संपादकीय : छत्तीसगढ़ में गौ-तस्करी : संरचनात्मक विफलता और शासन की नैतिक जिम्मेदारी
संतोष चौधरी

छत्तीसगढ़ में गौ-तस्करी की बढ़ती घटनाएँ अब केवल आपराधिक गतिविधि भर नहीं रहीं, बल्कि वे राज्य की पशु-कल्याण नीति, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और शासन-प्रणाली की गंभीर संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर कर रही हैं। कुनकुरी में पकड़ी गई हालिया घटना—जिसमें पिकअप वाहन में क्रूरतापूर्वक लदे मवेशियों में से एक बैल और दो गायों की दम घुटने से मृत्यु हो गई—इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि गौ-संरक्षण के दावे और जमीनी वास्तविकता के बीच गहरी खाई मौजूद है।
यह प्रश्न अत्यंत प्रासंगिक है कि जब सरकार गौ-तस्करी के विरुद्ध “जीरो टॉलरेंस” की नीति का दावा करती है, तब बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर जैसे कृषि प्रधान जिलों से बड़ी संख्या में मवेशी बिना किसी प्रभावी रोक-टोक के अंतरराज्यीय मार्गों तक कैसे पहुँच रहे हैं? स्पष्ट है कि यह समस्या केवल तस्करों की चतुराई का परिणाम नहीं, बल्कि निगरानी तंत्र की सीमाओं और प्रशासनिक समन्वय की कमी का द्योतक है।
गौ-तस्करी का मूल कारण : आवारा मवेशी और अपर्याप्त गौशालाएँ
छत्तीसगढ़ में आवारा मवेशियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। खेतों में फसल नुकसान और मवेशियों की बढ़ती तादाद से किसान विवश होकर मवेशियों को खुला छोड़ देते हैं। राज्य में उपलब्ध गौशालाओं की संख्या, उनकी क्षमता और संसाधन इस बढ़ते दबाव को संभालने में पूर्णतः अक्षम प्रतीत होते हैं। अनेक गौशालाएँ मात्र औपचारिकता बनकर रह गई हैं—जहाँ न पर्याप्त स्थान है, न चारा, न पशु चिकित्सा सुविधाएँ।
इसी शून्य का लाभ गौ-तस्कर उठाते हैं। आवारा मवेशी उनके लिए कच्चा माल बन जाते हैं। नतीजतन, तस्करी केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा न रहकर नीतिगत विफलता का रूप ले लेती है।
कानून प्रवर्तन की सीमाएँ और जोखिम
कुनकुरी की घटना में पुलिस की तत्परता सराहनीय है, किंतु यह भी ध्यान देने योग्य है कि कार्रवाई के दौरान पुलिसकर्मी घायल हुए और तस्कर अंधेरे का लाभ उठाकर फरार हो गए। यह दर्शाता है कि गौ-तस्करी जैसे संगठित अपराधों से निपटने के लिए वर्तमान व्यवस्था न तो पर्याप्त संसाधनों से लैस है और न ही तकनीकी रूप से सुदृढ़।
शासन की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी
भारतीय संविधान और पशु-कल्याण से जुड़े अधिनियम राज्य को यह दायित्व सौंपते हैं कि वह मूक पशुओं के संरक्षण और मानवीय व्यवहार को सुनिश्चित करे। गौमाता को सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से सम्मान देने का दावा तभी सार्थक होगा, जब उसे सड़कों पर बेसहारा भटकने और तस्करों के वाहनों में दम तोड़ने से बचाया जा सके।
आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप
समस्या का समाधान प्रतीकात्मक अभियानों से नहीं, बल्कि ठोस और दीर्घकालिक रणनीति से संभव है। इसके लिए—
प्रत्येक विकासखंड में पर्याप्त क्षमता वाली, सुव्यवस्थित गौशालाओं की स्थापना
आवारा मवेशियों का पंजीकरण और ट्रैकिंग प्रणाली
अंतरराज्यीय सीमाओं पर स्थायी, तकनीक-आधारित निगरानी
और गौ-तस्करी में संलिप्त पूरे नेटवर्क पर कठोर, उदाहरणात्मक कार्रवाई अनिवार्य है।
कुनकुरी की घटना एक चेतावनी है—यदि अब भी गौ-तस्करी को केवल पुलिसिया समस्या मानकर टाल दिया गया, तो यह संकट और गहराएगा। तीन गायों की मौत केवल एक समाचार नहीं, बल्कि यह उस व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न है जो गौ-संरक्षण की बात तो करती है, पर उसके लिए आवश्यक ढाँचा खड़ा करने में अब तक विफल रही है। शासन को आत्ममंथन करना होगा, क्योंकि गौमाता की दुर्दशा अंततः राज्य की प्रशासनिक और नैतिक साख से जुड़ा प्रश्न है।





















