
जशपुर – राजी पड़हा समेत 6 उरांव समाज के संगठनों ने जिले के सभी उरांव जनजाति को 3 सितंबर की सुबह से हॉकी स्टेडियम में बुलाया गया।जिसमें दोपहर 1 से डेढ़ बजे तक बमुश्किल 8-9 सौ लोग इकट्ठा हो पाए थे।बाद में झारखण्ड और ओडिशा से आई भीड़ ने आयोजनकर्ताओं की लाज रख ली।राजी पड़हा शासन व्यवस्था को माननेवालों की जनाक्रोश रैली को जिला प्रशासन ने केवल सभा में समेट दिया।बिना कोई ढोल-तमाशे के कार्यक्रम शाम 5 बजे तक खत्म हो गया।

यह सब पूर्व कांग्रेस विधायक विनय भगत समेत कई सामाजिक नेताओं,संगठनों के लोगों पर शासन की सतर्क निगाहों और तगड़ी घेराबंदी के कारण हो पाया।मंगलवार 3 सितंबर को सम्भावित जनाक्रोश से निपटने के लिए चार दिन पहले से ही प्रशासन ने रणनीति बना ली थी।पूरे जशपुर को छावनी में तब्दील करते हुए जगह-जगह टीन की दीवार खड़ी कर दी गई।

दीवार,बेरिकेड के आगे जितनी फोर्स लगाई गई उसी के अनुपात में पीछे भी फोर्स रखी गई थी।हालांकि सरकार की इंटेलिजेंस ने बखूबी काम करते हुए इतना क्लियर कर दिया था कि लाठीचार्ज की नौबत नहीं आएगी।मंच पर हर भड़काऊ भाषण देनेवाले को सादे वेश में पुलिस के जवान कवर किये हुए थे।तैयारी यह थी कि अगर भीड़ को उकसाने की किसी ने कोशिश की तो उसे तत्काल सभा से हटा दें।भीड़ को भेड़ बनाकर बाड़े में रखने की योजना बेहद सफल रही।सभा खत्म होने के बाद राजी पड़हा के धर्म गुरु बंधन तिग्गा दीपू बगीचा की ओर जाने की योजना बनाते हुए सभस्थल से बाहर निकल रहे थे कि योजना भांपकर तत्काल एडिशनल एसपी अनिल कुमार सोनी, डिप्टी कलेक्टर आकांक्षा त्रिपाठी,इंस्पेक्टर रवि तिवारी के साथ आयोजकों को शर्तें याद दिलाने लगे ,जिसका तेजी से असर हुआ।वहीं फोर्स भी गेट की एक ओर तैनात हो गई।भीड़ निकलती जा रही थी और अधिकारी,फोर्स के जवानों के साथ उन्हें घोलेंग रोड पर रवाना करते रहे।इस तरह न कोई हो-हल्ला न कोई झूमा-झटकी हुई और आंदोलन शान्तिपूर्ण शहर के बाहर ही निपट गया।
बलौदाबाजार हिंसा से झुलसा छत्तीसगढ़ शासन का यह पहला ड्रिल था।जिसे कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल,पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह ने सफलतापूर्वक पूरा किया।