कुनकुरी खेल मैदान में ऐसे मनाया गया स्वतंत्रता दिवस,मुख्यमंत्री का संदेश पढ़ा गया, प्रभात फेरी और सांस्कृतिक कार्यक्रम ने मोहा मन

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  कुनकुरी,16 अगस्त 2025 – स्वतंत्रता दिवस का पर्व इस वर्ष कुनकुरी में ऐतिहासिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया गया। नगर के खेल मैदान में आयोजित मुख्य समारोह में मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी एवं समारोह की मुख्य अतिथि श्रीमती कौशल्या साय ने ध्वजारोहण कर तिरंगे को सलामी दी। इस अवसर पर उनकी बड़ी बहन एवं जनपद पंचायत अध्यक्षा श्रीमती सुशीला साय विशेष रूप से उपस्थित रहीं। ध्वजारोहण के बाद श्रीमती कौशल्या साय ने मंच से मुख्यमंत्री का जनता के नाम संदेश पढ़ा। इससे पूर्व नगर के सभी स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने प्रभात फेरी निकालकर शहर का भ्रमण किया। प्रभात फेरी का समापन जय स्तंभ चौक पर हुआ, जहां नगर पंचायत अध्यक्ष श्री विनयशील ने परंपरानुसार जय स्तंभ पर माल्यार्पण कर शहीद स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी। जय स्तंभ उन वीर बलिदानियों की स्मृति का प्रतीक है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजादी दिलाई।   प्रभात फेरी के बाद खेल मैदान में मुख्य समारोह आयोजित हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि श्रीमती कौशल्या साय, जनपद अध्यक्ष श्रीमती सुशीला साय, नगर पंचायत अध्यक्ष श्री विनयशील सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं ग्रामीण उपस्थित रहे। कार्यक्रम में बच्चों ने देशभक्ति से ओतप्रोत गीत, नृत्य और रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं, जिसने सभी का मन मोह लिया। कार्यक्रम का संचालन अरविंद मिश्रा ने किया। स्वतंत्रता दिवस समारोह में पूरा वातावरण देशभक्ति के रंग से सराबोर रहा।

ग्राम पंचायत भंडरी में धूमधाम से मनाया गया स्वतंत्रता दिवस, नशामुक्ति का लिया संकल्प

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कुनकुरी/भंडरी,16 अगस्त 2025 – ग्राम पंचायत भंडरी में 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया गया। पंचायत भवन प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत सरपंच श्री वाल्टर कुजूर और उपसरपंच श्रीमती कविता मिंज की अगुवाई में भारत माता की तस्वीर पर माल्यार्पण और ध्वजारोहण से हुई। इस अवसर पर वार्ड पंच, वरिष्ठजन, महिला-पुरुष सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे। समारोह में सरपंच वाल्टर कुजूर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत आज विभिन्न विचारधाराओं के बीच संघर्ष का सामना कर रहा है, लेकिन जब बात देश की एकता और अखंडता की आती है तो पूरा देश एकजुट होकर हर परिस्थिति का सामना करता है। उन्होंने हाल ही में कश्मीर में निर्दोष नागरिकों की हत्या और उसके बाद पाकिस्तान से हुए संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि पूरा देश सरकार और भारतीय सेना के साथ खड़ा रहा। सरपंच ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों को नमन करते हुए उनकी कुर्बानियों को याद किया। उपसरपंच श्रीमती कविता मिंज ने अपने संबोधन में स्वतंत्रता आंदोलन में महिला क्रांतिकारियों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भंडरी पंचायत के गांवों में बढ़ती शराबखोरी पर चिंता व्यक्त की और सभी ग्रामीणों को नशा छोड़ने तथा समाज को नशामुक्त बनाने का संकल्प लेने की अपील की। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में शासन की योजनाओं और बिहान समूह की सराहना करते हुए महिलाओं से इनसे जुड़ने का आग्रह किया। कार्यक्रम के दौरान रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने वातावरण को देशभक्ति से सराबोर कर दिया। अंत में सभी ग्रामीणों ने मिलकर गांव को नशामुक्त बनाने का संकल्प लिया।

विशेष लेख : देवबंद और स्वतंत्रता संग्राम: भारतीय देशभक्ति का एक विस्मृत अध्याय

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लेखक : निर्मल कुमार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समृद्ध ताने-बाने में, औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध कई स्वर एक साथ उठे, कुछ हथियारों के साथ, कुछ विचारों के साथ, और कई अटूट नैतिक विश्वास के साथ। इनमें, उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्ध इस्लामी मदरसे, दारुल उलूम देवबंद की भूमिका एक शक्तिशाली, फिर भी अक्सर उपेक्षित अध्याय है। ऐसे समय में जब भारत के धार्मिक संस्थानों से अलग-थलग रहने की उम्मीद की जाती थी, देवबंद न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में उभरा, बल्कि उपनिवेश-विरोधी प्रतिरोध के एक राजनीतिक केंद्र के रूप में भी उभरा। इसके विद्वानों और अनुयायियों का योगदान, जो गहरे इस्लामी मूल्यों पर आधारित है, फिर भी एक बहुलवादी, स्वतंत्र भारत के विचार के लिए प्रतिबद्ध है, भारतीय मुसलमानों के देशभक्ति के जोश का प्रमाण है। देवबंद की विरासत पर पुनर्विचार केवल ऐतिहासिक न्याय के बारे में नहीं है; यह राष्ट्रीय एकता की विस्मृत भावना को पुनः प्राप्त करने के बारे में है।   1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कुछ ही वर्षों बाद, 1866 में स्थापित, दारुल उलूम देवबंद, औपनिवेशिक दमन के प्रति एक प्रतिक्रिया मात्र नहीं था, बल्कि यह एक वैचारिक अवज्ञा का कार्य था। जहाँ कई लोग अंग्रेजों को एक अदम्य शक्ति मानते थे, वहीं देवबंद के संस्थापकों का मानना था कि धार्मिक पहचान की रक्षा को राष्ट्र की स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता। परिणामस्वरूप, यह संस्था धार्मिक शिक्षा और राजनीतिक चेतना का एक अनूठा संगम बन गई।   देवबंद से उभरे सबसे प्रमुख व्यक्तियों में मौलाना महमूद हसन भी थे, जिन्हें प्यार से शेखुल हिंद के नाम से जाना जाता था। उनका जीवन राष्ट्रीय स्वतंत्रता के विचार से अभिन्न रूप से जुड़ा था। उन्होंने रेशमी रूमाल तहरीक (रेशमी पत्र आंदोलन) का नेतृत्व किया, जो भारत में ब्रिटिश-विरोधी ताकतों और क्रांतिकारी समूहों के साथ सहयोग करने का एक भूमिगत प्रयास था। अंग्रेजों द्वारा उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद माल्टा में निर्वासन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने आंदोलन को खामोश नहीं किया, बल्कि भारत के मुस्लिम समुदाय, खासकर युवा मौलवियों और छात्रों के बीच, और अधिक प्रतिरोध को भड़काया। देवबंद का प्रभाव गुप्त गतिविधियों से कहीं आगे तक फैला हुआ था। इसने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो स्वतंत्रता-पूर्व भारत के सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम राजनीतिक संगठनों में से एक था। मुस्लिम लीग, जो विभाजन की वकालत करती थी, के विपरीत, जमीयत ने खुद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जोड़ लिया और धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के खिलाफ दृढ़ता से खड़ी रही। वास्तव में, जमीयत की स्थिति इस्लामी शिक्षाओं में निहित थी, जो एकता (वहदत) और न्याय (अदल) पर जोर देती थी, जो उस समय की अलगाववादी राजनीति के लिए एक नैतिक प्रति-कथा प्रस्तुत करती थी।   कई देवबंदी विद्वानों ने महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रवादी नेताओं के साथ मिलकर अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा में भाग लिया। देवबंद के एक और कद्दावर व्यक्ति मौलाना हुसैन अहमद मदनी न केवल ब्रिटिश शासन के मुखर विरोधी थे, बल्कि समग्र राष्ट्रवाद (मुत्तहिदा कौमियात) के भी प्रबल समर्थक थे। उनका तर्क था कि सभी भारतीय: हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलकर एक राष्ट्र हैं और उन्हें औपनिवेशिक उत्पीड़कों के खिलाफ सामूहिक रूप से उठ खड़ा होना चाहिए। इस वैचारिक प्रतिबद्धता की एक कीमत चुकानी पड़ी। देवबंदी विद्वानों को अंग्रेजों द्वारा अक्सर गिरफ्तार किया जाता था, प्रताड़ित किया जाता था और उन पर निगरानी रखी जाती थी। उनके संस्थानों को परेशान किया जाता था और उनके आंदोलनों को दबा दिया जाता था। फिर भी, उनका संकल्प कभी नहीं डगमगाया। उनकी कक्षाएँ शिक्षा और राजनीतिक जागृति के स्थान दोनों बन गईं। उनके उपदेशों में न केवल ईश्वर की, बल्कि गांधी, नेहरू और आज़ाद की भी चर्चा होती थी। उनका विश्वास दुनिया से पीछे हटने का नहीं, बल्कि उसे बदलने की प्रेरणा था।   भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में, दारुल उलूम देवबंद और उसके विद्वानों का योगदान सम्मान के योग्य है। उन्होंने उपनिवेशवाद को केवल विरोध के माध्यम से ही नहीं, बल्कि एक सतत बौद्धिक और आध्यात्मिक प्रतिरोध के माध्यम से चुनौती दी, जिसने मुस्लिम और भारतीय होने के अर्थ को नए सिरे से परिभाषित किया। देवबंद की यह कहानी हमारी युवा पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक है कि भारतीय मुसलमान हमेशा से स्वतंत्रता और न्याय के संघर्ष में सबसे आगे रहे हैं। जब हम अपनी स्वतंत्रता के नायकों का सम्मान करते हैं, तो हमें उस धर्म-मंच को नहीं भूलना चाहिए जिसने सत्ता के सामने सच बोला, उस मदरसे को नहीं भूलना चाहिए जिसने शहीदों को जन्म दिया, और उस आस्था को नहीं भूलना चाहिए जो स्वतंत्रता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली।

कौन थे संविधान निर्माण में मुस्लिम दूरदर्शी? मिलिए ऐसे समावेशी भारत के वास्तुकारों से

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लेखक:निर्मल कुमार भारतीय संविधान का निर्माण केवल एक विधायी प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि यह विविध समुदायों के बीच एक नैतिक अनुबंध था, जो उपनिवेशवाद की साझा पीड़ा और एक संप्रभु, समावेशी राष्ट्र के साझा स्वप्न से जुड़ा था। ऐसे समय में जब उपमहाद्वीप विभाजन और एकता के चौराहे पर खड़ा था, कई मुस्लिम नेताओं ने सांप्रदायिक अलगाव के बजाय संवैधानिक लोकतंत्र का मार्ग चुना। संविधान सभा में बैठे इन दूरदर्शी लोगों ने धर्मनिरपेक्षता, न्याय और समान अधिकारों को प्रतिष्ठित करने वाले एक कानूनी ढाँचे को आकार देने में मदद की। निष्क्रिय भागीदार होने से कहीं आगे, वे एक आधुनिक, बहुलतावादी भारत के सक्रिय निर्माता थे। उनका योगदान हमें याद दिलाता है कि भारत की अवधारणा कभी किसी एक धर्म या विचारधारा से नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और एकता के लिए प्रतिबद्ध विचारों के एक गठबंधन से बनी थी। इन दूरदर्शी लोगों में सबसे प्रमुख थे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, जो एक विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। संविधान सभा में उनकी उपस्थिति प्रतीकात्मक और महत्वपूर्ण दोनों थी। एक कट्टर मुसलमान और कट्टर राष्ट्रवादी, आज़ाद ने लंबे समय से द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को खारिज किया था। अपने भाषणों में, उन्होंने दोहराया कि भारत का भाग्य धार्मिक अलगाव पर नहीं, बल्कि साझा इतिहास, पारस्परिक सम्मान और एक साझा भविष्य पर आधारित हो सकता है। आज़ाद की बौद्धिक गंभीरता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता ने संविधान के कई प्रमुख प्रावधानों को प्रभावित किया। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 25 और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले अनुच्छेद 30 का पुरजोर समर्थन किया। ये केवल संवैधानिक धाराओं से कहीं अधिक, विशेष रूप से उन मुसलमानों के लिए नैतिक आश्वासन थे जिन्होंने विभाजन के बाद भारत में रहने का विकल्प चुना था।आज़ाद ने भारत की शिक्षा नीति को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की नींव रखी और सभी जातियों व समुदायों में वैज्ञानिक सोच और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया। उनके लिए, किसी राष्ट्र की प्रगति केवल संवैधानिक आदर्शों पर नहीं, बल्कि प्रबुद्ध नागरिकों पर निर्भर करती है। उन्होंने एक बार कहा था, “दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है।” संविधान सभा में एक और महत्वपूर्ण मुस्लिम हस्ती बेगम ऐज़ाज़ रसूल थीं, जो इस ऐतिहासिक संस्था का हिस्सा बनने वाली एकमात्र मुस्लिम महिला थीं। उनकी उपस्थिति ने ही रूढ़िवादिता को चुनौती दी और एक गहरे पितृसत्तात्मक समाज में मौजूद बाधाओं को तोड़ा। बेगम रसूल लैंगिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की प्रबल समर्थक थीं। उनकी आवाज़ ने एक एकीकृत चुनाव प्रणाली बनाने के संकल्प को मज़बूत किया, जो आज भी भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ बनी हुई है। असम के पूर्व प्रधानमंत्री सैयद मोहम्मद सादुल्लाह एक अन्य प्रमुख व्यक्ति थे जिनकी अंतर्दृष्टि ने संघीय और अल्पसंख्यक हितों के बीच संतुलन बनाने में मदद की। नागरिकता और अल्पसंख्यक सुरक्षा उपायों पर बहस में उनके हस्तक्षेप ने भारत के बहुलवादी स्वरूप की परिपक्व समझ को प्रतिबिंबित किया। उन्होंने कानूनी समानता और सामाजिक समरसता पर ज़ोर दिया, विशेषाधिकारों की नहीं, बल्कि ऐसे संरक्षण की वकालत की जिससे हर भारतीय, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, फल-फूल सके। ये मुस्लिम नेता अलग-थलग आवाज़ें नहीं थीं। वे मुस्लिम देशभक्ति के उस व्यापक परिवेश का हिस्सा थे जो इस विचार को खारिज करता था कि धर्म राष्ट्रीय निष्ठा का निर्धारण करे। आज़ादी से पहले और बाद के वर्षों में, जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों और खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे व्यक्तियों (हालांकि संविधान सभा में नहीं) ने भारत की एकता और संवैधानिक मूल्यों का पुरज़ोर समर्थन किया। उनकी सामूहिक उपस्थिति सांप्रदायिक दुष्प्रचार का खंडन और भारत के लोकतांत्रिक भविष्य में विश्वास की पुनः पुष्टि थी। भारतीय संविधान के निर्माण पर विचार करते हुए, हमें उन मुस्लिम नेताओं को अवश्य याद करना चाहिए जो इसके निर्माण में अग्रणी भूमिका में रहे, किसी समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में नहीं, बल्कि एक राष्ट्र के दूरदर्शी के रूप में। उनकी विरासत केवल संविधान के पन्नों में ही नहीं, बल्कि उन अधिकारों और स्वतंत्रताओं में भी समाहित है जिनका हम आज आनंद लेते हैं। ये कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि आधुनिक भारत की नींव सभी धर्मों के लोगों के हाथों रखी गई थी। संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह उन पुरुषों और महिलाओं के साहस, दूरदर्शिता और देशभक्ति का प्रमाण है जिन्होंने विभाजन के बजाय एकता को चुना। और उस पवित्र सभा में, मुस्लिम आवाज़ हाशिये से नहीं, बल्कि भारत के हृदय से गूंजी।

स्वतंत्रता दिवस पर जीके साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटी सेंटर कुनकुरी में भव्य आयोजन

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मुख्य अतिथि संतोष चौधरी और विशिष्ट अतिथि अजय मूंदड़ा ने फहराया तिरंगा, डॉ. ग्रेस ने दिया समाज को सजग रहने का संदेश कुनकुरी,16अगस्त 2025 – जीके साइकोथेरेपी एंड रिहैबिलिटी सेंटर कुनकुरी में 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूमधाम और देशभक्ति की भावना के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सेंटर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें इलाजरत बच्चे, उनके अभिभावक और नगर के गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए।   अतिथियों ने की भारत माता की पूजा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संतोष चौधरी और विशिष्ट अतिथि अजय मूंदड़ा ने सेंटर की बालिका नीति के साथ भारत माता की पूजा की और ध्वजारोहण कर राष्ट्रगान गाया गया। संस्था की डायरेक्टर डॉ. ग्रेस कुजूर ने सभी आगंतुकों का स्वागत परंपरागत तरीके से आजादी का टीका और बैज लगाकर किया।   आजादी के बदलते मायने बताए मुख्य अतिथि संतोष चौधरी ने स्वतंत्रता संग्राम के किस्से सुनाते हुए वर्तमान समय में आजादी के बदलते मायनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता केवल शासन से मुक्ति का नाम नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के निर्वहन का भी दायित्व है। विशिष्ट अतिथि अजय मूंदड़ा ने कहा कि भारत की एकता और अखंडता बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। उन्होंने देशभक्ति गीत प्रस्तुत कर उपस्थित जनों को भावविभोर कर दिया।   मानसिक स्वास्थ्य और नशाखोरी पर चिंता कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था की डायरेक्टर डॉ. ग्रेस कुजूर ने कहा कि आजादी के बाद से सरकारों ने लगातार विकास कार्य किए हैं, लेकिन बढ़ते बोझ और घटते जल-जंगल-जमीन ने इंसानों के जीवन को प्रभावित किया है। परिवारों में मुखिया बच्चों की मानसिक स्थिति और व्यवहार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे, जिसके कारण मानसिक रोग बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज में फैलती नशाखोरी युवाओं के साथ-साथ बुजुर्गों के जीवन को भी खोखला कर रही है, जो समाज को कमजोर बना रही है। इस पर घर-परिवार और गांव-समाज में चर्चा करने की आदत डालनी होगी।   देशभक्ति गीत से गूंजा परिसर   अपने उद्बोधन के अंत में डॉ. ग्रेस ने “प्यारा हिंदुस्तान, मेरा प्यारा हिंदुस्तान” गीत प्रस्तुत किया, जिसने पूरे परिसर को देशभक्ति की भावना से सराबोर कर दिया।

स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया, परेड की सलामी ली और पौधारोपण कर दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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जशपुरनगर, 15 अगस्त 2025/ राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आजादी का तिरंगा फहराया और उनके गृहजिले में स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने तिरंगा फहराया। जिला मुख्यालय जशपुर में 79वां स्वतंत्रता दिवस समारोह देशभक्ति और हर्षोल्लास के साथ रणजीता स्टेडियम में आयोजित हुआ। मुख्य अतिथि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने ध्वजारोहण कर परेड की सलामी ली और मुख्यमंत्री का स्वतंत्रता दिवस संदेश वाचन किया। उन्होंने कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के साथ परेड का निरीक्षण किया तथा शांति के प्रतीक रंगीन गुब्बारे उड़ाए। समारोह में 13 प्लाटूनों ने हिस्सा लिया, जिसका नेतृत्व मुख्य परेड कमांडर अमरजीत खूंटे ने किया। मंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों के परिजनों से भेंट कर उन्हें शॉल और श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया। विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों ने बैंड, सामूहिक व्यायाम और देशभक्ति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। समारोह में उत्कृष्ट कार्य करने वाले 152 अधिकारी-कर्मचारियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सर्किट हाउस प्रांगण में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अंतर्गत पौधारोपण भी किया गया। मंत्री ने सिंदूरी, विधायक रायमुनी भगत ने सीता अशोक, जिला पंचायत अध्यक्ष सालिक साय ने गुलमोहर,नगर पंचायत अध्यक्ष अरविंद भगत ने नागकेशरी का पौधा लगाया। सभी ने इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। कार्यक्रम में जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, स्कूली बच्चे और बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित रहे। संचालन डी. आर. राठिया एवं जयेश सौरभ टोपनो ने किया।

कुनकुरी में जय स्तंभ पर माल्यार्पण: नपं अध्यक्ष विनयशील ने दी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं,बीते चार महीने की विकास उपलब्धियों और योजनाओं की जानकारी साझा की

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कुनकुरी, 15 अगस्त 2025/ आजादी के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कुनकुरी नगरपंचायत अध्यक्ष विनयशील ने जय स्तंभ चौक पर माल्यार्पण कर नगरवासियों को संबोधित किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने बीते चार महीने में नगर के लिए किए गए कार्यों और विभिन्न विकास योजनाओं की जानकारी दी। इस अवसर पर नगर के गणमान्य नागरिकों में मुरारी लाल अग्रवाल, कैलाश नाथ गुप्ता, खालिद सिद्धकी, सुखदेव साय, दिलीप जैन, एस इलियास, दीपक मिश्रा, विनीत जिंदल, बृजलाल राणा, सुनील अग्रवाल, मयूर गर्ग, नीरज पारीक, संतोष सहाय, गजानन गुप्ता, राजकुमार सिंह, उपेंद्र यादव, नायक मिश्रा, राजकुमार गुप्ता, रामदेव कायता, विवेक बजाज, जयंत लकड़ा उपस्थित रहे। नगर पंचायत के उपाध्यक्ष दीपक केरकेट्टा, पार्षदगण मुक्ति मिंज, नील कुजूर, रुकसाना बानो, अजीत किस्पोट्टा, मुकेश नायक, राजेश ताम्रकार, रोहित सिंह, शीतल बजाज, अनीता गुप्ता, सावित्री चौहान सहित नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष सूदबल यादव और अजेम टोप्पो भी शामिल हुए। कार्यक्रम में कुनकुरी के विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राएं और प्राचार्य, साथ ही प्रशासन की ओर से SDM नंद पांडेय, तहसीलदार प्रमोद पटेल, जनपद CEO प्रमोद सिंह और CMO राजेन्द्र पात्रे उपस्थित रहे।

हॉलीक्रॉस हायर सेकंडरी स्कूल, घोलेंग में भव्य परेड और ध्वजारोहण के साथ मना 79वां स्वतंत्रता दिवस

स्कूल बैंड की धुनों संग मुख्य अतिथि का स्वागत, परेड निरीक्षण कर दी शुभकामनाएं जशपुर, 15 अगस्त 2025/ आजादी के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हॉलीक्रॉस हायर सेकंडरी स्कूल, घोलेंग में राष्ट्रभक्ति और उत्साह से भरा भव्य समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि समाजसेविका श्रीमती अन्ना मिंज का विद्यालय बैंड दल ने मधुर धुनों के साथ परेड ग्राउंड से मंच तक स्वागत किया। मुख्य अतिथि ने परेड का निरीक्षण कर छात्र-छात्राओं के अनुशासन और जोश की सराहना की। तत्पश्चात उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का विधिवत एवं ससम्मान ध्वजारोहण किया। अपने सारगर्भित उद्बोधन में श्रीमती मिंज ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान को नमन करते हुए देश-प्रदेश के नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दीं। कार्यक्रम में विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम, देशभक्ति गीत और कविताएं सभी को भावविभोर कर गईं। समारोह में विद्यालय परिवार, अभिभावक एवं बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे।

स्वतंत्रता दिवस : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने पुलिस परेड ग्राउंड में किया ध्वजारोहण, देखिए तस्वीरों में झलक…

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रायपुर। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर रायपुर पुलिस ग्राउंड में भव्य आयोजन किया गया. कार्यक्रम में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ध्वजारोहण किया. इसके बाद स्वतंत्रता दिवस परेड का निरीक्षण करने के बाद मार्चपास्ट की सलामी ली. स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान 34 पुलिस जवानों को उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया. इस अवसर पर आयोजित मार्चपास्ट में 792 जवान शामिल हुए. जवानों के साथ एनसीसी कैडेट भी मार्चपास्ट में शामिल हुए. इसके बाद अश्वरोही दल ने करतब दिखाया. इसके अलावा हर साल की तरह स्कूली बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने प्रदेशवासियों के नाम अपने उद्बोधन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी वीर सपूतों को नमन करता हूं. छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के 25 वर्ष को छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी है. ऑपरेशन सिंदूर भारत के पराक्रमऔर दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है.

स्वर्गीय एडविन बेकमैन : सादगी, अनुशासन और सेवा का प्रेरणास्पद जीवन

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कुनकुरी 07 अगस्त 2025 – छत्तीसगढ़ एंग्लो-इंडियन समुदाय के वरिष्ठ सदस्य, सरलता और अनुशासन के प्रतीक स्वर्गीय एडविन बेकमैन अब हमारे बीच नहीं रहे। 02 अगस्त 2025 को प्रातः 10:16 बजे उन्होंने रांची स्थित ऑर्किड मेडिकल सेंटर में अंतिम सांस ली। वे 93 वर्ष के थे। स्व. बेकमैन, छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा के प्रथम शासनकाल के दौरान एंग्लो-इंडियन समुदाय से मनोनीत विधायक सुश्री रोजलिन बेकमैन के पूज्य पिताजी थे। उनका जन्म 24 अगस्त 1932 को झारखंड राज्य के लोहरदगा ज़िले में माता स्व. बिन्थसबा और पिता स्व. जे.पी.एस. बेकमैन के परिवार में हुआ था। नौ भाई-बहनों में वे छठे स्थान पर थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नदिया हाई स्कूल, लोहरदगा में हुई। स्व. एडविन बेकमैन अपने जीवन में अत्यंत सादगीप्रिय, समय के पाबंद और अनुशासन में विश्वास रखने वाले व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते थे। वे मिलनसार, सहृदय और सबके प्रिय थे। उनका विवाह 11 फरवरी 1957 को स्व. रेजिना बेकमैन से हुआ। दोनों ने मिलकर कुनकुरी खेल मैदान में एक आदर्श परिवार की नींव रखी। बीते 19 जुलाई को तबीयत बिगड़ने पर उन्हें रांची के ऑर्किड मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया, जहाँ 14 दिनों के इलाज के बाद, अपनी दोनों बेटियों – सुश्री रोजलिन बेकमैन और रोज़ बेकमैन – के सामने वे शांतचित्त विदा हो गए। उनका अंतिम संस्कार 4 अगस्त को कुनकुरी के आज़ाद मोहल्ला स्थित ईसाई कब्रिस्तान में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ किया गया। इस अवसर पर परिवार, रिश्तेदारों और बड़ी संख्या में परिचितों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। स्वर्गीय एडविन बेकमैन अपने पीछे तीन पुत्र, पांच पुत्रियाँ, तीन पोतियाँ और चार पोते का भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनका जीवन हम सभी के लिए सादगी, सेवा और संयम की प्रेरणा है। उनका जाना परिवार और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई संभव नहीं। ख़बर जनपक्ष परिवार इस दुख की घड़ी में बेकमैन परिवार के साथ है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।