*बीते दस दिनों से चोरी हुआ 14 चक्का ट्रक जशपुर के बालाछापर में मिला* *डीजल खत्म होने पर चोर ट्रक को वहीं छोड़कर भाग निकले*

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जशपुर,04 अगस्त 2025 – जशपुर जिले से बड़ी खबर है, बीते दस दिन पहले बलौदाबाजार से चोरी हुआ 14 चक्का ट्रक आखिरकार जशपुर जिले के बालाछापर में मिला। मिली जानकारी के अनुसार ट्रक को चोर काफी दूर तक ले आए थे, लेकिन डीजल खत्म हो जाने पर उसे सड़क किनारे छोड़कर वहां से भाग निकले। ड्राईवर संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि संगठन के द्वारा लगातार प्रयास और निगरानी के चलते ट्रक का लोकेशन पता चला, जिसकी सूचना तत्काल जशपुर पुलिस को दी गई। वहीं पुलिस की मौजूदगी में ट्रक में डीजल डलवाकर वाहन को सुरक्षित जशपुर पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया। वहीं छत्तीसगढ़ ड्राईवर महासंगठन ने इस कार्य में सहयोग देने वाले सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया है तथा भविष्य में भी वाहन चोरी की घटनाओं के खिलाफ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।

बड़ी खबर: बच्चे चप्पल पहनकर स्कूल आए तो प्रिंसिपल ने कहा – भागो यहां से,अभिभावकों में रोष,लोयोला हाईस्कूल का मामला

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रिपोर्ट – संतोष चौधरी जशपुर/कुनकुरी, 2 अगस्त – एक तरफ सरकार हर बच्चे को शिक्षा दिलाने की कोशिश में करोड़ों खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की विधानसभा से ही ऐसी तस्वीर सामने आई है जो न केवल अमानवीय है बल्कि “शिक्षा का अधिकार कानून” (RTE Act, 2009) की खुलेआम अवहेलना है। दरअसल, जशपुर जिले के कुनकुरी स्थित प्रतिष्ठित लोयोला हायर सेकेंडरी स्कूल, जहां से खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पढ़ाई की है, वहां शनिवार को कुछ छात्रों को सिर्फ इसलिए स्कूल से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि वे बारिश में भीगने के कारण जूते नहीं पहन सके और चप्पल पहनकर आ गए थे। बताया गया कि शुक्रवार को स्कूल से लौटते समय बारिश के चलते कई बच्चों के जूते भीग गए। शनिवार को जब वे सूखे नहीं तो मजबूरी में बच्चों ने चप्पल पहनकर स्कूल आना उचित समझा, पर प्रिंसिपल फादर सुशील टोप्पो ने इसे “अनुशासनहीनता” मानते हुए बच्चों को स्कूल परिसर से बाहर निकाल दिया। छात्र हर्ष राम (कक्षा 9वीं) का कहना है – “हमने पहले भी देखा है कि पुराने प्रिंसिपल हमारी परिस्थितियों को समझते थे, लेकिन नए प्रिंसिपल बहुत सख्त हैं। आज हम लोग को बिना पढ़ाई के घर भेज दिए।बहुत खराब लग रहा है।” वहीं अभिभावक विष्णु राम और श्रवण यादव ने इसे बच्चों के शिक्षा के अधिकार का हनन बताया और जिला प्रशासन से मामले में कठोर कार्रवाई की मांग की है। क्या कहता है कानून? “शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009” (Right to Education Act) के तहत कोई भी स्कूल 6 से 14 वर्ष की आयु के किसी भी बच्चे को इस तरह शिक्षा से वंचित नहीं कर सकता। यूनिफॉर्म संबंधी नियमों के पालन में लचीलापन आवश्यक है, विशेषकर जब मामला गरीब परिवारों या प्राकृतिक परिस्थितियों से जुड़ा हो। प्रिंसिपल ने रखा अपना पक्ष इस घटना के बारे में जब हमने लोयोला हाईस्कूल हिंदी मीडियम के प्रिंसिपल फादर सुशील तिग्गा से बात की तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि बिना जूता पहने स्कूल आने वाले छात्रों को बिना आवेदन के क्लास में बैठने नहीं दिया जाता।सुशील ने बताया कि हमने बच्चों को जुलाई तक रियायत दी थी।आज तीन छात्र मेरे पास आए थे,उन्होंने बारिश में जूता भींगने की बात बताई थी तो मैने उन्हें आवेदन देने को कहा था लेकिन उन्होंने आवेदन नहीं दिया और स्कूल से बाहर चले गए। प्रशासन से अपील इस मामले की जानकारी मिलने पर कई अभिभावकों ने कहा – “यह मामला न सिर्फ संवेदनशील है, बल्कि कानूनन भी गलत है। ज़रूरत है कि जिला शिक्षा अधिकारी, बाल संरक्षण आयोग और प्रशासन इस घटना की उच्च स्तरीय जांच कराए और बच्चों को पुनः शिक्षा से जोड़ा जाए। साथ ही स्कूल प्रशासन को निर्देशित किया जाए कि बच्चों की समस्याओं को मानवीय दृष्टिकोण से समझें।”

*कांवड़ यात्रा:* *एक पवित्र यात्रा जो सम्मान और सहिष्णुता की हकदार है*

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निर्मल कुमार भारत के सर्वाधिक पूजनीय तीर्थयात्रा में से एक, कांवड़ यात्रा, देश भर के करोड़ों शिव भक्तों द्वारा की जाने वाली एक वार्षिक आध्यात्मिक यात्रा है। श्रावण के पवित्र महीने में, कांवड़िये कहे जाने वाले ये तीर्थयात्री, नंगे पैर और अक्सर कठोर मौसम में, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गंगा से पवित्र जल इकट्ठा करते हैं और उसे उत्तर भारत के मंदिरों में भगवान शिव को अर्पित करते हैं। यह सदियों पुरानी परंपरा ईश्वर के प्रति गहरी व्यक्तिगत आस्था, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है। फिर भी, हाल के वर्षों में, जिसे भारतीय आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक एकता के एक जीवंत उदाहरण के रूप में मनाया जाना चाहिए, उसे कभी-कभी गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है और अनुचित रूप से निशाना बनाया गया है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि कांवड़ यात्रा कोई खतरा नहीं है, यह एक शांतिपूर्ण, धार्मिक परंपरा है जो सभी समुदायों के सम्मान और समर्थन की हकदार है। हमारे जैसे विविध राष्ट्र में, धार्मिक सहिष्णुता एक विकल्प नहीं, बल्कि एक कर्तव्य है और इस पवित्र समय में, समाज के सभी वर्गों को शांति, धैर्य और आपसी समझ सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।   कांवड़िये कोई राजनीतिक एजेंट या उपद्रवी नहीं हैं, वे आम नागरिक हैं, जिनमें छात्र, मजदूर, किसान, पेशेवर और यहाँ तक कि पूरा परिवार भी शामिल है, जो अपने जीवन से आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए समय निकालते हैं। वे अपने आराध्य के प्रति प्रेम के कारण कष्ट और थकान सहन करते हैं। इस प्रकार की भक्ति आधुनिक समय में विरले ही देखने को मिलती है और इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, आलोचना नहीं। दुर्भाग्य से, कुछ उपद्रवी व्यक्तियों से जुड़ी छिटपुट घटनाओं को अक्सर मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रमुखता से दिखाया जाता है, जिससे अधिकांश लोगों की भक्ति दब जाती है। यह कहानी अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती है कि यह यात्रा सार्वजनिक जीवन को बाधित करती है या सांप्रदायिक तनाव पैदा करती है। सच तो यह है कि ज़्यादातर कांवड़िये अनुशासन का पालन करते हैं, झगड़ों से बचते हैं और प्रार्थना करते हुए चुपचाप चलते हैं।   यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि यात्रा के दौरान, सरकारी अधिकारी यातायात, सफ़ाई और सुरक्षा प्रबंधन के लिए गंभीर प्रयास करते हैं। स्वयंसेवक और गैर-सरकारी संगठन, जिनमें अन्य धार्मिक समुदाय भी शामिल हैं, अक्सर अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं।पानी, भोजन या प्राथमिक उपचार वितरित करके सहायता प्रदान करना। यह भारत की परस्पर सम्मान की गहरी जड़ें जमाए हुए संस्कृति की कहानी कहता है। हालाँकि, कुछ मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में, कांवड़ यात्रा को संदेह या असहजता की दृष्टि से देखा जाता है, जिससे अनावश्यक तनाव पैदा होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है और यात्रा की भावना के साथ घोर अन्याय है। जिस प्रकार अन्य समुदाय अपने त्योहारों और धार्मिक प्रथाओं के सम्मान की अपेक्षा करते हैं, उसी प्रकार कांवड़ियों को भी इसी तरह के सम्मान की आवश्यकता है।   भारत विविध धर्मों का देश है, लेकिन इसके मूल में एक साझा मूल्य निहित है: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व। कोई भी धार्मिक समुदाय तब तक फल-फूल नहीं सकता जब तक वह दूसरे की आस्था की अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिश न करे। सहिष्णुता चयनात्मक नहीं होनी चाहिए। अगर रमज़ान के दौरान लाउडस्पीकर या क्रिसमस के दौरान ईसाई जुलूस स्वीकार्य हो सकते हैं, तो निश्चित रूप से सार्वजनिक सड़कों पर शांतिपूर्वक और क़ानूनी ढंग से आयोजित हिंदू भक्ति के कुछ दिनों का भी स्वागत किया जाना चाहिए। यह प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है; यह करुणा का विषय है। धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ है दूसरों की भक्ति का सम्मान करना, भले ही वह आपकी अपनी न हो। आख़िरकार, शिव, जिनकी कांवड़िये सेवा करते हैं, उन्हें “भोलेनाथ” भी कहा जाता है, यानी वे भोले भगवान जो बिना किसी भेदभाव के सभी को गले लगाते हैं।   हाँ, सभी तीर्थयात्रियों को कानून का पालन करना चाहिए और उकसावे से बचना चाहिए, लेकिन बाकी सभी को भी ऐसा ही करना चाहिए। स्थानीय समुदायों, नागरिक समाज और मीडिया का भी यह समान कर्तव्य है कि वे ज़िम्मेदारी से काम करें और छोटी-छोटी घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से बचें। विभाजन को बढ़ावा देने के बजाय, उन्हें आपसी सम्मान और सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए। भारत की आत्मा उन त्योहारों में निहित है जहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई पड़ोसी एक-दूसरे का हाथ थामकर एक-दूसरे का साथ देते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान भी यही क्रम जारी रहे।   कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भक्ति, एकता और दृढ़ता का जीवंत उदाहरण है। ऐसे समय में जब दुनिया आस्था और पहचान के आधार पर विभाजित होती जा रही है, यह तीर्थयात्रा हमें विश्वास और सहनशीलता की शक्ति का स्मरण कराती है। आइए, कुछ घटनाओं या राजनीतिक उद्देश्यों को इसकी पवित्रता को धूमिल न करने दें। अन्य समुदायों के हमारे भाइयों और बहनों से, यह एक विनम्र अपील है: इस पवित्र यात्रा के दौरान अपने कांवड़िये पड़ोसियों के साथ खड़े रहें। धैर्य रखें, सम्मान करें और दयालु बनें। उनकी भक्ति आपकी भक्ति को कम नहीं करती; उनकी आस्था आपकी आस्था को खतरे में नहीं डालती। जिस प्रकार आप अपने धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान शांति और सम्मान चाहते हैं, उसी प्रकार दूसरों को भी प्रदान करें। भारत तभी मजबूत रह सकता है जब उसके लोग केवल सड़कों और यात्राओं पर ही नहीं, बल्कि दिलों ओ दिमाग से भी एक साथ चलें। (नोट:लेखक निर्मल कुमार आर्थिक,सामाजिक और धार्मिक मुद्दों के जानकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)

बिलासपुर गांव में दबंगई: धार्मिक-सामाजिक अशांति फैलाने और सीसी रोड पर कब्जा कर मकान निर्माण का आरोप, ग्रामीणों ने पट्टा निरस्तीकरण की उठाई मांग

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जशपुर/कुनकुरी, 24 जुलाई 2025/ कुनकुरी विधानसभा अंतर्गत ग्राम पंचायत रेंगारघाट के आश्रित ग्राम बिलासपुर में झूलन राम चौहान पिता स्व. गुरबारु राम द्वारा किए जा रहे मकान निर्माण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि झूलन राम न केवल सीमेंट-कांक्रीट (सीसी) सड़क से सटाकर मकान बना रहा है, बल्कि गांव में धार्मिक और सामाजिक अशांति भी फैला रहा है। ग्रामीणों ने 8 जुलाई 2025 को मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय बगीचा में आवेदन प्रस्तुत कर शासन से मांग की है कि झूलन राम को प्रदाय किया गया आवासीय पट्टा शासन के नियमों के विरुद्ध है और इसे तत्काल निरस्त किया जाए। मुख्यमंत्री को सौंपे गए आवेदन में ग्रामीणों ने जो बिंदु प्रस्तुत किए, वे इस प्रकार हैं— झूलन राम को दिया गया पट्टा गलत तरीके से जारी हुआ है। वह जिस वार्ड का निवासी है, वह प्लॉट उस क्षेत्र में नहीं आता। मकान निर्माण सीसी रोड से बिल्कुल सटा हुआ है और दूसरी ओर सड़क किनारे बोर खनन भी किया गया है, जिससे ग्रामीणों को आवागमन में कठिनाई हो रही है। वहीं गांव में धार्मिक-सामाजिक वातावरण को बिगाड़ने की नियत से लगातार दबाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। ग्राम पंचायत व तहसील स्तर पर शिकायतों के बावजूद झूलन राम किसी भी निर्णय का पालन नहीं कर रहा है। उसके पास पहले से ही ग्राम बिलासपुर में 2.1920 हेक्टेयर और मकरिबन्धा (दुलदुला) में 1.7200 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है। वह हर साल 73 क्विंटल से अधिक धान का उत्पादन कर मंडी में बिक्री करता है। वर्ष 2024-25 में उसने 72 क्विंटल मोटा धान बेचकर सरकार से ₹1,55,892.50 की राशि प्राप्त की है, जो प्रमाण सहित है। टीप स्वरूप तीन और गंभीर आरोप लगाए गए हैं— 1. झूलन राम ने ईब नदी से लगी हुई लगभग 3 एकड़ भूमि पर भी अवैध कब्जा कर रखा है। 2. गांव के स्थायी निवासी और पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ संतोष भगत पर झूठा आरोप लगाया गया है कि वह गांव वालों को भड़का रहा है, जबकि गांव वाले इसके साक्षी हैं कि यह आरोप निराधार है। 3. तहसील और पंचायत स्तर से प्राप्त आवेदन की प्रतिलिपि भी सलग्न की गई है। *आवेदन के बाद की स्थिति:* 8 जुलाई 2025 को यह आवेदन सीएम कैंप बगिया में दिया गया। इस आवेदन पर तहसीलदार स्तर पर जांच हुई है, जिससे डरकर झूलन राम अब सड़क के ऊपर बनाए छज्जे को तोड़ा है, लेकिन सड़क से मकान नहीं हटाया है। ग्रामीणों ने इस बात का प्रमाण खबर जनपक्ष को देते हुए बताया कि खरीफ वर्ष 2024-25 में झूलन ने 72 क्विंटल मोटा धान बेचकर सरकार से ₹1,55,892.50 प्राप्त किया है। ऐसे में उसे भूमिहीन कैसे माना जाए? अब ग्रामीणों ने झूलन की करतूतों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि शासन इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करते हुए तत्काल उक्त विवादित पट्टा को निरस्त करे ताकि ग्राम का सामाजिक सौहार्द बना रह सके। राजनीतिक संदर्भ में भी मामला संवेदनशील उल्लेखनीय है कि यह वही ग्राम बिलासपुर है, जो कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र में आता है और जहां वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बंपर वोट मिला था।भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में यह चिंता है कि यदि शासन को गुमराह कर बड़े किसान को लाभ पहुंचाने वाले इस पट्टे को निरस्त नहीं किया गया, तो इसका सीधा नुकसान पार्टी को आगामी चुनाव में हो सकता है।

बड़ी खबर:रानी दरहा वाटरफॉल बना फिर हादसे का गवाह, तीन युवक बहे – एक की मौत, एक को बचाया गया, तीसरे की तलाश जारी

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छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध प्राकृतिक पर्यटन स्थल रानी दरहा जलप्रपात में रविवार दोपहर बड़ा हादसा हो गया। पिकनिक मनाने पहुंचे तीन युवक पानी के तेज बहाव में बह गए। हादसे के बाद मौके पर पुलिस और रेस्क्यू टीम तुरंत पहुंची। एक युवक को सुरक्षित निकाल लिया गया है, जबकि एक अन्य की मौत हो चुकी है। तीसरे युवक की तलाश अब भी जारी है।   मृतक की पहचान नरेंद्र पाल सिंह छाबड़ा, पिता अवतार सिंह, निवासी मुंगेली के रूप में हुई है। पुलिस ने मृतक का शव बरामद कर लिया है। फिलहाल राहत व बचाव कार्य जारी है और प्रशासन मौके पर पूरी निगरानी बनाए हुए है।   गौरतलब है कि यह हादसा कवर्धा जिले के बोडला ब्लॉक स्थित रानी दरहा जलप्रपात में हुआ है, जहां पूर्व में भी ऐसे हादसे हो चुके हैं। स्थानीय लोग लगातार यहां सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। इस दुखद घटना की पुष्टि एडिशनल एसपी ने भी की है।  

💥 मुख्यमंत्री की जीरो टॉलरेंस नीति पर बम्हनी में भारी पड़ता भ्रष्टाचार, ग्रामीणों ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग 💥

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जशपुर/दुलदुला,13 जुलाई 2025 –  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ‘भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस’ की नीति को उनके ही अधिकारी और पार्टी कार्यकर्ता दुलदुला क्षेत्र में चुनौती दे रहे हैं। ऐसा ही एक मामला बम्हनी पंचायत में सामने आया है, जहां मुख्यमंत्री समग्र विकास योजना के अंतर्गत शंकर घर से महादेव चट्टान तक करीब 5 लाख 20 हजार रुपए की लागत से बनी सीसी रोड की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि यह सड़क पंचायत के एक कथित “ठेकेदार” ने बनाई है, जो पहले कांग्रेस शासनकाल में विधायक यूडी मिंज का करीबी था और अब बीजेपी सरकार में पाला बदलकर नए विधायक और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के इर्द-गिर्द सक्रिय हो गया है। हैरानी की बात यह है कि सरकार बदलती है, लेकिन इंजीनियर नहीं बदलते — जो तब भी काम देख रहा था और आज भी वही जिम्मेदार अधिकारी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क बने महज दो महीने हुए हैं और गिट्टी सीमेंट छोड़ने लगी है, बालू बहने लगा है। न तो निर्माण से पहले जमीन की ठीक से तैयारी की गई, और न ही निर्माण के दौरान वाइब्रेटर जैसी आवश्यक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसका नतीजा – बारिश में सड़क की परतें उधड़ने लगी हैं। सबसे गंभीर आरोप यह है कि दुलदुला विकासखंड में सीसी रोड निर्माण के नाम पर ठेकेदारों और तकनीकी अधिकारियों की मिलीभगत से साइड में मोटी परत और बीच में कमज़ोर सामग्री डालकर लाखों का घोटाला किया जा रहा है। इन रोडों की हालत देखकर “विकास की रफ्तार को राफेल से जोड़ना” ग्रामीणों की नजर में व्यंग्य बन गया है।   जब इस मामले में सरपंच से बात की गई, तो उन्होंने खुद को “टेक्निकल नहीं हूँ” कहकर पल्ला झाड़ लिया। यह जवाब अपने आप में ग्रामीण व्यवस्था की एक बड़ी विडंबना को उजागर करता है। ग्रामीणों की मांग: 1. सड़क निर्माण की उच्चस्तरीय जांच। 2. महादेव चट्टान के पास तत्काल पुलिया निर्माण, जिसे बारिश से ठीक पहले जेसीबी लगाकर खोद दिया गया है, जिससे आने-जाने में परेशानी हो रही है। ग्रामीणों ने पवित्र सावन मास में भगवान शिव के मार्ग पर भ्रष्टाचार की परतें बिछाने वालों के खिलाफ मुख्यमंत्री से स्वयं संज्ञान लेने की अपील की है।

*कुनकुरी थाना में मोहर्रम पर्व को लेकर शांति समिति की बैठक हुई संपन्न*

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जशपुर/कुनकुरी,04 जुलाई 2025 – कुनकुरी थाना प्रभारी राकेश यादव ने मोहर्रम पर्व को लेकर शांतिपूर्वक एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण में मोहर्रम का पर्व मनाने को लेकर कुनकुरी थाना परिसर में स्थानीय शांति समिति का बैठक आयोजित किया। बैठक कुनकुरी S.D.M. नंद जी पांडे एवं S.D.O.P. विनोद कुमार मंडावी के नेतृत्व में किया गया, वहीं थाना प्रभारी राकेश यादव, सब इंस्पेक्टर संतोष तिवारी एवं ए.एस.आई. ईश्वर वारले साथ रहे।   इस कार्यक्रम में मुहर्रम पर्व मनाने को लेकर SDM नंद जी पांडे ने मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि, सभी लोग समाज में भाईचारा कायम रखते हुए मिल जुलकर शांतिपूर्ण तरीके से अपना त्यौहार मनाएं, सभी जगहों पर निर्धारित शर्तों पर तय किए गए रूट से ही ताजिया जुलूस निकालें।   वहीं थाना प्रभारी राकेश यादव ने कहा ताजिया की ऊंचाई अधिक ना करें, ताकि बिजली आदि खंभों से संपर्क न हो और अपना मोहर्रम का पर्व शांतिपूर्वक मनाया जा सके, साथ ही ताजिया जुलूस में नशे का सेवन नहीं करना है, बैठक में दिए गए निर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन करें।   वहीं SDOP विनोद कुमार मंडावी ने कहा कि त्योहार मनाने में किसी भी प्रकार का हथियार नहीं लाएं और किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ,शराब का सेवन करके जुलूस में ना घूमें, डीजे पर भी पूर्ण प्रतिबंध है कम साउंड में शांतिपूर्वक जुलूस निकाले, और उपद्रवियों व असामाजिक तत्वों पर पुलिस की कड़ी निगरानी है। किसी भी विषम परिस्थिति में सूचना तत्काल थाना को उपलब्ध कराएं और बैठक में दिए गए निर्देशों का पालन करें, नियमों का पालन नहीं करने पर दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी।   वहीं बैठक में मौजूद अंजुमन इस्लामिया कमेटी के प्रमुख सदर खालिद सिद्दीकी के नेतृत्व में लोगों ने सर्वसम्मति से इस मोहर्रम पर्व को हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शांतिपूर्ण तरीके से सौहाद्रपूर्ण वातावरण में मनाने का निर्णय लिया।   इस अवसर पर खालिद सिद्दीकी सदर, आद्यशंकर त्रिपाठी, सेराज राही, ताहिर अली, राधेश्याम जिंदल, महबूब आलम मिंटू, राधेश्याम हेड़ा, राजेश ताम्रकार समेत अन्य नगरवासी एवं लोधमा के ग्रामीण शामिल थे।

लेख: दाऊदी बोहरा और भारतीय बहुलवाद का वादा

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निर्मल कुमार भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के बड़े दायरे में, दाऊदी बोहरा समुदाय नागरिक कर्तव्य, व्यावसायिक उद्यम और अन्य धार्मिक समूहों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का एक शांत लेकिन शक्तिशाली उदाहरण है। बोहरा, इस्माइली शिया मुसलमानों का एक उप-संप्रदाय है, जिसकी वैश्विक आबादी लगभग दस लाख है, जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में महत्वपूर्ण संख्या में लोग रहते हैं। वे भारत की विकास कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं- सुर्खियों में आने वाले विवादों के माध्यम से नहीं, बल्कि लगातार, समुदाय-आधारित कार्यों के माध्यम से। भारत में उनकी यात्रा से पता चलता है कि अन्य संस्कृतियों के प्रति खुले रहते हुए भी गहराई से धार्मिक और आधुनिक, गहराई से पारंपरिक और प्रगतिशील और गर्व से भारतीय होना संभव है।   बोहराओं की धार्मिक जड़ें फ़ातिमी मिस्र से जुड़ी हैं और वे 11वीं शताब्दी में भारत चले आए थे। पिछले कुछ वर्षों में, वे न केवल भारतीय समाज में घुलमिल गए हैं, बल्कि उन्होंने अपने निवास वाले क्षेत्रों के आर्थिक और नागरिक परिदृश्य को भी बदल दिया है। कई दाऊदी बोहरा अपनी मज़बूत व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने व्यापार, विनिर्माण और उद्यमिता में उत्कृष्टता हासिल की है। सूरत, उदयपुर और मुंबई ऐसे कुछ शहर हैं जहाँ बोहरा व्यवसाय नेटवर्क फलते-फूलते हैं। ये नेटवर्क ईमानदारी, पारदर्शिता और स्थिरता-मूल्यों पर ज़ोर देते हैं, जिसने उन्हें धार्मिक और भाषाई रेखाओं के पार सम्मान दिलाया है। ऐसे युग में जहाँ धन सृजन को अक्सर सामाजिक ज़िम्मेदारी से अलग रखा जाता है, बोहरा दिखाते हैं कि सांप्रदायिक नैतिकता का पालन करते हुए समृद्ध होना संभव है।   उनकी सामाजिक संस्थाएं मुस्लिम दुनिया में सबसे प्रभावी संस्थाओं में से हैं। मुंबई में स्थित दाई अल-मुतलाक के नेतृत्व में समुदाय का केंद्रीय नेतृत्व संसाधन जुटाने, कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करने और सामूहिक पहचान की मजबूत भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध है। हर बोहरा परिवार को फैज अल-मवैद अल-बुरहानिया (FMB) के माध्यम से प्रतिदिन ताजा, स्वस्थ भोजन मिलता है, जो एक समुदाय है।रसोई पहल। यह कार्यक्रम खाद्य अपशिष्ट को कम करता है, सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है, और परिवारों पर दैनिक बोझ को कम करता है। समुदाय द्वारा संचालित स्कूल और कॉलेज धार्मिक और आधुनिक विषयों में लड़के और लड़कियों दोनों को शिक्षित करते हैं, जिससे शिक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाती है। वास्तव में, बोहराओं में साक्षरता दर-विशेष रूप से महिलाओं में-राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। स्वच्छता, शहरों के सौंदर्यीकरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता भी उतनी ही उल्लेखनीय है। स्वच्छ भारत अभियान और नियमित सफाई अभियान जैसी पहलों में उनकी भागीदारी दर्शाती है कि धार्मिक पहचान और राष्ट्रीय उद्देश्य एक दूसरे से जुड़े हो सकते हैं। उनकी मस्जिदें, जैसे कि मुंबई में हाल ही में पुनर्निर्मित सैफी मस्जिद, न केवल पूजा स्थल के रूप में बल्कि वास्तुशिल्प स्थलों और सामुदायिक गौरव के प्रतीक के रूप में भी काम करती हैं। जीर्णोद्धार में पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का इस्तेमाल किया गया, जो अतीत के प्रति श्रद्धा और भविष्य के प्रति चिंता दोनों को दर्शाता है। ये प्रयास बताते हैं कि समावेशी शहरी नागरिकता को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक पूंजी का कैसे उपयोग किया जा सकता है।   हालांकि, सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि दाऊदी बोहरा किस तरह से एक अलग सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बनाए रखते हैं, बिना अलगाव के। वे गर्व से पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, लिसान अल-दावत बोलते हैं – जो गुजराती, अरबी और उर्दू का मिश्रण है – और अनोखे रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। फिर भी, वे देश के लोकतांत्रिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय रूप से शामिल हैं। सांप्रदायिक हिंसा या कट्टरपंथ से शायद ही कभी जुड़े, बोहरा अपनी सभ्यता, संवाद के लिए प्राथमिकता और संघर्ष के समय शांत कूटनीति के लिए जाने जाते हैं। कानून, अंतर-धार्मिक सम्मान और सामाजिक सद्भाव पर उनका जोर अक्सर विभाजन से चिह्नित देश में धार्मिक सह-अस्तित्व के लिए एक मानक स्थापित करता है।   इस कथा में समुदाय के नेतृत्व ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दिवंगत सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन और उनके उत्तराधिकारी सैयदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन ने राजनीतिक सीमाओं से परे भारत की सरकारों के साथ मधुर संबंध बनाए रखे हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक, भारतीय नेताओं ने समाज और अर्थव्यवस्था में बोहरा नेताओं के योगदान को पहचाना और सराहा है, अक्सर एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के उनके संदेश से प्रेरणा लेते हुए। ये रिश्ते उस विश्वास और आपसी सम्मान को रेखांकित करते हैं जो तब पनप सकता है जब कोई समुदाय असाधारणता की मांग किए बिना राष्ट्र-निर्माण में संलग्न होता है।   धार्मिक समुदायों के आलोचक अक्सर आंतरिक पदानुक्रम और पदीय अधिकार की ओर इशारा करते हैं। ये चिंताएँ खुली और सम्मानजनक चर्चा के योग्य हैं। फिर भी, यह भी सच है कि बोहरा समुदाय ने विकास की इच्छा दिखाई है। बोहरा महिलाओं की बढ़ती संख्या शिक्षा, उद्यमिता और यहाँ तक कि वे सार्वजनिक चर्चा में भाग ले रहीं हैं – ये सब समुदाय के सांस्कृतिक ढांचे के भीतर है। बाहरी दबाव के आगे झुकने के बजाय, बोहरा चुपचाप अपना प्रभाव डाल रहे हैं – भीतर से बदलाव। यह मॉडल पहचान संबंधी चिंताओं और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण के प्रति रचनात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करता है।   व्यापक भारतीय संदर्भ में-जहां मुसलमानों को अक्सर पीड़ितों या खतरों के रूप में एकरूपता में चित्रित किया जाता है, बोहरा समुदाय ऐसे आख्यानों को चुनौती देता है। वे साबित करते हैं कि आस्था को प्रगति में बाधा नहीं बनना चाहिए, और धार्मिक भक्ति संवैधानिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकती है। उनकी जीती-जागती वास्तविकता दर्शाती है कि बहुलवाद केवल एक संवैधानिक वादा नहीं है, बल्कि एक दैनिक अभ्यास है-जिसे अक्सर भव्य इशारों के माध्यम से नहीं, बल्कि नागरिक जिम्मेदारी, आपसी सम्मान और नैतिक जीवन के सामान्य कार्यों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। ऐसे समय में जब भारत नागरिकता, धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर जटिल बहस से जूझ रहा है, बोहरा अनुभव मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। दूसरों पर थोपने के लिए एक कठोर मॉडल के रूप में नहीं, बल्कि एक अनुस्मारक के रूप में कि सांस्कृतिक विविधता राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने के बजाय मजबूत कर सकती है। (लेखक निर्मल कुमार सामाजिक,आर्थिक व धार्मिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके … Read more

संपादकीय : कुनकुरी की राजनीति में चाचा-भतीजे का नया अध्याय

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कुनकुरी की राजनीति इन दिनों छत्तीसगढ़ की सियासत में अलग ही पहचान बना रही है। कभी चावल घोटाले के कारण चर्चा में रहा यह छोटा सा नगर अब राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और नगर पंचायत अध्यक्ष विनयशील के रिश्ते और रवैये को लेकर राजनीतिक विश्लेषणों का केंद्र बन गया है। विष्णुदेव साय का मुख्यमंत्री बनना कुनकुरी के लिए बड़े गौरव की बात है। यह पहला मौका है जब इस अंचल से कोई शीर्ष पद तक पहुंचा है। लेकिन इससे भी ज्यादा दिलचस्प यह है कि मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र में हुए नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जनता ने कांग्रेस के विनयशील को जिताकर एक नया संदेश दिया। यह लोकतंत्र की ताकत है, जहां व्यक्ति के काम और नीयत को प्राथमिकता दी जाती है, न कि सिर्फ पार्टी को।   विनयशील की कार्यशैली इस वक्त खास चर्चा में है। वे मुख्यमंत्री के “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” की नीति का खुलकर समर्थन करते हैं और यही कारण है कि चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों दलों के भीतर बैठे भ्रष्टाचार के संरक्षक उन्हें पसंद नहीं करते। लेकिन आम जनता में विनयशील का प्रभाव बढ़ता जा रहा है – चाहे वह राशन दुकानों की शुरुआत हो, वार्डों में सक्रियता हो, या पारदर्शिता की कोशिश।   राजनीतिक समीकरणों को अगर सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए, तो स्पष्ट होता है कि विनयशील और विष्णुदेव साय के बीच ‘राजनीतिक मतभेद’ नहीं बल्कि ‘कार्यशैली का संतुलन’ है। विनयशील, जिन्हें विष्णुदेव साय व्यक्तिगत रूप से स्नेह देते हैं, ने कभी भी उनके प्रति असम्मानजनक व्यवहार नहीं किया। नालंदा परिसर के कार्यक्रम में मंच के सामने रहकर भी उन्होंने राजनीतिक मर्यादा का उदाहरण पेश किया। अब ये भी जान लीजिए विनयशील का विष्णुदेव साय से क्या रिश्ता है तो विनयशील उन्हें चाचा कहता ही नहीं बल्कि जहां तक मुझे अंदाजा है मानता भी है।दरअसल,विनयशील के पिता विष्णु गुप्ता आजीवन संघ विचारधारा के साथ भाजपा से जुड़े रहे।कोरोना में उनकी मृत्यु हो गई।विष्णुदेव साय अपने प्रिय की मृत्यु पर दुखी हुए और मृत्युभोज पर आकर दुःखी परिवार को हिम्मत दी थी।   और यही विनयशील की राजनीति की परिपक्वता है – वे सीधे टकराव नहीं करते, लेकिन चुपचाप बड़े दांव खेलते हैं। नालंदा परिसर का नाम धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम करने की मांग इस बात का प्रमाण है। यह सिर्फ एक नामकरण नहीं बल्कि भाजपा की आदिवासी राजनीति के भीतर सेंध लगाने की चतुर चाल भी है। अब यूथ कांग्रेस इस मुद्दे को विश्व आदिवासी दिवस तक आंदोलन का रूप देने की तैयारी में है।   इस सबके बीच भाजपा खेमे में असहजता दिखती है। विनयशील पर काम रोकने के आरोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आए। वहीं, विनयशील के विरोधी भी इस बात को नकार नहीं सकते कि वे न सिर्फ जनता के छोटे-छोटे काम करवा रहे हैं, बल्कि कागजी सबूतों के साथ भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर कर रहे हैं – जो स्थानीय राजनीति में दुर्लभ है।   कुनकुरी की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर है। चाचा-भतीजे की इस जोड़ी को जनता उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। जनता को इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई भाजपा में है या कांग्रेस में, उसे बस यह दिखना चाहिए कि उसके इलाके में काम हो रहा है, पारदर्शिता है और उसकी आवाज सुनी जा रही है।   अब देखना यह है कि कुनकुरी की यह ‘सियासी कैमिस्ट्री’ वास्तव में जनता के लिए ‘सुनहरे विकास’ का सूत्र बनेगी या आने वाले चुनावों में यह समीकरण एक नए संघर्ष की ओर बढ़ेगा।   – संपादक संतोष चौधरी ख़बर जनपक्ष  

श्री जगन्नाथ महाप्रभु की सज रही है भव्य रथ, गजपति महाराजा की भूमिका निभाएंगे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय एवं धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय, विभिन्न झांकियां एवं कीर्तन मंडली की प्रस्तुति से क्षेत्र होगा भक्तिमय

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जशपुर,27/06/2025 – जगन्नाथ मंदिर दोकड़ा में इस वर्ष रथ यात्रा को लेकर भव्य तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जी की रथ यात्रा का आयोजन ओडिशा के पूरी धाम की परंपरा के अनुरूप किया जा रहा है। मंदिर समिति के अनुसार, इस वर्ष रथ यात्रा में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री  विष्णुदेव साय ‘गजपति महाराजा’ की परंपरागत भूमिका निभाएंगे, वहीं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय भी इस ऐतिहासिक आयोजन में सहभागी बनेंगी। श्री जगन्नाथ मंदिर समिति दोकड़ा ने रथ यात्रा की सभी तैयारियां पूर्ण कर ली हैं। आकर्षक ढंग से सजाई जा रही महाप्रभु की रथ मंदिर परिसर से चलकर मौसी बाड़ी तक पहुंचेगी, जहां विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। यह रथ यात्रा केवल धार्मिक महत्व नहीं रखती, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक विरासत और परंपरा का भी प्रतीक बन गई है। रथ यात्रा में ओडिशा की पारंपरिक विधियों के अनुसार सारी रस्में निभाई जाएंगी। ओडिशा से आमंत्रित विद्वान पंडितों द्वारा पूजन अनुष्ठान और विधिविधान के साथ महाप्रभु को रथ पर विराजमान कराया जाएगा। साथ ही कीर्तन मंडलियों और झांकियों की प्रस्तुतियों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठेगा। हजारों श्रद्धालुओं के उमड़ने की संभावना को देखते हुए प्रशासन एवं समिति ने सुरक्षा, यातायात और सुविधा व्यवस्था को लेकर भी व्यापक प्रबंध किए हैं। यह रथ यात्रा न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य अनुभव होगी, बल्कि दोकड़ा क्षेत्र के लिए भी गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण बनेगी।