“बेटी पढ़ाओ” की खुली पोल — दो छात्राओं को परीक्षा से वंचित करने के पीछे किसका हाथ? छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज है भी या नहीं? प्राचार्य की मनमानी देखिए,
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से छत्तीसगढ़ भू-भाग आदिम जनजातियों,अनुसूचित जातियों का रहा है,जिन्हें भारत सरकार ने संविधान के तहत विशेष दर्जा दिया हुआ है।जिनको मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार कोशिशें हुईं हैं।वहीं “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” के नारे के साथ इन अंचलों की बेटियों को शिक्षा देने के लिए हर तरह से कोशिशें जारी है लेकिन कुछ कुंठित मानसिकता से ग्रसित लोग शिक्षा के मंदिरों में बैठकर मनमानी कर रहे हैं। दरअसल, मरवाही विकासखंड से एक बेहद चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना सामने आई है। यहां स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय, सिवनी में पढ़ने वाली दो आदिवासी छात्राओं को 11वीं की मुख्य परीक्षा से सिर्फ इसीलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि एक के आधार कार्ड और मार्कशीट में नाम का अंतर था और दूसरी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं था। पहली छात्रा देवकी पावले — पंडरी गांव की निवासी है। उसने 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद आत्मानंद स्कूल में 11वीं में प्रवेश लिया। पढ़ाई की, अर्धवार्षिक परीक्षा दी। लेकिन जब मुख्य परीक्षा आई तो स्कूल प्रबंधन ने उसे परीक्षा देने से मना कर दिया, क्योंकि आधार कार्ड में उसका नाम “देवती बाई” और मार्कशीट में “देवकी पावले” दर्ज था। देवकी ने जब आधार में सुधार करवाने की कोशिश की तो आधार केंद्र ने 10,000 रुपये की मांग की — एक गरीब आदिवासी परिवार के लिए असंभव रकम। मजबूर होकर उसने परीक्षा छोड़ दी, और उसका पूरा साल खराब हो गया। दूसरी छात्रा शालिनी पेंड्रो — यही स्कूल, यही कक्षा, लेकिन समस्या दूसरी। उसका जाति प्रमाण पत्र नहीं बना था। बस इसी वजह से उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। स्कूल प्रशासन की यह मनमानी न सिर्फ छात्रा के भविष्य के साथ अन्याय है, बल्कि आदिवासी समाज के लिए भी एक अपमान है। गांव के सरपंच तपेश्वर पोट्टम ने मौके पर पहुंचकर नाराज़गी जताई और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की। वहीं मरवाही के विकासखंड शिक्षा अधिकारी दिलीप कुमार पटेल ने स्वीकार किया कि उन्हें इस घटना की जानकारी मीडिया से मिली है। उन्होंने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है, और पूरक परीक्षा में दोनों छात्राओं को शामिल कर उनका एक साल बचाने की पूरी कोशिश की जाएगी। मरवाही आदिवासी बहुल इलाका है। यहां आदिवासी विधायक हैं, आदिवासी कलेक्टर हैं — ऐसे में दो आदिवासी छात्राओं का आधार और जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ों के कारण परीक्षा से वंचित हो जाना शासन-प्रशासन के लिए गहरी चिंता और शर्म का विषय होना चाहिए। अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ जांच और आश्वासन से इन छात्राओं का भविष्य संवर पाएगा? या फिर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई कर सरकार यह संदेश देगी कि ‘बेटी पढ़ाओ’ सिर्फ नारा नहीं, एक जिम्मेदारी है।