वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संवैधानिकता, पारदर्शिता और न्याय की मजबूती

लेखक : निर्मल कुमार

15 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो इस कानून की संवैधानिक वैधता को मजबूत करता है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने पूरे अधिनियम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, हालांकि कुछ विशिष्ट प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाई। यह फैसला वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक हितों की रक्षा को प्राथमिकता देता है, जबकि मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों को बरकरार रखता है। इस लेख में हम इस फैसले के आधार पर वक्फ संशोधन अधिनियम की आवश्यकता और इसके सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और अतिक्रमण के उदाहरण शामिल हैं। यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को सुरक्षित रखते हुए राष्ट्रीय एकता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।

वक्फ संपत्तियां भारत में मुस्लिम समुदाय की एक महत्वपूर्ण धरोहर हैं, जो धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित हैं। देश में लगभग 9.4 लाख वक्फ संपत्तियां पंजीकृत हैं, जिनकी अनुमानित कीमत लाखों करोड़ रुपये है। हालांकि, पुराने वक्फ अधिनियम 1995 में कमियां होने से इन संपत्तियों में भ्रष्टाचार और अतिक्रमण की घटनाएं बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, तेलंगाना में ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा का दुरुपयोग कर 5,000 से अधिक सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया। इसी तरह, कर्नाटक में वक्फ बोर्ड घोटाले में लाखों एकड़ भूमि का गबन हुआ, जहां अधिकारियों ने अवैध हस्तांतरण किए। ये मामले दर्शाते हैं कि बिना सुधार के, वक्फ संपत्तियां समुदाय के बजाय कुछ व्यक्तियों के लाभ का माध्यम बन रही हैं। वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 इन कमियों को दूर करने के लिए लाया गया, और सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसकी जरूरत को प्रमाणित करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता की मजबूत धारणा को दोहराया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होता है कि अधिनियम संवैधानिक प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन करता है, जो वे नहीं कर सके। यह फैसला अधिनियम की वैधता को मजबूत करता है, क्योंकि विधायिका को जनता की जरूरतों का बेहतर ज्ञान होता है। अदालत ने ऐतिहासिक संदर्भ और सामान्य ज्ञान को ध्यान में रखते हुए कहा कि कानून की संवैधानिकता पर संदेह तभी उठाया जा सकता है जब स्पष्ट प्रमाण हों। यह दृष्टिकोण न केवल वक्फ अधिनियम को बल देता है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा करता है। अदालत ने ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को अक्सर दुरुपयोग का माध्यम मानते हुए, इसकी समाप्ति को बरकरार रखा। यह प्रावधान सरकारी भूमि पर बिना उचित दस्तावेज के दावे करने की अनुमति देता था, जिससे सार्वजनिक संपत्तियों को खतरा था। उदाहरणस्वरूप, तेलंगाना में 5,000 से अधिक सरकारी संपत्तियां ‘वक्फ बाय यूजर’ के नाम पर कब्जा की गईं। अधिनियम में इसकी सीमा तय करने से सार्वजनिक संपत्तियां सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित होंगी। अदालत ने सेक्शन 3सी को बरकरार रखा, जो सरकारी संपत्तियों की जांच की अनुमति देता है, हालांकि कुछ उप-प्रावधानों पर रोक लगाई ताकि जांच के दौरान संपत्ति की स्थिति बनी रहे। यह बदलाव भ्रष्टाचार को रोकते हुए न्याय सुनिश्चित करता है। अधिनियम में सभी वक्फों का अनिवार्य पंजीकरण सुनिश्चित किया गया है, जो जवाबदेही, पारदर्शिता और दुरुपयोग की रोकथाम करता है। अदालत ने इस प्रावधान को बरकरार रखा, नोट करते हुए कि 1923 से विभिन्न समितियों ने गैर-पंजीकरण और दुरुपयोग को उजागर किया है।यह बदलाव वास्तविक वक्फ लाभार्थियों की रक्षा करता है, क्योंकि डिजिटल रिकॉर्ड और सार्वजनिक नोटिस से आम लोग आपत्ति दर्ज करा सकेंगे। पहले की अनियमितताएं, जैसे उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड में अवैध बिक्री, अब कम होंगी।

अदालत ने केंद्रीय वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों में 2-4 गैर-मुस्लिम सदस्यों (ज्यादातर पदेन अधिकारी) की शामिली को बरकरार रखा। यह धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि वित्तीय, प्रशासनिक और धर्मनिरपेक्ष निगरानी को मजबूत करता है। यह विविधता, समावेशिता और बेहतर शासन को बढ़ावा देता है, बिना मुस्लिम धार्मिक अधिकारों को कमजोर किए। अदालत ने कहा कि काउंसिल की भूमिका मुख्यतः सलाहकारी है, जो आर्थिक और वित्तीय गतिविधियों को नियंत्रित करती है। अधिनियम में अनुसूचित जनजाति भूमि और पुरातात्विक स्मारकों पर वक्फ दावों को रोकने के प्रावधानों को अदालत ने संवैधानिक दायित्व मानते हुए बरकरार रखा। यह जनजातीय अधिकारों और भारत की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करता है, साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखता है। उदाहरण के लिए, पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया को समानांतर प्रबंधन की समस्याओं से राहत मिलेगी। यह सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक संरक्षण को प्राथमिकता देता है। अदालत ने देखा कि वक्फ ट्रिब्यूनल को विवादों के निर्णय के लिए व्यापक शक्तियां हैं, और अपील हाई कोर्ट तक जा सकती है। इससे वक्फ ‘उपचारहीन’ नहीं रहते; बल्कि एक संरचित न्यायिक उपचार वैध हितों की रक्षा करता है। यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष है, जो पहले की अनियमितताओं को दूर करती है। फैसले में स्पष्ट किया गया कि अधिनियम केवल धर्मनिरपेक्ष प्रशासन (भूमि, संपत्ति, वित्त) को नियंत्रित करता है, न कि धार्मिक अनुष्ठानों को। इसलिए, अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) बरकरार रहते हैं। यह संवैधानिक सिद्धांत से मेल खाता है कि धार्मिक दान के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को नियंत्रित किया जा सकता है।

यह फैसला वक्फ संशोधन अधिनियम को एक सकारात्मक दिशा देता है, जो भ्रष्टाचार को रोकते हुए समुदाय की उन्नति सुनिश्चित करता है। महिलाओं और बच्चों के उत्तराधिकार अधिकारों की रक्षा, डिजिटल प्रक्रियाएं और सरकारी निगरानी से वक्फ संपत्तियां अधिक उत्पादक बनेंगी। निष्कर्षतः, यह अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट का फैसला राष्ट्रीय एकता और न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर है, जो मुस्लिम समुदाय को सशक्त बनाएगा।

नोट: यह लेख एशिया महाद्वीप के सामाजिक,आर्थिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।