जशपुर में मंदिर विवाद के विरोध में बाजार बंद, संगठनों ने प्रशासन से कार्रवाई की मांग

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जशपुर, 8 जनवरी 2025 – जशपुर जिले के बगीचा क्षेत्र में 3 जनवरी को स्थानीय दुर्गा मंदिर में हुए विवाद के बाद क्षेत्रीय संगठनों और स्थानीय नागरिकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इस घटना के विरोध में मंगलवार को बगीचा कस्बे में पूर्ण बंद का आयोजन किया गया, जिसमें व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखीं और आम नागरिकों ने प्रशासन के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की। क्या है विवाद? सूत्रों के अनुसार, दुर्गा मंदिर में नियमित पूजा के दौरान बगीचा निवासी नासिर खान द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया गया, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। इसके बाद कई संगठनों ने इस घटना की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।इस मामले में मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने नासिर खान के कृत्य की निंदा करते हुए किनारा कर लिया है। रैली और मांग पत्र सौंपा विरोध के तहत क्षेत्रीय हिंदू संगठनों ने एक बड़ी रैली निकाली, जिसमें सैकड़ों नागरिकों ने भाग लिया। रैली के दौरान संगठनों ने एसडीएम कार्यालय तक मार्च किया और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में उन्होंने मांग की कि मंदिर में हुए विवाद के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। रैली में मौजूद वक्ताओं ने कहा, “हम अपने धार्मिक स्थानों में शांति और सद्भाव बनाए रखने के पक्षधर हैं। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं से हमारी धार्मिक भावनाओं पर आघात हो रहा है। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।” प्रशासन ने ज्ञापन प्राप्त करने के बाद जांच का आश्वासन दिया है। एसडीएम ने कहा कि घटना की गहराई से जांच की जाएगी और दोषियों पर कानून के अनुसार कार्रवाई होगी। बगीचा कस्बे में आज के बंद का व्यापक असर देखने को मिला। सुबह से ही बाजार की दुकानें बंद रहीं, और सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। व्यापारियों ने बंद को अपना समर्थन देते हुए कहा कि यह बंद धार्मिक भावनाओं के सम्मान और न्याय की मांग के लिए आयोजित किया गया है।  बहरहाल, मंदिर विवाद ने जशपुर जिले में धार्मिक भावनाओं को गहरा प्रभावित किया है। स्थानीय नागरिक और संगठन इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है।  

धार्मिक स्थलों पर विवाद को बढ़ावा देना भारत की एकता के लिए हानिकारक है – मोहन भागवत

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(निर्मल कुमार की कलम से) नई दिल्ली,03 जनवरी 2025:   स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में पुणे में दिए गए एक प्रभावशाली भाषण में देशवासियों से आग्रह किया कि वे विभाजनकारी बयानों को नकारें और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को अपनाएं। ‘विश्वगुरु भारत’ शीर्षक से आयोजित व्याख्यान श्रृंखला के दौरान उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए कि कैसे विभिन्न धर्म और विचारधाराएं आपस में सौहार्दपूर्वक रह सकती हैं। उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद और राजस्थान के अजमेर शरीफ जैसे धार्मिक स्थलों को लेकर उभरे विवादों का संदर्भ देते हुए भागवत ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर विवादों को बढ़ावा देना भारत की एकता के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा, “नफरत और दुश्मनी के आधार पर नए मुद्दे उठाना अस्वीकार्य है। हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए और उन गलतियों को दोहराने से बचना चाहिए, जिन्होंने समाज में विघटन को बढ़ावा दिया है।” विकास और एकता के बीच संतुलन आवश्यक भारत इस समय विकास और विश्व नेतृत्व के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि देश अपनी महत्वाकांक्षाओं और आंतरिक असमानताओं के बीच संतुलन स्थापित करे। भागवत ने स्पष्ट किया कि राम मंदिर का मामला एक लंबे समय से हिंदू आस्था से जुड़ा मुद्दा था, जबकि वर्तमान में उठाए जा रहे अन्य धार्मिक स्थलों के विवाद अधिकतर नफरत और वैमनस्य से प्रेरित हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे मुद्दों को उठाने से न केवल धार्मिक समुदायों के बीच दरार पैदा होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचता है। उन्होंने कहा कि भारत का गौरवशाली अतीत हमेशा से समावेशिता, सहिष्णुता और विभिन्न विचारधाराओं के प्रति सम्मान का समर्थक रहा है। भारत ने अपनी प्राचीन परंपराओं के माध्यम से कट्टरता, आक्रामकता और बहुसंख्यकवाद जैसे विचारों को नियंत्रित किया है। भागवत ने दोहराया कि किसी को भी श्रेष्ठता का दावा नहीं करना चाहिए, बल्कि भारत के सहिष्णु अतीत से प्रेरणा लेकर सभी धर्मों को, विशेषकर अल्पसंख्यकों को, उनके लिए उचित स्थान और सम्मान देना चाहिए। “हर व्यक्ति को अपने विश्वास और पूजा-पद्धति का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।” भारत की ताकत: बहुलतावाद और समावेशिता भारत की ताकत इसकी बहुलतावादी संस्कृति में निहित है, जिसने सदियों से देश को विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के संगम स्थल के रूप में फलने-फूलने का अवसर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत की पहचान बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक जैसे द्वैत से परे है। जब हर व्यक्ति भारत की समग्र पहचान को समझेगा, तब बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की सोच स्वतः समाप्त हो जाएगी। “हम सब एक हैं” का विचार तब एक वास्तविकता बन जाएगा। भागवत ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को भय और पूर्वाग्रह से मुक्त होकर अपने धर्म का पालन करने का अधिकार होना चाहिए। भारत का संविधान भी समानता और धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करता है, और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम इन सिद्धांतों का पालन करें। हिंदू-मुस्लिम एकता और संवाद की आवश्यकता देश में बढ़ते विभाजनकारी माहौल को देखते हुए हिंदू-मुस्लिम एकता और समाज में सद्भावना को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता है। भागवत ने कहा कि दोनों समुदायों को समानताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और मतभेदों को दूर करने के लिए संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए। सोशल मीडिया के दौर में, जहां विभाजनकारी विचार तेजी से फैलते हैं, संयम और समझदारी आवश्यक है। उकसाने वाले बयानों को खारिज करना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति प्रतिबद्धता बनाए रखना, सामूहिक प्रयासों के मुख्य स्तंभ होने चाहिए। शिक्षा और धार्मिक नेतृत्व की भूमिका भागवत ने धार्मिक नेताओं और समुदाय के प्रभावशाली व्यक्तियों की भूमिका पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि धार्मिक नेता संवाद और मेल-मिलाप को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा, शैक्षणिक संस्थानों को भी छात्रों में सहिष्णुता, करुणा और आपसी सम्मान जैसे मूल्यों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। भारत: विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर भागवत ने कहा कि दुनिया भारत की ओर देख रही है, और हमें एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे यह सिद्ध हो कि धार्मिक और वैचारिक विविधता संघर्ष का कारण नहीं, बल्कि शक्ति का स्रोत हो सकती है। यदि भारत आंतरिक मतभेदों को सुलझाकर अपनी एकता को मजबूत करता है, तो वह वैश्विक स्तर पर नेतृत्व कर सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह लक्ष्य केवल सरकार या किसी एक संगठन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक भारतीय नागरिक, समुदाय और संस्था का दायित्व है। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति को अपने विश्वास और पूजा-पद्धति का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।” भागवत का भाषण न केवल भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का आह्वान है, बल्कि यह देशवासियों के लिए एक चेतावनी भी है कि वे विभाजनकारी विचारधाराओं से दूर रहें। यह भाषण भारत के लिए एक दिशा-निर्देश है कि वह अपनी सहिष्णुता और बहुलतावादी परंपराओं के आधार पर विश्वगुरु बनने की अपनी यात्रा को जारी रखे।

कुनकुरी: वनवासी कल्याण आश्रम का 72वां स्थापना दिवस भव्यता के साथ मनाया गया

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जशपुर,28 दिसम्बर 2024// कुनकुरी में वनवासी कल्याण आश्रम के 72वें स्थापना दिवस के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी रही। मुख्य अतिथि के रूप में सत्यप्रकाश तिवारी (अधिवक्ता), यश प्रताप सिंह जूदेव और आर.एस.एस. के कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे। वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना और उद्देश्य वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना 26 दिसंबर 1952 को बालासाहेब देशपांडे द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य भारत के आदिवासी समाज को उनके सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से जोड़ते हुए उन्हें सशक्त बनाना है। यह संगठन वनवासी समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के माध्यम से सशक्त बनाकर उन्हें सनातन संस्कृति और धर्म से जोड़े रखने का कार्य करता है। स्थापना दिवस का भव्य आयोजन कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता, दिवंगत बालासाहेब देशपांडे और अन्य संस्थापकों के तैलचित्र पर दीप प्रज्वलित करके की गई। इसके बाद पारंपरिक लोकनृत्यों का आयोजन हुआ, जिसमें करमा, सरहुल और डंडा नृत्य की प्रस्तुति ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्थानीय लोककला के इस उत्सव में बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों ने पारंपरिक वेशभूषा में भाग लिया। विशेष रूप से बुजुर्ग महिला और पुरुषों का उत्साह देखते ही बनता था। कार्यक्रम में शहर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। मुख्य अतिथि का संबोधन मुख्य अतिथि सत्यप्रकाश तिवारी ने अपने उद्बोधन में वनवासी कल्याण आश्रम की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह संगठन सनातन संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए एक मजबूत स्तंभ है। उन्होंने वनवासी समाज के उत्थान में संगठन की भूमिका की सराहना की। विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति कार्यक्रम में अखिल भारतीय कार्यालय प्रमुख श्रीपाद जी, प्रांतीय सचिव बासुदेव राम यादव, सरहुल समिति के जिला उपाध्यक्ष मैनेजर राम, कल्याण आश्रम अध्यक्ष विश्वनाथ सिदार और लोककला जिलाध्यक्ष जेरकू राम सहित कई प्रमुख जनप्रतिनिधि शामिल हुए। वनवासी कल्याण आश्रम का 72वां स्थापना दिवस इस बात का प्रतीक है कि यह संगठन वनवासी समाज के उत्थान और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इस आयोजन ने स्थानीय समुदाय में सांस्कृतिक एकता और गौरव का भाव जगाया।  

ईसाई समुदाय क्यों सादगी से मना रहा है क्रिसमस? एशिया के बड़े चर्च की क्या है तैयारी? पढ़िए,,

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जशपुर,24 दिसम्बर 2024 – जिले में एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च रोजरी की महारानी गिरिजाघर कुनकुरी में आज ईसा मसीह के जन्मदिन मनाने की तैयारी जोरों से चल रही है।हालांकि इस वर्ष क्रिसमस पर्व को लेकर वह उत्साह नजर नहीं आ रहा है जो बीते वर्षों में देखने को मिला करता था। उल्लेखनीय है कि चर्च की ओर से इस बार का त्यौहार सादगी से मनाने का फरमान सुनाया गया है।इसकी बड़ी वजह भाजपा विधायक श्रीमती रायमुनी भगत के उस कथित विवादित भाषण को बताया जा रहा है,जिसमें उन्होंने ईसा मसीह व ईसाई धर्म के बारे में अमर्यादित टिप्पणी की थी। इस मामले में युवा जयंत लकड़ा ने बताया कि क्रिसमस पर्व को सादगी से मनाने के फैसले के बाद से बाजार की खरीदारी में भारी कमी आई है।सभी ईसाई परिवार अपने संसाधन व पुराने सामानों के साथ क्रिसमस पर्व मनाने जा रहे हैं।चूंकि चर्च में पूजा -पाठ करने समुदाय के लोग बड़ी संख्या में यहां जुटेंगे तो यहां थोड़ी-बहुत रौनक देखने को मिलेगी। काथलिक सभा के विशेष सदस्य डॉ. किशोर मिंज ने कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रभु यीशु के जन्मदिन पर आज 24 दिसम्बर की रात 10 बजे से बिशप इमानुएल केरकेट्टा मुख्य अधिष्ठाता सारे अनुष्ठान कराएंगे।बड़ी संख्या में लोगों के आने की संभावना को देखते हुए चर्च के बाहर पंडाल और स्टेज तैयार किया गया है।

इंटरनेट के युग में मुस्लिम युवाओं के कट्टरपंथीकरण को रोकने में मुस्लिम धर्मगुरुओं की भूमिका

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 निर्मल कुमार (लेखक सामाजिक,आर्थिक मुद्दों के जानकार हैं।यह लेख उनके निजी विचार हैं।) आज इंटरनेट हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, जिससे हम न केवल सूचना प्राप्त करते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इसके जरिए लोग शिक्षा लेते हैं, संवाद करते हैं, और समाज का हिस्सा बनते हैं। हालांकि, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने कई समस्याएं भी खड़ी की हैं। इनमें से एक गंभीर चुनौती है – इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से मुस्लिम युवाओं में कट्टरपंथ का प्रसार। कई अतिवादी संगठन जैसे इस्लामिक स्टेट (ISIS) और अल-कायदा ने इन प्लेटफार्मों का उपयोग कर युवा मुस्लिमों को अपने विचारों से आकर्षित किया है, जिससे वे हिंसक विचारधाराओं की ओर मुड़ जाते हैं। इन संगठनों ने धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कर, इस्लाम के संदेशों को विकृत रूप में प्रस्तुत कर युवाओं को कट्टरपंथी बनने के लिए प्रेरित किया है। कट्टरपंथ का सामना करने में मुस्लिम धर्मगुरुओं का दायित्व इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में मुस्लिम धर्मगुरुओं (उलेमा) और इस्लामी संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। धर्मगुरुओं के पास वह धार्मिक ज्ञान और सामुदायिक प्रभाव होता है, जो युवाओं को सही राह दिखाने और कट्टरपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने के लिए आवश्यक है। उनके पास समुदाय के बीच एक ऐसा विश्वास है, जो युवाओं को सही संदेश देने में सहायक होता है। धर्मगुरुओं का सबसे प्रमुख कार्य यह है कि वे इस्लाम की उन अवधारणाओं की सही व्याख्या करें, जिन्हें आतंकवादी संगठन अपने उद्देश्य के लिए तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। विशेषकर “जिहाद” और “शहादत” जैसे शब्दों का सही अर्थ सामने रखना जरूरी है। असल में, जिहाद का मतलब आत्म-सुधार और समाज की भलाई के लिए संघर्ष करना है, न कि हिंसा फैलाना। धर्मगुरु और इस्लामी विद्वान, कुरान के शांति, सहिष्णुता और आपसी भाईचारे के संदेशों को लोगों तक पहुंचाकर कट्टरपंथ का प्रभाव कम कर सकते हैं। इस्लाम का असली संदेश शांति, समानता और मानवता के प्रति प्रेम का है, जिसे कट्टरपंथी संगठन अपनी सुविधा अनुसार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। धर्मगुरु कुरान की उस आयत पर विशेष जोर दे सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि एक निर्दोष की हत्या पूरी मानवता की हत्या के समान है (कुरान 5:32)। साथ ही, वे पैगंबर मुहम्मद साहब के जीवन से जुड़े किस्सों का उदाहरण देकर भी दिखा सकते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कितनी बार सहिष्णुता, दया और मानवता का संदेश दिया। सोशल मीडिया पर सकारात्मक संवाद की आवश्यकता धर्मगुरुओं को यह समझना चाहिए कि आज के युवा ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर ही सक्रिय रहते हैं। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि धर्मगुरु और इस्लामी संगठन उन ऑनलाइन स्थानों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं, जहां अतिवादी संगठन युवाओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। यदि हम कट्टरपंथ का मुकाबला करना चाहते हैं, तो सोशल मीडिया पर युवाओं के बीच धर्मगुरुओं की एक सक्रिय उपस्थिति होनी चाहिए। इसके लिए धर्मगुरुओं को छोटे वीडियो, ब्लॉग, इन्फोग्राफिक्स और अन्य डिजिटल सामग्री बनानी चाहिए जो इस्लाम के वास्तविक संदेश को सरल और आकर्षक तरीके से युवाओं के सामने रखे। दुनियाभर में कई सफल प्रयास हो चुके हैं, जहां डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर कट्टरपंथ को चुनौती दी गई है। उदाहरण के लिए, यूके में क्विलियम फाउंडेशन कट्टरपंथ के खिलाफ काम कर रहा है और सोशल मीडिया के जरिए युवाओं तक शांति और सहिष्णुता का संदेश पहुंचा रहा है। इसी प्रकार, सऊदी अरब का सकीना कैंपेन सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी विचारों का विरोध कर रहा है, और संयुक्त अरब अमीरात में सवाब सेंटर आईएसआईएस के प्रचार का सामना कर रहा है। ऐसे प्रयासों को और भी बढ़ाने की जरूरत है, ताकि युवाओं को उनके भाषा और संस्कृति के अनुसार उचित और संतुलित जानकारी मिल सके। कट्टरपंथ के सामाजिक कारण और धर्मगुरुओं की भूमिका कट्टरपंथ केवल धार्मिक मुद्दा नहीं है, इसके कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारण भी होते हैं। बेरोजगारी, भेदभाव, गरीबी, शिक्षा की कमी और समाज में हाशिए पर होने का अहसास, ये सब कारण हैं जिनकी वजह से युवा कट्टरपंथ की ओर खिंच सकते हैं। धर्मगुरुओं और इस्लामी संगठनों को चाहिए कि वे इन मुद्दों को भी ध्यान में रखें और युवाओं को केवल धार्मिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि समाज में सशक्त बनाने के अवसर भी प्रदान करें। धर्मगुरुओं और स्थानीय मस्जिदों के साथ-साथ समुदायिक केंद्रों को भी चाहिए कि वे युवाओं के लिए रोजगार, शिक्षा और मानसिक सहयोग की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। मस्जिदों को एक ऐसा स्थान बनाया जाना चाहिए जहां पर युवाओं को मेंटरशिप, करियर काउंसलिंग और मनोरंजन के अवसर मिल सकें। इससे न केवल उनका आत्म-सम्मान बढ़ेगा, बल्कि वे कट्टरपंथी विचारों से भी दूर रहेंगे। इसके साथ ही, इस्लामी संगठनों और धर्मगुरुओं को सरकारी एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। एक समग्र डी-रेडिकलाइजेशन रणनीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें युवाओं के लिए रोजगार, मानसिक स्वास्थ्य और समाज में अपनापन महसूस कराने की योजनाएं शामिल हों। अंतर-धार्मिक संवाद का आयोजन भी कट्टरपंथ का प्रभाव कम करने में सहायक हो सकता है। इससे विभिन्न समुदायों के बीच समझ और सौहार्द्र बढ़ता है, जो अतिवादी संगठनों के नकारात्मक संदेशों का सामना करने में सहायक हो सकता है। धर्मगुरुओं की भूमिका: भविष्य की ओर एक कदम मुस्लिम युवाओं का सोशल मीडिया के जरिए कट्टरपंथ की ओर बढ़ना एक गंभीर चुनौती है। इसे केवल कानून और सुरक्षा एजेंसियों के बल पर नहीं रोका जा सकता। इसके लिए धार्मिक और सामुदायिक नेताओं को जिम्मेदारी के साथ आगे आना होगा। प्रामाणिक इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार करके, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर और युवाओं के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करके, मुस्लिम नेता और धर्मगुरु युवा मुस्लिमों को कट्टरपंथी विचारधाराओं से दूर रखने में मदद कर सकते हैं। यह लड़ाई केवल आतंकवाद को रोकने की नहीं है, बल्कि मुस्लिम समाज के सुरक्षित भविष्य की रक्षा करने की भी है। इससे युवा मुस्लिम समाज का सकारात्मक हिस्सा बन सकेंगे और एक बेहतर और समझदारी से भरी दुनिया में अपनी जगह बना सकेंगे।

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का बड़ा बयान, नक्सलवाद से बड़ा खतरा है धर्मांतरण, बस्तर और जशपुर को लेकर किया बड़ा खुलासा

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कांकेर,04 नवंबर2024 – बागेश्वर धाम सरकार के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने रविवार को कांकेर में धर्मांतरण को लेकर एक बड़ा और कड़ा बयान दिया। धीरेन्द्र शास्त्री ने इसे नक्सलवाद से भी गंभीर खतरा बताते हुए कहा कि धर्मांतरण का निशाना केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरा समाज है। उन्होंने धर्मांतरण को रोकने के लिए देशभर में पदयात्रा करने का संकल्प लिया है और जल्द ही छत्तीसगढ़ के बस्तर और जशपुर में कथावाचन करने की घोषणा की है। मीडिया से बात करते हुए धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी क्षेत्रों में आज भी भोले-भाले लोगों को लालच देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जहां अन्य समुदायों में एकता है, वहीं हिन्दू समाज में एकजुटता की कमी है, जिसे दूर करने के लिए वह कार्य कर रहे हैं। उनका उद्देश्य हिन्दू समाज को एकत्रित करना है ताकि धर्मांतरण जैसी समस्याओं का सामना किया जा सके। इसके साथ ही, उन्होंने मिशनरियों के स्कूलों की शिक्षा के बजाय गुरुकुल शिक्षा पद्धति अपनाने की सलाह दी। कांकेर में धर्म वापसी, 11 परिवारों ने लिया हिन्दू धर्म में लौटने का संकल्प पंडित धीरेन्द्र शास्त्री के कार्यक्रम के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना भी घटी, जब मिशनरी समाज में शामिल हो चुके 11 परिवारों ने वापस हिन्दू धर्म में लौटने का संकल्प लिया। इस धर्म वापसी से धीरेन्द्र शास्त्री के मिशन को और भी बल मिला। पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने अपने कांकेर से पुराने संबंधों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वह कई साल पहले कांकेर में लंबा समय बिता चुके हैं और यहां के पहाड़ा वाली मां भुनेश्वरी के दरबार में उनकी आस्था गहरी है। आने वाले समय में बस्तर और जशपुर में होंगे कथावाचन,देशभर में करेंगे पदयात्रा धर्मांतरण को रोकने के संकल्प के तहत पंडित धीरेन्द्र शास्त्री जल्द ही बस्तर और जशपुर में भी कथावाचन करेंगे। उन्होंने कहा कि ये क्षेत्र उनकी प्राथमिकता में हैं, जहां वह धर्मांतरण की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करेंगे और लोगों को धर्मांतरण से बचने के लिए प्रेरित करेंगे। पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने धर्मांतरण को रोकने के लिए देशभर में पदयात्रा करने की घोषणा की है। उनका मानना है कि यह एक सामाजिक आंदोलन है, जिसे समाज के सभी वर्गों का समर्थन चाहिए। उन्होंने कहा, “नक्सलवाद से भी ज्यादा खतरनाक धर्मांतरण है, इसे रोकना हमारी प्राथमिकता है।” इस कड़े और दृढ़ संकल्प के साथ धीरेन्द्र शास्त्री का “मिशन अगेंस्ट धर्मांतरण” न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में हिन्दू समाज को जोड़ने और धर्मांतरण के खिलाफ एकजुट करने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है।