संविधान की छत्रछाया में मदरसा शिक्षा: न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला, मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा का सुनहरा अवसर

IMG 20241202 WA0017

निर्मल कुमार (लेखक आर्थिक व सामाजिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।) कोई भी कानून, सामाजिक पूर्वाग्रह, या राजनीतिक दबाव, संविधान के इस मूल अधिकार को कमजोर नहीं कर सकता। = सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले को खारिज कर दिया। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत, मदरसों की निगरानी और प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस निर्णय को सुनाते हुए कहा कि सरकार को मदरसा शिक्षा के लिए नियमन बनाने का अधिकार है और यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। इस निर्णय ने मुस्लिम समुदाय और मदरसा शिक्षा से जुड़े लोगों के बीच न्याय और समानता की भावना को प्रबल किया है। संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस अधिकार की पुष्टि करता है और स्पष्ट करता है कि कोई भी कानून, सामाजिक पूर्वाग्रह, या राजनीतिक दबाव संविधान के इस मूल अधिकार को कमजोर नहीं कर सकता। यह निर्णय संविधान की सर्वोच्चता को एक बार फिर स्थापित करता है और भारत के लोकतंत्र के स्थायित्व को सुनिश्चित करता है। मदरसों की ऐतिहासिक भूमिका को समझने की आवश्यकता है। इन संस्थानों ने पारंपरिक धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, वर्तमान युग में शिक्षा केवल धार्मिक या सांस्कृतिक संरक्षण तक सीमित नहीं है। इसे आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित, चिकित्सा, और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों के साथ जोड़ना समय की आवश्यकता है। यह कदम न केवल मदरसा शिक्षा को प्रासंगिक बनाएगा, बल्कि इसे समुदाय की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के एक प्रभावी माध्यम में बदल देगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए आत्मचिंतन और नवाचार का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है। इसे एक अवसर के रूप में लेते हुए, मदरसों को अब आधुनिक शिक्षण पद्धतियों, डिजिटल उपकरणों और कौशल विकास कार्यक्रमों को अपनाना चाहिए। मदरसों का पाठ्यक्रम इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए, जो छात्रों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ मुख्यधारा की शिक्षा में भी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार कर सके। यह न केवल समुदाय के युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर देगा, बल्कि उन्हें समाज के विकास में सक्रिय योगदान देने में सक्षम बनाएगा। यह निर्णय उन संवैधानिक मूल्यों को भी मजबूत करता है जो भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला हैं। कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत, जो अनुच्छेद 14 में निहित है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाए, चाहे उनकी धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। इस फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि न्यायपालिका सामाजिक और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर संविधान के प्रावधानों की रक्षा करती है। यह निर्णय अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाता है कि न्यायपालिका उनकी आवाज सुनने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुस्लिम समुदाय को इस अवसर का उपयोग शिक्षा के माध्यम से अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए करना चाहिए। मदरसों को ऐसे केंद्रों में बदलना चाहिए, जो न केवल धार्मिक शिक्षा दें, बल्कि विज्ञान, गणित, प्रौद्योगिकी और भाषा जैसे विषयों में भी छात्रों को उत्कृष्टता प्रदान करें। विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी, डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म, और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से मदरसा शिक्षा को एक नई दिशा दी जा सकती है। इसके साथ ही, लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि समाज का प्रत्येक वर्ग सशक्त हो सके। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत भी है। यह अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय, को यह समझने का अवसर देता है कि संविधान ही उनके अधिकारों का सबसे सशक्त संरक्षक है। इसके साथ ही, यह भी आवश्यक है कि समुदाय संविधान और न्यायिक प्रणाली पर अपना विश्वास बनाए रखे। यह निर्णय एक संदेश है कि केवल संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही सामाजिक न्याय और समरसता प्राप्त की जा सकती है। आज का यह फैसला न केवल मदरसा शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह समुदाय को आत्मनिर्भर बनने और आधुनिक शिक्षा को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह शिक्षा ही है जो किसी भी समुदाय को सामाजिक और आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल न्यायालय के प्रति विश्वास को पुनः स्थापित नहीं करता, बल्कि यह एक प्रेरणा है कि शिक्षा के माध्यम से समाज के सभी वर्ग अपने अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। मुस्लिम समुदाय के लिए यह समय आत्मचिंतन और कार्य करने का है। उन्हें समझना होगा कि शिक्षा ही वह पुल है जो उन्हें पिछड़ेपन से प्रगति तक ले जा सकता है। यह निर्णय केवल मदरसों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक दिशा-सूचक है। जब समुदाय अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझकर संविधान के साथ चलने का निर्णय करेगा, तभी सामाजिक न्याय और समृद्धि का सपना साकार होगा।

प्राचार्य एम.जेड.यू. सिद्दीकी को मिली डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी की उपाधि, बिरहोर जनजाति के विकास पर किया शोध

IMG 20241205 WA0003

जशपुर,5 दिसम्बर 2024 – जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के प्राचार्य श्री एम.जे.यू. सिद्दीकी को डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, बिलासपुर द्वारा डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Ph.D.) की उपाधि प्रदान की गई है। उनका शोध बिरहोर जनजाति की शिक्षा, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास पर केंद्रित रहा। शोध का विषय “शिक्षा का व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास पर प्रभाव और बिरहोर जनजाति के उत्थान में इसकी भूमिका” था। श्री सिद्दीकी ने बताया कि बिरहोर जनजाति के बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के लिए नीतियां बनाने की आवश्यकता है। इस शोध के निष्कर्ष से सरकार द्वारा नीति निर्माण में सहायता मिलेगी, जिससे बिरहोर जनजाति के सामाजिक उत्थान में मदद हो सकेगी। इस उपाधि से क्षेत्र में खुशी का माहौल है। श्री सिद्दीकी का कहना है कि यह उपलब्धि केवल उनकी नहीं, बल्कि पूरे जशपुर जिले के लिए गौरव का विषय है।  

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुस्लिम राष्ट्रवाद का दुष्प्रभाव: हिज्ब-उत-तहरीर

IMG 20241202 WA0018

निर्मल कुमार हिज्ब-उत-तहरीर (Hizb-ut-Tahrir) एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन है, जिसका उद्देश्य वैश्विक इस्लामी ख़िलाफ़त की स्थापना करना है। 1953 में फ़िलिस्तीन के तकीउद्दीन नबहानी द्वारा स्थापित इस संगठन का दावा है कि यह राजनीतिक और वैचारिक तरीकों से इस्लामी शासन स्थापित करेगा। हालाँकि, इसके उद्देश्यों और कार्यप्रणाली ने इसे दुनिया के कई देशों में विवादास्पद बना दिया है। भारत सहित कई देशों ने इसे सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। हिज्ब-उत-तहरीर के भारत में सक्रिय होने की खबरों ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है, और इसे हाल ही में भारत सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। भारत में हिज्ब-उत-तहरीर की चुनौतियाँ हिज्ब-उत-तहरीर का वैचारिक उद्देश्य भारत की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था के सीधे विरोध में है। यह संगठन संविधान को चुनौती देते हुए जिहाद के माध्यम से इस्लामी ख़िलाफ़त स्थापित करना चाहता है। भारत में सुरक्षा एजेंसियों ने हिज्ब-उत-तहरीर पर युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और संविधान-विरोधी विचारधारा फैलाने का आरोप लगाया है। यह संगठन अपनी गुप्त गतिविधियों से समाज में विघटन और अलगाववाद को बढ़ावा देता है। इसके कार्य न केवल भारतीय संविधान बल्कि इस्लामी शिक्षाओं के भी विरुद्ध हैं। इस्लामी सिद्धांत और हिज्ब-उत-तहरीर की विचारधारा इस्लाम न्याय, शांति और व्यवस्था को प्राथमिकता देता है। पैगंबर मोहम्मद ने सामाजिक विघटन (फ़ितना) और अराजकता से बचने का संदेश दिया। किसी भी वैध इस्लामी शासन को सामुदायिक समर्थन और न्यायपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए। बिना वैध प्रक्रिया के शासन का आह्वान करना इस्लामी शिक्षाओं के विरुद्ध है। हिज्ब-उत-तहरीर का विचारधारा के नाम पर युवाओं को उकसाना, अराजकता फैलाना और सामाजिक शांति को भंग करना, इस्लामी उसूलों के बिल्कुल विपरीत है। इस्लाम में व्यवस्था का महत्व सर्वोपरि है। यह समाज में एकता और न्याय सुनिश्चित करने पर बल देता है। पैगंबर ने स्पष्ट कहा है कि मुस्लिम समुदाय को स्थापित व्यवस्था के तहत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखना चाहिए। विद्रोह या अराजकता इस्लाम में निषिद्ध है क्योंकि यह समाज को विखंडित करता है और शांति को खतरे में डालता है। हिज्ब-उत-तहरीर जैसी विचारधाराएँ इन इस्लामी सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं और मुसलमानों को गुमराह करती हैं। मुस्लिम युवाओं पर हिज्ब-उत-तहरीर का प्रभाव हिज्ब-उत-तहरीर की सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक है युवा मुसलमानों को भ्रमित करना। एक काल्पनिक ख़िलाफ़त का वादा कर यह संगठन उन्हें कट्टरपंथ की ओर धकेलता है। कई बार युवा इसके प्रभाव में आकर ऐसी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं जो भारतीय कानून के तहत अपराध हैं। परिणामस्वरूप, वे गिरफ़्तारी, जेल, और समाज से अलगाव का शिकार हो जाते हैं। उनका भविष्य, जो समाज और समुदाय के निर्माण में योगदान दे सकता था, कट्टरपंथ और अलगाव में उलझकर बर्बाद हो जाता है। यह जरूरी है कि मुस्लिम युवाओं को समझाया जाए कि इस्लाम न केवल शांति और न्याय का पैगाम देता है, बल्कि ऐसे कार्यों को भी मना करता है जो समाज में विघटन और अशांति फैलाते हैं। उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि भारत का संविधान उनके अधिकारों की रक्षा करता है और उनके विकास के लिए अवसर प्रदान करता है। भारतीय लोकतंत्र और मुस्लिम समुदाय भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है। यह सभी नागरिकों को उनके धर्म, जाति, या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समान अधिकार प्रदान करता है। मुस्लिम समुदाय, जो भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का अभिन्न हिस्सा है, को यह समझना चाहिए कि संविधान उन्हें अपने धर्म का पालन करने, शिक्षा प्राप्त करने और राजनीतिक भागीदारी में शामिल होने की पूरी स्वतंत्रता देता है। हिज्ब-उत-तहरीर जैसी विभाजनकारी विचारधाराओं को खारिज करना और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी करना ही सही रास्ता है। इससे न केवल समुदाय का उत्थान होगा, बल्कि एक समावेशी और समृद्ध समाज का निर्माण भी संभव होगा। सामुदायिक नेतृत्व और सकारात्मक भूमिका मुस्लिम विद्वानों, नेताओं और सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे हिज्ब-उत-तहरीर जैसी गुमराह करने वाली विचारधाराओं के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ। उन्हें समुदाय को यह समझाना चाहिए कि इस्लामी मूल्यों के साथ-साथ भारत का संविधान भी उनके अधिकारों और न्याय की रक्षा करता है। युवाओं को यह दिशा दिखाने की आवश्यकता है कि उनके सपनों को साकार करने का रास्ता शिक्षा, कौशल विकास और सकारात्मक सामुदायिक भागीदारी में है, न कि कट्टरपंथी संगठनों के झूठे वादों में। भारत के लोकतंत्र में, हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार प्राप्त हैं। यह संविधान के प्रति निष्ठा और समाज में न्यायपूर्ण भागीदारी के माध्यम से ही संभव है। करना ये चाहिए हिज्ब-उत-तहरीर जैसे संगठन भारत की शांति और प्रगति के लिए गंभीर खतरा हैं। उनका उद्देश्य न केवल संविधान और कानून के विरुद्ध है, बल्कि इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है। मुस्लिम समुदाय को इन संगठनों से सतर्क रहते हुए संविधान और इस्लामी मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखनी चाहिए। शिक्षा, सामाजिक भागीदारी और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही समुदाय का उत्थान और देश का विकास संभव है। (लेखक आर्तिक सामाजिक मामलों के जानकार है।यह उनके निजी विचार हैं )

जशपुर पुलिस की बड़ी सफलता: अपहरण और लूट के बड़े मामले में फरार नौशाद खान गिरफ्तार

IMG 20241203 WA0026

जशपुर, 3 दिसंबर 2024 – जशपुर पुलिस ने एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए अपहरण और लूट के पुराने मामले में फरार कुख्यात आरोपी नौशाद खान को झारखंड के रांची से गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी नौशाद खान अगस्त 2023 से फरार था और पुलिस को उसकी तलाश थी। ⏺️ क्या है मामला? दिनांक 2 अगस्त 2023 को कुनकुरी निवासी नंदन गुप्ता ने थाना कुनकुरी में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। घटना का विवरण: नंदन गुप्ता, जो ट्रक के जरिए कोयला परिवहन का व्यवसाय करता है, को नौशाद खान ने कोयला ट्रांसपोर्टिंग के काम के लिए खंडसा स्थित राजू ढाबा पर बुलाया। नौशाद खान ने अपने एक साथी को बड़ा कोयला व्यापारी बताकर बातचीत शुरू की। अचानक नंदन को जबरन स्कॉर्पियो में बैठा लिया गया। उसे जान से मारने की धमकी देते हुए रांची ले जाया गया, रास्ते में उसके साथ मारपीट की गई। रांची पहुंचकर नंदन का सोने का चेन, अंगूठी, एटीएम कार्ड छीन लिया गया और 2.7 लाख रुपये की निकासी की गई।   ⏺️ आरोपियों की गिरफ्तारी और जांच की प्रगति नौशाद खान, पिता नूरहसन अंसारी (उम्र 41 वर्ष), निवासी सेन्हा, लोहरदगा (झारखंड) को रांची से गिरफ्तार किया गया। पुलिस को जानकारी मिली कि नौशाद रांची में छिपा हुआ है। पुलिस अधीक्षक शशि मोहन सिंह के निर्देशन और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनिल सोनी की मॉनिटरिंग में कार्रवाई की गई। उप निरीक्षक संतोष तिवारी की अगुवाई में पुलिस टीम ने रांची पहुंचकर नौशाद खान को गिरफ्तार किया। पूछताछ में नौशाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर लूट की घटना को अंजाम देने की बात कबूल की। ⏺️ लूट का सामान और अन्य आरोपी नौशाद से लूटी गई रकम से खरीदा गया Vivo का मोबाइल बरामद किया गया। मामले में अन्य आरोपी अभी भी फरार हैं। पुलिस उनकी तलाश में जुटी है और जल्द ही उन्हें गिरफ्तार करने का दावा कर रही है। ⏺️ पुलिस टीम की सराहनीय भूमिका इस कार्रवाई में थाना प्रभारी कुनकुरी उप निरीक्षक सुनील सिंह, उप निरीक्षक संतोष तिवारी, आरक्षक चंद्रशेखर बंजारे, नंदलाल यादव, और सायबर सेल प्रभारी उप निरीक्षक नसरूदीन अंसारी की अहम भूमिका रही। जशपुर पुलिस की इस सफलता से इलाके में कानून-व्यवस्था को लेकर जनता में विश्वास बढ़ा है। पुलिस का कहना है कि फरार आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार किया जाएगा।  

जशपुर में आज हिंदू सुरक्षा मंच की आक्रोश रैली, राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने की तैयारी

IMG 20241203 115436

जशपुर, 3 दिसंबर 2024 – आज जशपुर नगर में हिंदू सुरक्षा मंच के बैनर तले एक विशाल आक्रोश रैली का आयोजन किया जाएगा। यह रैली दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक महाराजा चौक से कलेक्ट्रेट कार्यालय तक निकाली जाएगी। इस रैली का उद्देश्य बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ विरोध जताना है। हिंदू सुरक्षा मंच के संयोजक एवं सह-संयोजक द्वारा जारी सूचना के अनुसार, रैली के माध्यम से बांग्लादेश में हिंदुओं पर इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हमले, लूटपाट, आगजनी और महिलाओं-बच्चों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आक्रोश जताया जाएगा। रैली के अंत में मंच के प्रतिनिधि राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपेंगे। रैली के मद्देनज़र जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। अतिरिक्त बलों की तैनाती की गई है ताकि रैली के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो। हिंदू सुरक्षा मंच ने जशपुर के नागरिकों से इस रैली में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होकर अपना समर्थन देने की अपील की है।  

शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण: मुस्लिम समुदाय के लिए स्वर्णिम युग का प्रारंभ

IMG 20241202 WA0016

निर्मल कुमार (लेखक आर्थिक,सामाजिक मामलों के स्तम्भकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।) हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने के संवैधानिक अधिकार को पुनः स्पष्ट और सुदृढ़ किया है। यह निर्णय भारतीय संविधान की मूल भावना और लोकतंत्र के तीन स्तंभों—कानून के समक्ष समानता, संवैधानिक सर्वोच्चता और अल्पसंख्यकों की जिम्मेदारी—का प्रभावशाली उदाहरण है। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए, यह निर्णय शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने और समाज के सर्वांगीण विकास में योगदान देने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। यह ऐतिहासिक फैसला केवल संवैधानिक अधिकारों को स्थापित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समुदाय को इस अधिकार का उपयोग करते हुए शिक्षा के माध्यम से अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की प्रेरणा भी देता है। यह समय है कि मुस्लिम समुदाय, अपने इतिहास, वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को समझते हुए, शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाए और इसे सामाजिक सशक्तिकरण का सबसे प्रभावी साधन बनाए। शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति और विकास का मूल मंत्र होती है। इतिहास गवाह है कि कोई भी समुदाय या राष्ट्र तब तक उन्नति नहीं कर सकता, जब तक उसके नागरिक शिक्षित न हों। मुस्लिम समुदाय के पास शिक्षा की समृद्ध परंपरा है। इतिहास में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों से लेकर इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान विज्ञान, चिकित्सा, गणित और खगोल विज्ञान में योगदान देने वाले मुस्लिम विद्वानों तक, शिक्षा की शक्ति ने हमेशा समाज को ऊंचाई प्रदान की है। आधुनिक भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) और अन्य संस्थान समुदाय के लिए गौरव का प्रतीक हैं। इन संस्थानों ने उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करते हुए लाखों छात्रों को समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए तैयार किया है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय इस परंपरा को और आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। आज शिक्षा की भूमिका केवल साक्षरता तक सीमित नहीं है। यह आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का एक शक्तिशाली माध्यम बन चुकी है। मुस्लिम समुदाय को न केवल पारंपरिक विषयों बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा (STEM) और उद्यमिता जैसे आधुनिक क्षेत्रों में अधिक संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए। उन्नत संस्थानों जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज, अनुसंधान केंद्र और प्रौद्योगिकी आधारित विश्वविद्यालयों का निर्माण समय की मांग है। महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देना भी आवश्यक है ताकि समाज के उस हिस्से को सशक्त किया जा सके जो किसी भी प्रगति में बराबर का योगदान दे सकता है। कौशल विकास केंद्र स्थापित करके युवाओं को रोजगार के लिए तैयार किया जा सकता है। मौजूदा विश्वविद्यालयों और स्कूलों को वैश्विक मानकों के अनुरूप आधुनिक बनाना अत्यंत आवश्यक है। अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से छात्रों को नवीनतम तकनीकों और वैश्विक विकास से जोड़ा जा सकता है। भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी से छात्रों और शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय अनुभव और ज्ञान मिलेगा। आज के डिजिटल युग में, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और डिजिटल शिक्षण उपकरण का उपयोग शिक्षा को और अधिक सुलभ और प्रभावशाली बना सकता है। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं और शिक्षा ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इससे यह गारंटी होगी कि किसी भी छात्र की शिक्षा आर्थिक सीमाओं के कारण बाधित न हो। शिक्षा के इस अभियान को सफल बनाने के लिए केवल समुदाय के नेता और बुद्धिजीवी ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। माता-पिता को अपने बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। यह मानसिकता बदलनी होगी कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का साधन है। शिक्षा बच्चों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और समाज में सम्मानजनक स्थान प्रदान करती है। वहीं शिक्षकों को न केवल शिक्षण सामग्री पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि छात्रों को नैतिक, सामाजिक और व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी मजबूत बनाना चाहिए। सामुदायिक संगठन, गैर-सरकारी संस्थान (एनजीओ) और अन्य समूह कार्यशालाओं, करियर काउंसलिंग और कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। ये प्रयास छात्रों और उनके परिवारों को शिक्षा के महत्व और इसके लाभों से परिचित कराने में सहायक होंगे। शिक्षा का महत्व केवल व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रगति तक सीमित नहीं है। यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता का भी साधन है। शिक्षित व्यक्ति अधिक सहिष्णु, विचारशील और समावेशी होता है। मुस्लिम समुदाय यदि शिक्षा को प्राथमिकता देता है, तो यह अन्य समुदायों के साथ संवाद और सहयोग के नए रास्ते खोलेगा। इसके अलावा, शिक्षा उन सामाजिक विभाजनों को भी कम कर सकती है, जो अक्सर गलतफहमियों और पूर्वाग्रहों के कारण उत्पन्न होते हैं। आज का यह निर्णय मुस्लिम समुदाय के लिए एक सुनहरा अवसर है। अब समय आ गया है कि समुदाय अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करे। नए शैक्षिक संस्थानों की स्थापना, उच्च शिक्षा में अधिक भागीदारी, आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास और महिला शिक्षा को प्राथमिकता देना—यह सब मिलकर समुदाय को न केवल प्रगति की ओर ले जाएगा, बल्कि इसे एक आत्मनिर्भर और सशक्त समूह में बदल देगा। यह निर्णय एक आह्वान है कि शिक्षा को सामाजिक और आर्थिक समानता प्राप्त करने का माध्यम बनाया जाए। यह केवल मुस्लिम समुदाय के विकास का मार्ग नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। शिक्षा केवल भविष्य का निर्माण नहीं करती, यह समाज और राष्ट्र की आत्मा को आकार देती है। अब यह समुदाय पर निर्भर करता है कि वह इस अवसर का किस प्रकार उपयोग करता है। शिक्षा के माध्यम से न केवल अपनी पीढ़ियों का भविष्य संवारें, बल्कि भारत की समृद्धि और एकता में भी अपना योगदान दें।

लवाकेरा में अवैध धान परिवहन का पर्दाफाश: प्रशासन का सख्त रुख, सियासी हलचल तेज

IMG 20241201 WA0003

जशपुर, 1 दिसंबर 2024 – कलेक्टर रोहित व्यास के निर्देशन में फरसाबहार के एसडीएम आर.एस. लाल और राजस्व विभाग की टीम ने बड़ी कार्रवाई करते हुए लवाकेरा के पास एक पिकअप वाहन से अवैध रूप से उड़ीसा से लाया गया धान जब्त किया है। वाहन के चालक राजेश साहू द्वारा यह धान सीमावर्ती इलाके से लाया गया था। धान और वाहन को तुरंत तपकरा थाना के सुपुर्द कर दिया गया है। अवैध धान परिवहन का खेल धान खरीदी को लेकर इस वक्त राज्य में एक बड़ा खेल चल रहा है। सरकार द्वारा निर्धारित प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी नीति का फायदा उठाने के लिए किसान, बिचौलिये और मंडी के बीच एक गठजोड़ बन गया है। कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किसान के एक एकड़ खेत मे धान की फसल अधिकतम 15 क्विंटल हो सकती है,इससे ज्यादा नहीं।ऐसे में किसान अपने खेत की फसल के साथ बाहरी धान मिलाकर सरकार को बेचने की कोशिश कर रहे हैं। इस गठजोड़ से सरकारी नीति की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, और राज्य सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद इसे रोकने में सफलता नहीं मिली है। प्रशासन की सख्ती और सियासी दबाव जशपुर जिले में लगातार अवैध धान परिवहन के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि सीमावर्ती राज्यों से बड़े पैमाने पर अवैध धान की तस्करी हो रही है। प्रशासन अब सख्त रुख अपनाए हुए है और ऐसे मामलों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस गड़बड़झाले में सभी राजनीतिक दलों के लोगों की प्रत्यक्ष या परोक्ष संलिप्तता की चर्चा जोरों पर है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, हर दल के लोग इस गठजोड़ का हिस्सा बने हुए हैं, जिससे प्रशासन के लिए चुनौती और बढ़ गई है। सरकारी अमले की मुस्तैदी धान खरीदी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए प्रशासन पूरी तरह से सक्रिय है। सीमावर्ती इलाकों में बने 21 चेकपोस्ट के अलावा भी निगरानी बढ़ा दी गई है, ताकि उड़ीसा,झारखण्ड राज्यों से धान की तस्करी पर रोक लगाई जा सके। क्या सरकार तोड़ पाएगी गठजोड़? इस पूरे मामले ने सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अब देखना होगा कि प्रशासन की यह सख्ती कितनी कारगर साबित होती है और क्या सरकार इस गठजोड़ को तोड़ने में सफल हो पाती है। फिलहाल, लवाकेरा में हुई इस कार्रवाई से अन्य तस्करों में हड़कंप मच गया है।  

पीड़िता को रेपिस्ट फोन पर कहता था – मुझे कोई पकड़ नहीं सकता,एसपी शशिमोहन ने दिया टास्क,विशेष टीम ने यूँ पकड़ा ,,,,

IMG 20241129 WA0011

जशपुर, 29 नवम्बर 2024 – जिले में शादी का झांसा देकर महिला के साथ लंबे समय तक शारीरिक शोषण करने वाले आरोपी को पुलिस ने झारखंड के रांची से गिरफ्तार किया है। यह कार्रवाई पुलिस अधीक्षक शशि मोहन सिंह के निर्देशन और उप पुलिस अधीक्षक भावेश समरथ के नेतृत्व में गठित विशेष टीम ने की। दरअसल,पीड़िता ने जनवरी 2024 में कुनकुरी थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के अनुसार, 2018 में वासिफ अंसारी, निवासी सिमडेगा (झारखंड), से उसकी पहचान हुई थी। वासिफ ने उसे शादी का झांसा देकर 2019 में शारीरिक संबंध बनाए और 2023 तक लगातार शोषण करता रहा। जब पीड़िता ने शादी के लिए दबाव बनाया तो वासिफ बहाने बनाने लगा। इस पर कुनकुरी थाने में आरोपी के खिलाफ धारा 376 (2)(ढ), 493 भादवि. और 3(2-v) एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। शिकायत दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो गया था, जिससे पुलिस को काफी समय तक उसकी तलाश करनी पड़ी। विशेष न्यायालय जशपुर ने आरोपी के खिलाफ स्थाई वारंट जारी किया था। एसपी शशिमोहन सिंह ने सभी फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए थे। उप पुलिस अधीक्षक भावेश समरथ के नेतृत्व में एक विशेष टीम गठित की गई, जिसमें थाना प्रभारी सुनील सिंह, एएसआई मनोज साहू, प्रधान आरक्षक छविकांत पैंकरा, आरक्षक राजेंद्र तिर्की और साइबर सेल प्रभारी नसरूद्दीन अंसारी शामिल थे। ऐसे पकड़ा गया आरोपी: पुलिस टीम को जानकारी मिली कि वासिफ अंसारी झारखण्ड लातेहार के पुंदाग क्षेत्र में छिपा हुआ है। टीम ने वहां पहुंचकर लगातार तलाश की और उसे हिरासत में लिया। आरोपी की उम्र 29 वर्ष है और वह सिमडेगा के ईदगाह मोहल्ला का निवासी है। गिरफ्तारी के बाद उसे न्यायालय में पेश किया गया है। इस सफल कार्रवाई में उप पुलिस अधीक्षक भावेश समरथ और उनकी टीम की सराहनीय भूमिका रही। पुलिस अधीक्षक ने टीम के प्रयासों की प्रशंसा की और कहा कि जिले में अपराधियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयां लगातार जारी रहेंगी।  

जशपुर में अवैध धान परिवहन पर बड़ी कार्रवाई, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन का असर

IMG 20241128 124730

जशपुर,28 नवम्बर 2024 – जिले में धान खरीदी का सीजन शुरू होते ही प्रशासन अवैध धान परिवहन पर सख्त हो गया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन और कड़े निर्देशों का असर अब जमीन पर दिखने लगा है। इसी कड़ी में कुनकुरी पुलिस ने बीती रात एक बड़ा ऑपरेशन चलाकर नेशनल हाइवे पर अवैध धान से भरे ट्रक को पकड़ने में सफलता हासिल की। गश्ती के दौरान पकड़ा गया ट्रक: थाना प्रभारी सुनील सिंह ने बताया कि एसपी शशिमोहन सिंह के निर्देश पर संभावित अपराधों की रोकथाम के लिए लगातार गश्ती की जा रही है। इसी दौरान सूचना मिली कि एक ट्रक में अवैध रूप से धान का परिवहन किया जा रहा है। ट्रक को रोककर पूछताछ करने पर वाहन चालक देवलाल केरकेट्टा, निवासी पुरनानगर, ने बताया कि यह धान जशपुर निवासी विशाल गुप्ता का है। वाहन आयशर 407 (क्रमांक CG14 MB 7244) में लदी 100 बोरी धान के दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जा सके, जिसके बाद तहसीलदार की उपस्थिति में ट्रक और धान को जप्त कर लिया गया। पहले भी हो चुकी है तस्करी पर कार्रवाई: पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह के निर्देश पर इससे पहले भी कुनकुरी पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई की थी, जिसमें ट्रक से धान उतारकर पिकअप वाहन के माध्यम से बिचौलियों द्वारा तस्करी करते हुए पकड़ा गया था। सुशासन की नीतियों का असर: मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में प्रदेश में अवैध गतिविधियों पर कड़ा शिकंजा कसा जा रहा है। धान खरीदी के दौरान तस्करी रोकने के लिए प्रशासन की सक्रियता इस बात का प्रमाण है कि सुशासन की नीतियां जशपुर में प्रभावी रूप से लागू हो रही हैं। पुलिस और प्रशासन के इस सख्त रवैये से तस्करों के बीच हड़कंप मच गया है। आगे भी जारी रहेगा सख्त अभियान: पुलिस और प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि धान खरीदी के पूरे सीजन में इस प्रकार की गश्ती और सघन जांच जारी रहेगी। किसी भी प्रकार की तस्करी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, जिससे क्षेत्र में सुशासन की साख और मजबूत होगी।  

शिलाजीत बेचने के बहाने दिन में करते रेकी फिर रात को पुष्पा बनकर राजा के चंदन चुराते,ऐसे हुआ खुलासा,एक क्लिक पर पढ़िए दो खबर,,

IMG 20241127 170954

जशपुर,27 नवम्बर 2024 – जशपुर पुलिस ने  चोरी के दो अलग-अलग मामले में 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पहला मामला – 24 नवम्बर को आराम निवास जशपुर के निजी बागान से चंदन के पेड़ काटकर चोरी करने वाले अंतरराज्यीय गिरोह के तीन आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आरोपियों के पास से चंदन की लकड़ी और अपराध में इस्तेमाल लोहे की आरी बरामद की गई है। जब्त लकड़ी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब 50 हजार रुपये आंकी गई है। पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह के निर्देश पर थाना प्रभारी रविशंकर तिवारी की टीम ने आरोपियों को पकड़ने के लिए विशेष अभियान चलाया।कोतवाली पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, आरोपियों ने शिलाजीत बेचने के बहाने दिन में रेकी की और रात में चोरी की वारदात को अंजाम दिया। गिरफ्तार आरोपियों में लिकाड़िया उर्फ पिंटू (20) और कर बाबू (55) कटनी (म.प्र.) के निवासी हैं, जबकि तीसरा आरोपी नीवन (18) मंडला (म.प्र.) का रहने वाला है। तीनों आरोपियों ने पुलिस पूछताछ में अपराध कबूल कर लिया है। आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। दूसरा मामला : तपकरा पुलिस ने चोरी की मोटरसाइकिलों के साथ दो आरोपियों को दबोचा तपकरा पुलिस ने रात्रि गश्त के दौरान दो आरोपियों को चोरी की मोटरसाइकिलों के साथ गिरफ्तार किया है। आरोपियों के पास से दो मोटरसाइकिल बरामद की गई हैं। पुलिस ने दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। थाना तपकरा प्रभारी उप निरीक्षक खोमराज ठाकुर के नेतृत्व में पुलिस टीम ने यह कार्रवाई की। पकड़े गए आरोपियों में इलियास बड़ा (32) सुंदरगढ़ (ओडिशा) और प्रेमानंद चौहान (32) तपकरा (जशपुर) के निवासी हैं। इलियास बड़ा को संदिग्ध हालत में एचएफ डीलक्स मोटरसाइकिल के साथ पकड़ा गया, जबकि प्रेमानंद के घर से चोरी की गई दूसरी मोटरसाइकिल बरामद हुई। पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह ने इस कार्रवाई की सराहना करते हुए कहा कि रात्रि गश्त को प्रभावी बनाने के कारण ही इन मामलों का खुलासा हो पाया है। पुलिस का मानना है कि आरोपियों से अन्य चोरी के मामलों में भी सुराग मिल सकते हैं।