूमि के साथ बार-बार धोखाधड़ी होती रही है, जिससे उनकी आजीविका और अधिकारों पर सीधा असर पड़ता है। उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया है कि वह जमीनी मामलों में पारदर्शिता सुनिश्चित करे और पंचायतों एवं ग्राम समितियों को सशक्त करे, ताकि भूमि से जुड़े मामलों में आदिवासी समुदाय की सुरक्षा हो सके।

प्रकाश ठाकुर ने यह भी स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने इस मामले में त्वरित और सख्त कार्रवाई नहीं की, तो सर्व आदिवासी समाज सड़क पर उतरने के लिए मजबूर हो जाएगा। उनका कहना है कि अगर उनके समुदाय के अधिकारों की अनदेखी की गई तो वे धरना प्रदर्शन करेंगे और तब तक शांत नहीं बैठेंगे जब तक न्याय नहीं मिल जाता।

प्रकाश ठाकुर की यह चेतावनी आदिवासी समाज के भीतर बढ़ते असंतोष और हताशा का स्पष्ट संकेत है। यदि प्रशासन ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, तो भविष्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन की संभावना है, जो न केवल प्रशासन बल्कि पूरे समाज के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

सर्व आदिवासी समाज की यह मांग है कि ज़मीन से जुड़े घोटालों पर तत्काल कार्रवाई हो और दोषियों को सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई भी आदिवासी समुदाय की जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा या धोखाधड़ी करने का साहस न कर सके।

इस प्रकरण ने यह उजागर किया है कि किस प्रकार भूमाफिया और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर आदिवासियों की ज़मीनों को हड़पने का प्रयास कर रहे हैं। यह सिर्फ एक ज़मीन से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के अस्तित्व और उनके अधिकारों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस घोटाले पर क्या कदम उठाता है और आदिवासी समुदाय की ज़मीनों की रक्षा के लिए किस प्रकार के ठोस कदम उठाए जाते हैं।

इस मामले में जगदलपुर तहसीलदार रूपेश मरकाम का कहना है कि नामांतरण ग़लत हुआ है तो एसडीएम न्यायालय में अपील कर सकते हैं।