नि:संतान दम्पत्तियों की उम्मीद जगाने 27 अप्रैल को मशहूर चिकित्सक डॉ. रश्मि गोयल कुनकुरी में लगाएंगी शिविर,पंजीयन शुरू

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कुनकुरी/जशपुर,20 अप्रैल 2025 – आज के इस आधुनिक युग में तनाव और प्रदूषण की वजह से बाँझपन की समस्या बहुत कॉमन होती जा रही है। शादीशुदा कपल जब तक इसके इलाज के लिए अपने आप को तैयार कर पाते हैं, तब तक उनकी उम्र ज़्यादा हो जाती है। अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल एवम् आईवीएफ सेंटर रायगढ़ के द्वारा 27 अप्रैल 2025,दिन रविवार को निः संतान दंपतियों के लिए निःशुल्क जांच एवम् परामर्श ओपीडी का आयोजन,अग्रसेन भवन कुनकुरी मे किया जा रहा है। इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ रश्मि गोयल,निःशुल्क जांच एवम् परामर्श हेतु उपलब्ध रहेंगी। डॉ. रश्मि ने बताया कि इस शिविर का उद्देश्य लोगों में निःसंतानता को लेकर जागरूकता लाना है, जिससे कि लोग सही समय में इस समस्या का इलाज करा सकें। इस शिविर का उद्देश्य समाज की सोच में बदलाव लाना भी है क्योंकि अभी भी कई परिवार इस समस्या को एक अभिशाप मानते हैं और औरत को ही दोषी मानते है जबकि सर्वे के मुताबिक़ 50% से ज़्यादा मामले में बांझपन के लिये पुरुष जिम्मेदार रहते हैं। अपैक्स हॉस्पिटल के द्वारा पूर्व में भी ऐसे शिविर का आयोजन किया जाता रहा है,तथा  निःसंतानता के इलाज की सभी एडवांस तकनीक को रायगढ़ शहर में उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत रहता है,इसी वजह से अपैक्स हॉस्पिटल पूरे छतीसगढ़ में इन्फ़र्टिलिटी के मामले में अधिकतम सफलता देने में सफल रहा है। डॉ रश्मि ने बताया कि हमारा यही प्रयास रहेगा कि कुनकुरी व आस पास के लोगो को इलाज के लिए महानगरों की और पलायन ना करना पड़े। अस्पताल प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार इस शिविर में निःशुल्क वीर्य जॉच एवम् निःशुल्क सलाह एवं अन्य सभी जाँच में विशेष रियायत दी जाएगी। असुविधा से बचने के लिए अस्पताल के मो न. 9329142515, 9329915092 में अग्रिम पंजीयन करवाया जा सकता है।

“बेटी पढ़ाओ” की खुली पोल — दो छात्राओं को परीक्षा से वंचित करने के पीछे किसका हाथ? छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज है भी या नहीं? प्राचार्य की मनमानी देखिए,

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अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से छत्तीसगढ़ भू-भाग आदिम जनजातियों,अनुसूचित जातियों का रहा है,जिन्हें भारत सरकार ने संविधान के तहत विशेष दर्जा दिया हुआ है।जिनको मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार कोशिशें हुईं हैं।वहीं “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” के नारे के साथ इन अंचलों की बेटियों को शिक्षा देने के लिए हर तरह से कोशिशें जारी है लेकिन कुछ कुंठित मानसिकता से ग्रसित लोग शिक्षा के मंदिरों में बैठकर मनमानी कर रहे हैं। दरअसल, मरवाही विकासखंड से एक बेहद चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना सामने आई है। यहां स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय, सिवनी में पढ़ने वाली दो आदिवासी छात्राओं को 11वीं की मुख्य परीक्षा से सिर्फ इसीलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि एक के आधार कार्ड और मार्कशीट में नाम का अंतर था और दूसरी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं था। पहली छात्रा देवकी पावले — पंडरी गांव की निवासी है। उसने 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद आत्मानंद स्कूल में 11वीं में प्रवेश लिया। पढ़ाई की, अर्धवार्षिक परीक्षा दी। लेकिन जब मुख्य परीक्षा आई तो स्कूल प्रबंधन ने उसे परीक्षा देने से मना कर दिया, क्योंकि आधार कार्ड में उसका नाम “देवती बाई” और मार्कशीट में “देवकी पावले” दर्ज था। देवकी ने जब आधार में सुधार करवाने की कोशिश की तो आधार केंद्र ने 10,000 रुपये की मांग की — एक गरीब आदिवासी परिवार के लिए असंभव रकम। मजबूर होकर उसने परीक्षा छोड़ दी, और उसका पूरा साल खराब हो गया। दूसरी छात्रा शालिनी पेंड्रो — यही स्कूल, यही कक्षा, लेकिन समस्या दूसरी। उसका जाति प्रमाण पत्र नहीं बना था। बस इसी वजह से उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। स्कूल प्रशासन की यह मनमानी न सिर्फ छात्रा के भविष्य के साथ अन्याय है, बल्कि आदिवासी समाज के लिए भी एक अपमान है। गांव के सरपंच तपेश्वर पोट्टम ने मौके पर पहुंचकर नाराज़गी जताई और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की। वहीं मरवाही के विकासखंड शिक्षा अधिकारी दिलीप कुमार पटेल ने स्वीकार किया कि उन्हें इस घटना की जानकारी मीडिया से मिली है। उन्होंने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है, और पूरक परीक्षा में दोनों छात्राओं को शामिल कर उनका एक साल बचाने की पूरी कोशिश की जाएगी। मरवाही आदिवासी बहुल इलाका है। यहां आदिवासी विधायक हैं, आदिवासी कलेक्टर हैं — ऐसे में दो आदिवासी छात्राओं का आधार और जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ों के कारण परीक्षा से वंचित हो जाना शासन-प्रशासन के लिए गहरी चिंता और शर्म का विषय होना चाहिए। अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ जांच और आश्वासन से इन छात्राओं का भविष्य संवर पाएगा? या फिर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई कर सरकार यह संदेश देगी कि ‘बेटी पढ़ाओ’ सिर्फ नारा नहीं, एक जिम्मेदारी है।

झारखंड से पकड़ा गया लाखों के गबन का फरार ब्रांच मैनेजर, बगीचा पुलिस की सटीक कार्रवाई,पुलिस बोली – अपराधी कोई भी हो, कानून से नहीं बच सकता

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बगीचा/जशपुर,19 अप्रैल 2025 – स्पंदना स्फूर्ति फाइनेंस लिमिटेड में 2.69 लाख रुपए के गबन के मामले में फरार चल रहे ब्रांच मैनेजर नितेश विश्वकर्मा को जशपुर पुलिस ने झारखंड के पलामू जिले से गिरफ्तार कर लिया है। इस मामले में एक अन्य आरोपी सूरज कुमार भारती को पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है। फाइनेंस कंपनी का पैसा खुद खर्च कर रहे थे आरोपी बगीचा फाइनेंस शाखा के मैनेजर नरेंद्र साहू ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि शाखा के कर्मचारी सूरज भारती और ब्रांच मैनेजर नितेश ने मिलकर ₹2,69,051 की गबन की। दोनों आरोपी लोन की किस्तों को ग्रामीण महिला हितग्राहियों से वसूल कर कंपनी में जमा करने की बजाय कैश और फोनपे के जरिए खुद खर्च कर रहे थे। ग्रामीण महिलाओं की शिकायत के बाद मामला उजागर हुआ और फाइनेंस कंपनी की जांच में दोनों की मिलीभगत की पुष्टि हुई। घटना के बाद से फरार था आरोपी, झारखंड से पकड़ा गया मामला दर्ज होने के बाद से नितेश विश्वकर्मा फरार चल रहा था। एसएसपी शशि मोहन सिंह के निर्देशन में निरीक्षक संतलाल आयाम के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई। लगातार दबिश और साइबर सेल की मदद से पुलिस को पता चला कि आरोपी पिपरा खुर्द (पलामू, झारखंड) में छिपा है। टीम ने मौके पर दबिश देकर आरोपी को गिरफ्तार कर जशपुर लाया। पूछताछ में आरोपी ने स्वीकार किया कि उसने अपने साथी सूरज के साथ मिलकर रकम गबन की और उसे घरेलू खर्चों में उड़ा दिया। पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवालों का मिला करारा जवाब इस कार्रवाई को लेकर कुछ वर्गों द्वारा राजनीतिक टिप्पणी की जा रही थी, लेकिन पुलिस ने यह गिरफ्तारी कर साफ कर दिया कि जशपुर पुलिस का फोकस सिर्फ अपराध और अपराधियों पर है, न कि किसी दबाव या राजनीति पर। जशपुर पुलिस ने कहा – अपराधी कोई भी हो, बख्शा नहीं जाएगा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शशि मोहन सिंह ने कहा, “हमारी प्राथमिकता है कि अपराध करने वाले को कानून के दायरे में लाया जाए और पीड़ित को न्याय मिले। पुलिस पर जनता और जनप्रतिनिधियों का भरोसा बना हुआ है, जिसे हम कायम रखेंगे।” टीम ने किया सराहनीय कार्य इस मामले की विवेचना और गिरफ्तारी में निरीक्षक संतलाल आयाम, आर. 685 मुकेश पांडेय, आर. 747 उमेश भारद्वाज और सायबर सेल के सै. बली रवि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कुनकुरी का सरकारी अस्पताल बना किडनी मरीजों के लिए नई उम्मीद की किरण,मरीजों ने कहा- ‘जीवन वापसी के लिए धन्यवाद’

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जशपुर,कुनकुरी 19 अप्रैल 2025 – आदिवासी बहुल जिला जशपुर के हृदयस्थल कुनकुरी में अब किडनी रोग से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत और जीवन की नयी उम्मीद का केंद्र बन चुका है – कुनकुरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत संचालित किडनी डायलिसिस सेंटर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की दूरदर्शी सोच और दृढ़ संकल्प से यह सेंटर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और पीएमएनडीपी के तहत 21 फरवरी 2025 से शुरू किया गया। दीपचंद्र डायलिसिस सेंटर, दिल्ली के सहयोग से संचालित यह सुविधा आज सैकड़ों मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। मरीजों की जुबानी – जीवन वापसी की कहानी   फरसाबहार विकासखंड के देवरी गांव से आये विजय कुमार एक्का, एक रिटायर्ड फौजी हैं। वे सीकेडी स्टेज 5 से पीड़ित हैं और पहले रांची व अंबिकापुर जाकर डायलिसिस कराने की परेशानी झेलते थे। अब कुनकुरी में उपचार मिल रहा है तो विजय एक्का और उनकी पत्नी को राहत की सांस मिली है। विजय कहते हैं, ” जीने की उम्मीद छोड़ दिया था,अब लगता है जीवन लंबा और आसान रहेगा। बस एक ब्लड बैंक की सुविधा और हो जाए तो  किडनी मरीजों को और राहत मिल जाएगी।” बेमताटोली के प्रदीप पाल पहले रायपुर जाकर डायलिसिस कराते थे। हर यात्रा में 8 से 10 हजार रुपये खर्च हो जाते थे। वे बताते हैं, “अब कुनकुरी में फ्री डायलिसिस से राहत मिली है, जिससे मुझे कर्ज से निकलने की राह दिखाई दे रही है।” चटकपुर के लाल बहादुर सिंह को सप्ताह में चार बार डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। वे अब आसानी से हर बार मोटरसाइकिल से 50 रुपये के पेट्रोल से कर आ-जा पाते हैं। उनका कहना है, “सरकार ने सारी सुविधाएं मुफ्त दी हैं, हम जैसे गरीबों के लिए यह बहुत बड़ी बात है।” ऐसे ही अनुभव और भी मरीजों ने ख़बरजनपक्ष से शेयर किए। आधुनिक मशीनें ,महानगरों जैसी सुविधा भी सेंटर मैनेजर अभिषेक कुमार गिरी और सीनियर टेक्नीशियन सुमित मिश्रा मरीजों की सेवा में पूरी तल्लीनता से जुटे हैं। मरीजों को समय पर डायलिसिस, परामर्श और जीवन जीने की प्रेरणा भी दी जा रही है। अब तक सेंटर पर – 21 से 28 फरवरी के बीच 14 डायलिसिस सेशन हुए, मार्च महीने में 185 डायलिसिस सेशन, 17 एक्टिव मरीजों के साथ, और 1 से 18 अप्रैल तक 116 सेशन हो चुके हैं। सेंटर हर दिन सुबह 7:30 से शाम 4:30 तक चालू रहता है। एक मरीज के डायलिसिस में करीब 4 घंटे का समय लगता है। खास बात यह है कि यहाँ की मशीनें अत्याधुनिक हैं, जो किसी भी बड़े शहर के अस्पताल से कम नहीं। जरूरत – बंद ब्लड बैंक शुरू करने की कई मरीजों ने बताया  कि डायलिसिस से पहले ब्लड की आवश्यकता होती है, पर कुनकुरी में ब्लड बैंक बंद होने के कारण जशपुर जाकर ब्लड चढ़वाना पड़ता है। इससे न सिर्फ आर्थिक बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी वे परेशान होते हैं। यदि कुनकुरी में ही ब्लड बैंक की सुविधा मिले तो मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी। जानकारी का आभाव-बाकी विकासखंडों तक पहुंचे यह संदेश इस बेहतरीन सुविधा की जानकारी अभी केवल कुनकुरी और आसपास के क्षेत्र तक सीमित है। जबकि दुलदुला, कांसाबेल, बगीचा और फरसाबहार जैसे विकासखंडों के कई मरीज अभी तक इससे अनजान हैं। जरूरत है कि शासन और प्रशासन द्वारा इन इलाकों में जागरूकता फैलाकर अधिक से अधिक मरीजों को इसका लाभ दिलाया जाए। कुनकुरी का यह डायलिसिस सेंटर एक मिसाल बन चुका है – जहां सरकार की नीतियां, तकनीकी उन्नति और संवेदनशीलता का संगम दिखाई देता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की यह पहल आदिवासी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी साबित हो रही है। यह सिर्फ एक हेल्थ सेंटर नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की मुस्कान और उम्मीदों का केंद्र बन गया है।

विशेष लेख : भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत: परंपरा, पहचान और नवाचार का समागम,

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निर्मल कुमार भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक भी है। यह विविधता की वह जीवंत परंपरा है जो हज़ारों वर्षों से कई धर्मों, भाषाओं, कलाओं और जीवनशैलियों को अपने भीतर समाहित किए हुए है। आज जब वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और सामाजिक तनाव हमारे चारों ओर गहराते जा रहे हैं, भारत का यह साझा सांस्कृतिक बुनियाद एक ऐसा नैतिक और व्यावहारिक संसाधन बन कर उभरता है जिससे हम न केवल अपने देशवासियों को जोड़ सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी समरसता, सहयोग और सतत विकास का मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं। सह-अस्तित्व की परंपरा और आध्यात्मिक एकता भारत के इतिहास में सह-अस्तित्व की भावना सबसे प्रमुख रही है। हमारे संतों, कवियों और विचारकों ने कभी सीमाओं में विश्वास नहीं किया। कबीर, रैदास, गुरु नानक, संत तुकाराम, मीराबाई और बुल्ले शाह जैसे संतों ने धर्मों के बीच की दीवारों को तोड़कर आध्यात्मिक एकता का मार्ग दिखाया। सूफी और भक्ति आंदोलन ने भारत को एक साझा आध्यात्मिक चेतना दी, जिसने धर्म के नाम पर होने वाले विभाजन को चुनौती दी और प्रेम, करुणा, सेवा और समता को केंद्र में रखा। आज अजमेर शरीफ, निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह, वाराणसी के घाट, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, कोणार्क और मदुरै के मंदिर जैसे स्थल न केवल तीर्थ हैं, बल्कि विविध सांस्कृतिक पहचान के मिलन बिंदु भी हैं। इन स्थलों पर हर वर्ग, धर्म और जाति के लोग समान श्रद्धा से आते हैं। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक समस्याओं का समाधान भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली — जैसे आयुर्वेद, योग, सिद्ध चिकित्सा, वास्तु शास्त्र, पंचगव्य, जैविक खेती और पारंपरिक जल-संरक्षण प्रणाली — आज फिर से प्रासंगिक होती जा रही हैं। COVID-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया प्राकृतिक जीवनशैली की ओर मुड़ी, तब भारत के योग और आयुर्वेद को नई वैश्विक मान्यता मिली। रैनी वाटर हार्वेस्टिंग की सदियों पुरानी भारतीय तकनीकें — जैसे कि राजस्थान की बावड़ियां, कर्नाटक की कावेरी प्रणाली और पूर्वोत्तर भारत की बांस आधारित जल निकासी प्रणालियाँ — अब शहरी योजनाओं में शामिल की जा रही हैं। यह ज्ञान केवल ग्रामीण भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे महानगरों की योजनाओं में भी पारंपरिक जल प्रबंधन पद्धतियों को एकीकृत किया जा रहा है। विविध कलाएँ: जीवित परंपराओं का स्वरूप भारत की कलात्मक विरासत उतनी ही समृद्ध है जितनी कि इसकी आध्यात्मिक परंपरा। वारली, मधुबनी, गोंड, पट्टचित्र और फड़ चित्रकला जैसे जनजातीय और लोक कला रूप हमारी विविधता को जीवंत रखते हैं। कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, मोहिनीअट्टम और बाउल संगीत जैसी कलाएँ आज भी नई पीढ़ियों द्वारा सीखी और प्रस्तुत की जा रही हैं। डिजिटल युग में, इन कलाओं को पुनर्जीवित करने की ज़िम्मेदारी भी तकनीक ने ली है। “क्राफ्ट विलेज”, “गूगल आर्ट्स एंड कल्चर”, और “हुनर हाट” जैसी पहलें कारीगरों और कलाकारों को नए बाज़ार और दर्शक दे रही हैं। इससे न केवल संस्कृति संरक्षित हो रही है, बल्कि आजीविका के अवसर भी बढ़ रहे हैं। जशपुर: आदिवासी विरासत की चमक छत्तीसगढ़ का जशपुर ज़िला इस साझा विरासत की अनदेखी लेकिन अत्यंत मूल्यवान धरोहर है। यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, पर्यावरणीय संतुलन और हस्तशिल्प कला का केंद्र रहा है। यहाँ की पत्थलगड़ी परंपरा, पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा प्रणाली और नृत्य जैसे सरहुल, कर्मा, दंडा, सुवा और पंथी आदिवासी गौरव के जीवंत रूप हैं। जशपुर के बघिमा और गिंगला जैसे गाँवों में महिलाएं पारंपरिक हस्तशिल्प में माहिर हैं — जैसे बांस की टोकरियाँ, साज-सज्जा की वस्तुएं और स्थानीय प्राकृतिक रंगों से बने कपड़े। ये सिर्फ कलात्मक उत्पाद नहीं, बल्कि पारंपरिक ज्ञान की सजीव पुस्तकें हैं। इस जिले के बच्चों को अगर अपनी परंपरा से जोड़ा जाए तो वे वैश्विक नागरिक बनते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ाव बनाए रख सकते हैं। सांस्कृतिक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध भारत की सांस्कृतिक विरासत अब केवल सीमाओं के भीतर की बात नहीं रही। भारत-नेपाल के तारा धाम या भारत-भूटान की बौद्ध विरासत पर संयुक्त शोध परियोजनाएँ, बांग्लादेश के साथ साझा भाषा उत्सव, और श्रीलंका में रामायण पर्यटन सर्किट जैसे प्रयास इस बात का प्रमाण हैं कि सांस्कृतिक विरासत कूटनीति का एक मज़बूत माध्यम बन चुकी है। नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और बौद्ध सर्किट का विकास भारत की उस विरासत को दोबारा जीवित करने का प्रयास है, जिसने कभी एशिया को बौद्धिक और नैतिक नेतृत्व दिया था। शिक्षा में विरासत की भूमिका राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि विद्यार्थियों को केवल रोजगार के योग्य ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी सजग और संवेदनशील नागरिक बनाया जाए। स्कूली पाठ्यक्रमों में स्थानीय इतिहास, पारंपरिक ज्ञान और कला को स्थान देने से बच्चे अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। देशभर में चल रही “हेरिटेज वॉक”, “लोक उत्सव” और “स्कूल इन म्यूज़ियम” जैसी पहलें इसी सोच का हिस्सा हैं। भविष्य की दिशा भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत एक स्थिर स्मारक नहीं है, बल्कि वह गतिशील धरोहर है जो निरंतर विकसित हो रही है। यह सिर्फ़ अतीत की कहानियाँ नहीं सुनाती, बल्कि हमें यह सिखाती है कि सहिष्णुता, विविधता और समावेशिता ही स्थायी प्रगति का मार्ग है। आज जबकि पूरी दुनिया अपनी पहचान की तलाश में असमंजस में है, भारत के पास एक ऐसा सांस्कृतिक मॉडल है जो अतीत की गहराई, वर्तमान की चुनौती और भविष्य की संभावनाओं—तीनों को संतुलित करता है। इस मॉडल को और मज़बूत बनाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को न केवल संरक्षित करें, बल्कि सक्रिय रूप से उसका उपयोग शिक्षा, रोजगार, सामाजिक समरसता और वैश्विक संवाद के लिए करें। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि भारत की यह बहुरंगी, बहुस्तरीय, और बहुधर्मी सांस्कृतिक धरोहर केवल किताबों और स्मारकों में न रह जाए, बल्कि हमारी ज़िंदगी की धड़कनों में बनी रहे — आज, कल और आने वाली पीढ़ियों तक। (लेखक निर्मल कुमार अंतर्राष्ट्रीय समाजिक-आर्थिक मामलों के जानकार हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर 27 अप्रैल को कुनकुरी में

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अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर 27 अप्रैल को कुनकुरी में कुनकुरी | 16 अप्रैल 2025 अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेंटर, रायगढ़ द्वारा नि:संतान दंपतियों के लिए एक विशेष निःशुल्क जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन 27 अप्रैल 2025, दिन रविवार को अग्रसेन भवन, कुनकुरी में किया जा रहा है। इस शिविर में प्रसिद्ध इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. रश्मि गोयल नि:शुल्क जांच और परामर्श हेतु उपलब्ध रहेंगी। शिविर का उद्देश्य नि:संतानता को लेकर जागरूकता फैलाना और सही समय पर इलाज हेतु लोगों को प्रेरित करना है। बांझपन अब कोई अभिशाप नहीं – डॉ. रश्मि गोयल डॉ. रश्मि ने बताया कि आधुनिक जीवनशैली, अत्यधिक तनाव और बढ़ते प्रदूषण के कारण बांझपन एक आम समस्या बन चुकी है। कई बार कपल जब तक इलाज के लिए तैयार होते हैं, तब तक उम्र बढ़ जाती है और सफलता की संभावना घट जाती है। उन्होंने कहा कि इस शिविर का उद्देश्य सिर्फ इलाज ही नहीं बल्कि समाज में इस विषय को लेकर सकारात्मक सोच विकसित करना भी है। उन्होंने बताया कि आज भी कई परिवार महिलाओं को दोषी मानते हैं, जबकि शोधों के अनुसार 50% से अधिक मामलों में पुरुष बांझपन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। रायगढ़ में उपलब्ध है एडवांस तकनीक अपेक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल पहले भी इस प्रकार के शिविर आयोजित करता रहा है और रायगढ़ में सभी आधुनिक इनफर्टिलिटी तकनीकों को उपलब्ध कराने में अग्रणी रहा है। अस्पताल छत्तीसगढ़ में आईवीएफ और इनफर्टिलिटी के मामलों में सर्वाधिक सफलता दर के साथ काम कर रहा है। स्थानीय इलाज, महानगरों जैसा भरोसा डॉ. रश्मि गोयल ने कहा कि हमारा प्रयास है कि कुनकुरी व आसपास के इलाकों के मरीजों को इलाज के लिए महानगरों की ओर न जाना पड़े। इस शिविर के माध्यम से हम उन्हें विशेषज्ञ परामर्श और प्राथमिक जांच सुविधाएं यहीं उपलब्ध कराएंगे। शिविर में ये सुविधाएं रहेंगी उपलब्ध: नि:शुल्क वीर्य जांच नि:शुल्क विशेषज्ञ परामर्श अन्य सभी जाँचों में विशेष रियायतें कैसे कराएं पंजीयन? अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि सीमित स्लॉट के कारण इच्छुक दंपती मोबाइल नंबर 9329142515 या 9329915092 पर कॉल करके अग्रिम पंजीयन करवा सकते हैं, जिससे उन्हें किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।

क्राइम किलर SSP शशिमोहन ने किया केमिकल अटैक का खुलासा, व्यापारी पर हमला करने वाला आरोपी गिरफ्तार

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जशपुर,16 अप्रैल 2025 ➡️ आरोपी चंकी गुप्ता गिरफ्तार ➡️ व्यापारी अमन अग्रवाल पर किया था जानलेवा हमला ➡️ बाइक और केमिकल डब्बा जब्त ➡️ बीएनएस की धारा 109(1) के तहत मामला दर्ज पत्थलगांव में व्यापारी अमन अग्रवाल पर हुए सनसनीखेज केमिकल हमले की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली है। जशपुर पुलिस ने आरोपी चंकी गुप्ता (32), निवासी कापू, रायगढ़ को गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है। हमला ऐसे दिया गया था अंजाम 5 अप्रैल की रात 9:30 बजे अमन अग्रवाल अपनी दुकान बंद कर घर लौट रहे थे, तभी एक बाइक सवार ने उन पर मिट्टी तेल जैसी गंध वाला ज्वलनशील केमिकल फेंका और जलती हुई तिल्ली से आग लगाने की कोशिश की। सौभाग्य से अमन बाल-बाल बच गए। ऐसे खुला मामला पहले कोई ठोस सुराग न मिलने पर पुलिस ने तकनीकी जांच, सीसीटीवी फुटेज खंगाले लेकिन जब कुछ हाथ नहीं लगा तो पीड़ित और आरोपी के बीच पुराने विवाद को ध्यान में रखते हुए जांच की दिशा बदली गई। आख़िरकार, मुखबिर की सूचना और पुलिस की तकनीकी टीम की मदद से 14 अप्रैल को आरोपी को हिरासत में लिया गया। पूछताछ में चंकी ने बताया कि फरवरी में हुए दुकान के लेन-देन विवाद से वह नाराज़ था, और बदले की भावना से उसने यह हमला किया। पुलिस ने की ये जब्ती घटना में प्रयुक्त बजाज पल्सर मोटरसाइकल (CG14MM 8554) और केमिकल से भरा डब्बा जब्त कर लिया गया है। कड़ी पूछताछ और टीम वर्क से सफलता जशपुर एसएसपी शशि मोहन सिंह ने बताया कि आरोपी ने वारदात को बहुत सफाई से अंजाम देने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस टीम की सटीक योजना, टेक्निकल एनालिसिस और मनोवैज्ञानिक पूछताछ से केस का खुलासा हो गया। जांच में इनकी रही अहम भूमिका: निरीक्षक विनीत पांडे,उप निरीक्षक अर्जुन यादव,आरक्षक पदुम वर्मा, वीरेंद्र यादव, चंद्रशेखर सिंह, सलीम कुजूर जशपुर पुलिस की यह कार्रवाई एक बार फिर यह साबित करती है कि अपराध चाहे जितना भी संगीन हो, बचना मुमकिन नहीं।  

वक्फ संपत्तियों की मुक्ति: जब संरक्षक ही लुटेरे बन जाएं

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निर्मल कुमार भारत में वक्फ संपत्तियाँ एक ऐसी अमूल्य धरोहर हैं, जिनका मूल उद्देश्य था—गरीबों की सहायता, अनाथों और विधवाओं का संरक्षण, छात्रों को छात्रवृत्ति, और समुदाय के लिए स्कूल, अस्पताल, मदरसे तथा सामुदायिक केंद्रों की स्थापना। ये संपत्तियाँ इस्लामी परंपरा में ‘अल्लाह की अमानत’ मानी जाती हैं—ऐसी संपत्तियाँ जिन्हें एक बार वक्फ कर दिया जाए, तो फिर उनका उपयोग सिर्फ सार्वजनिक भलाई के लिए ही हो सकता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज यह पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और अवसरवादी राजनीति की शिकार हो चुकी है। आज वक्फ संपत्तियों की सबसे बड़ी त्रासदी यह नहीं है कि बाहरी लोग उन्हें हड़प रहे हैं, बल्कि यह है कि जिन्हें इन संपत्तियों की रक्षा करनी थी—खुद वक्फ बोर्ड और उनके अधिकारी—वही इनकी लूट में सबसे आगे हैं। ये लोग, जिन्हें समुदाय ने ट्रस्टी मानकर अधिकार सौंपे थे, आज उन अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए संपत्तियों को सस्ते दामों पर पट्टे पर दे रहे हैं, अवैध कब्जों को नजरअंदाज कर रहे हैं, और किसी भी प्रकार की पारदर्शिता से मुँह मोड़ रहे हैं। यह विश्वासघात केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और धार्मिक भी है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 8 लाख वक्फ संपत्तियाँ और 6 लाख एकड़ भूमि वक्फ के अधीन हैं, जिनका आर्थिक मूल्य लाखों करोड़ रुपये में आँका गया है। कर्नाटक में 59 लाख एकड़, मध्य प्रदेश में 6.79 लाख एकड़ और तमिलनाडु में 6.55 लाख एकड़ भूमि वक्फ के तहत है। लेकिन विडंबना यह है कि इतनी अपार संपदा के बावजूद देश के अधिकांश मुस्लिम गरीब, अनपढ़ और सुविधाहीन हैं। अगर वक्फ संपत्तियों का सदुपयोग होता, तो हजारों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और छात्रावास खड़े हो सकते थे। लेकिन वास्तविकता यह है कि अनेक स्थानों पर वक्फ ज़मीनें कुछ रुपये महीना किराए पर पट्टे पर दी गई हैं, जिन पर मॉल, होटल और कमर्शियल टावर खड़े कर दिए गए हैं—और इनसे होने वाली कमाई या तो बोर्ड के पास नहीं आती, या फिर उसका कोई हिसाब नहीं होता। खुद वक्फ बोर्डों की भूमिका संदेह के घेरे में है। राज्य वक्फ बोर्डों पर राजनीतिक दखलंदाज़ी, भाई-भतीजावाद और अनियमित नियुक्तियाँ आम हो गई हैं। ऑडिट रिपोर्ट सालों तक लंबित रहती हैं, और जब कोई घोटाला उजागर होता भी है, तो कार्रवाई अक्सर या तो सांप्रदायिकता के नाम पर टाल दी जाती है या फिर कानूनी उलझनों में दबा दी जाती है। ज़मीनी स्तर पर लोग शिकायत करते हैं कि बोर्ड के दफ्तरों में पारदर्शिता की भारी कमी है, रजिस्टर गायब हैं, फाइलें बदल दी जाती हैं और पट्टों में हेराफेरी आम बात है। इस पृष्ठभूमि में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 एक आशा की किरण के रूप में उभरा है। यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण, GIS मैपिंग, समयबद्ध ऑडिट, ऑनलाइन शिकायत निवारण प्रणाली, और किसी भी संपत्ति लेनदेन के लिए केंद्रीय अनुमति प्रक्रिया जैसी व्यवस्थाओं को कानूनी रूप देगा। इससे न केवल वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही भी तय होगी। सरकार ने पहले ही “कौमी वक्फ बोर्ड तरक्कियाती योजना” और “शहरी वक्फ सम्पत्ति विकास योजना” जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जो वक्फ संपत्तियों के बेहतर उपयोग और बोर्डों की आधुनिकता की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। परंतु जब तक इन योजनाओं को विधायी मजबूती नहीं मिलेगी, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा। विधेयक 2025 इस बदलाव की कुंजी है। लेकिन यह भी सच है कि इस विधेयक का विरोध हो रहा है—और यह विरोध गरीबों, इमामों, अनाथों या विद्यार्थियों की ओर से नहीं है। यह विरोध उन लोगों से आ रहा है जिनकी सत्ता और लाभ की संरचना इस भ्रष्ट वक्फ व्यवस्था पर टिकी हुई है। वे धार्मिक भावनाओं की आड़ में विधेयक को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि असल में उन्हें अपनी पोल खुलने का डर सता रहा है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति फखरुद्दीन इस विधेयक को “एक ऐसा निर्णायक मोड़” कहते हैं, जो वक्फ शासन को नीयत और नीति से जोड़ता है। वहीं वक्फ मामलों की विशेषज्ञ डॉ. सबीना अहमद स्पष्ट रूप से कहती हैं कि “यह केवल एक कानूनी सुधार नहीं, बल्कि समुदाय के सम्मान की पुनर्प्राप्ति है।” अब वक्त आ गया है कि मुस्लिम समाज इस विधेयक का समर्थन खुले मन से करे। यह किसी सरकार या राजनीतिक दल का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और सम्मान का सवाल है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी वक्फ संपत्तियाँ सचमुच ‘अल्लाह की अमानत’ बनी रहें, तो हमें पहले उन्हें भ्रष्ट संरक्षकों से मुक्त कराना होगा। यह संघर्ष अब केवल कागज़ी नहीं है—यह एक नैतिक युद्ध है। अतीत की ग़लतियों को पहचानकर अगर हम आज कार्रवाई नहीं करेंगे, तो हमारी आने वाली नस्लें हमें कभी माफ नहीं करेंगी। इसलिए, वक्त आ गया है कि हम इस विधेयक के साथ खड़े हों—सिर्फ सरकार के लिए नहीं, बल्कि इंसाफ के लिए। वक्फ संशोधन विधेयक 2025 का समर्थन करें—अपने भविष्य के लिए, अपने समाज के लिए, और उस न्याय के लिए, जो अब तक सिर्फ वादों में कैद रहा है। (लेखक आर्थिक -समाजिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं।यह उनके निजी विचार हैं।)

लेख : अल्पसंख्यकों की दशकीय छात्रवृत्ति : सशक्तिकरण और चुनौतियां

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निर्मल कुमार पिछले एक दशक में भारत में अल्पसंख्यक छात्रवृत्तियाँ महज़ आर्थिक सहायता का माध्यम नहीं रही हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय, समावेश और सशक्तिकरण की दिशा में एक मूक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया है। विशेषकर मुस्लिम समुदाय जैसे उन समूहों के लिए, जो ऐतिहासिक रूप से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े रहे हैं, इन योजनाओं ने एक नई आशा और अवसरों के क्षितिज खोलने का कार्य किया है। केंद्र सरकार की दो सबसे प्रमुख योजनाएँ—प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना (PMSSS) और अल्पसंख्यकों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना—ने इस परिवर्तन का नेतृत्व किया है। हालाँकि इन योजनाओं के कार्यान्वयन में कई स्तरों पर चुनौतियाँ बनी रहीं, फिर भी इनका समग्र प्रभाव व्यापक और गहरा रहा है। PMSSS की शुरुआत जम्मू और कश्मीर के छात्रों को राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से की गई थी। यह योजना छात्रों को भारत के अन्य राज्यों के प्रतिष्ठित संस्थानों में स्नातक शिक्षा प्राप्त करने हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करती है। यद्यपि योजना किसी एक धर्म विशेष तक सीमित नहीं है, परंतु चूँकि जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक है, इसलिए इसका सर्वाधिक लाभ मुस्लिम समुदाय को ही मिला है। पिछले दस वर्षों में, इस योजना के अंतर्गत लगभग 25,000 से अधिक छात्रों को इंजीनियरिंग, चिकित्सा, मानविकी और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। इससे न केवल उनके व्यक्तिगत भविष्य को आकार मिला है, बल्कि राज्य के भीतर एक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन की लहर भी चली है। इसके बावजूद योजना को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा—विशेषकर अन्य राज्यों में आवास, सामाजिक समावेश और छात्रवृत्ति वितरण में देरी जैसी समस्याओं ने इसके प्रभाव को सीमित किया है। कई छात्रों ने बताया कि नौकरशाही की जड़ता और अस्पष्ट दिशानिर्देशों के कारण उन्हें बार-बार मानसिक और आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा। इसी तरह, अल्पसंख्यकों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना ने देश भर में लाखों अल्पसंख्यक छात्रों को उच्चतर माध्यमिक और स्नातक शिक्षा तक पहुँचने में सहायता प्रदान की है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड जैसे राज्यों में, जहाँ मुस्लिम समुदाय की साक्षरता दर अभी भी राष्ट्रीय औसत से कम है, वहाँ इस योजना ने शिक्षा के ज़रिए गरीबी के चक्र को तोड़ने की दिशा में ठोस पहल की है। CBGA द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि योजना के प्रति छात्रों की भागीदारी में लगातार वृद्धि हुई, परंतु समय पर भुगतान न होने के कारण कई लाभार्थियों को परेशानी हुई। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वित्तीय सहायता के प्रभाव को तभी बढ़ाया जा सकता है जब उसके वितरण में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए। इसके अतिरिक्त, प्री-मैट्रिक और मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्तियाँ भी अल्पसंख्यक छात्रों के जीवन में बदलाव लाने वाली योजनाओं में प्रमुख रही हैं। विशेष रूप से मुस्लिम लड़कियों के लिए, इन छात्रवृत्तियों ने स्कूलों में नामांकन दर को बढ़ाया है। कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि जहाँ पहले परिवार बेटियों को आगे की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित नहीं करते थे, वहीं अब छात्रवृत्ति की उपलब्धता के कारण रुझान में परिवर्तन आया है। फिर भी डिजिटल साक्षरता की कमी, दस्तावेज़ीकरण की जटिलताएँ, और साइबर कैफे पर निर्भरता जैसे मुद्दों ने आवेदन प्रक्रिया को कई बार हतोत्साहित करने वाला बना दिया है। मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप, जो व्यावसायिक शिक्षा जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल, फार्मेसी और होटल मैनेजमेंट के लिए दी जाती है, ने निम्न-मध्यमवर्गीय छात्रों को निजी संस्थानों में दाख़िला लेने में सक्षम बनाया है। विशेष रूप से ऐसे छात्र जिनके पास योग्यता तो है, परंतु आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण वे पीछे रह जाते हैं—उनके लिए यह योजना वरदान साबित हुई है। इन छात्रवृत्तियों का सामाजिक प्रभाव केवल शैक्षणिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। कई बार ऐसे छात्र जो इन योजनाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे अपने समुदायों में रोल मॉडल बनकर उभरते हैं। वे न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार लाते हैं, बल्कि शिक्षा के महत्व को लेकर समाज में नई चेतना का संचार करते हैं। कुछ मामलों में देखा गया है कि एक छात्र के शिक्षित होने के बाद उसके छोटे भाई-बहनों की स्कूल में भागीदारी भी स्वतः बढ़ जाती है। फिर भी, भारत जैसे विविधतापूर्ण और विशाल देश में इन योजनाओं की सफलता केवल नीतिगत घोषणाओं पर निर्भर नहीं कर सकती। यह आवश्यक है कि कार्यांवयन तंत्र में सुधार, जवाबदेही की स्पष्ट व्यवस्था, और स्थानीय स्तर पर आउटरीच कार्यक्रमों को मज़बूती से लागू किया जाए। डिजिटल इंडिया के इस युग में ज़रूरी है कि ग्रामीण और सीमांत इलाक़ों के छात्रों तक इंटरनेट, सूचना और तकनीकी संसाधनों की पहुँच हो। इसके अलावा, छात्रवृत्ति योजनाओं को केवल आर्थिक सहायता तक सीमित न रखकर, उन्हें समग्र छात्र सहायता प्रणाली में परिवर्तित करना होगा—जिसमें मेंटरशिप, करियर गाइडेंस, साइकोलॉजिकल काउंसलिंग और स्किल डेवेलपमेंट को भी जोड़ा जाए। अंततः, अल्पसंख्यक छात्रवृत्तियाँ भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में सकारात्मक हस्तक्षेप का प्रतीक हैं। ये योजनाएँ न केवल शिक्षा के अधिकार को साकार करती हैं, बल्कि सामाजिक समावेशन, लैंगिक समानता और राष्ट्रीय एकता को भी बल देती हैं। परंतु यदि इनका सही मायने में लाभ उठाना है, तो यह अनिवार्य हो जाता है कि सरकार, नागरिक समाज और समुदाय स्वयं मिलकर इन पहलों को एक सार्थक और क्रियाशील परिवर्तन के रूप में आगे बढ़ाएँ। (लेखक: अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक व आर्थिक मामलों के जानकार, यह उनका निजी विचार है)

धर्मांतरण के आरोपों को लेकर कुनकुरी में तनाव, ईसाई आदिवासी महासभा कल 14 अप्रैल को करेगी जवाबी रैली

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कुनकुरी, 13 अप्रैल 2025 – हॉली क्रॉस नर्सिंग कॉलेज कुनकुरी में धर्मांतरण के आरोपों को लेकर शुरू हुआ विवाद अब सियासी और सामाजिक रंग ले चुका है। कॉलेज की एक गैर-ईसाई छात्रा द्वारा प्राचार्या सिस्टर बिंसी जोसेफ पर धर्मांतरण का दबाव बनाने और न मानने पर प्रताड़ित करने का गंभीर आरोप लगाया गया था, जिसके बाद 10 अप्रैल को हिन्दू संगठनों ने कुनकुरी शहर में आक्रोश रैली निकाली थी। इस पूरे मामले को एक ईसाई संगठन ने प्राचार्या को बदनाम करने की साजिश बताया है। ईसाई आदिवासी महासभा, छत्तीसगढ़ ने इसे धर्म आधारित षड्यंत्र करार देते हुए 14 अप्रैल को कुनकुरी में विशाल विरोध सभा और रैली आयोजित करने का ऐलान किया है। ईसाई महासभा का आरोपिया प्राचार्या के पक्ष में बड़ा बयान महासभा का कहना है कि संबंधित छात्रा की कक्षा में उपस्थिति 75% से कम थी और उसने दो प्रमुख विषयों की आंतरिक प्रैक्टिकल परीक्षाओं में भाग नहीं लिया था। इसके बावजूद वह प्राचार्या से अधूरे असाइनमेंट्स पर हस्ताक्षर कराने का दबाव बना रही थी। जब हस्ताक्षर नहीं किए गए, तो छात्रा ने कलेक्टर और एसपी को झूठी शिकायत देकर प्राचार्या को बदनाम करने की कोशिश की। ईसाई महासभा ने आरोप लगाया है कि कुछ मीडिया चैनलों और संगठनों द्वारा झूठे आरोपों को बिना तथ्य के हवा दी जा रही है, जिससे एक ईमानदार प्राचार्या की छवि धूमिल की जा रही है। कल 14 अप्रैल को महासभा का कार्यक्रम इस प्रकार रहेगा: 1. अपराह्न 03 बजे से 04 बजे तक – विरोध सभा, स्थान: डीपाटोली, कुनकुरी 2. 04 बजे से 05 बजे तक – रैली: डीपाटोली से तहसील कार्यालय, कुनकुरी 3. 05 बजे – अनुविभागीय दंडाधिकारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा   ईसाई आदिवासी महासभा के प्रदेश महासचिव अभिनन्द खलखो ने ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की है कि अधिक से अधिक संख्या में आकर सभा और जुलूस में शामिल हों। तनाव के बीच प्रशासन अलर्ट इस विवाद के चलते कुनकुरी में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। प्रशासन दोनों पक्षों की गतिविधियों पर नजर बनाए रखी है और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।